हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धान्त तथा स्नैल का नियम|hindi


हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धान्त तथा स्नैल का नियम
हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धान्त तथा स्नैल का नियम|hindi

हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धान्त से तरंगों के अपवर्तन की व्याख्या

जब कोई तरंग एक समांग माध्यम में चलकर किसी दूसरे समांग माध्यम में प्रवेश करती है तो वह अपने मार्ग से विचलित हो जाती है। इस घटना को अपवर्तन कहते हैं। इसमें तरंग की आवृत्ति 'नहीं' बदलती परन्तु तरंग की चाल एवं तरंगदैर्घ्य बदल जाती हैं।
हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धान्त तथा स्नैल का नियम|hindi


ऊपर चित्र में ZZ' समतल पृष्ठ है जो दो माध्यमों को अलग करता है। माना इन माध्यमों में किसी तरंग की चालें क्रमश: v1 व v2 हैं। माना पहले माध्यम में एक समतल तरंगाग्र AB तिरछा आपतित होता है और पहले माध्यम में पृष्ठ ZZ' के बिन्दु A को t = 0 समय पर स्पर्श करता है तथा तरंगाग्र के बिन्दु B को A' तक पहुँचने में t समय लगता है, तब BA' = v1t

तरंगाग्र AB के आगे बढ़ने पर वह सीमा पृष्ठ के A व A' के बीच के बिन्दुओं से टकराता है। इन बिन्दुओं से हाइगेन्स की गोलीय तरंगिकाएँ निकलने लगती हैं जो पहले माध्यम में v1 चाल से और दूसरे माध्यम में v2 चाल से चलने लगती हैं। सर्वप्रथम A से चलने वाली द्वितीयक तरंगिका t समय में दूसरे माध्यम में AB' (= v2t) दूरी तय करती है और इतने ही समय में बिन्दु B, पहले माध्यम में BA' (= v1t) दूरी चलकर A' पर पहुँच जाता है जहाँ से अब द्वितीयक तरंगिका चलना प्रारम्भ करती है। इस प्रकार

                                    AB' = v2t    तथा BA' = v1t

बिन्दु A को केन्द्र मानकर AB' त्रिज्या का एक चाप खींचते हैं तथा A' से इस चाप पर स्पर्श रेखा A' B' खींचते हैं। जैसे-जैसे आपतित तरंगाग्र AB आगे बढ़ता जाता है, A व A' के बीच सभी बिन्दुओं से एक के बाद एक चलने वाली द्वितीयक तरंगिकाएँ एक साथ A' B' को स्पर्श करेंगी; अर्थात् A' B सभी द्वितीयक तरंगिकाएँ को स्पर्श करेगा। अतः A' B' 'अपवर्तित' तरंगाग्र होगा।

माना कि आपतित तरंगाग्र AB तथा अपवर्तित तरंगाग्र A' B' अपवर्तक तल ZZ' के साथ क्रमशः कोण i तथा r बनाते हैं।

अब समकोण त्रिभुज ABA' में                      sin i = BA' /AA' = v1t/AA'               ....(1)

इसी प्रकार, समकोण त्रिभुज AB' A' में         sin r = AB' /AA' = v2t/AA'                ...(2)

समी० (1) को समी० (2) से भाग करने पर

                    sin r /sin r = v1 / v2 = नियतांक


यही अपवर्तन का प्रथम नियम है। इसको ही स्नैल का नियम कहते हैं। चित्र से स्पष्ट है कि आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब एक ही तल में हैं। (यही अपवर्तन का दूसरा नियम है।)

स्नैल के नियम में प्रयुक्त नियतांक को दूसरे माध्यम का (पहले माध्यम के सापेक्ष) अपवर्तनांक कहते हैं तथा इसे " 1n2 " से प्रदर्शित करते हैं। 


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