पौधों में घाव का भरना (wound healing in plants)|hindi


पौधों में घाव का भरना (wound healing in plants)
पौधों में घाव का भरना (wound healing in plants)|hindi

कई बार हमने देखा है कि अनेक बाह्य कारणों से पौधों में घाव उत्पन्न हो जाते हैं। यदि घाव शीघ्र न भरें तो कवक, जीवाणु और कुछ दूसरे सूक्ष्मजीव (micro-organism), इत्यादि पौधों में प्रवेश कर बहुत-से रोग फैला सकते हैं और अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन से भी पौधे को हानि होती है। क्षतिग्रस्त ऊतकों (injured tissues) में श्वसन दर अस्थायी रूप से बढ़ जाती है जिससे ऊर्जा का अनावश्यक व्यय होता है। अतः घावों का भरा जाना आवश्यक है।

बाहर के भागों में होने वाले छोटे घाव निम्नलिखित विधि से भरते हैं— चोट लगी कोशिकाएं मृत होकर सूख जाती हैं। इनके बीच की कोशिका-भित्तियों में सुबेरिन (suberin) उत्पन्न हो जाती है जो अपने नीचे की ओर स्थित कोशिकाओं की रक्षा करती है। जिन पौधों में रबरक्षीरी वाहिनियाँ (laticiferous ducts) होती हैं उनमें से लैटेक्स (latex) स्रावित होता है जो जमने पर रक्षा का कार्य करता है।
पौधों में घाव का भरना (wound healing in plants)|hindi


जिस समय घाव गहरे होते हैं तो निम्न विधि से भरते हैं -
  1. घाव के आसपास की स्वस्थ कोशिकाएं फेलोजन के स्थान पर एक प्रकार की सरस पैरेनकाइमा कोशिकाओं का समूह बना लेती हैं जिसे कैलस (callus) कहते हैं। यह कैलस (callus) शीघ्र ही घाव को पूर्णरूप से ढक लेता है। 
  2. कैलस बनने के कारण ही पौधों पर गाँठें दिखलायी देती हैं। कैलस के किनारे की कोशिकाएं एधा (cambium) में परिवर्तित हो जाती हैं जिसे आघात एधा (wound cambium) कहते हैं। आघात एधा की कोशिकाएं कॉर्क (cork) का निर्माण करती हैं जिसे आघात कॉर्क (wound cork) कहते हैं। इस प्रकार घाव ठीक हो जाता है। 
  3. प्रायः कैलस घाव के ऊपर उठ जाता है जिस कारण कुछ तनों पर कुछ फूले हुये भाग बन जाते हैं जिससे गाँठें (knots) बन जाती हैं। गाँठें अन्य प्रकार से भी बनती हैं। 
  4. यदि पेड़ की निचली शाखायें पतझड़ से पूर्व ही इस प्रकार काट दी जायें कि शाखा का नीचे का कुछ भाग तने पर लगा रह जाये तो इस भाग पर कैलस (callus) बन जाता है और इस भाग की वृद्धि रुक जाती है। तने की द्वितीयक वृद्धि के साथ-साथ यह आधारीय भाग तने के द्वितीयक जाइलम के द्वारा पूर्णरूप से अन्दर बन्द हो जाता है। यह बन्द समूहित भाग ही कठोर रचना गाँठ (knot) कहलाती है। पुराने मोटे तनों में ये गाँठे सख्त हो जाती हैं और बाहर से दिखायी नहीं देती। इमारती लकड़ी चीरे जाने पर गाँठे स्पष्ट दिखाई दे जाती हैं।


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