पूर्वकेन्द्रकीय तथा सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं(Prokaryotic and eukaryotic cells) में जीन प्रकटन का नियमन|hindi


जीन प्रकटन का नियमन (Regulation of gene expression)

पूर्वकेन्द्रकीय तथा सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में जीन प्रकटन का नियमन|hindi


लैक ओपैरोन - पूर्वकेन्द्रकीय कोशिकाओं में जीन प्रकटन का नियमन (Lac Operon-Regulation of Gene Expression in Prokaryotes)

जीन प्रकटन के नियमन के बारे में हमारे ज्ञान की नींव सन् 1961 में जैकब एवं मोनोद (Jacob and Monod) द्वारा ईस्केराइकिया कोलाइ (Escherichia coli) नामक जीवाणु पर किए गए प्रयोगों के फलस्वरूप हुई खोज से पड़ी। इस खोज के लिए इन वैज्ञानिकों को सन् 1965 में नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) मिला। 

 ➤  ई० कोलाइ मनुष्य तथा अन्य स्तनियों की बड़ी आँत में पाया जाता है और ऊर्जा के लिए आँत से ग्लूकोस (glucose) लेकर इसका उपयोग करता है। जैकब तथा मोनोद (Jacob and Monod) ने पता लगाया कि इस जीवाणु के DNA अणु में, लगभग 4700 न्यूक्लिओटाइड जोड़ियों का बना एक ऐसा खण्ड होता है जिसमें कई जीन्स तथा गैरजीनी उपखण्ड होते हैं। 

 ➤  यह खण्ड, वातावरण में ग्लूकोस (glucose) के स्थान पर लैक्टोस (lactose) होने पर सक्रिय हो जाता है तथा जीवाणु को, ऊर्जा के लिए, लैक्टोस के उपयोग की क्षमता प्रदान करता है। जैकब तथा मोनोद ने इस खण्ड को लैक ओपैरोन (Lac operon) का नाम दिया।

Read more - जीन प्रकटन तथा जीन प्रकटन का नियमन (Gene expression)

 ➤  ऊर्जा के लिए, लैक्टोस के उपयोग के लिए तीन एन्जाइमों की आवश्यकता होती है - B-गैलैक्टोसिडेज (B-galactosidase), परमियेज (permease) तथा ट्रान्सऐसिटिलेज (transacetylase)। इन तीनों एन्जाइमों का संश्लेषण एक ही बहुसिस्ट्रोनिक (polycistronic) mRNA अणु के translation से होता है जो स्वयं लैक ओपैरोन (Lac operon) में स्थित तीन संरचनात्मक जीनों (structural genes or cistrons) की एक श्रृंखला के transcription से बनता है। इन जीन्स को बाएँ से दाहिनी ओर, अर्थात् DNA अणु में इसके समीपस्थ (ऊपरी सिरे की ओर से दूरस्थ (निचले) सिरे की ओर, क्रमशः लैक जेड (Lac Z), लैक वाइ (Lac Y) तथा लैक ए (Lac A) का नाम दिया गया।

 ➤  इन जीन्स के प्रकटन का नियमन करने के लिए इनसे पहले, DNA अणु में समीपस्थ सिरे की ओर से इन जीनों तक, तीन अन्य उपखण्ड क्रमशः होते हैं लैक आइ (Lac I) जीन, प्रोत्साहक क्षेत्र (Promoter region – Lac P) तथा प्रचालक क्षेत्र (Operator region Lac O)

 ➤  लैक आइ (Lac I) जीन के नियन्त्रण में 36 ऐमीनो अम्ल इकाइयों अर्थात् एकलकों (monomers) की बनी एक लैक निरोधक प्रोटीन (lac repressor protein) का संश्लेषण होता है। जब तक जीवाणु को ग्लूकोस उपलब्ध होती रहती है, लैक निरोधक प्रोटीन प्रचालक खण्ड से जुड़ी रहती है। अतः प्रोत्साहक क्षेत्र से जुड़े और तीन संरचनात्मक लैक जीन्स के transcription को उत्प्रेरित करने वाले आर०एन०ए० पोलीमरेज (RNA polymerase) एन्जाइम को यह प्रोटीन इन जीन्स तक पहुँचने से रोक देती है।


पूर्वकेन्द्रकीय तथा सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में जीन प्रकटन का नियमन|hindi


