वाष्पन (Evaporation) क्या है?
जब किसी द्रव को वायु में खुला रख दिया जाता है तो वह धीरे-धीरे गैस अवस्था में परिवर्तित होकर वायुमण्डल में विलीन होने लगता है। उदाहरणार्थ-जब थोड़े से जल को एक प्लेट में रखकर वायु में रख दिया जाता है तो वह कुछ समय बाद समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार जब भीगे हुए कपड़े हवा में फैला दिये जाते हैं तो कुछ समय बाद वे सूख जाते हैं।
प्रत्येक द्रव सामान्य ताप पर धीरे-धीरे गैस अवस्था में परिवर्तित होता रहता है। इस क्रिया को वाष्पन (evaporation) कहते हैं।
वाष्पन की गति निम्न अवस्थाओं में अधिक होती है -
वाष्पन की गति द्रव की प्रकृति पर भी निर्भर करती है। कुछ द्रव (जैसे-पेट्रोल व ईथर) तेजी से वाष्पित होते हैं। वाष्पन के गुण को वाष्पशीलता (volatility) कहते हैं। जिन द्रवों का वाष्पन शीघ्रता से होता है, उनकी वाष्पशीलता अधिक होती है। दूसरे शब्दों में ये द्रव अधिक वाष्पशील (more volatile) द्रव कहलाते हैं।
वाष्पन की क्रिया में द्रव का ताप कम हो जाता है।
क्वथन (Boiling) क्या होता है?
जब किसी द्रव को गर्म करते हैं तो उसका ताप बढ़ता है। द्रव का ताप बढ़ाते रहने पर उसके वाष्पन की गति बढ़ती रहती है। वाष्पन की क्रिया सतही होती है अर्थात् द्रव की सतह पर स्थित अणु गैस अवस्था में परिवर्तित होते रहते हैं। ताप बढ़ाते रहने पर एक स्थिति ऐसी आती है कि द्रव के न केवल सतह के अणु बल्कि सतह के भीतर के अणु भी तेजी से गैस अवस्था में परितर्तित होने लगते हैं। इस कारण सारे द्रव में बुलबुले उठने लगते हैं। इस स्थिति में द्रव का ताप स्थिर रहता है। इस क्रिया को क्वथन (boiling) कहते हैं।
द्रव का ताप बढ़ाने पर जब सम्पूर्ण द्रव तेजी से गैस अवस्था में परिवर्तित होने लगता है तथा उसमें बुलबुले उठने लगते हैं तो इस क्रिया को क्वथन (boiling) कहते हैं। जिस ताप पर यह क्रिया होती है, उसे क्वथनांक (boiling point) कहते हैं।
क्वथनांक पर दाब का प्रभाव - किसी द्रव का वाष्प दाब उसका ताप बढ़ाने पर बढ़ता है। अतः यदि द्रव पर लगे वायुमण्डलीय दाब में कमी कर दी जाये तो कम ताप पर ही द्रव का वाष्प वायुमण्डलीय दाब के बराबर हो जायेगा और द्रव उबलने लगेगा। इसी प्रकार यदि द्रव पर लगे वायुमण्डलीय दाब में वृद्धि कर दी जाये तो वह अधिक ताप पर उबलेगा।
पहाड़ों पर वायुमण्डलीय दाब का मान कम होता है। किसी द्रव का वाष्प दाब कम ताप पर कम तथा अधिक ताप पर अधिक होता है। अतः पहाड़ों पर कम ताप पर ही द्रव का वाष्प दाब वायुमण्डलीय दाब के बराबर हो जाता है तथा द्रव कम ताप पर ही उबलने लगता है। अतः पहाड़ों पर जल अपने सामान्य क्वथनांक से पहले ही उबलने लगता है।
प्रेशर कुकर में जल के वाष्पन से प्राप्त वाष्प बाहर नहीं जा पाती है। फलतः प्रेशर कुकर में जल पर लगे दाब का मान अधिक हो जाता है। अतः जल का क्वथनांक बढ़ जाता है। उच्च ताप प्राप्त हो जाने के कारण दाल शीघ्रता से गल जाती है।
वाष्पन तथा क्वथन में अंतर
1. वाष्पन की क्रिया प्रत्येक ताप पर होती है। जबकि क्वथन की क्रिया एक निश्चित ताप पर होती है।
2. वाष्पन की क्रिया में केवल द्रव की सतह पर उपस्थित अणु गैसीय व्यवस्था में पृथक् होते हैं। जबकि क्वथन की क्रिया में द्रव के प्रत्येक भाग में उपस्थित अणु गैसीय अवस्था में पृथक् होते हैं।
3.वाष्पन की यह क्रिया धीरे-धीरे होती है। जबकि क्वथन की यह क्रिया तेजी से होती है।
4. वाष्पन की क्रिया वायु के प्रवाह की गति तथा वायु की आर्द्रता से प्रभावित होती है। जबकि क्वथन की यह क्रिया वायु के प्रवाह की गति तथा वायु की आर्द्रता से प्रभावित नहीं होती है।
जब किसी द्रव को वायु में खुला रख दिया जाता है तो वह धीरे-धीरे गैस अवस्था में परिवर्तित होकर वायुमण्डल में विलीन होने लगता है। उदाहरणार्थ-जब थोड़े से जल को एक प्लेट में रखकर वायु में रख दिया जाता है तो वह कुछ समय बाद समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार जब भीगे हुए कपड़े हवा में फैला दिये जाते हैं तो कुछ समय बाद वे सूख जाते हैं।
प्रत्येक द्रव सामान्य ताप पर धीरे-धीरे गैस अवस्था में परिवर्तित होता रहता है। इस क्रिया को वाष्पन (evaporation) कहते हैं।
वाष्पन की गति निम्न अवस्थाओं में अधिक होती है -
- द्रव का ताप बढ़ाने पर।
- द्रव का सतही क्षेत्रफल अधिक करने पर।
- वायु का प्रवाह तेज करने पर।
वाष्पन की गति द्रव की प्रकृति पर भी निर्भर करती है। कुछ द्रव (जैसे-पेट्रोल व ईथर) तेजी से वाष्पित होते हैं। वाष्पन के गुण को वाष्पशीलता (volatility) कहते हैं। जिन द्रवों का वाष्पन शीघ्रता से होता है, उनकी वाष्पशीलता अधिक होती है। दूसरे शब्दों में ये द्रव अधिक वाष्पशील (more volatile) द्रव कहलाते हैं।
वाष्पन की क्रिया में द्रव का ताप कम हो जाता है।
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क्वथन (Boiling) क्या होता है?
