जीन प्रकटन तथा जीन प्रकटन का नियमन (Gene expression) : परिभाषा तथा स्तर|hindi


जीन प्रकटन तथा जीन प्रकटन का नियमन (Gene expression)

जीन प्रकटन तथा जीन प्रकटन का नियमन (Gene expression) : परिभाषा तथा स्तर|hindi

जीन प्रकटन या जीन तथा प्रोटीन का सम्बन्ध (gene expression or relationship between genes and proteins)

आर्कीबोल्ड गैरॉड (Archibold Garrod, 1902-1909) ने अपने अध्ययन के द्वारा एकाकी उपापचयी अभिक्रियाओं की गड़बड़ी के कारण होने वाले कुछ आनुवंशिक रोगों के बारे में खोज की जिनकी वंशागति मेण्डेल के नियमों के अनुसार ही होती है। सर्वप्रथम उन्होंने ऐल्कैप्टोन्यूरिया (alkaptonuria) बाद में रंजकहीनता (albinism) आदि रोगों का पता करके अपनी पुस्तक 'उपापचय की जन्मजात त्रुटियाँ' (Inborn Errors in Metabolism) में वर्णन किया। 

 ➤  इस प्रकार की खोज से यह प्रमाणित हो सका कि आनुवंशिक लक्षणों की दृश्यरूप अभिव्यक्ति (प्रकटन) का भौतिक आधार प्रोटीन्स होती हैं। उनका अनुमान था कि विभिन्न उपापचयी क्रियाओं को जो एन्जाइम्स अर्थात् क्रियात्मक प्रोटीन्स उत्प्रेरित करते हैं, ये गड़बड़ियाँ उन्हीं में त्रुटि उत्पन्न होने के कारण होती हैं।

 ➤  बीडल तथा टैटम (Beadle and Tatum, 1941) ने अपने प्रयोगों जो उन्होंने न्यूरोस्पोरा (Neurospora) नामक कवक पर किये, सिद्ध किया कि प्रत्येक जीन में एक निश्चित एन्जाइम के संश्लेषण कराने का सन्देश (message) होता है। अत: उन्होंने एक जीन एक एन्जाइम (one gene one enzyme) मत प्रस्तुत करके 1958 ई० में नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त किया। 

 ➤  अधिक अध्ययन से बाद में पता लगा कि एक जीन में एक ही पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला (polypeptide chain) के संश्लेषण का सन्देश होता है तथा एक एन्जाइम (प्रोटीन) में एक से अधिक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ होती हैं। अतः अब यह परिकल्पना, एक जीन → एक पॉलीपेप्टाइड (one gene → one polypeptide) आनुवंशिकी या आणविक जीव विज्ञान का मूल सिद्धान्त (central dogma of heredity or molecular biology) बन गया है।

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जीन प्रकटन का नियमन (regulation of gene expression)

अब यह प्रमाणित हो चुका है कि प्रत्येक जीव के संरचनात्मक (structural) तथा क्रियात्मक (functional) लक्षणों का दृश्यरूप प्रकटन कुछ विशेष प्रकार की प्रोटीन्स के कारण होता है जो इन लक्षणों से सम्बन्धित अंगों और ऊतकों में संश्लेषित होती हैं। इससे स्पष्ट होता है कि DNA में आरक्षित संकेत सूचनाएँ वास्तव में विविध प्रकार की प्रोटीन्स के संश्लेषण के रासायनिक सन्देश होते हैं। 

कोशिकाओं के प्रत्येक भाग की संरचना में विभिन्न प्रकार की संरचनात्मक प्रोटीन (structural proteins) की प्रमुख भूमिका होती है। इसी प्रकार, कोशिकाओं की कार्यिकी अर्थात् कोशिकीय उपापचय (physiology or cellular metabolism) की प्रत्येक अभिक्रिया का उत्प्रेरण (catalysis) तथा संचालन एक विशेष प्रकार की क्रियात्मक प्रोटीन करती है। 




जीन प्रकटन का नियमन कोशिकाएँ कई स्तरों पर कर सकती हैं।

1.  जीन के लिप्यन्तरण के स्तर पर (at gene transcriptional level) - इस स्तर के अन्तर्गत कुछ विशेष डी०एन०ए० बन्धनी प्रोटीन (DNA binding protein) की सहायता से सक्रिय जीन को निष्क्रिय या निष्क्रिय जीन को सक्रिय में बदला जा सकता है अथवा जीन के transcription की दर को घटाया या बढ़ाया जा सकता है। इन proteins के genes को नियंत्रण genes (Control genes) कहते हैं।

