हाइड्रा में गतियाँ एवं गमन (Movements and Locomotion)
आधार वस्तु पर चिपका हुआ हाइड्रा कई प्रकार की गतियाँ करता रहता है। कई बार यह vertical muscle के अधिक पास आ जाने के कारण सिकुड़कर एक छोटे बिन्दुक का रूप ले लेता है और कभी circular muscle के सिकुड़ने से लम्बा हो जाता है। बिन्दुक के रूप में इसमें संकुचन की क्रिया अधिक तथा नियमित रूप से होती रहती है। जिसके द्वारा हाइड्रा अपने वातावरण की जाँच करता रहता है। कभी-कभी इसके थोड़े से भाग में vertical muscle स्तर के सिकुड़ने से हाइड्रा एक ओर झुक, मुड़ या ऐंठ जाता है। इसमें तरंग-गति (peristalsis) भी होती है। इसके अलावा, यह एक ही स्थान पर चिपका नहीं रहता, बल्कि गमन द्वारा स्थान परिवर्तन करता रहता है।
इसमें गमन की पाँच विधियाँ होती हैं—
1. विसर्पण या ग्लाइडिंग (Gliding) : एपिडर्मिस की glandular muscle cells जब pseudopodia बनाती हैं तो हाइड्रा ठोस आधार वस्तु पर धीरे-धीरे रेंगने लगता है।
2. निश्चल उतराना या फ्लोटिंग (Floating) : हाइड्रा में इस प्रकार का locomotion अक्रिय विधि कहलाता है। कभी-कभी Hydra की कोशिकाएं गैस का स्रावण करती हैं। Hydra इन gas bubble को जल की सतह पर रखकर अपने शरीर को नीचे की ओर लटका देता है। उल्टा होकर यह जल की सतह पर आ जाता है। तथा जल के बहाव के साथ Hydra भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाता है।
- विसर्पण या ग्लाइडिंग (Gliding)
- निश्चल उतराना या फ्लोटिंग (Floating)
- पद-भ्रमण या वॉकिंग (Walking)
- लूपिंग (Looping)
- कलाबाजी या सोमरसॉल्टिंग (Somersaulting)
1. विसर्पण या ग्लाइडिंग (Gliding) : एपिडर्मिस की glandular muscle cells जब pseudopodia बनाती हैं तो हाइड्रा ठोस आधार वस्तु पर धीरे-धीरे रेंगने लगता है।
2. निश्चल उतराना या फ्लोटिंग (Floating) : हाइड्रा में इस प्रकार का locomotion अक्रिय विधि कहलाता है। कभी-कभी Hydra की कोशिकाएं गैस का स्रावण करती हैं। Hydra इन gas bubble को जल की सतह पर रखकर अपने शरीर को नीचे की ओर लटका देता है। उल्टा होकर यह जल की सतह पर आ जाता है। तथा जल के बहाव के साथ Hydra भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाता है।
3. पद-भ्रमण या वॉकिंग (Walking): कभी-कभी हाइड्रा अपने tentacles पर उल्टा खड़ा होकर इनसे पैरों की तरह चलता है। इस समय इसका शरीर कुछ सिकुड़ने और द्रवचालित कंकाल के कारण, tentacles-सहित दृढ़ बना रहता है। आगे बढ़ते हुए यह स्पर्शकों को आधार वस्तु पर चिपकाते रहते हैं।
4. लूपिंग (Looping) : कभी-कभी हाइड्रा लम्बा होकर एक ओर झुकता है और tentacles को सतह पर चिपका लेता है। फिर यह अपने पीछे के भाग को tentacles के पास खींचता है। अब हाइड्रा tentacles को मुक्त करके फिर सीधा खड़ा हो जाता है। इस प्रकार से एक loop का निर्माण होता है। जिससे यह गमन करता है।