इस प्रकार, लैक ओपैरोन निष्क्रिय बना रहता है। जब जीवाणु को वातावरण से केवल लैक्टोस उपलब्ध होती है तो स्वयं लैक्टोस के अणु लैक निरोधक प्रोटीन के अणुओं से जुड़कर इसे निष्क्रिय कर देते हैं। अतः यह प्रोटीन प्रचालक क्षेत्र से हट जाती है। अतः अब RNA पोलीमरेज एन्जाइम प्रोत्साहक खण्ड से जुड़कर प्रचालक खण्ड से होता हुआ संरचनात्मक लैक जीन्स तक पहुँचकर इनका transcription उत्प्रेरित कर देता है। इस प्रकार, लैक ओपैरोन सक्रिय हो जाता है।

अब यह ज्ञात हो चुका है कि जीवाणु के DNA अणु में कई उपापचयी प्रक्रियाओं के नियमन के ऐसे ही ओपैरोन खण्ड पाए जाते हैं।

Read more - मानव गुणसूत्र संख्या में त्रुटियां- डाउन्स सिन्ड्रोम, टरनर्स सिन्ड्रोम




सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में जीन प्रकटन का नियमन (regulation of gene expression in eukaryotic cells)

जीन नियमन की आवश्यकता : ऊपर के वर्णन से स्पष्ट है, पूर्वकेन्द्रकीय (prokaryotic) कोशिकाओं में जीन प्रकटन के नियमन की आवश्यकता मुख्यतः इनके बाहरी वातावरण में होते रहने वाले परिवर्तनों के कारण होती है। इसके विपरीत, बहुकोशिकीय जन्तुओं की सुकेन्द्रकीय (eukaryotic) कोशिकाओं में जीन प्रकटन के नियमन की आवश्यकता कहीं अधिक व्यापक होती है। इसके कई कारण होते हैं।

 ➤  प्रथम तो भ्रूणीय परिवर्धन (embryonic development) के दौरान विभिन्न प्रकार के ऊतकों तथा अंगों के निर्माण, लिंग भेद और आचरण सम्बन्धी लक्षणों की स्थापना हेतु कोशिकाओं के विभेदीकरण (differentiation) के लिए विस्तृत रूप से विभेदात्मक (differential) जीन नियमन की आवश्यकता होती है।

 ➤  दूसरे, सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं को शरीर के अन्तः वातावरण की अखण्डता बनाए रखने, अर्थात् समस्थैतिकता (homeostasis) के लिए अन्तः वातावरण की दशाओं के अनुसार जीन प्रकटन का नियमन करना होता है।

 ➤  तीसरे, prokaryotic कोशिकाओं की तुलना में, Eukaryotic कोशिकाओं में DNA की मात्रा लगभग 700 गुणा अधिक तथा जीनों की संख्या लगभग 20 गुणा अधिक होती है।



जीन नियमन की व्यापक आवश्यकता के अनुकूल सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में इसकी कई विधियों का विकास हुआ। इसकी प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-


1. जीन निषेधन तथा विभिन्न जीन सक्रियता (Gene Suppression and Variable Gene Activity) 

जैसा कि हम जानते है, Eukaryotic कोशिकाओं में DNA, हिस्टोन प्रोटीन्स के साथ मिलकर क्रोमैटिन (chromatin) नामक सम्मिश्र बनाए रहता है। इनकी genome के अनेक जीन जिन्हें गृह-व्यवस्थापक जीन कहते हैं, अपनी-अपनी जीव-जाति के अनुसार, जीव शरीर की सारी कोशिकाओं में, समान लक्षणों की प्रोटीन्स के संश्लेषण का निर्देशन करते हैं। शेष जीन्स में से कुछ जीन्स के अलग-अलग समूह भिन्न-भिन्न प्रकार की कोशिकाओं में सक्रिय रहते हैं और बाकी जीन्स को हिस्टोन प्रोटीन्स supercoiling द्वारा अत्यधिक condensed करके निष्क्रिय कर देती हैं। 

 ➤  गुणसूत्रों के सक्रिय जीन्स वाले भागों को सुक्रोमैटिन अर्थात् यूक्रोमैटिन (euchromatin) तथा निष्क्रिय जीन्स वाले भागों को पराक्रोमैटिन अर्थात् हिटरोक्रोमैटिन (heterochromatin) कहते हैं। हिटरोक्रोमैटिन का कुछ भाग स्थाई रूप से निष्क्रिय होता है। शेष भाग में, वातावरणीय परिवर्तनों के लिए कोशिकाओं की प्रतिक्रियाशीलता (reactivity) को बनाए रखने के लिए, जीन्स को आवश्यकतानुसार सक्रिय या निष्क्रिय किया जा सकता है। 

