सार्थक अंक क्या होते हैं(Significant Figures):सार्थक अंकों की पहचान करना,महत्व


सार्थक अंक क्या होते हैं(Significant Figures):सार्थक अंकों की पहचान करना,महत्व

सार्थक अंक (Significant Figures)
किसी भी मापक यन्त्र द्वारा प्राप्त माप के अंकों की यथार्थता की एक सीमा होती है। अतः प्रत्येक मापन में प्रेक्षण का अन्तिम अंक सदैव संदिग्ध (doubtful) होता है।
इसे हम निम्नलिखित उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं- माना कि किसी घन की भुजा की लम्बाई वर्नियर कैलिपर्स द्वारा 2.52 सेमी पढ़ी जाती है। इसमें अन्तिम अंक 2 संदिग्ध है चूँकि लम्बाई 2.51 व 2.53 सेमी के बीच कुछ भी हो, वह 2.52 सेमी ही पढ़ी जायेगी। अतः अन्तिम अंक 2 लम्बाई के सम्बन्ध में केवल आकलन (estimate) देता है। इसीलिए इसे 'संदिग्ध अंक' (doubtful figure) कहते हैं।

इसके आगे के अंकों का ज्ञान किसी को नहीं है। किसी राशि की माप में यथार्थतापूर्वक ज्ञात अंकों को तथा पहले संदिग्ध अंक को 'सार्थक अंक'(Significant Figures) कहते । दूसरे शब्दों में कहा जाये तो, किसी राशि की माप में वे अंक जो मापक-यन्त्र की यथार्थता के अन्तर्गत इस राशि के मान को व्यक्त करते हैं 'सार्थक अंक' कहलाते हैं।

इस प्रकार उपरोक्त प्रेक्षण में तीन प्रकार के सार्थक अंक होते हैं जिसका प्रयोग प्रयोगशाला में प्रेक्षण लेते समय मापों को लिखने में करते हैं।

सार्थक अंक के  कई गुण या विशेषताएँ है जिन्हें हम नीचे दिए गए कई उदाहरणों द्वारा समझा सकते हैं वह इस प्रकार है-

(i) किसी मापी गई राशि में सार्थक अंकों की संख्या मापक यन्त्र की अल्पतमांक पर निर्भर करती है : माना किसी छड़ की लम्बाई मीटर पैमाने से 2.5 सेमी, वर्नियर कैलिपर्स से 2.52 सेमी तथा स्क्रूगेज से 2.520 सेमी मापी जाती है तो इनमें सार्थक अंकों की संख्यायें क्रमश: 2, 3 तथा 4 हैं। स्पष्ट है सार्थक अंकों की संख्या मापक यन्त्र की अल्पतमांक पर निर्भर करती है। मीटर पैमाने की अल्पतमांक 0.1 सेमी, वर्नियर कैलिपर्स की 0.01 सेमी तथा स्क्रूगेज की 0.001 सेमी है।

(ii) दशमलव बिन्दु की स्थिति का सार्थक अंकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता : 2.52 सेमी माप को 25.2 मिमी. अथवा 0.0252 मीटर भी लिखा जा सकता है। यद्यपि संख्याओं में दशमलव बिन्दु की स्थिति बदल गई है परन्तु प्रत्येक संख्या में सार्थक अंक तीन ही हैं। इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि मात्रक बदलने से सार्थक अंकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता (माप में)।

