जड़ों द्वारा अवशोषण (Absorption by Roots)|hindi


जड़ों द्वारा अवशोषण (Absorption by Roots)


जड़ों द्वारा अवशोषण (Absorption by Roots)|hindi

जड़ों द्वारा खनिज पोषकों का तथा जल दोनों का अवशोषण होता है। और इसकी प्रक्रियायों का वर्णन इस प्रकार है -

जड़ों द्वारा खनिज पोषकों का अवशोषण (Absorption of Mineral Nutrients by Roots)


जड़ों द्वारा खनिजों का अवशोषण एक जटिल प्रक्रिया है जिसका वर्णन निम्नलिखित भागों में किया जा सकता है-


(1) जड़ों को खनिजों की उपलब्धता (Availability of minerals to the roots) 

• मृदा की पोषक तत्वों को रोके रखने की क्षमता मुख्यतः चिकने मृदा कणों (clay particles) की संरचना पर निर्भर करती है। चिकने कणों की रचना परतनुमा (sheet like) होती है, इन्हें मिसेल (micelles) कहते हैं। अपने वास्तविक स्वरूप में ये मिसेल सिलिका आयनों (Si⁴+) की अधिक मात्रा से सम्बद्ध रहते हैं। 

• कालान्तर में सिलिका आयन प्रायः ऐलुमिनियम आयन (Al³+) से और बाद में मैग्नीशियम आयन (Mg²+) तथा आयरन आयन (Fe²+) से विस्थापित (replace) कर दिये जाते हैं। इस विस्थापन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप चिकने मृदा कणों (micelles) की सतह ऋणात्मक आवेशित (negatively charged) हो जाती । 

• मृदा विलयन में उपस्थित विभिन्न धनायन (cations), जैसे Ca²+, Mg²+ तथा K+, आदि विद्युत् आकर्षण के कारण मिसेल (चिकने मृदा कण) की ऋणात्मक आवेशित सतह से चिपके रहते हैं। धनायनों का इस प्रकार से मिसेल कणों से चिपकना या बँधना लाभकारी है, इसी कारण से सिंचाई तथा वर्षा जल के साथ विभिन्न धनायन मृदा कणों से पृथक् होकर बह नहीं पाते हैं। इसके विपरीत ऋणायन (anions) स्वतन्त्र रहते हैं, ये मृदा कणों से सम्बद्ध नहीं रहते।


धनायनों की उपलब्धता (Availability of cations) -  मूलरोम मृदा से धनायनों को धनायन विनिमय प्रक्रिया (cation exchange process) द्वारा प्राप्त करते हैं। इस प्रक्रिया में मूलरोम से मृदा विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+) मुक्त होते हैं। ये H+ आयन मृदा कणों की सतह से चिपके पोषक तत्वों (धनायनों) को पृथक् कर देते हैं और ये धनायन जड़ों को प्राप्त हो जाते हैं।


Micelle - Ca²+  + 2H+  Cation exchange  ⟶ H+ – Micelle – H+ + Ca²+ (Ca²+ को जड़ें अवशोषित कर लेती हैं)

धनायन विनिमय की क्रिया जड़ों की श्वसन (respiration) क्रिया में मुक्त CO2 के कारण बढ़ जाती है। जड़ों की श्वसन क्रिया में मुक्त CO2 जल के साथ घुलकर कार्बनिक अम्ल (H2CO3) बनाती है, यह शीघ्र ही HCO3- तथा H+ आयनों में टूट जाता है। ये H+ आयन फिर मिसेल से धनायनों को विस्थापित करते हैं और इस प्रकार धनायन जड़ों को प्राप्त हो जाते हैं।