5. कलाबाजी या सोमरसॉल्टिंग (Somersaulting) : इसमें पहले हाइड्रा लम्बा होकर एक ओर झुकता है और स्पर्शकों को आधार वस्तु पर चिपका लेता है। फिर आधार छोर को ऊपर उठाकर यह स्पर्शकों पर उल्टा खड़ा हो जाता है। शीघ्र ही यह दुबारा झुकता है और अधोबिम्ब को आधार वस्तु से चिपकाकर मुखीय छोर को ऊपर उठाकर सीधा खड़ा हो जाता है। इसी प्रकार बार-बार कलाबाजी खाता हुआ यह तेजी से गमन करता है।
हाइड्रा में पोषण (Nutrition)
भोजन (Food) : हाइड्रा मांसाहारी (carnivorous) होता है। इसका आहार छोटे जलीय जन्तु होते हैं। वाटरफ्लीज (waterfleas), जैसे डैफ्निया (Daphnia), साइक्लोप्स (Cyclops), आदि होते हैं।क्रस्टेशियन आर्थ्रोपोडा को यह अधिक चाव से खाता है। जिसके कारण यह अपने से कई गुणा बड़े शिकार को निगलकर अत्यधिक फूल जाता है।
भोजन-ग्रहण (Feeding) : Hydra अपने आधार से चिपकी हुई अवस्था में ही शिकार करता है। शिकार की खोज में यह अपने tentacles को लम्बा करके इधर-उधर फहराता है। जैसे ही कोई शिकार किसी tentacle से छूता है तो volvents discharge होकर शिकार को लपेट लेता है। फिर penetrants discharge होता है।penetrants का spinal thread शिकार के शरीर में धंस जाता है जिससे शिकार अचेत होने लगता है। अचेत अवस्था में घायल शिकार के घावों से कुछ हॉरमोन " (hormone) एवं ग्लूटैथ्यॉन (glutathione) नामक एक पदार्थ मुक्त होने लगते हैं जिनके प्रभाव से हाइड्रा में भोजन ग्रहण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है—शिकार को पकड़ने वाला tentacles शिकार को Hydra के मुँह में डाल देता है। मुख के नीचे पाए जाने वाले हाइपोस्टोम की भीतरी दीवार पर Mucous cell होती है जो mucous secret करती है जिससे भोजन लसलसा हो जाता है और लसलसा होने के कारण पाचक गुहा में आसानी से खिसक कर पहुंच जाता है।
हाइड्रा में पाचन (Digestion)
हाइड्रा में भोजन का पाचन digestive cavity में होता है। जाइमोजन कोशिकाएं प्रोटीन पाचक enzymes (proteolytic) एन्जाइम मुक्त करने लगती हैं। ये शिकार का रासायनिक विघटन प्रारम्भ कर देते हैं। शिकार 3-4 घण्टों में छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है जो गैस्ट्रोडर्मिस पर उपस्थित, चिपचिपे पदार्थ से चिपक जाते हैं। अब पोषक-पेशी कोशिकाएँ फैगोसाइटोसिस (phagocytosis) द्वारा इन टुकड़ों का, food vacuoles के रूप में, अन्तर्ग्रहण (ingestion) कर लेती हैं। vacuoles में कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन पाचक एन्जाइमों द्वारा इनका पाचन पूरा होता है। पाचन के समय vacuoles में माध्यम पहले अम्लीय और बाद में क्षारीय होता है। इस प्रकार, हाइड्रा में भोजन का पाचन दो प्रावस्थाओं में पूरा होता है—(1) जठरवाहिनी गुहा में पहले बाह्यकोशिकीय प्रावस्था (extracellular phase), तथा (2) पोषक-पेशी कोशिकाओं में आखिरी अन्तःकोशिकीय प्रावस्था (intracellular phase)। अपच अवशेष को मुखद्वार से बाहर फेंक दिया जाता है। इस प्रकार, हाइड्रा का मुखद्वार, मुख एवं गुदा दोनों ही का काम करता है।
