निषेधात्मक तथा सकारात्मक सुजननिकी (Negative,Positive Eugenics)|hindi


 निषेधात्मक तथा सकारात्मक सुजननिकी (Negative and Positive Eugenics)
निषेधात्मक तथा सकारात्मक सुजननिकी (Negative,Positive Eugenics)|hindi

हम सुजननिकी के अंतर्गत यह पढ़ चुके हैं कि समाज में सदस्यों के आनुवंशिक स्तरों का ज्ञान हो जाने पर हम कई विधियों से हम जाति का सुधार कर सकते हैं। इसके अंतर्गत कई विधियां आती हैं जिसमें से कुछ विधियाँ निषेधात्मक (negative) होती है जबकि कुछ सकारात्मक (positive) होती हैं। इन विधियों का वर्णन इस प्रकार है-


निषेधात्मक सुजननिकी (Negative Eugenics)
Negative Eugenics के अन्तर्गत घटिया आनुवंशिक लक्षणों वाले व्यक्तियों को सन्तान को जन्म देने से रोका जाता है, ताकि समाज की कुल जीनराशि में घटिया लक्षणों के जीन धीरे-धीरे कम हो जाएँ।

इसकी निम्नलिखित विधियाँ हो सकती हैं-)

1. वैवाहिक प्रतिबन्ध (Marriage Controls) : कुछ देशों में मूर्ख, पतित व रोगग्रस्त लोगों के विवाह पर राजाज्ञाओं द्वारा रोक लगाई जाती है, ताकि इनके घटिया जीन्स का भावी समाज में प्रसार न हो सके।

2. पृथक्करण (Segregation) : मन्द-बुद्धि, दुष्ट, पतित एवं रोगग्रस्त व्यक्तियों को चिकित्सालयों या अन्य स्थानों में अलग रखना चाहिए ताकि अच्छे व बुरे लक्षणों वाले व्यक्तियों में सहवास (sex) न हो। इससे उनकी आने वाली पीढ़ियों में अच्छे एवं बुरे आनुवंशिक लक्षणों के मिश्रण की सम्भावनाएँ समाप्त हो सकती हैं।

3. बन्ध्याकरण या नसबन्दी (Sterilization) : घटिया लक्षणों वाले व्यक्तियों को, समाजहित के नाम पर, नसबन्दी (sterilization) के लिए प्रेरित करना चाहिए। यह जाति के आनुवंशिक उत्थान की बहुत प्रभावशाली विधि होती है। यदि प्रत्येक पीढ़ी में ऐसे व्यक्ति सन्तानोत्पत्ति न करें तो कुछ ही पीढ़ियों में समाज के सभी सदस्य उत्कृष्ट लक्षणों वाले हो जाएँगे। पुरुषों के बन्ध्याकरण में नसबन्दी अर्थात् वैसेक्टोमी (vasectomy) नाम के एक छोटे से ऑपरेशन द्वारा शुक्रवाहिकाओं (vasa deferentia) को कहीं पर काटकर या बाँधकर (ligature) शुक्राणुओं के बाहर निकलने का मार्ग बन्द कर देते हैं।
स्त्रियों में भी इसी प्रकार, डिम्बवाहिकाओं को कहीं पर काटकर या बाँधकर उनके अण्डाणुओं के निकलने का मार्ग बन्द कर देते हैं। इस ऑपरेशन को डिम्बवाहिनी उच्छेदन, अर्थात् सैल्पिन्जेक्टोमी (salpingectomy or tubectomy) कहते हैं। यह वैसेक्टोमी से अधिक जटिल होता है, लेकिन आधुनिक चिकित्सालयों में इसकी सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।जब वृषणों (testes) को ही काटकर हटा दिया जाता है तो इस प्रक्रिया को ऑरकीडेक्टोमी (orchidectomy) कहते हैं।

