हाइड्रा में पुनरुदभवन
हाइड्रा में पुनरुदभवन की बहुत क्षमता होती है। इसके द्वारा इसके शरीर में घायल या टूटे भाग शीघ्र वापस बन जाते हैं। यदि इसके शरीर को टुकड़ों में काटा जाए तो, ऐसा प्रत्येक टुकड़ा जिसमें दोनों कोशिकीय स्तर उपस्थित होंगे वह पुनरुदभवन द्वारा पूर्ण हाइड्रा बन जाएगा।
जीव विज्ञान में प्रायोगिक अध्ययन (experimental study) का प्रारम्भ हाइड्रा की इसी क्षमता पर हुआ। ट्रैम्ले (Tremblay-1744-1774) ने एक हाइड्रा को दो टुकड़ों में काटा। नौ-दस दिन में, आधार की ओर वाले टुकड़े पर हाइपोस्टोम एवं स्पर्शकों का तथा मुख की ओर वाले टुकड़े पर वृन्त एवं बाकी शरीर का विकास हो जाने से दोनों टुकड़े पूर्ण रूप से हाइड्री बन गए। फिर तो उन्होंने ऐसे अनेक विलक्षण singular प्रयोग किए।
उन्होंने पता लगाया कि हाइड्रा के शरीर का 1.6 मिमी तक छोटा टुकड़ा जीवित रहकर वृद्धि द्वारा पूर्ण हाइड्रा बन जाता है। जब उन्होंने एक हाइड्रा को हाइपोस्टोम से पीछे कुछ तक, लम्बाई में काटा तो यह सिर वाला हाइड्रा बन गया। दोनों सिरों को फिर लम्बाई में काट देने से 4 सिर वाला और इसी प्रकार उन्होंने एक ही वृन्त पर 7 सिर वाला हाइड्रा तैयार किया। सातों सिरों को उन्होंने पूरा काट दिया तो ये फिर से बन गए। ग्रीक पौराणिकी (Greek Mythology) में “हाइडर” (Hyder) नाम के एक नौ सिर वाले दैत्य सर्प का जिक्र आता है जिसका सिर काटने से दो नए सिर बन जाते थे। इसी आधार पर लीनियस (Linnaeus, 1758) ने इस जन्तु का नाम हाइड्रा (Hydra) रखा।
हाइड्रा में पुनरुदभवन की इस विलक्षण क्षमता का उपयोग अनेक प्रकार के आरोपण प्रयोगों (grafting experiments) में किया गया है। जैसे बागबान एक पौधे पर दूसरे पौधे का आरोपण करता है, वैसे ही वैज्ञानिकों ने एक हाइड्रा के टुकड़ों को दूसरे पर आरोपित करके अद्भुत हाइड्री बनाई हैं। इन प्रयोगों से पता चला है कि हाइड्रा में हाइपोस्टोम सर्वाधिक क्रियाशील होता है और शेष शरीर पर इसका प्रभाव होता है।
पुनरुदभवन एवं आरोपण की इतनी अधिक क्षमता हाइड्रा में सरल, अविशेषित interstitial cells के कारण होती है। ये कोशिकाएँ शीघ्र विभाजन एवं रूपान्तरण द्वारा नए भागों के लिए आवश्यक सभी प्रकार की कोशिकाओं में बदल जाती हैं।
जीव विज्ञान में प्रायोगिक अध्ययन (experimental study) का प्रारम्भ हाइड्रा की इसी क्षमता पर हुआ। ट्रैम्ले (Tremblay-1744-1774) ने एक हाइड्रा को दो टुकड़ों में काटा। नौ-दस दिन में, आधार की ओर वाले टुकड़े पर हाइपोस्टोम एवं स्पर्शकों का तथा मुख की ओर वाले टुकड़े पर वृन्त एवं बाकी शरीर का विकास हो जाने से दोनों टुकड़े पूर्ण रूप से हाइड्री बन गए। फिर तो उन्होंने ऐसे अनेक विलक्षण singular प्रयोग किए।
उन्होंने पता लगाया कि हाइड्रा के शरीर का 1.6 मिमी तक छोटा टुकड़ा जीवित रहकर वृद्धि द्वारा पूर्ण हाइड्रा बन जाता है। जब उन्होंने एक हाइड्रा को हाइपोस्टोम से पीछे कुछ तक, लम्बाई में काटा तो यह सिर वाला हाइड्रा बन गया। दोनों सिरों को फिर लम्बाई में काट देने से 4 सिर वाला और इसी प्रकार उन्होंने एक ही वृन्त पर 7 सिर वाला हाइड्रा तैयार किया। सातों सिरों को उन्होंने पूरा काट दिया तो ये फिर से बन गए। ग्रीक पौराणिकी (Greek Mythology) में “हाइडर” (Hyder) नाम के एक नौ सिर वाले दैत्य सर्प का जिक्र आता है जिसका सिर काटने से दो नए सिर बन जाते थे। इसी आधार पर लीनियस (Linnaeus, 1758) ने इस जन्तु का नाम हाइड्रा (Hydra) रखा।
हाइड्रा में पुनरुदभवन की इस विलक्षण क्षमता का उपयोग अनेक प्रकार के आरोपण प्रयोगों (grafting experiments) में किया गया है। जैसे बागबान एक पौधे पर दूसरे पौधे का आरोपण करता है, वैसे ही वैज्ञानिकों ने एक हाइड्रा के टुकड़ों को दूसरे पर आरोपित करके अद्भुत हाइड्री बनाई हैं। इन प्रयोगों से पता चला है कि हाइड्रा में हाइपोस्टोम सर्वाधिक क्रियाशील होता है और शेष शरीर पर इसका प्रभाव होता है।
पुनरुदभवन एवं आरोपण की इतनी अधिक क्षमता हाइड्रा में सरल, अविशेषित interstitial cells के कारण होती है। ये कोशिकाएँ शीघ्र विभाजन एवं रूपान्तरण द्वारा नए भागों के लिए आवश्यक सभी प्रकार की कोशिकाओं में बदल जाती हैं।
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