2.  उत्तरलिप्यन्तरण के स्तर पर (post-transcriptional level) - इस स्तर में केन्द्रक में transcription के बाद बनने वाली प्राथमिक सन्देशवाहक आर०एन०ए० प्रतिलिपि (primary m-RNA transcript) का संसाधन (processing) करके इसे सक्रिय m-RNA में बदलने के अतिरिक्त इसका विघटन भी किया जा सकता है, अथवा इसके संसाधन की दर को घटाया या बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार का जीन प्रकटन का नियमन सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में होता है।

3.  अनुवादकरण के स्तर पर (at translational level) - राइबोसोम्स पर उपस्थित m-RNA अणु के अनुवादकरण द्वारा पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण को रोका जा सकता है अथवा इनके संश्लेषण (synthesis) की दर को घटाया-बढ़ाया जा सकता है।

4.  उत्तरअनुवादकरण के स्तर पर (at post-translational level) - अंत में translation द्वारा बनी नयी पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला को कार्य करने देने के बजाय, इसका विघटन किया जा सकता है अथवा इसमें कुछ परिवर्तन करके इसकी भूमिका (role) को बदला भी जा सकता है।

जीन प्रकटन तथा जीन प्रकटन का नियमन (Gene expression) : परिभाषा तथा स्तर|hindi


पूर्व केन्द्रकीय कोशिकाओं में जीन प्रकटन का नियमन (regulation of gene expression in prokaryotic cells)

 ➤  एक वर्ष 1965 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जैकब तथा मोनाड (Jacob and Monod) ने मनुष्य तथा अन्यके व स्तनियों की बड़ी आँत में पाये जाने वाले जीवाणु एश्केरीकिया कोलाई (Eischerichia coli) पर कार्य करते हुए पता किया कि इसके डी० एन० ए० अणु में एक खण्ड ऐसा होता है जो ग्लूकोज (glucose) के स्थान पर लैक्टोज (lactose) होने पर सक्रिय होकर इसके उपयोग की क्षमता उत्पन्न कर देता है। इस खण्ड को लैक ओपेरॉन (lac operon) नाम दिया गया।

 ➤  लैक्टोज के अपघटन और उससे ऊर्जा उत्पादन के लिए जिन तीन एन्जाइम्स की आवश्यकता होती है उनका संश्लेषण एक बहुसिस्ट्रॉनिक (polycistronic) mRNA अणु के अनुवादकरण (translation) से होता है। इस बहुसिस्ट्रॉनिक mRNA का संश्लेषण लैक ओपेरॉन में स्थित तीन संरचनात्मक जीन्स (structural genes) की श्रृंखला के लिप्यन्तरण (transcription) के द्वारा सम्भव है। 

 ➤  डी०एन०ए० के अणु में ही इस उपखण्ड से पूर्व तीन अन्य उपखण्ड क्रमश: I, P तथा O होते हैं। इनमें से I जीन के रूप में इस उपखण्ड से एक लैक निरोधक प्रोटीन का संश्लेषण होता है, ग्लूकोज के उपलब्ध होते रहने पर यह लैक निरोधक प्रोटीन O उपखण्ड से जुड़ी रहती है और आर०एन०ए० पॉलीमरेज (RNA polymerase) एन्जाइम को संरचनात्मक जीन्स तक पहुँचने से रोके रखती है। 

 ➤  लैक्टोज उपलब्ध होने पर यह लैक निरोधक प्रोटीन को निष्क्रिय कर देता है और सम्पूर्ण प्रक्रिया सही दिशा में चलने लगती है फलस्वरूप संरचनात्मक लैक जीन्स उत्प्रेरित होकर लिप्यन्तरण से करने लगती हैं।

उपर्युक्त प्रकार के निरोधन अन्य कई उपापचयी क्रियाओं के लिए भी ज्ञात हो चुके हैं।




सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में जीन प्रकटन का नियमन (regulation of gene expression in eukaryotic cells)

सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में प्राय: 95% जीन्स तो सक्रिय अवस्था में ही रहती हैं। शेष 5% में भिन्न-भिन्न समूहों में इनको हिस्टोन (histone) प्रोटीन पराकुण्डलन (supercoiling) द्वारा निष्क्रिय रखा जाता है। से आवश्यकतानुसार इन स्थानों को सक्रिय करने के लिए कुछ गैरहिस्टोन प्रोटीन्स कार्य करती हैं।

कशेरुकी जन्तुओं में कुछ हॉर्मोन्स (hormones) भी अपनी लक्ष्य कोशिकाओं में कुछ जीन्स के सक्रियण या निष्क्रियण करने में समर्थ होते हैं।


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