जब किसी परिपथ से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो परिपथ में एक विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है। यदि परिपथ बन्द है तो इस वि० वा० ब० के कारण परिपथ में धारा बहने लगती है। यह धारा केवल तभी तक . बहती है जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन हो रहा है। इस घटना को 'विद्युतचुम्बकीय प्रेरण' कहते हैं। इसकी खोज फैराडे ने की थी। फैराडे ने प्रयोगों द्वारा विद्युतचुम्बकीय प्रेरण के सम्बन्ध में निम्न दो नियम दिये :
पहला नियम : जब किसी परिपथ से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो परिपथ में एक प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है जिसका परिमाण चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की 'ऋणात्मक' दर के बराबर होता है।
यदि प्रारम्भ में किसी परिपथ से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स Φ1 हो तथा Δt समयान्तराल पश्चात् यह बदलकर Φ2 हो जाये, तब परिपथ में प्रेरित वि० वा० ब०
e = - (Φ2-Φ1) / Δt = - ΔΦ/Δt
जहाँ ΔΦ= Φ2 - Φ1 (फ्लक्स परिवर्तन) ।
यदि समयान्तराल Δt अनन्त सूक्ष्म है तो Δt → dt तथा ΔΦ → dΦ तब
e = - dΦ/dt
यदि dΦ 'वेबर' में तथा dt 'सेकण्ड' में हो तो प्रेरित वि० वा० ब० e 'वोल्ट' में होगा।
यदि परिपथ में कोई कुण्डली है जिसमें तार के N फेरे हैं तो प्रत्येक फेरे में वि० वा० बल प्रेरित होगा तथा सभी फेरों के वि० वा० ब० जुड़ जायेंगे। अतः पूरी कुण्डली में प्रेरित वि० वा० बल
e = - N ΔΦ /Δt
= - ∆(NΦ)/Δt
दूसरा नियम : किसी परिपथ में प्रेरित वि० वा० ब० अथवा प्रेरित वैद्युत धारा की दिशा सदैव ऐसी होती है कि यह उस कारण का विरोध करती है जिससे यह स्वयं उत्पन्न होती है। इसे 'लेन्ज का नियम' भी कहते हैं।
प्रेरित वि० वा० ब० फ्लक्स-परिवर्तन से उत्पन्न होता है तथा वह फ्लक्स-परिवर्तन का ही विरोध करता है। यदि परिपथ में चुम्बकीय फ्लक्स बढ़ता है तो प्रेरित वि० वा० ब० चुम्बकीय फ्लक्स को घटाने का प्रयत्न करता है और यदि चुम्बकीय फ्लक्स घटता है तो प्रेरित वि० वा० ब० उसे बढ़ाने का प्रयत्न करता है। यही कारण है कि उपरोक्त समीकरण में ऋण चिन्ह रखते हैं।
लेन्ज के नियम की पुष्टि फैराडे के प्रयोगों से हो जाती है। चुम्बक व कुण्डली वाले प्रयोग में चुम्बक की गति के कारण ही कुण्डली में प्रेरित धारा बहती है। जब हम चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को कुण्डली के पास लाते हैं तो कुण्डली में प्रेरित धारा ऐसी दिशा में प्रवाहित होती हैं कि कुण्डली का चुम्बक के सामने वाला तल उत्तरी ध्रुव की सरह कार्य करता है।
अतः यह पास आते हुये चुम्बक को दूर हटाने का प्रयत्न करता है अर्थात् उसकी गति का विरोध करता है। इसी प्रकार, जब चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को कुण्डली से दूर ले जाते हैं तो कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होती है कि कुण्डली का चुम्बक के सामने वाला तल दक्षिणी ध्रुव की तरह कार्य करता है।
अब यह चुम्बक को अपनी ओर आकर्षित करता है अर्थात् उसकी गति का पुनः विरोध करता है । अतः स्पष्ट है कि प्रत्येक दशा में चुम्बक को गतिमान करने के लिये इस विरोधी बल के कारण कुछ यान्त्रिक कार्य करना पड़ता है। ऊर्जा-संरक्षण के नियमानुसार, ठीक यही कार्य हमें कुण्डली में वैद्युत ऊर्जा (ऊष्मा) के रूप में प्राप्त होता है।
हम चुम्बक को जितना तेज चलायेंगे हमें उतना ही तेजी से कार्य करना होगा तथा कुण्डली में प्रेरित धारा उतनी ही प्रबल होगी।
यह बात उल्लेखनीय है कि यदि कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा चुम्बक की गति का विरोध न करे तो हमें बिना कोई कार्य किये ही लगातार वैद्युत ऊर्जा प्राप्त होती रहेगी जो कि असम्भव है। अतः लेन्ज का नियम ऊर्जा संरक्षण के लिए एक आवश्यकता है।
प्रेरित धारा की दिशा फ्लेमिंग का दायें हाथ का नियम (Fleming's Right-hand rule) : "यदि दायें हाथ का अंगूठा और उसके पास वाली दोनों अंगुलियों को एक दूसरे के लम्बवत् फैलाएं, तब यदि पहली अंगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा तथा अंगूठा चालक के चलने की दिशा को प्रदर्शित करे तो बीच वाली अंगुली चालक में प्रेरित धारा की दिशा बताएगी।
No comments:
Post a Comment