जीवाणुओं का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Bacteria)
लाभप्रद जीवाणु (Useful Bacteria)
1. कृषि में (In Agriculture)‐ कुछ जीवाणु भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। सभी पौधों के लिए नाइट्रोजन आवश्यक है। वायुमंडल में नाइट्रोजन लगभग 80% होती है। प्राया पौधे नाइट्रेट्स के रूप में नाइट्रोजन लेते हैं। पृथ्वी में नाइट्रेट्स निम्न प्रकार से बनते हैं-(i) नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणुओं द्वारा (By Nitrogen-Fixing Bacteria) -
कुछ जीवाणु या तो पृथ्वी में स्वतंत्र रूप से पाए जाते हैं, जैसे एजोटोबैक्टर (Azotobactor) आदि या लेग्युमिनोसी कुल के पौधों की जड़ों की गांठों (root nodules) में पाए जाते हैं, जैसे Rhizobium leguminosarum। इन जीवाणुओं में वायुमंडल की स्वतंत्र नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में बदलने की सामर्थ्य होती है। Rhizobium leguminosarum जीवाणु पौधे के साथ सहजीवन व्यतीत करते हैं।
यह जीवाणु मूलरोमों द्वारा जड़ में प्रवेश करता हैं। इसके संक्रमण के प्रभाव से वल्कुट (cortex) की कोशिकाएँ तेजी से विभाजित होने लगती हैं और गांठें (nodules) बनाती हैं। नई बनने वाली कोशिकाएँ चतुर्गुणित(tetraploid)होती है जबकि अन्य कोशिकाएँ द्विगुणित ही रहती हैं। इन गांठों में लेग-हीमोग्लोबिन (leg- haemoglobin) नामक लाल वर्णक(Pigment) भी पाया जाता है। यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण में विशेष रूप से सहायक है। जिन गांठों में यह नहीं होता वे नाइट्रोजन स्थिरीकरण नहीं कर पाती।
सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण अन्य जीवाणुओं द्वारा भी होता है, जैसे सेस्बेनिया रोजट्राटा (Sesbania rostrata) के तने में पायी जाने वाली गांठों में माइक्रोबैक्टीरियम (Mycobacterium), केजुराइना (Casuarina) तथा रूबस (Rubus) पौधों (दोनों non-legumes हैं) की जड़ों की गांठों में फ्रेन्किया(Frankia) जीवाणु पाए जाते हैं।
(ii) नाइट्रीकारक जीवाणु (Nitrifying Bacteria)-
ये जीवाणु अमोनिया की नाइट्रोजन को ऑक्सीकृत करके नाइट्राइट में बदल देता है जैसे नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas)। कुछ जीवाणु नाइट्राइट यौगिकों को फिर से ऑक्सीकृत करके नाइट्रेट मैं बदल देते हैं जैसे नाइट्रोबैक्टर। इन क्रियाओं में मुक्त हुई ऊर्जा जीवाणुओं के रसायन संश्लेषण में उपयोग की जाती है।
2NH3 + 3O2 ⟶ 2HNO2 + 2H2O + Energy
(iii) मृत पौधों तथा जंतुओं का सड़ना (Decay of Dead plants and animal bodies)-
कुछ जीवाणु जैसे बेसिलस वुल्गेरिस (Bacilus vulgaris) आदि पौधों और जंतुओं के मृत शरीर पर आक्रमण करके उनके जटिल यौगिकों को सरल पदार्थों जैसे जल, कार्बन डाइऑक्साइड,नाइट्रेट, सल्फेट इत्यादि में बदल देते हैं जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है।
(iv) सल्फर जीवाणु (Sulphur Bacteria)-
भूमि में रहने वाले कुछ सल्फर जीवाणु जैसे थायो बेसिलस प्रोटीन पदार्थों के सड़ने से प्राप्त हाइड्रोजन सल्फाइड को सल्फ्यूरिक अम्ल में बदल देते हैं। सल्फ्यूरिक अम्ल कुछ लवणों से क्रिया करके उन्हें सल्फेट में बदल देते हैं। सल्फर उपापचय के लिए पौधे इन सल्फेट लवणों का अवशोषण कर देते हैं।
2. डेरी में (In Dairy)-दूध में स्ट्रैप्टोकोकस लैक्टिस (Streptococcus lactis) तथा लैक्टोबैसिलस लैक्टिस (Lactobacillus lactis)नामक जीवाणु पाए जाते हैं। यह जीवाणु दूध में पाए जाने वाली लैक्टोस(Lactose) शर्करा का किण्वन करके लैक्टिक अम्ल बनाते हैं जिसके कारण दूध खट्टा हो जाता है। दूध को 15 सेकंड तक 71 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करके शीघ्रता से ठंडा करने पर लैक्टिक अम्ल जीवाणुओं की संख्या कम हो जाती है परंतु इन जीवाणुओं के सभी बीजाणु और कोशिकाएं नष्ट नहीं होती और रोगजनक बीजाणु की मृत्यु हो जाती है। इस क्रिया को पाश्चुरीकरण कहते हैं। पाश्चुरीकृत दूध रखने पर खट्टा तो हो जाता है परंतु उसके खट्टा होने में साधारण दूध से अधिक समय लगता है।