4. सन्तति नियन्त्रण (Birth-control) : घटिया आनुवंशिक लक्षणों वाले व्यक्तियों पर, नसबन्दी के अलावा, अन्य सन्तति-नियन्त्रण प्रतिबन्ध भी लगाने चाहिए। इससे समाज की जीनराशि तो सुधरेगी ही, मानव आबादी के बढ़ने की दर भी कम हो जाएगी। इसमें गर्भ के समय ही भावी सन्तान के आनुवंशिक लक्षणों का पता लगाकर (= amniocentesis) घटिया लक्षणों वाले भ्रूणों को गर्भपात (abortion) द्वारा जन्म से पहले ही समाप्त कर देना चाहिए।

5. समरक्त या सगोत्री विवाहों पर प्रतिबन्ध (Control on Consanguineous Marriages) : एक ही पूर्वज की सन्तानों में परस्पर विवाह पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि इससे घटिया आनुवंशिक लक्षणों की वंशागति बढ़ जाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि रोगों आदि के अधिकांश लक्षण सुप्त (recessive) जीन्स के कारण होते हैं, जो कि ऐसे inbreeding में समयुग्मजी, अर्थात् homozygous होकर अपने लक्षणों का विकास करते हैं।

6. देशान्तरण (Immigration) पर नियन्त्रण : घटिया आनुवंशिक लक्षणों वाले व्यक्तियों पर एक देश से दूसरे देशों में जाकर बसने पर रोक लगानी चाहिए।

उपर्युक्त विधियों को अपनाकर घटिया आनुवांशिक लक्षणों की वंशागति को बढ़ने से रोका जा सकता है।

Also Read

सकारात्मक सुजननिकी (Positive Eugenics)
Positive Eugenics के अन्तर्गत उत्कृष्ट आनुवंशिक लक्षणों को प्रोत्साहन देकर हम पीढ़ी-दर-पीढ़ी समाज की जीनराशि में सुधार कर सकते हैं। इसकी महत्त्वपूर्ण विधियाँ निम्नलिखित हैं-

1. सहचर का उत्कृष्ट चुनाव (Better Selection of Mate) : विवाह-सम्बन्ध समाज की सुजननिकी पर काफी प्रभाव डालते हैं, क्योंकि इसी के माध्यम से दो अलग प्रकार के आनुवंशिक लक्षणों वाले व्यक्ति (पुरुष एवं नारी) मिलकर समाज में आने वाले सदस्यों की आनुवंशिकता को स्थापित करते हैं। उच्च आनुवंशिक लक्षणों वाले व्यक्तियों में विवाह सम्बन्धों के फलस्वरूप उत्पन्न सन्तानें भी सभी उच्च होंगी। यदि जनकों में से एक ही उच्च होगा तो सन्तानों में से कुछ ही उच्च होंगी। अतः विवाह के लिए साथी (mate) का चुनाव जातीय, धार्मिक, सामाजिक प्रतिष्ठा, दहेज, राष्ट्रीयता एवं भौगोलिक आदि संकीर्ण आधारों पर न होकर उच्च आनुवंशिक लक्षणों के आधार पर होना चाहिए।

2. उत्तम जननद्रव्य अर्थात् जर्मप्लाज्म का अधिकाधिक उपयोग: समाज के स्वस्थ एवं बुद्धिमान सदस्यों को प्रजनन के ज्यादा से ज्यादा अवसर देना चाहिए। आज समाज में वेतनभोगी बुद्धि वाले लोगों की माँग बढ़ गई है। अधिकांश बुद्धिमान व्यक्ति डॉक्टर, वकील, इन्जीनियर, अध्यापक, सरकारी अफसर आदि बनने का प्रयास करते हैं। इसके लिए शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने में ही बहुत वर्ष लग जाते हैं। जिसके कारण गुणवान् व्यक्तियों में विवाह देर से होते हैं और प्रजनन दर भी कम हो जाती है। इस प्रकार, उत्कृष्ट मानव-जननद्रव्य अर्थात् जर्मप्लाज्म का पूरा लाभ समाज को नहीं मिलता। अतः ऐसे व्यक्तियों में बहुविवाह (polygamy) का प्रचार किया जाना चाहिए।

