मानव के गुणसूत्रों में गुणसूत्र समूह उत्परिवर्तनों (Genomatic mutations) के कारण गुणसूत्रों की संख्या बदल जाती है। ऐसे परिवर्तन मुख्यतः दो प्रमुख प्रकार के होते हैं-
2. ऐन्यूप्लॉयडी (Aneuploidy)
(i) डाउन्स सिन्ड्रोम (Down's Syndrome-Langdon Down, 1866)
(ii) टरनर्स सिन्ड्रोम (Turner's Syndromes)
(iii) क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम (Klinefelter's Syndromes)
इस सिन्ड्रोम से पीड़ित व्यक्ति में कई लक्षण दिखाई देते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. इस सिन्ड्रोम वाले व्यक्ति छोटे कद और मन्द बुद्धि के होते हैं।
2. ऐसे व्यक्तियों की लगभग 16-17 वर्ष की आयु तक मृत्यु हो जाती है।
3. इनमें से केवल लगभग 8% ही 40 वर्ष तक की आयु तक जीवित रहते हैं।
4. ऐसे सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति का सिर गोल, गरदन मोटी, त्वचा खुरदरी, जीभ मोटी, अंगुलियाँ हूँठदार, मुख खुला, आँखें तिरछी और पलकें, मंगोलों की भाँति, वलित (folded) होती हैं। इसीलिए, इस सिन्ड्रोम को मंगोली जड़ता (mongoloid idiocy) भी कहते हैं।
5. इन सिन्ड्रोमों में जननांग सामान्य होते हैं, लेकिन पुरुष नपुंसक होते हैं।
(ii) टरनर्स सिन्ड्रोम (Turner's Syndromes)
(iii) क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम (Klinefelter's Syndromes)
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- यूप्लॉयडी (Euploidy; eu = even)
- ऐन्यूप्लॉयडी (Aneuploidy; aneu = uneven)
1. यूप्लॉयडी (Euploidy)
इसमें गुणसूत्रों (chromosome) की बदली हुई संख्या सदैव एक सैट, अर्थात् एकगुण संख्या (haploid 'x' or 'n' number) में या गुणों (multiples) में होती है, जैसे त्रिगुण (triploid-3n), चौगुण (tetraploid—4n) आदि । इसीलिए, इसे बहुगुणिता (polyploidy) गुणसूत्रण भी कहते हैं।
chromosome की ऐसी संख्या जन्तुओं में बहुत कम पाई जाती है और मृत्युकारक (lethal) होती है, लेकिन यह पादपों में बहुत अधिक पाया जाता है। ऐसा एक मादा युग्मक (अण्डाणु या बीजाण्ड) का दो नर युग्मकों (शुक्राणुओं या परागकणों) द्वारा निषेचन के अधूरे gametogenesis के दौरान अर्धसूत्रण (meiosis) के न होने से diploid gametes के बन जाने के फलस्वरूप होता है।
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2. ऐन्यूप्लॉयडी (Aneuploidy)
इसमें गुणसूत्रों (chromosome) की बदली हुई संख्या एकगुण सैट के गुणों में नहीं होती है, बस meiosis में एक या अधिक समजात जोड़ियों के गुणसूत्रों के परस्पर अलग न हो पाने (nondisjunction) के कारण इसके गुणसूत्रों (chromosome) की कुल संख्या कुछ कम (hypoploidy) या अधिक (hyperploidy) हो जाती है।
Chromosome का ऐसा घटना-बढ़ना ऑटोसोम्स (autosomes) में भी हो सकती है और लिंग गुणसूत्रों में भी। इससे शरीर के कई लक्षण एक साथ प्रभावित होकर रोगग्रस्त दशा का प्रदर्शन करते हैं। ऐसे लक्षणों के समूह को सिन्ड्रोम (syndrome) कहते हैं। मानव जाति में भी कई प्रकार के सिन्ड्रोम पाए जाते हैं। इनमें निम्नलिखित अधिक महत्त्वपूर्ण हैं-
(i) डाउन्स सिन्ड्रोम (Down's Syndrome-Langdon Down, 1866)
(ii) टरनर्स सिन्ड्रोम (Turner's Syndromes)
(iii) क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम (Klinefelter's Syndromes)
(i) डाउन्स सिन्ड्रोम (Down's Syndrome-Langdon Down, 1866)
औसतन 700 नवजात शिशुओं में से एक शिशु इस सिन्ड्रोम वाला होता है। इसमें 21 वीं जोड़ी के गुणसूत्र (chromosome) में दो के बजाय तीन गुणसूत्र होते हैं। अतः गुणसूत्र (chromosome) समूह (2n +1 (21)=47) होता है। तीन समान गुणसूत्रों के ऐसे समूह को ट्राइसोमिक (trisomic) तथा इस दशा को एकाधिसूत्रता (trisomy) कहते हैं।
इस सिन्ड्रोम से पीड़ित व्यक्ति में कई लक्षण दिखाई देते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. इस सिन्ड्रोम वाले व्यक्ति छोटे कद और मन्द बुद्धि के होते हैं।
2. ऐसे व्यक्तियों की लगभग 16-17 वर्ष की आयु तक मृत्यु हो जाती है।
3. इनमें से केवल लगभग 8% ही 40 वर्ष तक की आयु तक जीवित रहते हैं।
4. ऐसे सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति का सिर गोल, गरदन मोटी, त्वचा खुरदरी, जीभ मोटी, अंगुलियाँ हूँठदार, मुख खुला, आँखें तिरछी और पलकें, मंगोलों की भाँति, वलित (folded) होती हैं। इसीलिए, इस सिन्ड्रोम को मंगोली जड़ता (mongoloid idiocy) भी कहते हैं।