2. डेरी में (In Dairy)-दूध में स्ट्रैप्टोकोकस लैक्टिस (Streptococcus lactis) तथा लैक्टोबैसिलस लैक्टिस (Lactobacillus lactis)नामक जीवाणु पाए जाते हैं। यह जीवाणु दूध में पाए जाने वाली लैक्टोस(Lactose) शर्करा का किण्वन करके लैक्टिक अम्ल बनाते हैं जिसके कारण दूध खट्टा हो जाता है। दूध को 15 सेकंड तक 71 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करके शीघ्रता से ठंडा करने पर लैक्टिक अम्ल जीवाणुओं की संख्या कम हो जाती है परंतु इन जीवाणुओं के सभी बीजाणु और कोशिकाएं नष्ट नहीं होती और रोगजनक बीजाणु की मृत्यु हो जाती है। इस क्रिया को पाश्चुरीकरण कहते हैं। पाश्चुरीकृत दूध रखने पर खट्टा तो हो जाता है परंतु उसके खट्टा होने में साधारण दूध से अधिक समय लगता है।
लैक्टिक अम्ल जीवाणु दूध में पाए जाने वाले केसीन नामक प्रोटीन की छोटी-छोटी बूंदों को एकत्रित करके दही जमाने में सहायता करते हैं। दही को मरने से मक्खन वसा की गोल बूंदों के रूप में निकलता है जिसे गर्म करके घी तैयार किया जाता है।
दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन केसीन(Casein) के जमने पर उसे जीवाणु द्वारा किण्व(Ferment) किया जाता है जिससे झागदार, मुलायम व भिन्न स्वाद वाला पदार्थ पनीर बनता है। इस क्रिया में लैक्टोबैसिलस लैक्टिस (Lactobacillus lactis) तथा ल्यूकोनोस्टोक सिट्रोवोरम (Leuconstoc citrovorum) भाग लेते हैं। दूध को स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफिलस (Streptococcus thermophilous) तथा लैक्टोबैसिलस वुल्गेरिकस (Lactobacillus vulgaricus) के द्वारा 40 से 46 डिग्री सेल्सियस पर जमा कर यीस्ट द्वारा आंशिक किण्वन(Fermentation) कराया जाता है, तो पोषक पदार्थ दही प्राप्त होता है। डेयरी उद्योग में जीवाणु के अत्यधिक उपयोग के कारण इन के अध्ययन के लिए एक नई शाखा जीवाणु विज्ञान बनाई गई है।
3. औद्योगिक महत्व(Industrial value)- औद्योगिक दृष्टिकोण से जीवाणु अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनमें से कुछ निम्नलिखित है-
(i) सिरका उद्योग (Vinegar Industry)– सिरके का निर्माण शर्करा घोल से ऐसीटोबैक्टर ऐसीटी (Acetobacter aceti) नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(i) सिरका उद्योग (Vinegar Industry)– सिरके का निर्माण शर्करा घोल से ऐसीटोबैक्टर ऐसीटी (Acetobacter aceti) नामक जीवाणु द्वारा होता है।
(ii) ऐल्कोहाॅल एवं ऐसीटोन(Alcohol and Acetone)– शर्करा के घोल से ब्यूटाइल एल्कोहल एवं एसीटोन का निर्माण क्लॉस्ट्रिडियम एसीटोब्यूटाइलिकम (Clostridium acetobutylicum) जीवाणु द्वारा किया जाता है।
(iii) रेशे का रेटिंग (Fibre Ratting)– इस विधि से जूट (Jute) ,पटसन (hemp) तथा सन (Flax) के रेशे तैयार किए जाते हैं। इसे बनाने के लिए विभिन्न पौधों के तनों का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में तनों को कुछ दिनों के लिए जल में डूबा देते हैं तथा जब तना सड़ने लगता है तो तनों को पीट-पीटकर रेशों से पृथक कर लेते हैं। इस प्रकार से रेशों को पृथक करने की प्रक्रिया को ही रेटिंग कहते हैं। यह क्रिया जल में पाए जाने वाले जीवाणुओं द्वारा होती है।
(iv) तंबाकू उद्योग में (In Tobacco Industry)– कुछ जीवाणु जैसे वैसे लिस्ट बेसिलस मेगाथेरियम द्वारा तंबाकू की पत्ती में सुगंध तथा स्वाद बढ़ जाता है जोकि इन जीवाणुओं की किण्वन क्रिया द्वारा होता है।