 ➤  निष्क्रिय जीन्स को सक्रिय करने में गैरहिस्टोन प्रोटीन्स (non histone proteins) का विशेष योगदान होता है, क्योंकि ये हिस्टोन प्रोटीन्स को निष्क्रिय करके क्रोमैटिन का अकुण्डलन कर देती हैं।




2. विपाटित या विच्छिन्न जीन्स (Split or Discontinuous Genes) 

 ➤  सन् 1977 में रिचर्ड रोबर्ट्स (Richard Roberts) तथा फिलिप शार्प (Phillip Sharp) ने पता लगाया कि Eukaryotic कोशिकाओं के अधिकांश जीन्स में प्रोटीन्स की संकेत सूचनाओं वाले कोडिंग खण्ड (coding segments) तथा संकेत सूचनाओं रहित गैरकोडिंग खण्ड बारी-बारी (alternating) से होते हैं। इसलिए, इन्हें विपाटित जीन्स (split genes) कहते हैं। 

 ➤  कोडिंग खण्डों को एक्सॉन्स (exons) तथा गैरकोडिंग खण्डों को इन्ट्रोन्स (introns) कहते हैं। जीन के transcription में दोनों प्रकार के खण्डों का transcription होता है। अतः इसके फलस्वरूप बने mRNA अणु को प्राथमिक संदेशवाहक आर०एन०ए० प्रतिलेखनी (primary mRNA transcript) कहते हैं। इसे क्रियाशील संदेशवाहक RNA (mRNA) अणु में बदलने के लिए इसका संसाधन (processing) किया जाता है। 

 ➤  इसमें पहले इसका एक्सॉन्स एवं इन्ट्रोन्स में विखण्डन किया जाता है और फिर केवल एक्सॉन्स को एक-दूसरे के पीछे जोड़ा जाता है। इस प्रक्रिया को RNA खण्डन (RNA splicing) कहते हैं। 

 ➤  अनुमानतः कुछ एक्सॉन्स को हटाकर, या इनकी लम्बाई घटा-बढ़ाकर, या कुछ इन्द्रोन्स को सम्मिलित करके, या एक या अधिक एक्सॉन्स के सिरों को पलटकर, कोशिकाएँ, एक ही जीन से वातावरणीय दशाओं की आवश्यकतानुसार, परस्पर मिलती-जुलती कई विभिन्न प्रकार की प्रोटीन्स के mRNAs बना सकती हैं। यही कारण है कि मनुष्यों के जीनोम में इस खोज से पहले 50,000 से 140,000 जीन्स होने की सम्भावना मानी जाती थी, परन्तु वास्तव में केवल 30,000 जीन्स ही होते हैं।

Read more - आनुवंशिक विकार तथा उनकी वंशागति(genetic disorders)


3. जीन- पूर्व नियामक खण्ड (Cis-acting Regulatory Segments)

 ➤  हम जानते हैं कि प्रमुख RNA अणु तीन प्रकार के होते हैं- rRNA, mRNA तथा tRNA। पूर्वकेन्द्रकीय कोशिकाओं में एक ही प्रकार का आर०एन०ए० पोलीमरेज (RNA polymerase) एन्जाइम transcription द्वारा तीनों प्रकार के RNA अणुओं के संश्लेषण को उत्प्रेरित करता है। 

 ➤  इसके विपरीत, Eukaryotic कोशिकाओं में तीन प्रकार के RNA अणुओं के संश्लेषण को प्रेरित करने हेतु तीन प्रकार के RNA पोलीमरेज एन्जाइम होते हैं—RNA पोलीमरेज I, II तथा III—जो क्रमशः rRNA, mRNA तथा tRNA अणुओं के संश्लेषण को उत्प्रेरित करते हैं। क्योंकि कोशिकाओं की संरचनात्मक तथा क्रियात्मक (एन्जाइमी) प्रोटीन्स के संश्लेषण की संकेत सूचनाएँ केवल mRNA अणुओं में ही होती हैं, Eukaryotic कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण की सूचना वाले जीनों का नियमन डी०एन०ए० अणुओं के कुछ विशेष प्रकार के खण्डों से कुछ विशेष प्रकार की डी०एन०ए०-बन्धनी प्रोटीन्स (DNA-binding proteins) की अभिक्रिया द्वारा किया जाता है।