(iii) किसी माप में सार्थक अंकों की संख्या जितनी अधिक होगी, वह माप उतनी ही अधिक यथार्थ होगी माना कि एक चिड़ियाघर में हाथी का भार 3500 किग्रा तौला गया। हाथी के इस भार का एक अर्थ यह हो सकता है कि हाथी का भार, 3600 अथवा 3400 किग्रा की अपेक्षा 3500 किग्रा के अधिक समीप है अर्थात् हाथी 100 किग्रा की यथार्थता तक तौला गया है। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि उसका भार, 3510 अथवा 3490 किग्रा की अपेक्षा 3500 किग्रा के अधिक समीप है; अर्थात् हाथी 10 किग्रा तक की यथार्थता तक तौला गया है। यह भी हो सकता है कि हाथी का भार, 3501 अथवा 3499 किग्रा की अपेक्षा 3500 किग्रा के अधिक समीप है अर्थात् हाथी 1 किग्रा तक की यथार्थता तक तौला गया है। हम 3500 किग्रा की इस तौल को 10 की उपयुक्त घात में लिखकर विभिन्न यथार्थताओं को व्यक्त कर सकते हैं -
3.5 x 10³ किग्रा,  3.50x10³ किग्रा,  3.500 x 10³ किग्रा ।

गणितीय रूप में ये संख्यायें एक जैसी है, परन्तु प्रत्येक में सार्थक अंकों की संख्या भिन्न-भिन्न है। पहली संख्या में दो सार्थक अंक है, दूसरी में तीन तथा तीसरी में चार हैं।  इससे यह पता चल जाता है कि तौल की यथार्थता कहाँ तक है।
3.5x10³ किग्रा में तौल की यथार्थता 0.1x10³ = 100 किग्रा तक है
3.50 × 10³ किग्रा में यथार्थता 0.01x10³ =10 किग्रा तक है
3.500 x 10³ किग्रा में यथार्थता 0.001 x 10³ = 1 किग्रा तक है।

इससे स्पष्ट है कि सबसे अधिक सार्थक अंकों वाली माप सबसे अधिक यथार्थ होती है।

अतः किसी भी माप के परिमाण को संख्या के बाईं ओर से एक अंक के बाद दशमलव लगाकर, 10 की घातों में व्यक्त करना चाहिये, जैसे 981 को 9 81x10² तथा 0.00037 को 3.7×10-⁴ लिखना चाहिये।
पृथ्वी की त्रिज्या को 6,370,000 मीटर न लिखकर 6.37x10⁶ मीटर लिखना चाहिये। इस माप में तीन सार्थक अंक हैं। इसी प्रकार यदि किसी बाल का व्यास 0.00003 मीटर हो तो इसे 3.0× 10-⁵ मीटर लिखना चाहिये। इस माप में केवल एक सार्थक अंक है। इस प्रकार लिखने में सुविधा के अतिरिक्त उसमें सार्थक अंकों की संख्या के बारे में भी कोई संदेह नहीं रहता।

(iv) किसी माप में सार्थक अंक जितने अधिक होंगे उसकी माप में प्रतिशत त्रुटि उतनी ही कम होगी- माना किसी छड़ की लम्बाई मीटर पैमाने, वर्नियर कैलिपर्स तथा स्क्रूगेज से क्रमश: 2.5 सेमी, 2.52 सेमी तथा 2.520 सेमी आती हैं। तब,

(i) मीटर पैमाने द्वारा पढ़ी गई 2.5 सेमी की माप में 0.1 सेमी तक की अधिकतम त्रुटि सम्भव है। अतः 2.5 सेमी माप में अधिकतम प्रतिशत त्रुटि,


0.1/2.5 x 100 = 4% .

(ii) वर्नियर कैलिपर्स द्वारा ली गई माप 2.52 सेमी की माप में 0.01 सेमी तक की अधिकतम त्रुटि सम्भव है, जोकि वर्नियर कैलिपर्स की अल्पतमांक है। अतः माप में अधिकतम प्रतिशत त्रुटि,

0.01/2.52 × 100 = 0.4% (लगभग) ।

(iii) स्क्रूगेज द्वारा ली गई माप 2.520 सेमी की माप में 0.001 सेमी तक की अधिकतम त्रुटि सम्भव है, जोकि स्क्रूगेज की अल्पतमांक है। अतः माप में अधिकतम प्रतिशत त्रुट,

0.001/2.520 × 100 = 0.04% (लगभग)

