Rh तत्व या प्रतिजन (Rh factor or Antigen) की परिभाषा तथा खोज
Rh तत्व की खोज लैण्डस्टीनर एवं वीनर (Landsteiner and Weiner, 1940) ने Rhesus monkey में की थी। इन्होंने उसके रक्त में एक प्रतिजन (antigen) का पता लगाया था जिसे इन्होंने Rhesus antigen का नाम दिया। इस Rhesus antigen को प्रभावहीन बनाने वाले प्रतिरक्षी (antibodies) बनाने के लिए उन्होंने इन बन्दरों के रक्त को rabbits एवं गिनी पिग्स (guinea pigs) के शरीर में डाला।
इनके शरीर में इनके antibodies बनने के बाद इन्होने इन जन्तुओं के रक्त से सीरम तैयार किया गया जिसमें कि ये antibodies उपस्थित थे। जब इस Rh ऐन्टीसीरम से व्यक्तियों के रुधिर की जाँच की गई तो पता चला कि Rhesus बन्दरों के अतिरिक्त, मनुष्यों में भी यह antigen पाया जाता है। भारतीयों में 97% व्यक्तियों में यह पाया गया है। जिन व्यक्तियों में यह होता है उन्हें Rh positive, Rh+ तथा जिनमें नहीं होता उन्हें Rh negative, Rh- कहते हैं।
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रुधिर-आधान में Rh तत्व का महत्त्व (Importance of Rh factor in Blood Transfusion)
वैसे तो मनुष्य के रुधिर में Rh प्रतिरक्षी (Rh antibodies) नहीं होते, लेकिन यदि Blood Transfusion में किसी Rh- वाले व्यक्ति को Rh+ वाले व्यक्ति का रुधिर चढ़ा दिया जाता है तो मनुष्य के प्लाज्मा में धीरे-धीरे Rh antibodies बनने लगते हैं।
इन antibodies की मात्रा कम होने के कारण, मनुष्य पर तुरन्त कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन यदि ऐसे व्यक्ति को दुबारा किसी Rh+ व्यक्ति का रुधिर चढ़ा दिया जाएगा तो इन antibodies के कारण व्यक्ति के रक्त के लाल रुधिराणु चिपकने लगते हैं और उसकी मृत्यु हो सकती है। अतः अब blood चढ़ाते समय, ABO blood वर्गों के ऐन्टीजनों की भाँति, Rh तत्व (Rh factor) का भी पहले पता लगा लेना आवश्यक होता है।
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Rh तत्व की वंशागति (Inheritance of Rh factor) : Rh तत्व (Rh factor) का लक्षण भी आनुवंशिक होता है। इसकी वंशागति, मेन्डेलियन नियमों के अनुसार, दो ऐलीली जीन्स (R, r) द्वारा होती है। इसमें जीन R (Rh+ लक्षण) जीन r (Rh- लक्षण) पर प्रबल (dominant) होता है। यदि Rh- female का विवाह Rh- से होता है तो ऐसे शिशुओं में कोई वंशागति देखने को नहीं मिलती है लेकिन यदि Rh+ male का विवाह रह Rh- Female के साथ हो जाता है तो उनमें एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटैलिस रोग की सम्भावना बढ़ जाती हैं।
एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटैलिस (Erythroblastosis fetalis)
एरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटैलिस का वर्णन इस प्रकार है -
1. यह Rh तत्व से सम्बन्धित रोग है जो केवल शिशुओं में, जन्म से पहले ही, गर्भावस्था में होता है। यह बहुत कम, लेकिन घातक होता है।
2. इससे प्रभावित शिशु की गर्भावस्था में ही, या फिर जन्म के शीघ्र बाद, मृत्यु हो जाती है।
3. ऐसे शिशु सदा Rh+ होते हैं।
4. इनकी माता Rh- तथा पिता Rh+ होते है।
5. इन्हें यह गुण पिता से ही वंशागति में मिलता है।
6. जब भ्रूण का विकास हो रहा होता है तो भ्रूण के कुछ लाल रुधिराणु माता के रुधिर में पहुँच जाते हैं।जिसके बाद माता के रुधिर में Rh प्रतिरक्षी (Rh antibody) बनने लगते है।
7. यह प्रतिरक्षी, माता के रुधिर में Rh प्रतिजन की अनुपस्थिति के कारण, माता को कोई हानि नहीं पहुँचाता, लेकिन जब यह माता के रुधिर के साथ भ्रूण में पहुँचता है तो इसकी लाल कणिकाओं को चिपकाने लगता है।
8. साधारणतः प्रथम गर्भ के शिशु को विशेष हानि नहीं होती, क्योंकि इस समय तक माता में Rh प्रतिरक्षी की थोड़ी-सी ही मात्रा बन पाती है। बाद के गर्भो के Rh+ शिशुओं में इस रोग की सम्भावना बढ़ जाती है।
9. जिसके कारण इसके बाद होने वाले शिशुओं की मृत्यु हो जाती हैं।
इसलिए Rh+ male का विवाह रह Rh- Female के साथ नहीं नहीं करना चाइये। क्योंकि इस रोग की सम्भावना बढ़ जाती है।
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