अवशोषण एवं स्वांगीकरण (Absorption and Assimilation) : पचे हुए पोषक पदार्थ गैस्ट्रोडर्मिस की पोषक पेशी कोशिकाओं में प्रसरण (diffusion) द्वारा शरीर में वितरित होते हैं। तत्कालीन आवश्यकता से अधिक पदार्थ पोषक-पेशी कोशिकाओं में ही, ग्लाइकोजन कणों एवं वसा बिन्दुकों के रूप में संचित रहते हैं।
श्वसन तथा उत्सर्जन (Respiration and Excretion)
हाइड्रा में इन क्रियाओं के लिए विशेष कोशिकाएँ नहीं होती है। देहभित्ति के दोनों कोशिकीय स्तर तरल के सम्पर्क में रहते हैं। अतः प्रत्येक कोशिका में ये क्रियाएँ साधारण प्रसरण द्वारा अपने-आप लगातार होती रहती हैं।
संवेदनशीलता एवं आचरण (Irritability and Behaviour)
अवशोषण एवं स्वांगीकरण (Absorption and Assimilation) : पचे हुए पोषक पदार्थ गैस्ट्रोडर्मिस की पोषक पेशी कोशिकाओं में प्रसरण (diffusion) द्वारा शरीर में वितरित होते हैं। तत्कालीन आवश्यकता से अधिक पदार्थ पोषक-पेशी कोशिकाओं में ही, ग्लाइकोजन कणों एवं वसा बिन्दुकों के रूप में संचित रहते हैं।
श्वसन तथा उत्सर्जन (Respiration and Excretion)
हाइड्रा में इन क्रियाओं के लिए विशेष कोशिकाएँ नहीं होती है। देहभित्ति के दोनों कोशिकीय स्तर तरल के सम्पर्क में रहते हैं। अतः प्रत्येक कोशिका में ये क्रियाएँ साधारण प्रसरण द्वारा अपने-आप लगातार होती रहती हैं।
संवेदनशीलता एवं आचरण (Irritability and Behaviour)
- हाइड्रा, अनेक बाह्य उद्दीपनों (external stimuli) के प्रति संवेदनशील होता है। यह स्पर्श, ताप, रासायनिक पदार्थों, विद्युत् एवं प्रकाश (विशेषतः नीले प्रकाश) आदि से प्रभावित होकर प्रतिक्रियाएँ करता है। प्रतिक्रियाएँ पहले स्थानीय (local) होती हैं, परन्तु जैसे-जैसे संवेदना (impulse) तन्त्रिका कोशिकाओं द्वारा फैलती है, पूरा शरीर सिकुड़कर या एक ओर झुककर प्रतिक्रिया करता है। यदि उद्दीपन अधिक समय तक बना रहता है तो हाइड्रा स्थान बदल लेता है।
- किसी भी ठोस वस्तु के छूने से हाइड्रा सिकुड़ जाता है। यह मध्यम प्रकाश एवं ताप में रहना पसन्द करता है; बहुत तेज प्रकाश तथा अधिक ताप की स्थिति में इसमें नकारात्मक प्रतिक्रिया होती है।
- हल्के विद्युत् करेण्ट में यह कैथोड (cathode) की ओर झुक जाता है, लेकिन तीव्र करेण्ट में इसकी मृत्यु हो जाती है।
- कभी-कभी प्रतिकूल दशाओं (अधिक ताप, ऑक्सीजन की कमी आदि) में, हाइड्रा में एक न्यूनीकरण प्रतिक्रिया (depression) होती है। इसमें अनेक कोशिकाओं के नष्ट हो जाने से इसका शरीर छोटा हो जाता है। यदि दशाएँ शीघ्र न सुधरें तो न्यूनीकरण के फलस्वरूप हाइड्रा की मृत्यु हो जाती है।
- भूख एक अन्तःउद्दीपन (internal stimulus) का काम करती है। भूखा हाइड्रा शरीर एवं स्पर्शकों को इधर-उधर फैलाकर शिकार की खोज करता है। असफल होने पर शिकार की खोज में यह स्थान भी बदलता है।
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