इस प्रकार हम देखते हैं कि माप में जब सार्थक अंक दो होते हैं तो प्रतिशत त्रुटि 4%, जब सार्थक अंक तीन होते हैं तो प्रतिशत त्रुटि 0.4% है तथा जब सार्थक अंक चार है तो प्रतिशत त्रुटि 0.04% है। अतः इससे स्पष्ट है कि माप में सार्थक अंक अधिक होने पर प्रतिशत त्रुटि का मान कम हो जाता है।




  • किसी संख्या में सार्थक अंकों की पहचान करना (Identifying significant digits in a number)
(i) यदि किसी संख्या में कोई भी शून्य अंक नहीं है तब सभी अंक सार्थक अंक होते हैं। जैसे 678.25 में पाँच सार्थक अंक हैं।

(ii) यदि किसी संख्या में एक या एक से अधिक शून्य अंक होते हैं तो शून्य अंक सार्थक भी हो सकता है तथा नहीं भी हो सकता। इसकी पहचान हम निम्नवत् तरीके से करते है-
(a) यदि शून्य अंक दो सार्थक अंकों के बीच में है तो वह भी सार्थक अंक है। जैसे, यदि किसी तुला द्वारा लिया गया द्रव्यमान 607.05 किग्रा है तो 6 व 7 के बीच शून्य तथा 7 व 5 के बीच शून्य भी सार्थक हैं। इस प्रकार इस माप में कुल पाँच सार्थक अंक  हैं।

(b) यदि किसी माप में कोई (एक अथवा अधिक) शून्य अंक केवल दशमलव बिन्दु की स्थिति निर्धारित करने के लिये लिखा जाता है तब वह सार्थक अंक नहीं होता। उदाहरण के लिये, 0.0654 मीटर में केवल तीन ही (6,5 तथा 4) सार्थक अंक है । परन्तु 0.06054 मे चार (6,0, 5 तथा 4) सार्थक अंक है।

(c) यदि दशमलव बिन्दु के पूर्व में कोई सार्थक अंक है तो दशमलव बिन्दु के बाद शून्य अथवा अशून्य अंक रहने पर सभी सार्थक अंक होते हैं। जैसे 6.007 में चार, 60.0304 में छः तथा 65.0 में तीन सार्थक अंक है।

(d) यदि दशमलव बिन्दु के पूर्व कोई सार्थक अंक नहीं है तो दशमलव बिन्दु के बाद अशून्य अंक के बाद का शून्य सार्थक अंक होता है। जैसे 0.0654 में तीन (6,5 तथा 4) सार्थक अंक हैं, 0.650 में तीन (6,5 तथा (0) सार्थक अंक हैं।



  • गणना द्वारा प्राप्त फलों में सार्थक अंकों का महत्व (Significance of significant marks in the results obtained by calculation)-:
जब भी हम कोई गणना करते हैं तो गणना द्वारा प्राप्त फलों को व्यक्त करने में हमें सार्थक अंकों का ध्यान रखना चाहिये। इससे हम अनावश्यक गणनायें करने से बच जाते हैं तथा प्राप्त फल की यथार्थता के सम्बन्ध में भी भ्रान्ति नहीं होती। यह निश्चित है कि गणना द्वारा प्राप्त किसी फल की यथार्थता मूल मापों की यथार्थता से अधिक नहीं हो सकती। अतः फल में विद्यमान निरर्थक (insignificant) अंकों को छोड़ देना चाहिये।

निरर्थक अंकों को छोड़ते समय हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
  1. यदि छोड़े गये अंकों में प्रथम अंक 5 से छोटा है तो रखे गये अंकों में अन्तिम अंक अपरिवर्तित रहता है।
  2. यदि छोड़े गये अंकों में प्रथम अंक 5 से बड़ा है तो रखे गये अंकों में अन्तिम अंक में 1 जोड़ कर लिखते हैं।
इसे हम निम्नलिखित उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं- यदि संख्या 3.454 में हमें केवल तीन अंक रखने हैं तो यह 3.45 लिखी जानी चाहिये, परन्तु यदि संख्या 3.458 है तो यह 3.46 लिखी जानी चाहिये ।

