प्रकाश का विवर्तन क्या है?(Diffraction of Light) : परिभाषा, सूत्र|hindi


प्रकाश का विवर्तन क्या है?(Diffraction of Light) : परिभाषा, सूत्र

प्रकाश का विवर्तन क्या है?(Diffraction of Light) : परिभाषा, सूत्र|hindi

जब प्रकाश किसी अवरोध (obstacle) या द्वारक (aperture) पर जिसका आकार प्रकाश के तरंगदैर्घ्य के क्रम का हो, आपतित होता है तो अवरोध या द्वारक के किनारों पर प्रकाश ऋजुरेखीय संचरण से विचलित होकर मुड़ जाता है। जिस स्थान पर ज्यामितीय छाया बननी चाहिए थी वहाँ भी कुछ प्रकाश पहुँच जाता है। अवरोध या द्वारक के किनारों पर प्रकाश का यह मुड़ना प्रकाश का विवर्तन कहलाता है। प्रकाश का विवर्तन अग्रलिखित दो घटनाओं से प्रदर्शित होता है।

(i) ज्यामितीय छाया में प्रकाश का पहुँचना
(ii) एकसमान प्रदीप्त क्षेत्र में फिन्जों का बनना


एक पतली झिर्री से प्रकाश का विवर्तन 
नीचे चित्र में S एक बिन्दुवत् एकवर्णी (monochromatic) प्रकाश स्रोत है। यह लेन्स L1 के प्रथम फोकस पर रखा है। अतः S1 से चली प्रकाश किरणें लेन्स L1 से अपवर्तन के पश्चात् एक समान्तर किरण-पुंज के रूप में निकलेंगी। समानान्तर किरणों का यह किरण-पुंज एक समतल तरंगाग्र (wavefront) ww' का निर्माण करता है। इस लेन्स L1 के सामने एक लम्बी संकीर्ण स्लिट AB रखी है जिस पर यह समतल तरंगाग्र लम्बवत् लगा होता है। स्लिट की चौड़ाई की चौड़ाई e है। जैसे ही यह तरंगाग्र स्लिट पर आपतित होती है। तो हाइगेन्स के तरंग संचरण सम्बन्धी द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धान्तानुसार, तरंगाग्र का प्रत्येक बिन्दु नये तरंग उत्पादक स्रोत का कार्य करता हैं तथा इनसे द्वितीयक तरंगिकाएँ निकलने लगती हैं। इन विवर्तित किरणों को लेन्स L2 द्वारा पर्दे YY' पर फोकस कर लिया जाता है। स्लिट से एक नियत कोण पर विवर्तित सभी किरणें पर्दे के एक बिन्दु पर फोकस होती हैं। इस प्रकार पर्दे पर विवर्तन प्रारूप (diffraction pattern) प्राप्त हो जाता है।
प्रकाश का विवर्तन क्या है?(Diffraction of Light) : परिभाषा, सूत्र|hindi


व्याख्या Explanation 
जो तरंगिकाएँ 𝛉 = शून्य कोण पर विवर्तित होकर पर्दे के केन्द्रीय बिन्दु Po पर अध्यारोपित होती हैं वे सभी समान कला में होती हैं; अर्थात् उनके बीच कलान्तर शून्य होता है। इसलिए Po पर एक दीप्त फ्रिज (बैण्ड) प्राप्त होता है। यह एक दीप्त चौड़ी पट्टी होती है। एक केन्द्रीय बैण्ड के दोनों ओर घटती हुई तीव्रता के अदीप्त व दीप्त बैण्ड एकान्तर क्रम में प्राप्त होते हैं। इस प्रकार पर्दे पर प्राप्त दीप्त व अदीप्त बैण्डों का यह प्रारूप विवर्तन प्रारूप कहलाता है। रेखा-छिद्र (slit) जितना कम चौड़ाई का होता है, उसका विवर्तन प्रारूप उतना ही अधिक फैला होता है तथा केन्द्रीय बैण्ड (पट्टी) उतना ही अधिक चौड़ा होता है।

विवर्तन प्रारूप में Po पर बना दीप्त बैण्ड केन्द्रीय उच्चिष्ठ अथवा मुख्य उच्चिष्ट (principal maxima) कहलाता है तथा इसके दोनों ओर घटती तीव्रता के दीप्त बैण्ड गौण उच्चिष्ठ (secondary maxima) कहलाते हैं। दो क्रमागत दीप्त बैण्डों के बीच स्थित अदीप्त बैण्ड निम्निष्ठ (minima) कहलाते हैं। जो द्वितीयक तरंगिकाएँ रेखा छिद्र AB पर 𝛉 कोण से विवर्तित होती हैं वे पर्दे YY' पर केन्द्रीय बिन्दु Po से ऊपर बिन्दु P पर फोकस होती हैं। ये तरंगिकाएँ रेखा-छिद्र AB के विभिन्न भागों से एक ही कला में चलती हैं, परन्तु P पर भिन्न-भिन्न कलाओं में (पथान्तर के अनुसार) पहुँचकर परस्पर अध्यारोपित होती हैं। 

