पुष्प का विकास (Development of Flower):उत्पत्ति, विकास, भाग|hindi


पुष्प का विकास (Development of Flower) : उत्पत्ति, विकास, भाग 
पुष्प का विकास (Development of Flower):उत्पत्ति, विकास, भाग|hindiपुष्प का विकास (Development of Flower):उत्पत्ति, विकास, भाग|hindi

पुष्प की उत्पत्ति (Origin of Flower)
पुष्प आवृतबीजी पौधों का एक महत्वपूर्ण भाग है।आवृतबीजी पौधे (angiosperms) भू-भाग (land) के सभी स्थानों पर आधिपत्य (dominance) है केवल ध्रुवीय (polar) भाग, ऊँचे पर्वतों या सूखे मरुस्थलों को छोड़कर। इन जगहों पर नहीं पाए जाते हैं। इनकी सफलता का कारण इनमें होने वाले अनेक प्रकार के अनुकूलन (adaptations) हैं, जैसे पत्तियों का चौड़ा व चपटा होना जिससे ये अधिक से अधिक सौर ऊर्जा प्राप्त कर सकें। इसी के साथ इनके संवहन बण्डलों (vascular bundles) का अधिक विकास तथा इनकी भित्तियों का अधिक मोटा होना और सबसे महत्त्वपूर्ण अनुकूलन पुष्प व फलों का विकसित होना है। ये दोनों ऐसी युक्तियाँ (devices) हैं, जो जन्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती हैं जिससे वे उनकी प्रजनन सम्बन्धी प्रक्रियाओं व बीजों के प्रकीर्णन (dispersal) में भाग ले सकें। अतः आवृतबीजी पौधों में पुष्प की उत्पत्ति एवं विकास सबसे महत्त्वपूर्ण अनुकूलन है।

पुष्प (Flower) प्रकृति एवं विकास (Nature and Evolution)
पुष्प की प्रकृति तथा विकास को हम निम्न बिंदुओं द्वारा समझ सकते हैं-
  1. पुष्प एक रूपान्तरित तना (modified shoot) होता है। इसे हम एक पत्तीयुक्त तने (shoot) से वृद्धि के आधार पर अलग कर सकते हैं।
  2. पुष्प में परिमित (determinate) वृद्धि होती है।
  3. जब किसी तने के शीर्ष पर पुष्प की कली उत्पन्न हो जाती है तो शीर्षस्थ विभज्योतक (apical meristem) में विभाजन रुक जाता है।
  4. इस विभाजन के विपरीत पत्तीयुक्त तने में अपरिमित (indeterminate) वृद्धि होती है और वह विभाजित होता रहता है। अतः पुष्प,परिमित प्ररोह (determinate shoot) है जिनका शीर्षस्थ विभज्योतक, पुष्प बनने के बाद वृद्धि नहीं करता है।
  5. साधारण प्ररोह में एक, अक्षीय तना (axial stem) होता है, जिसमें पर्वसन्धियाँ (nodes) तथा पर्व (internodes) होते हैं।
  6. इनके nodes पर पत्तियाँ या तो अकेले या फिर चक्रीय क्रम में लगी रहती हैं।
  7. इसी प्रकार से पुष्प का पुष्पासन (thalamus) भी एक अत्यन्त संघनित (highly condensed) अक्षीय तना होता है, जिसमें nodes तथा internodes, अत्यधिक पास-पास होने के कारण स्पष्ट दिखायी नहीं देते हैं।

पुष्प के रूपान्तरित प्ररोह होने की पुष्टि निम्न प्रकार से की जा सकती है-

(1) पुष्पकलिका तथा पर्णकलिका में समजातता (Homology of the flower bud and leafy bud) –पत्तियों की कलियों की तरह पुष्प की कलिकाएँ भी अक्षीय अथवा शीर्षस्थ होती हैं अर्थात यह शीर्ष पर ही निकलती हैं तथा इन दोनों का परिवर्धन (development) भी समान ही होता है।
(2) पुष्पाक्ष की अक्षीय प्रकृति (Axis nature of thalamus) — अत्यन्त संघनित या पास पास होने के कारण पुष्पासन, तना प्रतीत नहीं होता, परन्तु कभी-कभी इसमें nodes स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। उदाहरण- झुमकलता (Passiflora suberosa) में पुष्पासन के आधार पर बाह्यदल (sepal) तथा दल (petal) लगे रहते हैं, परन्तु पुंकेसर व अण्डप कुछ दूर ऊपर एक सीधी अक्ष पर विन्यासित रहते हैं। इस अक्ष को पुमंगधर (androphore) कहते हैं। हुरहुर (Gynandropsis pentaphylla) के पुष्प में दलपुंज व पुमंग के बीच के पर्व पुमंगधर के अतिरिक्त पुमंग (androecium) व जायांग (gynoecium) के बीच भी स्पष्ट पर्व (internode) होता है जिसे जायांगधर (gynophore) कहते हैं।
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कभी-कभी गुलाब में पुष्पासन की वृद्धि रुक नहीं पाती और पुष्प के ऊपर पत्तियों सहित अक्ष दिखायी देती है।