यदि छोड़े गये अंकों में प्रथम अंक 5 है तथा रखे गये अंकों में अन्तिम अंक सम है तो यह अपरिवर्तित रहेगा, परन्तु यदि यह विषम है तो 1 बढ़ाकर लिखा जायेगा। उदाहरण के लिये, यदि संख्या 3.485 में तीन अंक रखने हैं तो यह 3.48 लिखी जानी चाहिए, परन्तु यदि संख्या 3.455 है तो यह 3.46 लिखी जानी चाहिये।


गणनायें करते समय हमें निम्नलिखित इन दो नियमों का ध्यान रखना चाहिये :

(1) विभिन्न मापों को जोड़ते अथवा घटाते समय प्रत्येक माप में दशमलव के बाद उतने ही अंक रखने चाहियें जितने कि, दशमलव के बाद सबसे कम अंकों वाली माप में हैं। जैसे माना हमारे पास लम्बाइयों की तीन मापें हैं; 27.8 सेमी, 1.324 सेमी तथा 0.66 सेमी। इन्हें जोड़ना है। साधारण रूप से हम इन्हें इस प्रकार जोड़ेंगे
:

27.8 सेमी
      1.324 सेमी
    0.66 सेमी
                    29.784 सेमी (योगफल)

योगफल में दशमलव के बाद तीन स्थानों तक अंक हैं। परन्तु यह बात ध्यान देने वाली है कि पहली लम्बाई (27.8 सेमी) में दशमलव के बाद केवल एक ही अंक ज्ञात है। इसके आगे के अंक अज्ञात है। यह निश्चित है कि आगे के अंक शून्य अंक नहीं हैं, परन्तु ये अंक क्या हैं इसका हमें पता नहीं। अज्ञात अंक में ज्ञात अंक जोड़ने पर योगफल अज्ञात ही रहता है। अतः उपरोक्त योगफल में दशमलव के बाद दूसरे व तीसरे स्थानों वाले अंक (8 व 4) वास्तव में अज्ञात ही हैं। यह निश्चित नहीं है कि ये अंक 8 व 4 ही होंगे ये कुछ भी हो सकते हैं। स्पष्ट है कि इनका लिखना व्यर्थ है। अतः उपरोक्त उदाहरण में हमें जोड़ने से पहले दूसरी व तीसरी लम्बाइयों को भी दशमलव के बाद केवल एक ही अंक तक सीमित (round off) कर लेना चाहिये। इसे करने के बाद संख्या का योगफल कुछ इस प्रकार आएगा

27.8 सेमी
  1.3 सेमी
  0.7 सेमी
                 29.8 सेमी (योगफल)


(2) विभिन्न मापों को गुणा अथवा भाग करने पर प्राप्त गुणनफल अथवा भागफल में केवल उतने ही सार्थक अंक रखने चाहियें जितने कि सबसे कम सार्थक अंकों वाली माप में हैं-

जैसे, माना कि किसी पट्टी की नापी गई लम्बाई 4.3 सेमी तथा चौड़ाई 3.12 सेमी है। हमें इसका क्षेत्रफल ज्ञात करना है तो-


क्षेत्रफल = लम्बाई x चौड़ाई
                   = 4.3 सेमी x 3.12 सेमी
       = 13.416 सेमी²

इस प्रकार क्षेत्रफल में पाँच अंक आते हैं। परन्तु लम्बाई में केवल दो ही सार्थक अंक हैं तो स्पष्ट है कि क्षेत्रफल में भी केवल दो ही अंक सार्थक अंक होंगे, दो के बाद वाले सभी अंक अनिश्चित होंगे। अतः हम क्षेत्रफल को 13 सेमी² लिखेंगे (13.416 सेमी 2 नहीं)।



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