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चिकने मृदा कणों में ऋणावेश के कारण उच्च धनायन विनिमय क्षमता (high cation exchange capacity) होती है। इसके विपरीत बालू कणों में कोई आवेश नहीं होता। अतः इनकी धनायन विनिमय क्षमता कम होती है। बालू कणों से धनायन जुड़ नहीं पाते और वर्षा जल के साथ मृदा से विभिन्न धनायन शीघ्र ही बह जाते हैं। इस प्रकार बालुई मृदा (sandy soil) प्रायः पोषक तत्वों से न्यून (nutrient deficient) होती है, अर्थात् बालुई मृदा में पोषक तत्व कम मात्रा में होते हैं और यह मृदा खेती के लिये अधिक उपयुक्त नहीं होती जबकि उच्च धनायन विनिमय क्षमता वाली मृदा खेती के लिये उपयुक्त होती है। 

यद्यपि उच्च धनायन विनिमय क्षमता की मृदा का एक प्रमुख दोष यह है कि मिसेल (चिकने मृदा कण), H+ आयन के साथ मिलकर अम्लीय हो जाते हैं। यदि इस प्रक्रिया को नियन्त्रित न किया जाये तो मृदा की pH 3 या 4 तक गिर जाती है और इससे पोषक तत्वों की availability प्रभावित होती है और पौधों की पोषक तत्वों के अभाव में वृद्धि रुक जाती है।

ऋणायनों की उपलब्धता (Availability of anions) — धनायनों के विपरीत विभिन्न ऋणायन, जैसे NO3-, CO²-3, आदि मृदा कणों के साथ बँधे नहीं होते। ये अबन्धित ऋणायन (unbound anions) आसानी से पौधों को उपलब्ध हो जाते हैं परन्तु ये आयन जल के साथ मिट्टी से शीघ्र बह जाने को तैयार रहते हैं। यही कारण है कि मृदा प्राय: नाइट्रोजन न्यून (nitrogen deficient) हो जाती है, अर्थात् मृदा में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है।


खनिज अवशोषण की क्रिया-विधि (Mechanism of Mineral Absorption)


(A) खनिजों का सक्रिय अवशोषण (Active Absorption of Minerals) — जड़ें अधिकांश खनिजों का अवशोषण निम्न चार चरणों में करती हैं-

• मूलरोमों में सक्रिय परिवहन (Active transport into root hairs) - मृदा विलयन में खनिजों (minerals) की सान्द्रता पादप कोशिकाओं में उपस्थित सान्द्रता की अपेक्षा बहुत कम होती है, जैसे मृदा विलयन में पोटैशियम आयन (K+) की सान्द्रता पादप कोशाओं की अपेक्षा 1/10 होती है। अतः इन आयनों का जड़ों में सामान्य विसरण नहीं हो सकता है, इस कारण से अधिकांश खनिज तत्व सान्द्र प्रवणता के विरुद्ध सक्रिय परिवहन (active transport) द्वारा मूलरोम में आते हैं। इस क्रिया में मूलरोम की प्लाज्मा झिल्ली ATP से ऊर्जा प्राप्त करती है।

• कोशाद्रव्य से होकर परिरम्भ कोशाओं तक विसरण (Diffusion through cytoplasm to pericycle cells) — जीवित कोशिकाओं के कोशाद्रव्य परस्पर जीवद्रव्यी तन्तुओं (plasmodesmata) द्वारा सम्बन्धित रहते हैं। विभिन्न खनिज तत्व इन्हीं तन्तुओं से होकर विसरण प्रक्रिया द्वारा मूलीय त्वचा की कोशिकाओं से क्रमशः वल्कुट (cortex) व endodermis से होते हुए परिरम्भ (pericycle) कोशाओं में जाते हैं।

• संवहन बण्डल के अन्तराकोशीय स्थानों में सक्रिय परिवहन (Active transport into the intercellular spaces of the vascular bundle) – जड़ के संवहन बण्डल के मध्य में जाइलम होता है। इसी से होकर अन्ततः खनिजों का परिवहन होता है। जाइलम वाहिकाएँ तथा वाहिनिकाएँ मृत होती हैं और उनकी कोशा-भित्ति छिद्रिल होती है। परिरम्भ (pericycle) कोशाओं के कोशाद्रव्य से खनिज, सक्रिय परिवहन (active transport) द्वारा जाइलम के बीच अन्तराकोशीय स्थानों में आ जाते हैं।