3. यूटेलीजेनीसिस या जननिक चयन (Eutelegenesis or Germinal Choice) : एच० जे० मुलर (H.J. Muller, 1963) ने श्रेष्ठतम् पुरुषों के वीर्य को निम्न ताप में जमाकर (frozen) शुक्राणु बैंकों (sperm banks) में सुरक्षित रखने (preserve) का विचार रखा ताकि इच्छुक स्त्रियों में मनचाहे श्रेष्ठ पुरुषों की मृत्यु के बाद भी उनके शुक्राणुओं से artificial insemination किया जा सके। इसका प्रचलन अमेरिका तथा कुछ अन्य देशों में प्रारम्भ हो गया है। आधुनिक वैज्ञानिक स्त्रियों के अण्डाणु को निकालकर परखनली अर्थात् टेस्ट ट्यूब (test tube) में किसी भी पुरुष के शुक्राणु से निषेचित करने में सफल हो गए हैं। निषेचित अण्डे को फिर स्त्री के गर्भाशय में पहुँचा दिया जाता है जहाँ गर्भाधान के फलस्वरूप शिशु का विकास होने लगता है। ऐसे शिशुओं को टैस्ट ट्यूब शिशु (test tube babies) कहते हैं।

4. “जीनी सर्जरी" या "जीनी इंजीनियरी" (Genetic Surgery or Genetic Engineering) : आधुनिक वैज्ञानिकों ने प्रारम्भिक दशा के भ्रूण में ही आनुवंशिक दुर्बलताओं एवं दोषों का पता लगाकर व्यक्तियों के जीनी पदार्थ (genetic material), अर्थात् DNA में परिवर्तन कर देने की बात कही है। इसमें एक जीव के DNA का अंश निकाल कर दूसरे जीव के DNA में जोड़ देना या फिर रसायनों तथा विकिरण द्वारा किसी जीव के DNA में रासायनिक परिवर्तन, अर्थात् उत्परिवर्तन (mutation) कर देना आदि की सम्भावनाओं पर भी तेजी से काम हो रहा है। इसके साथ ही ऐसी सम्भावना पर भी खोजकार्य हो रहा है कि श्रेष्ठ लक्षणों वाली स्त्रियों के अण्डाशयों (ovaries) में द्विसूत्री अण्डाणु (diploid ova) बनें और संसेचन (impregnation) के बिना ही, अर्थात् अनिषेकजनन (parthenogenesis) द्वारा इनके भ्रूणीय परिवर्धन embryonic development से सन्तानें बन जाएँ।

5. चिकित्सीय इंजीनियरी या यूफेनिक्स (Medical Engineering or Euphenics) : लीड्रवर्ग (Lederberg, 1963, 1966) ने आनुवंशिक लक्षणों में सुधार की नई विधि की पहल की है। इसमें घटिया जीन्स के दृश्यरूप (phenotypic) के प्रकटन को रोक देने या बदल देने पर जोर दिया गया है। हम जानते हैं कि प्रत्येक जीन एक प्रोटीन के संश्लेषण को नियन्त्रित करता है और यह प्रोटीन फिर किसी दृश्यरूप लक्षण के विकास का आधार बनती है—एक जीन — एक पोलीपेप्टाइड — एक लक्षण। यूफेनिक्स में उपापचयी (metabolic) प्रक्रियाओं की इस शृंखला में परिवर्तन करके घटिया लक्षणों के विकास को रोकना बताया गया है।


उपर्युक्त विधियों के द्वारा हम सकारात्मक सुजननिकी की प्रक्रिया को पूरा कर सकते हैं तथा उत्कृष्ट आनुवांशिक लक्षणों को पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ाकर समाज में सुधार कर सकते हैं।

No comments:

Post a Comment