गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) क्या होती है?: परिभाषा, प्रकार, सूत्र|hindi


गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) क्या होती है?: परिभाषा, प्रकार  सूत्र
गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) क्या होती है?: परिभाषा, प्रकार, सूत्र|hindi

गुप्त ऊष्मा (Latent Heat)
जब किसी ठोस को गर्म किया जाता है तो उसका ताप बढ़ने लगता है। एक विशेष ताप पर पहुंचने पर ताप स्थिर हो जाता है तथा ठोस गलना प्रारम्भ कर देता है। स्पष्ट है कि जब ठोस गल रहा होता है, उस समय ठोस को दी गई ऊष्मा उसका ताप नहीं बढ़ाती बल्कि उसकी अवस्था परिवर्तन करने (गलाने) में व्यय होती है। इस ऊष्मा को 'गुप्त ऊष्मा' (latent heat) कहते हैं।

इसी प्रकार, जब किसी द्रव को गर्म करते हैं तो प्रारम्भ में द्रव का ताप बढ़ता है। परन्तु कुछ देर स्थिर हो जाता है तथा द्रव उबलने लगता है। इस प्रकार उबलते हुए द्रव को दी जाने वाली ऊष्मा उसका ताप नहीं बल्कि उबलने में व्यय होती है। यह ऊष्मा भी 'गुप्त ऊष्मा' कहलाती है।

दो प्रकार के अवस्था परिवर्तन होने के कारण गुप्त ऊष्मा भी दो प्रकार की होती हैं,
(1) गलन की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Melting or Fusion): किसी पदार्थ की गलन की गुप्त ऊष्मा, ऊष्मा की वह मात्रा है जो उस पदार्थ के 1 मात्रक द्रव्यमान को बिना ताप बदले, ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में ( अथवा द्रव से ठोस में) बदलने के लिये दी जाती है (अथवा ली जाती है)। यह किलोकैलोरी/ किग्रा ( कैलोरी/ ग्राम) में व्यक्त की जाती है। बर्फ की गलन की गुप्त ऊष्मा 80 किलोकैलोरी/ किग्रा है। इसका अर्थ है कि 1 किलोग्राम बर्फ 0°C पर गलने के लिये 80 किलोकैलोरी ऊष्मा लेता है, अथवा 1 किलोग्राम जल 0°C पर जमने पर 80 किलोकैलोरी ऊष्मा देता है। एस० आई० पद्धति में गुप्त ऊष्मा को जूल/ किग्रा में व्यक्त करते हैं। इस प्रकार,

80 किलोकैलोरी/ किग्रा = 4.18×10³ x 80 जूल / किया

(2) वाष्पन की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Vaporisation) : किसी पदार्थ की वाष्पन की गुप्त ऊष्मा, ऊष्मा की वह मात्रा है जो उस पदार्थ के 1 मात्रक द्रव्यमान को बिना ताप बदले, द्रव अवस्था से वाष्प अवस्था में (अथवा वाष्प से द्रव में) बदलने के लिये दी जाती है (अथवा ली जाती है)। जल के वाष्पन की गुप्त ऊष्मा 100% पर 539 किलोकैलोरी / किग्रा है। इसका अर्थ यह है कि 1 किग्रा जल 100°C पर भाप बनने के लिये 539 किलो कैलोरी ऊष्मा लेता है, अथवा 1 किग्रा भाप 100°C पर द्रवित होने में 539 किलोकैलोरी ऊष्मा देती है।

यदि किसी पदार्थ का द्रव्यमान m तथा गुप्त ऊष्मा L हो तो उस पदार्थ द्वारा एक निश्चित ताप पर अवस्था परिवर्तन में ली गई अथवा दी गई ऊष्मा

                   Q = mL


बर्फ की गुप्त ऊष्मा तथा उसका  दैनिक जीवन पर प्रभाव
1 किग्रा बर्फ गलने के लिये 80 किलोकैलोरी ऊष्मा लेता है। बर्फ की इस अधिक गुप्त ऊष्मा के दैनिक जीवन में अनेक प्रभाव हैं :
  1. ओलों की वर्षा के बाद वायुमण्डल का ताप बहुत गिर जाता है क्योंकि ओले गलने के लिये वायुमण्डल से बहुत अधिक ऊष्मा ले लेते हैं। यही कारण है कि पहाड़ों पर बर्फ गिरते समय इतनी ठंड नहीं होती जितनी कि बाद में बर्फ के गलते समय हो जाती है।
  2. पहाड़ों की बर्फ बहुत धीरे गलती है क्योंकि बर्फ की गुप्त ऊष्मा अधिक है। यदि बर्फ की गुप्त ऊष्मा कम होती तो गर्मियों में सारी बर्फ एकसाथ गल जाती जिससे नदियों में बाढ़ आ जाती। गुप्त ऊष्मा अधिक होने के कारण ही थोड़ी सी बर्फ से काफी जल ठण्डा हो जाता है।
  3. गुप्त ऊष्मा के अधिक होने के कारण ही ठण्डे देशों में झील व तालाबों का जल धीरे-धीरे जमता है : इससे जल के जीव-जन्तुओं को नीचे तली पर जाने का समय मिल जाता है, जहाँ 4°C का जल रहता है। इसमें ये जीव-जन्तु जीवित रहते हैं।
  4. दाँतों को बर्फ के जल की अपेक्षा आइसक्रीम अधिक ठण्डी लगती है क्योंकि आइसक्रीम जब गलती है तो दाँतों से पर्याप्त ऊष्मा ले लेती है।


भाप की गुप्त ऊष्मा का दैनिक जीवन पर प्रभाव-
उबलते जल की अपेक्षा भाप से जलने पर अधिक कष्ट होता है यद्यपि दोनों का ताप 100°C ही होता है जब उबलता जल हमारे शरीर पर गिरता है तो उस स्थान की त्वचा जल से ऊष्मा लेती है। चूँकि त्वचा ऊष्मा की कुचालक होती है अतः ली गई ऊष्मा पूरे शरीर में न जाकर उसी स्थान पर बनी रहती है। इससे उस स्थान का ताप अन्य स्थानों की अपेक्षा ऊंचा हो जाता है तथा जलन उत्पन्न होती है

जब भाप हमारे शरीर की त्वचा के सम्पर्क में आती है तो पहले वह 100°C के जल में बदलती है। इस क्रिया में प्रति 1 ग्राम भाप से 539 कैलोरी ऊष्मा निकलती है। (यह ऊष्मा उबलते जल में नहीं होती।) भाष की इस अतिरिक्त (गुप्त) ऊष्मा के कारण बहुत अधिक जलन उत्पन्न होती है।
उपर्युक्त उदाहरणों द्वारा हमें यह जाने को मिलता है कि किसी भी पदार्थ, पानी या भाप अदि की गुप्त ऊष्मा का हमारे ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है। 

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