(3) पुष्पीय भागों का पर्णीय स्वभाव (Leafy nature of floral parts) — अधिकांश पुष्पों में पुष्पीय उपांगों (floral appendages) के चार समूह (sets) होते हैं-

  1. बाह्यदलपुंज (calyx)
  2. दलपुंज (corolla)
  3. पुमंग (androecium) 
  4. जायांग (gynoecium)
प्रत्येक पुष्पीय भाग विकास की दृष्टि से एक रूपान्तरित पत्ती होता है। पुष्प के विभिन्न भागों के विकास को निम्न प्रकार से समझाया जा सकता है-

(A) बाह्यदलपुंज का विकास (Evolution of Calyx) - बाह्यदलपुंज (calyx) पुष्प का बाहरी चक्र होता है, जो पुष्प कलिका की रक्षा करता है। प्रत्येक बाह्यदल (sepal) वास्तव में एक रूपान्तरित पत्ती होता है। बाह्यदलों में शिराविन्यास (venation) तथा रंग आदि पत्ती की भाँति हरा ही होता है। अनेक ऐसी जीन्स (genes) ज्ञात हैं जो पुष्पों में बाह्यदलों तथा पत्तियों की रचना को प्रभावित करती हैं लेकिन दलों को नहीं।
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उदाहरणमुसेन्डा फ्रोन्डोसा (Mussaenda frondosa) में बाह्यदलपुंज (calyx) का एक बाह्यदल (sepal) बड़ी पत्ती के समान दिखाई देता है। गुलाब में कभी कभी बाह्यदल पत्तियों के समान हो जाते हैं। इस प्रकार पत्ती व बाह्यदल तने पर पाये जाने वाले अलग-अलग चपटे उपांग हैं, परन्तु इनका विकास व उत्पत्ति समान (common) होती है।

(B) दलपुंज का विकास (Evolution of Corolla) - दलपुंज (corolla) पुष्प का दूसरा महत्त्वपूर्ण भाग होता है। इसमें अनेक दल (petals) होते हैं। ये दल रंगीन होते हैं इन्हीं से प्रभावित होकर कीट एक पुष्प से दूसरे पुष्प पर जाते हैं और एक स्थान पर स्थिर रहते हुए भी आवृतबीजी पौधों (angiosperms) में संकरण होता रहता है। दलपुंज का विकास जटिल तथा विवादित (controversial) है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार दल, बाह्यदलों से विकसित होते हैं। पुष्प पर इनके लगने का क्रम पत्तियों के तने पर लगने के समान होता है, निम्फिया (Nymphaea odoratus = Lily) के पुष्प में बाह्यदलों व दलों के बीच की रचनाएँ (trans itional stages) पायी जाती हैं। उनमें दल स्पष्ट रूप से बाह्यदल से उत्पन्न हुए प्रतीत होते हैं तथा दल से पुंकेसर के बीच की अवस्था भी मिलती है। कुछ पौधों के पुष्पों में बाह्यदलों व दलों के बीच विभेदन नहीं होता, ऐसे चक्र को परिदलपुंज (perianth) कहते हैं तथा इसके एक भाग को परिदल (tepal) कहा जाता है।
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कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, दलों का विकास पुंकेसरों से हुआ है। दोनों रचनाएँ कुछ ऐसी जीन्स (genes) से प्रभावित होती हैं, जो बाह्यदलों तथा अण्डपों को प्रभावित नहीं करती है। केना (Canna) के पुष्प में दलाभ पुंकेसर (petaloid stamens) मिलते हैं। गुलाब की प्राकृत (wild rose) जाति में केवल पाँच दल होते हैं जबकि कृत्रिम (artificial) रूप से उगायी जाने वाली जातियों में अनेक दल होते हैं, इन जातियों में अनेक पुंकेसर (stamens), दलों (petals) में बदले हुए दिखाई देते हैं।

इस प्रकार दलों की उत्पत्ति एवं विकास दो प्रकार से हुआ प्रतीत होता है-

  • कुछ पुष्पी पादपों में ये बाह्यदलों से विकसित होते हैं।
  • अधिकांश पुष्पी पादपों में ये पुंकेसरों से विकसित होते हैं जो विकास प्रक्रिया में चपटे तथा पत्तियों की भाँति हो गये हैं।
(C) पुमंग का विकास (Evolution of Androecium) - पुमंग, पुष्प का नर जननांग है। इस चक्र में अनेक पुंकेसर (stamens) होते हैं। प्रत्येक पुंकेसर में प्रायः एक लम्बा पुंतन्तु होता है, जिस पर चार लघु-बीजाणुधानियाँ (microsporangia or pollen sacs) होती हैं। पुंकेसर भी वास्तव में रूपान्तरित पत्तियाँ ही होता हैं। आदि (primitive) पुष्पों में पुंकेसर पत्तियों के समान थे।
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ऊपर चित्र में तीन आधुनिक पौधों में पुंकेसरों के विकास की दशाओं को प्रदर्शित किया गया है। ऑस्ट्रोबेलिया (Austrobaileya sp.) में पुंकेसर पत्ती के समान चपटा है, जिस पर बीजाणुधानियाँ हैं। मेग्नोलिया (Magnolia sp.) में पुंकेसर का आकार कम हो गया है और लिली के पुष्प में यह पूर्णतया घटकर केवल लघुबीजाणुधानियों के रूप में ही रह गया है।


(D)
जायांग का विकास (Evolution of Gynoecium) - जायांग पुष्प का मादा जननांग भाग होता है। आवृतबीजी पौधों में यह अत्यन्त विशिष्ट अंग होता है और उनकी विशेषता भी है, जायांग में एक या अधिक अण्डप (carpels) होते हैं। प्रारम्भिक पुष्पी पादपों में अण्डप, पत्ती के समान होते हैं, आधुनिक आवृतबीजी पौधों में अण्डप का आधारीय फूला भाग अण्डाशय (ovary) होता है, इसके ऊपर वर्तिका (style) तथा शीर्ष पर वर्तिकाग्र (stigma) होता है। अण्डप का विकास एक रूपान्तरित पत्ती के किनारों पर बीजाण्ड (ovule) उत्पन्न होने से प्रारम्भ हुआ। विकास प्रक्रिया में पत्ती के किनारे (edges) अन्दर की ओर मुड़ने लगे और अन्त में परस्पर संयुक्त हो गये और इस प्रक्रिया में बीजाण्ड (ovule) भीतरी सतह पर आ गये। इसी प्रकार से अनेक अण्डपों के अन्दर की ओर मुड़ने (folding) तथा परस्पर संयोजन (fusion) से संयुक्त अण्डाशय विकसित हुआ है।
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पुष्प के विकास की विशेषताएँ (Characteristics of Evolution of Flower)
वैज्ञानिकों ने जीवाश्मों (fossils) के अध्ययन से तथा पुष्पों के अन्य लक्षणों से यह ज्ञात किया है कि कौन-सा पुष्प आदि अथवा प्रारम्भिक (primitive) तथा कौन-सा पुष्प विकसित (advanced) है।
एक प्रारम्भिक पुष्प में सभी पुष्पीय भाग होते हैं तथा इनकी संख्या अधिक होती है। ये परस्पर तथा अन्य चक्रों के सदस्यों से स्वतन्त्र होते हैं तथा ये पुष्पाक्ष पर सर्पिल क्रम में व्यवस्थित (spirally arranged) होते हैं। ऐसे पुष्प में अरीय सममिति (radial symmetry) होती है।

एक आदि पुष्प (primitive flower), आधुनिक हिपेटिका अमेरिकाना (Hepatica americana) से मिलता जुलता समझा जाता है। इस पुष्प की तुलना जब अधिक विशिष्ट व विकसित पुष्प, जैसे ऑर्किडेसी या कम्पोजिटी (compositae) कुल के पुष्प से करें तो पुष्पीय विकास में चार विशेष मुख्य प्रवृत्तियों (tendency) की सम्भावना दिखाई देती है—
  • पुष्पीय भागों की संख्या में कमी (Reduction in number of floral parts) — प्रारम्भिक (primitive) पुष्पों में विभिन्न भागों जैसे- बाह्यदल, दल, पुंकेसर तथा अण्डपों की संख्या अधिक थी लेकिन विकास प्रक्रिया में इनकी संख्या में कमी हुई, विशेष रूप से पुंकेसरों व अण्डपों की संख्या बहुत कम हो गयी।
  • पुष्पी भागों का संयुक्त होना (Fusion of floral parts) - पुष्प के विकास के क्रम में पुष्प के विभिन्न भाग विशेष रूप से दल (petals) तथा अण्डप (carpel) परस्पर संयुक्त हुये। कुछ पौधों में पुंकेसरों का परस्पर संयोजन हुआ या इनका दलों से संयोजन हुआ। इस संयोजन की प्रक्रिया में कई चक्र पूर्णतया विलुप्त भी हो गया है।
  • स्वतन्त्र पुष्पीय भागों का अण्डाशय से ऊपर उत्पन्न होना (Elevation of free floral parts above the ovary) — प्रारम्भिक पुष्पों में पुष्पीय भाग जैसे बाह्यदल, दल तथा पुंकेसर, अण्डाशय के आधार पर उत्पन्न होते हैं। ऐसे अण्डाशय को उत्तरवर्ती (superior) कहते हैं तथा ऐसे पुष्पों को अधोजाय (hypogynous) कहते हैं। विकास प्रक्रम की प्रक्रिया में स्वतन्त्र पुष्पीय भाग अण्डाशय से ऊपर हो गये है। ऐसे अण्डाशय को अधोवर्ती (inferior) तथा ऐसे पुष्पों को जायांगोपरिक (epigynous) कहते हैं। यह एक महत्त्वपूर्ण अनुकूलन (adaptation) है जिसके कारण बीजाण्ड, कीटों से सुरक्षित रहते हैं।
  • सममिति में परिवर्तन (Change in symmetry) — प्रारम्भिक पुष्पों में अरीय सममिति (radial symmetry) होती है, लेकिन विकास की प्रक्रिया में यह द्विपार्श्वीय सममिति (bilateral symmetry) में बदल गयी।

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