मानव में आनुवंशिक विकार (genetic disorders in human)
मानव में कुछ आनुवंशिक Disorders एक जीन की जोड़ियों के कारण ,कुछ एक से अधिक जीन की जोड़ियों के कारण तथा कुछ गुणसूत्रों की संख्या में गडबड़ी के कारण होती है। इनमें से कई जीनी Disorders जन्म से ही दिखाई देते हैं अर्थात वे जन्मजात होते हैं परन्तु कुछ Disorders जन्म के बाद विभिन्न आयु में विकसित होते हैं।
इन जीनी Disorders का वर्णन इस प्रकार है-
1. रंजकहीनता (Albinism)
अन्य स्तनी जीवों की तरह, मानव में त्वचा, बालों एवं आँखों की पुतली का रंग मिलैनिन (melanin) नामक रंगा-पदार्थ की उपस्थिति के कारण होता है। अतः मिलैनिन की अनुपस्थिति के कारण इनकी त्वचा तथा बाल सफेद से दिखाई देते हैं तथा इनकी पुतलियाँ, रुधिर केशिकाओं के कारण, गुलाबी या लाल दिखाई देती हैं। इनकी इसी दशा को रंजकहीनता (albinism) कहते हैं।
➤ शरीर में मिलैनिन रंग के संश्लेषण हेतु टाइरोसिनेज (tyrosinase) एन्जाइम की आवश्यकता होती है जो एक प्रबल (dominant) जीन के प्रभाव से बनता है। अतः इस जीन का साथी, सुप्त या अप्रबल (recessive) जीन रंजकहीनता का जीन होता है। इससे स्पष्ट है कि रंजकहीनता उन व्यक्तियों में दिखाई देती है जिनमें दोनों सुप्त जीन (एक पिता से तथा दूसरा माता से) मिल जाते हैं।
➤ मानव की सभी प्रजातियों (races) में लगभग 20,000 लोगों में से एक रंजकहीन (albino) होता है। यदि रंजकहीनता के जीन को हम "a" से प्रदर्शित करें और उसके साथी प्रबल जीन को “A” से तो एक रंजकहीन पुरुष और संकर (hybrid) नारी की सन्तानों में इस लक्षण की वंशागति निम्न चित्र के अनुसार होगी।
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2. ऐल्कैप्टोनूरिया (Alkaptonuria)
एन्जाइमों की कमी से मनुष्यों में अनेक प्रकार के अन्य जन्मजात उपापचयी रोग वंशागत होते हैं। ऐसे रोगों में सबसे पहले गैरोड (Garrod, 1902) ने ऐल्कैप्टोनूरिया की खोज की थी। इसमें शरीर-कोशिकाओं में फीनाइलऐलैनीन एवं टाइरोसीन (phenylalanine and tyrosine) नामक ऐमीनो अम्लों के उपयोग से सम्बन्धित उपापचय के एक चरण में होमोजेन्टीसिक अम्ल (homogentisic acid) बनता है। स्वस्थ मनुष्य में इस अम्ल का, पूर्ण उपापचय द्वारा, उपयोग हो जाता है। लेकिन ऐल्कैप्टोनूरिया के रोगी इस अम्ल का आगे विखण्डन नहीं कर पाते हैं।
➤ अतः इनके रुधिर में इसकी मात्रा बढ़ जाती है तथा जोड़ों में इसके जमाव से गठिया का रोग (arthritis) हो जाता है। फिर मूत्र में इस अम्ल का उत्सर्जन होने लगता में है। वायु लगते ही ऐसा मूत्र काला पड़ जाता है। यह दशा इस रोग की सूचक होती है।
➤ होमोजेन्टीसिक अम्ल के विखण्डन के लिए आवश्यक एन्जाइम एक प्रबल जीन के नियन्त्रण में संश्लेषित होता है। अतः मनुष्य में सम्बन्धित जीन दोनों ही सुप्त होते हैं वही ऐल्कैप्टोनूरिया का रोगी होता है।
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3. फीनाइलथायोकार्बेमाइड के स्वाद की क्षमता (Ability to taste phenylthiocarbamide PTC)
यह पदार्थ नाइट्रोजन, कार्बन और गन्धक का एक यौगिक है जो स्वाद में तीखा होता है। लगभग 30% लोगों में इसके स्वाद की क्षमता नहीं होती है। इस क्षमता का विकास एक प्रबल जीन (T) के कारण होता है। अतः जिन सदस्यों में इसके दोनों सुप्त जीन (tt) पहुँच जाते हैं उनमें इस स्वाद की क्षमता का विकास नहीं होता है।
इस रोग में, रुधिर में ऑक्सीजन की कमी होने (low oxygen tension) पर, रोगी के अधिकांश लाल रुधिराणु, हीमोग्लोबिन की विशेष आण्विक रचना के कारण, सिकुड़कर हँसियाकार और निरर्थक हो जाते हैं जिससे रोगी की मृत्यु हो सकती है। यह रोग भी सुप्त जीन के कारण होता है। इसे ही हँसियाकार-रुधिराणु ऐनीमिया (Sickle-cell Anaemia) कहते हैं।
इस रोग में, फीनाइलऐलैनीन (phenylalanine) को टाइरोसीन (tyrosine) नामक ऐमीनो अम्ल में बदलने वाले एन्जाइम, फीनाइलऐलैनीन हाइड्रोक्सीलेज (phenylalanine hydroxylase), की कमी होती है। अतः रुधिर में फीनाइलऐलैनीन बढ़ जाती है।
➤ कुछ अन्य प्रतिक्रियाओं द्वारा फीनाइलऐलैनीन फीनाइलपाइरुविक अम्ल (phenyl pyruvic acid) में बदल जाता है जो मूत्र में निकलने लगता है। इसके अन्तर्गत मनुष्य के ऊतकों में, विशेषतः मस्तिष्क के तन्त्रिका ऊतक में, फीनाइलऐलैनीन के जमाव से बच्चों में अल्पबुद्धिता (mental deficiency) हो जाती है। बच्चों की वृद्धि बाधित हो जाती है तथा मूत्र एवं पसीना बदबूदार हो जाते हैं। स्पष्ट है कि जिन व्यक्तियों में इस एन्जाइम से सम्बन्धित दोनों जीन सुप्त होते हैं उन्हीं में यह रोग होता है। लगभग 18,000 व्यक्तियों में से एक यह रोग होता है।
यह कुछ आनुवंशिक विकार हैं जो मनुष्य में उपस्थित होते हैं तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते रहते हैं।
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