जब किसी द्रव को गर्म करते हैं तो उसका ताप बढ़ता है। द्रव का ताप बढ़ाते रहने पर उसके वाष्पन की गति बढ़ती रहती है। वाष्पन की क्रिया सतही होती है अर्थात् द्रव की सतह पर स्थित अणु गैस अवस्था में परिवर्तित होते रहते हैं। ताप बढ़ाते रहने पर एक स्थिति ऐसी आती है कि द्रव के न केवल सतह के अणु बल्कि सतह के भीतर के अणु भी तेजी से गैस अवस्था में परितर्तित होने लगते हैं। इस कारण सारे द्रव में बुलबुले उठने लगते हैं। इस स्थिति में द्रव का ताप स्थिर रहता है। इस क्रिया को क्वथन (boiling) कहते हैं।
द्रव का ताप बढ़ाने पर जब सम्पूर्ण द्रव तेजी से गैस अवस्था में परिवर्तित होने लगता है तथा उसमें बुलबुले उठने लगते हैं तो इस क्रिया को क्वथन (boiling) कहते हैं। जिस ताप पर यह क्रिया होती है, उसे क्वथनांक (boiling point) कहते हैं।
क्वथनांक पर दाब का प्रभाव - किसी द्रव का वाष्प दाब उसका ताप बढ़ाने पर बढ़ता है। अतः यदि द्रव पर लगे वायुमण्डलीय दाब में कमी कर दी जाये तो कम ताप पर ही द्रव का वाष्प वायुमण्डलीय दाब के बराबर हो जायेगा और द्रव उबलने लगेगा। इसी प्रकार यदि द्रव पर लगे वायुमण्डलीय दाब में वृद्धि कर दी जाये तो वह अधिक ताप पर उबलेगा।
पहाड़ों पर वायुमण्डलीय दाब का मान कम होता है। किसी द्रव का वाष्प दाब कम ताप पर कम तथा अधिक ताप पर अधिक होता है। अतः पहाड़ों पर कम ताप पर ही द्रव का वाष्प दाब वायुमण्डलीय दाब के बराबर हो जाता है तथा द्रव कम ताप पर ही उबलने लगता है। अतः पहाड़ों पर जल अपने सामान्य क्वथनांक से पहले ही उबलने लगता है।
प्रेशर कुकर में जल के वाष्पन से प्राप्त वाष्प बाहर नहीं जा पाती है। फलतः प्रेशर कुकर में जल पर लगे दाब का मान अधिक हो जाता है। अतः जल का क्वथनांक बढ़ जाता है। उच्च ताप प्राप्त हो जाने के कारण दाल शीघ्रता से गल जाती है।
वाष्पन तथा क्वथन में अंतर
1. वाष्पन की क्रिया प्रत्येक ताप पर होती है। जबकि क्वथन की क्रिया एक निश्चित ताप पर होती है।
2. वाष्पन की क्रिया में केवल द्रव की सतह पर उपस्थित अणु गैसीय व्यवस्था में पृथक् होते हैं। जबकि क्वथन की क्रिया में द्रव के प्रत्येक भाग में उपस्थित अणु गैसीय अवस्था में पृथक् होते हैं।
3.वाष्पन की यह क्रिया धीरे-धीरे होती है। जबकि क्वथन की यह क्रिया तेजी से होती है।
4. वाष्पन की क्रिया वायु के प्रवाह की गति तथा वायु की आर्द्रता से प्रभावित होती है। जबकि क्वथन की यह क्रिया वायु के प्रवाह की गति तथा वायु की आर्द्रता से प्रभावित नहीं होती है।
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