• जाइलम में विसरण (Diffusion into the xylem) - जाइलम के बीच intracellular space में आये खनिजों के कारण इनकी सान्द्रता बढ़ जाती है, यह एक प्रवणता (gradient) उत्पन्न करती है जो अन्तराकोशीय स्थानों से खनिज तत्वों के विसरण को जाइलम वाहिनिकाओं (xylem tracheids) एवं वाहिकाओं (vessels) में प्रेरित करती है।


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(B) खनिजों का निष्क्रिय अवशोषण (Passive Absorption of Minerals) — इस प्रकार के अवशोषण में खनिज साधारण भौतिक प्रक्रिया द्वारा अवशोषित होते हैं जिसमें ऊर्जा का प्रत्यक्ष (direct) उपयोग नहीं होता है। इस प्रक्रिया में खनिजों की गति अधिक सान्द्रता वाले भाग से कम सान्द्रता वाले भाग की ओर होती है। 

• स्वतन्त्र ऊर्जा पर आधारित नवीन विचारधारा के अनुसार खनिज अथवा तत्व अधिक रासायनिक विभव (chemical potential) क्षेत्र से कम रासायनिक विभव क्षेत्र की ओर जाते हैं। रासायनिक विभव किसी पदार्थ के मोल अंश (mole fraction) द्वारा किसी तन्त्र की स्वतन्त्र ऊर्जा में योगदान है जो वास्तव में उस पदार्थ की सान्द्रता पर ही निर्भर करता है। 

• विद्युत् अनपघट्यों (non electrolytes) में इसे रासायनिक विभव तथा विद्युत् अपघट्यों (electrolytes) में आयनों पर आवेश निवेशित होने के कारण इसे विद्युत् रासायनिक विभव (electrochemical potential) कहा जाता है। विभिन्न पदार्थों का निष्क्रिय अवशोषण प्रायः आयन प्रणाल (ion channels) के माध्यम से होता है। ये आयन प्रणाल वास्तव में कोशिका कला में उपस्थित विशिष्ट प्रोटीन्स (trans-membrane proteins) होते हैं जो विशिष्ट छिद्रों की भाँति कार्य करते हैं।





जड़ों द्वारा जल- अवशोषण की क्रिया विधि (Mechanism of Water Absorption)


जल अवशोषण की निम्नलिखित दो विभिन्न क्रिया-विधियाँ दी गयी हैं -

1. सक्रिय अवशोषण (Active absorption) (Water is absorbed by the root) – यह क्रिया उस अवस्था में होती है, जबकि वाष्पोत्सर्जन (transpiration) धीरे-धीरे होता है और मृदा में जल काफी मात्रा में होता है। सक्रिय अवशोषण (active absorption) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम रेनर (Renner, 1912 1915) ने किया। यह दो प्रकार से हो सकता है -

(अ) परासरण द्वारा जल अवशोषण (Osmotic absorption of water) - मूलरोमों (root hairs) की कोशिश-भित्ति पारगम्य कला (permeable membrane) की तरह कार्य करती है, परन्तु कोशाद्रव्य कला (cytoplasmic membrane) एक विभेदी पारगम्य कला (differentially permeable membrane) है, जो कि रिक्तिका रस (vacuolar sap) को मृदा विलयन (soil solution) से अलग करती है। 

• मृदा विलयन का परासरण दाब प्रायः 1 वायुमण्डलीय दाब (1 atm) से कम होता है और मूलरोम की रिक्तिका का परासरण दाब प्रायः 2 atm परन्तु कभी-कभी 3 से 8 atm तक हो सकता है।

• सबसे पहले मूलरोम की भित्ति soil solution से जल का अन्तःशोषण (imbibition) करती है। soil solution में जल का परासरण दाब मूल रोम के परासरण दाब से कम होता है। जब मृदा विलयन में जल की विसरण दाब- न्यूनता ( diffusion pressure deficit) मूलरोमों के जल की विसरण दाब- न्यूनता ( diffusion pressure deficit) से कम होगी तो जल परासरण के द्वारा मूलरोम में आता है। जिस समय मूलरोम के पास स्थित मृदा का केशिका जल (capillary water) मूलरोमों द्वारा ले लिया जाता है तो मूलरोम से दूरी पर स्थित केशिका जल मूलरोम के पास आ जाता है। 