 ➤  जीन के प्रोटीन-कोडिंग भाग से पहले DNA अणुओं में एक क्रोड - प्रोत्साहक खण्ड (core-promoter segment) होता है। इस खण्ड में दो भाग होते हैं लगभग सात TATATAT न्यूक्लिओटाइड जोड़ियों का प्रारम्भिक भाग जिसे “टाटा पेटी (tata box)" कहते हैं तथा लगभग 30 न्यूक्लिओटाइड जोड़ियों का प्रस्तावक (initiator) भाग जिससे RNA पोलीमरेज II एन्जाइम जुड़कर प्रोटीन-कोडिंग भाग के transcription को प्रारम्भ करता है। 

 ➤  Transcription को प्रारम्भ करने में क्रोड-प्रोत्साहक अकेला अधिक सक्षम नहीं होता। इसे अधिक प्रभावी बनाने हेतु इससे लगभग 100 से 200 न्यूक्लिओटाइड जोड़ी पहले DNA अणु के प्रायः दो प्रोत्साहक - समीपस्थ (promoter-proximal) खण्ड होते हैं। इनमें प्रोत्साहक खण्ड के समीप वाले खण्ड में समाक्षार जोड़ियों का क्रम CCAAT होता है तथा दूर वाले खण्ड में कई GC समाक्षार जोड़ियों का क्रम होता है।

पूर्वकेन्द्रकीय तथा सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं में जीन प्रकटन का नियमन|hindi


 ➤  प्रोटीन कोडिंग जीन का सामान्य दर से transcription तभी प्रारम्भ होता है जब कई प्रकार की DNA बन्धकी प्रोटीन्स अणु क्रोड प्रोत्साहक खण्ड से जुड़ते हैं। इसीलिए, इन प्रोटीन्स को आधार तत्व (basal factors) कहते हैं। इन तत्वों में से एक बड़ी प्रोटीन का अणु टाटा पेटी से जुड़ता है। इसे टाटा पेटी बन्धनी प्रोटीन (tata box-binding protein—TBP) कहते हैं। फिर कई अन्य प्रकार की प्रोटीन्स के अणु TBP से जुड़कर एक जटिल सम्मिश्र (complex) बनाते हैं जो RNA पोलीमरेज एन्जाइम से जुड़कर इसे प्रोत्साहक खण्ड से जुड़ने और transcription को प्रारम्भ करने हेतु प्रोत्साहित करते हैं।


 ➤  किसी जीन के transcription की दर को प्रभावित करने हेतु जीन से काफी (1000 या अधिक न्यूक्लिओटाइड जोड़ी) पहले DNA अणु के प्रोत्साहक - समीपस्थ खण्डों से मिलते-जुलते अन्य खण्ड होते हैं जिन्हें अलगाव-स्वाधीन खण्ड (distance-independent segments) कहते हैं। 

 ➤  ये दो प्रकार के होते हैं- transcription की दर को बढ़ाने वाले संवृद्धिकर्ता (enhancers) तथा transcription की दर को घटाने या रोक देने वाले निषिद्ध (silencer) खण्ड। इनसे भी कुछ विशेष प्रकार की DNA - बन्धकी प्रोटीन्स जुड़कर इन्हें सक्रिय करती हैं। इन प्रोटीन्स के सम्मिश्र प्रोत्साहक खण्ड के प्रोटीन सम्मिश्र से जुड़कर यह नियमन करते हैं।





4. स्टीरॉइड हॉरमोनों द्वारा जीन नियमन (Regulation of Genes by Steroid Hormones) 
जन्तुओं में शरीर की कार्यिकी, मुख्यतः जनन सम्बन्धी कार्यिकी, की बदलती हुई आवश्यकताओं के अनुसार जीन प्रकटन का नियमन स्टीरॉइड हॉरमोनों द्वारा भी किया जाता है। ये हॉरमोन्स transcription का नियमन करने वाली प्रोटीन्स की क्रियाशीलता को प्रभावित करके सक्रिय जीन्स को निष्क्रिय करने या निष्क्रिय जीन्स को सक्रिय करने का काम करते हैं।



No comments:

Post a Comment