ऊपर चित्र में BG पर AG लम्ब डाला गया है। तल AG से पर्दे पर बिन्दु P एक प्रकाशीय पथ बराबर है। अतः रेखा - छिद्र के बिन्दु A तथा B से चलने वाली द्वितीयक तरंगिकाओं के बीच पथान्तर BG है। माना पथान्तर BG = λ जहाँ λ प्रयुक्त प्रकाश का तरंगदैर्घ्य है।

माना AB की चौड़ाई को n बराबर भागों में विभाजित कर लिया जाता है। प्रत्येक अर्द्ध-भाग के संगत बिन्दुओं से चलने वाली तरंगिकाओं के बीच पथान्तर λ/2 होगा; अतः वे P पर अदीप्त बैण्ड उत्पन्न करेंगी। यह प्रथम निम्निष्ठ होगा जिसके लिए BG = λ

परन्तु चित्र से,

            BG = AB sin 𝛉 = e sin 𝛉                                  (जहाँ AB = e)

अत: P पर प्रथम निम्निष्ठ की स्थिति के लिए सूत्र    e sin 𝛉 = λ

अतः सभी निम्निष्ठों की स्थिति के लिए सामान्य सूत्र निम्नलिखित होगा

            e sin 𝛉 = ± mλ                                               (जहाँ m = 1, 2, 3....)    ...(1)

जबकि m = 0 मुख्य उच्चिष्ठ (principal maxima) की स्थिति के अनुकूल है।

यहाँ ± चिह्नों का अर्थ है कि निम्निष्ठ P पर बनने वाले मुख्य उच्चिष्ठ के दोनों ओर बनते हैं।

दो क्रमागत निम्निष्ठों के बीच भी कुछ प्रकाश पहुँच जाता है जहाँ कम चमकीले उच्चिष्ठ प्राप्त होते हैं। इनको गौण उच्चिष्ठ (secondary maxima) कहते हैं। इनकी तीव्रता मुख्य उच्चिष्ठ के दोनों ओर नीचे चित्र की भाँति तेजी से गिरती जाती है।
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𝛉 बहुत छोटा होने पर
                        sin 𝛉 = 𝛉     ...(2)


अतः उपर्युक्त समी० (1) से

                        e 𝛉 = ±mλ                      
अथवा

                         𝛉 = ±m λ/e                                    ....(3)

∴   𝛉 = 0, ±λ /e, ±2λ /e, ±3λ /e,...... क्रमशः मुख्य उच्चिष्ठ तथा क्रमागत निम्निष्ठों की कोणीय स्थितियाँ हैं।

गौण उच्चिष्ठों की कोणीय स्थितियाँ निम्नवत् होगी

                    𝛉 = ± 3λ/2e, ± 5λ/2e,.....


ऊपर चित्र में प्रदर्शित वक्र एकल पतले रेखा-छिद्र द्वारा प्राप्त विवर्तन प्रारूप का तीव्रता वितरण वक्र है। इसमें आपतित प्रकाश की तीव्रता का अधिकतम भाग केन्द्रीय उच्चिष्ठ में केन्द्रित होता है और शेष तीव्रता द्वितीयक उच्चिष्ठों में तेजी से घटते क्रम में पायी जाती है। उदाहरण के लिए, यदि केन्द्रीय उच्चिष्ठ की तीव्रता I0 है तो द्वितीयक उच्चिष्ठों की तीव्रताएँ क्रमशः I0/22,I0/61,......इत्यादि होती हैं।

केन्द्रीय उच्चिष्ठ की कोणीय चौड़ाई के लिए व्यंजक केन्द्रीय उच्चिष्ठ के दोनों ओर प्रथम निम्निष्ठों के बीच की कोणीय दूरी केन्द्रीय उच्चिष्ठ की चौड़ाई कहलाती है।

अतः केन्द्रीय उच्चिष्ठ की कोणीय चौड़ाई = 𝛉 + 𝛉 = 2𝛉 = 2 (λ/e)

यदि लेन्स L2 की फोकस दूरी f हो जो रेखा-छिद्र AB के काफी समीप रखा हो, तो इससे दूरस्थ पर्दे पर केन्द्रीय उच्चिष्ठ की रैखिक चौड़ाई निम्न प्रकार ज्ञात की जाती है। इस दशा में

            sin 𝛉 = x/f         ...(1)

जहाँ x = केन्द्रीय उच्चिष्ठ से प्रथम निम्निष्ठ की रैखिक दूरी

            प्रथम निम्निष्ठ के लिए e sin 𝛉 = λ से sin 𝛉 = λ/e   ...(2)


समी० (1) व समी० (2) की तुलना से

           x/f = λ/e   ∴  x= fλ/e

∴    केन्द्रीय उच्चिष्ठ की रैखिक चौड़ाई = 2x = 2 (f λ/e)





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