कॉकरोच में श्वसन तन्त्र (Respiratory System in Cockroach)|hindi


कॉकरोच में श्वसन तन्त्र (Respiratory System in Cockroach)
कॉकरोच में श्वसन तन्त्र (Respiratory System in Cockroach)|hindi

कॉकरोच एवं अन्य भूमिगत कीटों (terrestrial insects) में श्वसन रंगा रहित रुधिर का गैसीय विनिमय और श्वसन गैसों के संवहन से कोई सम्बन्ध नहीं होता। इनमें शरीर का प्रत्येक अंग एवं ऊतक सीधे वायुमण्डल की हवा से O₂ लेता है और बदले में CO2 देता है। बाहरी हवा को ऊतकों तक पहुँचाने के लिए हीमोसील गुहा में अनेक चमकीली, पारदर्शक एवं शाखान्वित वायु नलियों या ट्रैकी (air tubes or tracheae) का जाल बिछा रहता है। शरीर पर पार्श्वों में स्थित दस जोड़ी दरारनुमा श्वास-रन्ध्रों (stigmata or spiracles) से होकर बाहरी हवा इन वायु नलियों में आती-जाती है।

श्वास रन्ध्र ( Spiracles) : इनकी दो जोड़ियाँ वक्ष तथा आठ जोड़ियाँ उदर भाग में होती हैं। वक्षीय (thoracic) श्वास रन्ध्र कुछ बड़े होते हैं। इनकी पहली जोड़ी प्रोथोरैक्स और मीसोथोरैक्स के तथा दूसरी मीसोथोरैक्स और मैटाथोरैक्स के बीच में प्ल्यूराइट्स पर होती हैं। उदरीय (abdominal) श्वास रन्धों की पहली जोड़ी पहले abdominal खण्ड की टरगाइट (tergite) पर पार्श्वों में तथा शेष सात जोड़ियाँ दूसरे से 8वें उदर-खण्डों की प्ल्यूराइट्स (pleurites) पर होती हैं। प्रत्येक श्वास रन्ध्र एक मुद्राकार स्क्लीराइट से घिरा होता है जिसे पेरिट्रीम (peritreme) कहते हैं। यह एक छोटे-से ट्रैकियल वेश्म (tracheal chamber) या ऐट्रियम (atrium) में खुलता है। इस पर cilia जैसे bristles होते हैं जो हवा को छानकर मिट्टी आदि के कणों को वेश्म में जाने से रोकते हैं। प्रत्येक रन्ध्र पर इसे खोलने व बन्द करने तथा जल की क्षति को रोकने के लिए एक कपाट (valve) भी होता है।

श्वास नलियाँ या ट्रैकी (Tracheae)
Thoracic भाग के प्रत्येक ट्रैकियल वेश्म से कई प्रमुख श्वास महानालें या ट्रैकियल ट्रंक्स (tracheal trunks) निकलकर शाखाओं में बँट जाते हैं। उदर भाग के सारे ट्रैकियल वेश्म तीन जोड़ी समानान्तर अनुलम्ब ट्रैकियल ट्रंक्स से जुड़े होते हैं — शरीर के पार्श्वों में एक-एक पार्श्व अनुलम्ब (lateral longitudinal) तथा मध्य भाग में एक-एक जोड़ी पृष्ठ एवं अधर अनुलम्ब (dorsal and ventral longitudinal) ट्रैकियल ट्रंक्स

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अनुप्रस्थ संयोजक (transverse connective) वायु नालों द्वारा अनुलम्ब ट्रंक्स परस्पर जुड़े रहते हैं। इन ट्रंक्स एवं संयोजकों से अनेक शाखाएँ या ट्रैकी (tracheae) निकलकर विविध भागों में जाती हैं। ये बार-बार शाखान्वित होकर पतली होती जाती हैं और पूरे शरीर में एक जाल-सा बनाती हैं। अन्तिम शाखाओं को ट्रैकियल केशिकाएँ या ट्रैकिओल्स (tracheal capillaries or tracheoles) कहते हैं। ये शाखान्वित कोशिकाओं में स्थित अन्तः कोशिकीय (intracellular) होती हैं। इन कोशिकाओं को ट्रैकिओल्स की छोर कोशिकाएँ (tracheal end cells or tracheole cells) कहते हैं। ये अंगों एवं ऊतकों में हर जगह पाई जाती हैं और अपने प्रवर्धी द्वारा निकटवर्ती कोशिकाओं के सम्पर्क में रहती हैं।


वायु नलियों की औतिक रचना : वायु नलियाँ देहभित्ति की ही हाइपोडर्मिस के भीतर धँस जाने से, अर्थात् भ्रूण की एक्टोडर्म (ectoderm) से बनती हैं। अंदर धँसी एपिथीलियम इकहरी, महीन एवं पारदर्शक होती है। इसकी कोशिकाएँ लम्बी एवं सँकरी होती हैं। ये अपनी भीतरी सतह पर उपचर्म (cuticle) का स्रावण करती हैं। Cuticle स्तर पर कुछ मोटी Cuticle के कुन्तल छल्ले (spiral rings) होते हैं। ये छल्ले वायु नलियों को पिचकने नहीं देते, जिससे इनमें हवा बराबर आती-जाती रहती है। उपचर्म (cuticle) स्तर को इण्टिमा (intima) कहते हैं। ट्रैकिओल्स में प्रायः छल्ले नहीं होते हैं।


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कॉकरोच में श्वास क्रिया (Mechanism of Respiration)
प्रत्येक abdomen खण्ड में अनेक खड़ी टरगोस्टरनल (tergosternal) पेशियाँ इसके टरगाइट और स्टरनाइट को जोड़ती हैं। इनके नियमित संकुचन से कॉकरोच का शरीर निश्चित समयान्तरों पर फूलता और पिचकता रहता है। शरीर के फूलने पर बाहरी हवा श्वास-रन्ध्रों से श्वास नलियों में आती है, अर्थात् अन्तःश्वास ( inspiration) होता है। इसके विपरीत, शरीर के सिकुड़ने पर हवा बाहर निकलती है, अर्थात् उच्छ्वास (expiration) होता है। श्वास-रन्ध्रों के कपाट हवा के आवागमन का नियन्त्रण एवं नियमन करते हैं।
"एक मत के अनुसार अन्तःश्वास केवल thoracic रन्ध्रों से तथा उच्छ्वास abdominal रन्ध्रों से होता है। दूसरे मत के अनुसार, सभी श्वास-रन्ध्रों से अन्तःश्वास एवं उच्छ्वास, दोनों होते हैं।"

जन्तु की विश्रामावस्था में ट्रैकिओल्स में केशिक खिंचाव (capillary force) कारण ऊतक द्रव्य (tissue fluid) इनमें कुछ दूर तक भरा रहता है। यह भीतर आयी हवा से CO2 के बदले O2 लेता है। इसके विपरीत, जन्तु की सक्रिय अवस्था में, उपापचयी दर (metabolic rate) के बढ़ जाने से, ऊतक द्रव्य में परासरणी दाब (osmotic pressure) बढ़ जाता है। इससे ट्रैकिओल्स में से ऊतक द्रव्य निकल जाता है। अतः अब हवा सीधी कोशिकाओं तक पहुँच जाती है। इससे गैसीय विनिमय बढ़ जाता है। CO, Cuticle में से भी O2 की अपेक्षा कहीं अधिक प्रसणित (diffuse) होती है। अतः यह हवा के साथ ही नहीं, बल्कि हीमोलिम्फ में घुलकर देहभित्ति की उपचर्म में से भी प्रसरण द्वारा बाहर निकलती है।

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