बीजाणु -(Sporophyte) की संरचना, पोषण,अंकुरण,चित्र का वर्णन|hindi


बीजाणु - उद्भिद् (Sporophyte) की संरचना, पोषण, उनका अंकुरण तथा चित्र का वर्णन 
बीजाणु -(Sporophyte) की संरचना, पोषण,अंकुरण,चित्र का वर्णन|hindi

बीजाणु की संरचना (Structure)
फ्यूनेरिया के बीजाणु - उद्भिद् के तीन भाग होते हैं-
  1. पाद (foot)
  2. सीटा (seta)
  3. सम्पुटिका (capsule)
  1. पाद (Foot) : यह बीजाणु उद्भिद् का छोटा शंकुरूप (conical) प्रचूषी (absorptive) अंग होता है जो युग्मकोद्भिद् (gametophyte) के आगे वाले भाग में धँसा रहता है तथा उससे भोजन व जल का अवशोषण करता है।
  2. सीटा (Seta): यह लम्बा व पतला भाग होता है जो नीचे की ओर Foot से तथा ऊपर की ओर Capsule से जुड़ा रहता है। इसमें तने के समान बाह्यत्वचा (epidermis), वल्कुट (cortex) तथा वाहक स्ट्रैण्ड (conducting strand) होता है।
  3. सम्पुटिका (Capsule) : यह एक pear-shaped अंग होता हैं जिसमें नीचे एपोफाइसिस (apophysis), मध्य में उर्वर (fertile) भाग होता है जिसे थीका (theca) कहते हैं तथा ऊपर परिमुख (peristome), ओपरकुलम (operculum), वलय (annulus), व गोपक (calyptra) क्रम से होते हैं।
सम्पुटिका (Capsule) के प्रमुख भागों का वर्णन इस प्रकार है -
(1) एपोफाइसिस (Apophysis) - यह सम्पुटिका (capsule) का आधारीय (basal), ठोस तथा हरा भाग होता है। इसकी बाह्यत्वचा में रन्ध्र (stomata) होते हैं तथा इसके भीतर वाली कोशाओं में हरितलवक (chloroplast) होते हैं। इनके केन्द्र में वाहक स्ट्रैण्ड (conducting strand) होता है जो सीटा के वाहक स्ट्रैण्ड (conducting strand) से मिला रहता है।

(2) थीका (Theca)—यह सम्पुटिका (capsule) का मुख्य अंग है, जिसमें बीजाणुओं का निर्माण होता है। यह पहले हरे रंग का होता है किंतु बाद में रंगीन हो जाता है। इसके एपिडर्मिस में स्टोमेटा उपस्थित होते हैं। थीका में Spore sac, Air-chamber, Columella तथा Conective stand पाए जाते हैं। थीका Fertile होता है तथा इसमें Spore sac के चारों ओर Air-chamber उपस्थित होते हैं। Spore sac में Diploid Spore Mother Cell का निर्माण होता है। जब Moss कैप्सूल का Operculum खुल जाता है तो  Peristome के द्वारा Spore बाहर आ जाते हैं।


बीजाणु -(Sporophyte) की संरचना, पोषण,अंकुरण,चित्र का वर्णन|hindi


(3) ओपर्कुलम (Operculum) – यह Capsule का गोल ढक्कन होता है। जो कोशाओं की चार-पाँच परतों का बना होता है। आरम्भ में ओपर्कुलम की कोशाएँ थीका की कोशाओं से अलग नहीं होतीं परन्तु परिपक्व अवस्था में ये अलग हो जाती हैं और इन कोशाओं की भित्ति मोटी हो जाती है। सम्पुटिका के परिपक्व हो जाने पर यह अलग होकर गिर जाता है।

(4) परिमुख (Peristome)—ओपर्कुलम के ठीक नीचे परिमुख (peristome) होता है। जब Operculum खुल जाता है तो Peristome दिखाई देने लगता है। इसमें लम्बे शंकुरूप (conical) दाँत की तरह की रचनाओं की दो कतार होती हैं। इस दशा को डिप्लोलेपिडस (diplolapidous) कहते हैं। प्रत्येक कतार में 16 दन्त-सदृश रचनाएँ (peristomial teeth) होती हैं। प्रत्येक कतार में ये दन्त-सदृश रचनाएँ एक ही व्यास पर होती हैं और इस प्रकार ये एक - दूसरे के विपरीत होती हैं। परिमुख के दाँत बीजाणु कोष्ठ (spore sac) को ऊपर से बन्द रखते हैं। परिमुख की ये दन्त-सदृश रचनाएँ आर्द्रताग्राही (hygroscopic) होती हैं और बीजाणुओं को तभी बाहर निकालती हैं जब हवा शुष्क होती है।

(5) वलय (Annulus) —थीका (theca) के गोल किनारे पर बाह्यत्वचीय कोशाओं का एक घेरा (ring) होता है जिसे वलय (annulus) कहते हैं। यह ओपर्कुलम के आधारीय भाग के चारों ओर तथा बीजाणु कोष्ठक के ऊपरी भाग के ठीक ऊपर होता है। इसके फटने से ओपर्कुलम अलग हो जाता है।

(6) गोपक (Calyptra)—बीजाणु-उद्भिद् के विकास के कारण जब सीटा में वृद्धि होने लगती है तो अण्डधानी (venter) के चारों ओर बना गोपक फटकर दो भागों में बँट जाता है। निचला आधा भाग पाद (foot) को घेरे रहता है और ऊपरी आधा भाग एक झिल्लीदार टोपी (membranous cap) बनाता है जो कैप्सूल के शीर्ष को ढके रहता है, बाद में गोपक कैप्सूल के ऊपर से उतर जाता है। यह अगुणित (haploid=n) होता है।

बीजाणु-उद्भिद् का पोषण (Nutrition of Sporophyte)
फ्यूनेरिया का बीजाणु-उद्भिद् (sporophyte) अपना सम्पूर्ण भोजन युग्मकोद्भिद् (gametophyte) से प्राप्त नहीं करता है बल्कि यह कुछ भोजन स्वयं भी बनाता है। कैप्सूल, प्रकाश-संश्लेषण के द्वारा अपना भोजन बना लेता है परन्तु अकार्बनिक लवण पदार्थ एवं जल पाद (foot) द्वारा युग्मकोद्भिद् से शोषित करता है। इस कारण यह युग्मकोद्भिद् पर अर्ध-परजीवी (partial or semiparasite) है।

बीजाणुओं का अंकुरण (Germination of Spores)
अनुकूल परिस्थितियाँ पाकर बीजाणु अंकुरण करते हैं। सबसे पहले बीजाणु से एक ओर एक अंकुरण नलिका (germ tube) निकलती है जो बढ़कर बहुशाखित सूत्र बनाती है जिसे प्राथमिक पुंतन्तु (primary protonema) कहते हैं। पुंतन्तु (protonema) पर जगह-जगह मूलाभास (rhizoids) और कलिकाएँ (buds) उत्पन्न हो जाती हैं। कलिका (bud) विकास करके फ्यूनेरिया का नया पौधा बना लेती है।

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