• जल के अणुओं में संसंजक बल (cohesive force) होता है, अतः जल के अणु बहुत दूरी से मूलरोम की ओर चलते रहते हैं। मृदा विलयन से जल अवशोषण के कारण मूलरोम स्फीति दशा में आ जाते हैं और इनका परासरण दाब (OP) कम हो जाता है और स्फीति दाब (TP) बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप मूलरोम A की विसरण दाब-न्यूनता = चूषण-दाब (diffusion pressure deficit suction pressure) B कोशिका की विसरण दाब-न्यूनता से कम हो जाती है।

• इस कारण से जल A से B में चला जाता है। अब B कोशिका में जल आ जाने से इसकी विसरण दाब न्यूनता पास में स्थित वल्कुट की C कोशिका से कम हो जाती है और जल C कोशिका में चला जाता है। इस प्रकार जल C से D में D से E में तथा आगे की ओर एक कोशिका से दूसरी कोशिका में होता हुआ, फिर अन्तस्त्वचा (endodermis) की कोशाका में चला जाता है। 

• अन्तस्त्वचा की कोशाओं में कैस्पेरियन पट्टिका (casparian strip) होने के कारण मोटी भित्ति होती है, परन्तु प्रोटोजाइलम के सम्मुख अन्तस्त्वचा में पतली भित्ति वाली मार्ग कोशिकाएं (passage cells) पायी जाती हैं। इन्हीं कोशाओं से होकर जल परिरम्भ (pericycle) कोशा में चला जाता है जो अब स्फीति दशा (turgidity) में आ जाती है। 

• जाइलम कोशाओं का परासरण दाब (OP), चूषण-दाब (SP) की तरह कार्य करता है। क्योंकि जाइलम की कोशाओं की विसरण-दाब-न्यूनता परिरम्भ (pericycle) कोशिकाओं की विसरण- दाब- न्यूनता से अधिक होती है, इससे जल जाइलम में चला जाता है। इस प्रकार इससे स्पष्ट होता है कि मूलरोम से जाइलम तक विसरण दाब- न्यूनता की प्रवणता (gradient of diffusion pressure deficit) ही मृदा से जाइलम तक की गति निर्धारित करता है।


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एपोप्लास्ट (apoplast), सिम्प्लास्ट (symplast) विचारधारा – आधुनिक विचारधारा के अनुसार मूलरोम से जाइलम तक, जल एक कोशिका से दूसरी कोशिका में होता हुआ सामान्य रूप से नहीं बहता जैसा कि ऊपर चित्र से प्रतीत होता है बल्कि इसके तीन वैकल्पिक पथ (alternative routes or pathways) होते हैं। इन्हें नीचे चित्र में दिखाया गया है। ये पथ निम्नलिखित हैं -

सिम्प्लास्ट पथ (Symplast pathway)– इस पथ में जल, विसरण (diffusion) की क्रिया द्वारा कोशिका के बीच में जीवद्रव्यी तन्तुओं (plasmodesmata) द्वारा जाता है। इस प्रकार जल का निरन्तर प्रवाह (continuous flow) होता रहता है।

• एपोप्लास्ट पथ (Apoplast pathway) – इस पथ में जल कोशिका भित्ति (cell wall) से होकर स्वतन्त्र रूप से एक कोशिश से दूसरी कोशिका में जाता रहता है।

• रिक्तिकीय पथ (Vacuolar pathway)– इस पथ में जल मृदा से जाइलम तक, कोशिकाओं की रिक्तिकाओं (vacuoles) से होकर जल विभव प्रवणता (water potential gradient) के कारण परासरण की क्रिया द्वारा जाता है।

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(ब) परासरण-विहीन जल-अवशोषण (Nonosmotic water absorption)- इस क्रिया के अनुसार जड़ों में हो रही उपापचयी क्रियाओं के कारण उत्पन्न ