आवृतबीजी पौधों में युग्मकोद्भिद् (Gametophyte in Angiosperms)
आवृतबीजी पौधों में मादा युग्मकोद्भिद्
आवृतबीजी पौधों में युग्मकोद्भिद् बहुत सरल होता है। मादा युग्मकोद्भिद का वर्णन इस प्रकार है -
1. इनमें गुरुबीजाणुधानी (megasporangium) या बीजाण्ड (ovule) एक पैतृक बीजाणु-उद्भिद् ऊतक में घिरे रहते हैं। जिसे अण्डप (carpel) कहते हैं।
2. बीजाण्ड में बीजाण्डकाय (nucellus) नामक द्विगुणित ऊतक होता है, इसमें एक कोशिका अन्य से अलग होकर गुरुबीजाणु मातृ-कोशिका (megaspore mother cell) बनाती है।
3. गुरुबीजाणु मातृ-कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन के बाद चार अगुणित गुरुबीजाणु (haploid megaspores) बनते हैं, जिसमें से तीन नष्ट हो जाते हैं और एक क्रियात्मक गुरुबीजाणु (functional megaspore) शेष रह जाता है।
4. यह गुरुबीजाणु वृद्धि करके बड़ा हो जाता है और इसका केन्द्रक सूत्री विभाजनों (mitosis) द्वारा आठ भागों में बँट जाता है।
5. ये आठ केन्द्रक एक ही कोशिका में रहते हैं। इनमें तीन केन्द्रक एक सिरे पर, तीन केन्द्रक दूसरे सिरे पर तथा दो केन्द्रक मध्य में स्थापित हो जाते हैं।
6. इसके बाद दोनों सिरों पर स्थित केन्द्रकों के बीच भित्ति का निर्माण होता है।इस भित्ति का निर्माण होने से सात कोशीय मादा युग्मकोद्भिद् (female gametophyte) बन जाता है। जिसमें आठ केन्द्रक होते हैं।
7. मादा युग्मकोद्भिद् के एक सिरे पर एक अण्ड कोशिका (egg cell) तथा दो सहायक कोशिकाएं (synergid cells) होती हैं, दूसरे सिरे पर तीन प्रतिमुख कोशिकाएं (antipodal cells) होती हैं तथा दो स्वतन्त्र, ध्रुवीय केन्द्रक (polar nuclei) मध्य में होते हैं।
8. इस प्रकार बनी सात कोशीय तथा आठ केन्द्रकीय (7-celled and 8-nucleated) रचना को भ्रूणकोष (embryo sac) कहते हैं। यह ही मादा युग्मकोद्भिद (female gametophyte) है। लगभग 70% आवृतबीजी पौधों में यह सात कोशीय (7-celled) तथा आठ केन्द्रकीय (8-nucleate) होता है। शेष 30% में भ्रूणकोष की रचना कुछ भिन्न होती है, परन्तु सभी में एक सिरे पर अण्डकोशा तथा में मध्य में ध्रुवीय केन्द्रक होता है।
2. बीजाण्ड में बीजाण्डकाय (nucellus) नामक द्विगुणित ऊतक होता है, इसमें एक कोशिका अन्य से अलग होकर गुरुबीजाणु मातृ-कोशिका (megaspore mother cell) बनाती है।
3. गुरुबीजाणु मातृ-कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन के बाद चार अगुणित गुरुबीजाणु (haploid megaspores) बनते हैं, जिसमें से तीन नष्ट हो जाते हैं और एक क्रियात्मक गुरुबीजाणु (functional megaspore) शेष रह जाता है।
4. यह गुरुबीजाणु वृद्धि करके बड़ा हो जाता है और इसका केन्द्रक सूत्री विभाजनों (mitosis) द्वारा आठ भागों में बँट जाता है।
5. ये आठ केन्द्रक एक ही कोशिका में रहते हैं। इनमें तीन केन्द्रक एक सिरे पर, तीन केन्द्रक दूसरे सिरे पर तथा दो केन्द्रक मध्य में स्थापित हो जाते हैं।
6. इसके बाद दोनों सिरों पर स्थित केन्द्रकों के बीच भित्ति का निर्माण होता है।इस भित्ति का निर्माण होने से सात कोशीय मादा युग्मकोद्भिद् (female gametophyte) बन जाता है। जिसमें आठ केन्द्रक होते हैं।
7. मादा युग्मकोद्भिद् के एक सिरे पर एक अण्ड कोशिका (egg cell) तथा दो सहायक कोशिकाएं (synergid cells) होती हैं, दूसरे सिरे पर तीन प्रतिमुख कोशिकाएं (antipodal cells) होती हैं तथा दो स्वतन्त्र, ध्रुवीय केन्द्रक (polar nuclei) मध्य में होते हैं।
8. इस प्रकार बनी सात कोशीय तथा आठ केन्द्रकीय (7-celled and 8-nucleated) रचना को भ्रूणकोष (embryo sac) कहते हैं। यह ही मादा युग्मकोद्भिद (female gametophyte) है। लगभग 70% आवृतबीजी पौधों में यह सात कोशीय (7-celled) तथा आठ केन्द्रकीय (8-nucleate) होता है। शेष 30% में भ्रूणकोष की रचना कुछ भिन्न होती है, परन्तु सभी में एक सिरे पर अण्डकोशा तथा में मध्य में ध्रुवीय केन्द्रक होता है।
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आवृतबीजी पौधों में नर युग्मकोद्भिद्
1. नर युग्मकोद्भिद् की संरचना इससे भी सरल होती है इनमें चारों लघुबीजाणुधानी (microsporangia) संयुक्त होकर परागकोश (anther) बनाती हैं, जिसमें लघुबीजाणु मातृ-कोशिकाएं बनती हैं।
2. इनमें फिर अर्धसूत्री विभाजन के पश्चात् लघुबीजाणु (microspores) अथवा परागकण (pollen grain) बनते हैं। ये ही नर युग्मकोद्भिद् की प्रथम कोशिकाएं हैं।
3. परागधानी (pollen tube) के प्रस्फुटन से पूर्व ही प्रत्येक लघुबीजाणु में सूत्री विभाजन होता है जिससे एक नलिका केन्द्रक तथा एक जनन केन्द्रक बनता है। इस रचना को परागकण कहते हैं।
4. उसका आगे विकास तब तक रुक जाता है जब तक कि परागकण, पुष्प के वर्तिकाग्र पर न आ जायें। वहाँ पर परागकण से परागनलिका (pollen tube) निकलती है और यह नीचे की ओर वृद्धि करती है, इसमें स्थित जनन केन्द्रक सूत्री विभाजन (mitosis) से विभाजित होकर दो शुक्राणु केन्द्रक अथवा नर युग्मक (male gamete) बनाता है।
2. इनमें फिर अर्धसूत्री विभाजन के पश्चात् लघुबीजाणु (microspores) अथवा परागकण (pollen grain) बनते हैं। ये ही नर युग्मकोद्भिद् की प्रथम कोशिकाएं हैं।
3. परागधानी (pollen tube) के प्रस्फुटन से पूर्व ही प्रत्येक लघुबीजाणु में सूत्री विभाजन होता है जिससे एक नलिका केन्द्रक तथा एक जनन केन्द्रक बनता है। इस रचना को परागकण कहते हैं।
4. उसका आगे विकास तब तक रुक जाता है जब तक कि परागकण, पुष्प के वर्तिकाग्र पर न आ जायें। वहाँ पर परागकण से परागनलिका (pollen tube) निकलती है और यह नीचे की ओर वृद्धि करती है, इसमें स्थित जनन केन्द्रक सूत्री विभाजन (mitosis) से विभाजित होकर दो शुक्राणु केन्द्रक अथवा नर युग्मक (male gamete) बनाता है।
इस प्रकार संवहनी पौधों के युग्मकोद्भिद् के आकार व जटिलता में ह्रास स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ब्रायोफाइट्स की भाँति फर्नों में युग्मकोद्भिद् हरा, प्रकाश-संश्लेषी तथा स्वतन्त्र होता है। इस पर बहुकोशीय स्त्रीधानियाँ तथा पुंधानियाँ उत्पन्न होती हैं।
पौधों में विषमबीजाणुक दशा (heterosporous condition) पायी जाती है, अतः इनमें दो प्रकार के युग्मकोद्भिद् (gametophyte) उत्पन्न होते हैं। इसमें नर युग्मक या शुक्राणु उत्पन्न करने वाले को नर युग्मकोद्भिद् (male gametophyte) तथा मादा युग्मक या अण्ड उत्पन्न करने वाले को मादा युग्मकोद्भिद् (female gametophyte) कहते हैं। अनावृतबीजी पौधों में मादा युग्मकोद्भिद् जटिल व बहुकोशीय रचना है जिसमें स्त्रीधानियाँ उत्पन्न होती हैं। आवृतबीजी पौधों में मादा युग्मकोद्भिद् एक भ्रूणकोष के रूप में होता है। यह प्रायः आठ केन्द्रकीय (8-nucleate) तथा सात कोशीय (7-celled) रचना है।
पौधों में विषमबीजाणुक दशा (heterosporous condition) पायी जाती है, अतः इनमें दो प्रकार के युग्मकोद्भिद् (gametophyte) उत्पन्न होते हैं। इसमें नर युग्मक या शुक्राणु उत्पन्न करने वाले को नर युग्मकोद्भिद् (male gametophyte) तथा मादा युग्मक या अण्ड उत्पन्न करने वाले को मादा युग्मकोद्भिद् (female gametophyte) कहते हैं। अनावृतबीजी पौधों में मादा युग्मकोद्भिद् जटिल व बहुकोशीय रचना है जिसमें स्त्रीधानियाँ उत्पन्न होती हैं। आवृतबीजी पौधों में मादा युग्मकोद्भिद् एक भ्रूणकोष के रूप में होता है। यह प्रायः आठ केन्द्रकीय (8-nucleate) तथा सात कोशीय (7-celled) रचना है।
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