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तम्बाकू की पत्तियों से सिगार बनाना |
(v) चाय उद्योग में (In Tea Industry)– द्वारा चाय की पत्तियों पर किण्वन क्रिया द्वारा क्यूरिंग (curing) किया जाता है। इस क्रिया द्वारा चाय की पत्तियों में विशेष स्वाद आ जाता है।
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चाय की पत्तियों पर किण्वन की प्रक्रिया |
(vi) चमड़ा कमाने का उद्योग (Tanning of Leather)– कुछ जीवाणु जंतुओं की त्वचा पर पाए जाने वाले वसा आदि का विघटन कर देते हैं जिससे त्वचा व बाल पृथक हो जाते हैं और चमड़ा प्रयोग के योग्य हो जाता है।
4. औषधियाँ (Medicines)– कुछ प्रतिजैविकी औषधियां जीवाणुओं की क्रिया द्वारा बनाई जाती हैं जैसे बेसिलस ब्रेविस से प्रतिजैविकी थाइरोथ्रिन तथा स्ट्रेप्टोमाइसीज की विभिन्न जातियों से निम्न प्रतिजैविक बनाए जाते हैं–
Streptomycin - (Streptomyces griseus)
Chloromycetin - (S. venezuelae)
Aureomycin - (S. aureofaciens)
Terramycin - (S. rimosus)
Neomycin - (S. fradiae)
5. विविध (Miscellaneous)
(i) मल पदार्थों का नाश (Disposal of Sewage)– कुछ जीवाणु कार्बनिक मल पदार्थों ,जैसे गोबर ,मल व पेड़-पौधों की सड़ी-गली पत्तियों को खाद्य व ह्यूमस में बदल कर उपयोगी बनाते हैं।
(ii) मनुष्य के सहजीवी जीवाणु (Human symbionts Bacteria)– एशारिकिआ कोली (Escherichia Coli) जीवाणु मनुष्य व दूसरे जंतुओं की नीचे अंतड़ियों में रहता है और विटामिन का निर्माण करता है।
(ii) मनुष्य के सहजीवी जीवाणु (Human symbionts Bacteria)– एशारिकिआ कोली (Escherichia Coli) जीवाणु मनुष्य व दूसरे जंतुओं की नीचे अंतड़ियों में रहता है और विटामिन का निर्माण करता है।
हानिकारक जीवाणु (Harmful Bacteria)
4. भूमि की उर्वरता कम करना (Reduction of soil Fertility)– कुछ जीवाणु ,जैसे थायोबैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स (Thiobacillus denitrificans) आदि नाइट्रोजन यौगिकों को स्वतंत्र नाइट्रोजन व अमोनिया में बदल देते हैं। यह क्रिया विनाइट्रीकरण कहलाती है। इससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।
5. भोजन का नाश (Food Spoilage)– मृतोपजीवी जीवाणुओं की बहुत सी जातियां खाद्य वस्तुओं जैसे मांस, मछली,मक्खन, फल इत्यादि को नष्ट कर देती है। क्लॉस्ट्रिडियम बाॅटुलिनम (Clostridium botulinum) मांस व दूसरे अधिक प्रोटीन वाले शकों को नष्ट कर देता है।
खाने पीने की वस्तुओं को सड़ने से बचाने के लिए सुखा कर या नमक या शक्कर या तेल मिलाकर रखा जाता है। इस प्रकार की सब युक्तियों का उद्देश्य यही होता है कि उसमें उपस्थित सूक्ष्मजीव न बढ़ सके। उदाहरण के लिए मुरब्बे में बहुतायत में शक्कर डाली जाती है जिससे जीवद्रव्यकुंचन (Plasmolysis) द्वारा जीवाणु कोशिका का सारा जल सोखकर उनकी वृद्धि बंद कर देती है।
6. कपास का नाश (Cotton Destruction)– जीवाणु स्पाईरोकीट साइटोफेज (Spirochaete cytophage) रुई के रेशों का नाश करता है।
7. पेनिसिलिन का नाश (Penicillin Destruction)– कुछ जीवाणु, Enzymes पेनिसिलेस बनाते हैं जो पेनिसिलिन को नष्ट कर देते हैं। जीवाणु हमारे लिए लाभदायक वह हानिकारक दोनों होते हैं इसलिए यह हमारे शत्रु भी हैं और मित्र भी।
जीवाणु जनित रोगों की रोकथाम के लिए निम्नलिखित प्रमुख वैक्सीन हैं-
(i) ट्रिपल वैक्सीन(Triple vaccine)– यह वैक्सीन डिफ्थीरिया (Diphtheria), कुकर खांसी (Whooping cough) तथा टिटनेस की रोकथाम के लिए होता है।
(ii) बीसीजी (BCG—Bacillus Calmette Guerin)–यह तपेदिक (T.B.) की रोकथाम हेतु दिया जाता है।
इन्हें भी जाने -
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