5. इन सिन्ड्रोमों में जननांग सामान्य होते हैं, लेकिन पुरुष नपुंसक होते हैं।
(ii) टरनर्स सिन्ड्रोम (Turner's Syndromes)
ये ऐसी स्त्रियाँ होती हैं जिनमें कि लिंग गुणसूत्रों में से केवल एक X गुणसूत्र उपस्थित होता है, अर्थात् ये लिंग गुणसूत्रों के लिए monosomic – 2n 1 या 44 + X होती हैं। औसतन, 5000 स्त्रियों में से एक को टरनर सिन्ड्रोम होता है।
इस सिंड्रोम से पीड़ित स्त्री में कई लक्षण पाए जाते हैं जोकि इस प्रकार हैं-
1. ऐसे सिंड्रोम से पीड़ित स्त्री-रूप पूर्णरूप से विकसित नहीं होती है।
2. इसका कद छोटा और जननांग अल्पविकसित होते हैं। इनमें स्तनों का विकास न होने से वक्ष चपटा होता है तथा जनद (अण्डाशय) अनुपस्थित या अर्धविकसित होते हैं।
3. इनमें मासिक धर्म भी नहीं (100% होता। इस प्रकार, ये स्त्रियाँ नपुंसक (eunuchs) होती हैं।
2. इसका कद छोटा और जननांग अल्पविकसित होते हैं। इनमें स्तनों का विकास न होने से वक्ष चपटा होता है तथा जनद (अण्डाशय) अनुपस्थित या अर्धविकसित होते हैं।
3. इनमें मासिक धर्म भी नहीं (100% होता। इस प्रकार, ये स्त्रियाँ नपुंसक (eunuchs) होती हैं।
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(iii) क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम (Klinefelter's Syndromes)
इनमें लिंग गुणसूत्र दो के बजाय तीन और प्रायः XXY होते हैं। अतः ये लिंग गुणसूत्रों के लिए ट्राइसोमिक (trisomy) होते हैं (2n + 1 या 44 + XXY )। इनमे Y गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण, इनका शरीर लगभग सामान्य पुरुषों जैसा होता है, लेकिन एक अतिरिक्त X गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण वृषण (testes) तथा अन्य जननांग छोटे होते हैं और शुक्राणु (sperms) भी नहीं बनते। अतः ये सिन्ड्रोम भी नपुंसक होते हैं। प्रायः इनमें स्त्रियों जैसे स्तनों का विकास हो जाता है। औसतन 500 पुरुषों में एक को क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम होता है।
कई ऐसे क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम भी पाए जाते हैं जिनमें लिंग गुणसूत्र XYY या XXX या तीन से अधिक—XXXY, XXXXY, XXXXXY होते हैं। XYY वाले सिन्ड्रोम लम्बे, बुद्ध, कामुक और गुस्सैल एवं उग्र स्वभाव के super males होते हैं। इनके विपरीत superfemales—XXX) प्रायः सामान्य तथा प्रजायी (fertile), परन्तु बुद्ध होती हैं।
कई ऐसे क्लाइनफेल्टर सिन्ड्रोम भी पाए जाते हैं जिनमें लिंग गुणसूत्र XYY या XXX या तीन से अधिक—XXXY, XXXXY, XXXXXY होते हैं। XYY वाले सिन्ड्रोम लम्बे, बुद्ध, कामुक और गुस्सैल एवं उग्र स्वभाव के super males होते हैं। इनके विपरीत superfemales—XXX) प्रायः सामान्य तथा प्रजायी (fertile), परन्तु बुद्ध होती हैं।
दो या दो से अधिक X गुणसूत्रों (X chromosome) वाले सब नर नपुंसक होते हैं।
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बार काय (Barr Bodies)
सन् 1949 में बार एवं वरट्राम (Barr and Bertram) ने बिल्लियों की त्वचा, मुखगुहिका की श्लेष्मिका आदि की कोशिकाओं के केन्द्रक में, प्रायः केन्द्रककला से चिपका, एक छोटा-सा घना पिण्ड देखा, जो chromosomes की तरह गहरा stain लेता है। ऐसा ही पिण्ड, तन्त्रिका कोशिकाओं के केन्द्रक में केन्द्रिका (nucleolus) के निकट तथा न्यूट्रोफिल्स में केन्द्रक से एक डण्ठल (stalk) द्वारा लगा हुआ देखा गया।
अध्ययन द्वारा बाद में पता चला कि यह पिण्ड सामान्य मादा की कोशिकाओं में ही होता है, सामान्य नर की कोशिकाओं में नहीं होता। यह भी पता चला कि यह मादाओं की somatic cells में उपस्थित XX लिंग गुणसूत्रों में से ही एक गुणसूत्र (chromosome) के निष्क्रिय हो जाने से बनता है। अतः इसे लिंग क्रोमैटिन (sex or X chromatin) बताया गया और खोजकर्ता के नाम पर इसका नाम बार काय रख दिया गया।
अब इन पिण्डों की उपस्थिति या अनुपस्थिति का उपयोग गर्भावस्था में ही सन्तान के जीनी लिंग निर्धारण में किया जाता है। अनियमित गुणसूत्रों (chromosome) वाले पुरुषों (क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम– XXY) तथा सामान्य या अनियमित गुणसूत्रों वाली स्त्रियों में उपस्थित एक से अधिक X गुणसूत्र सब बार कायों में बदल जाते हैं।
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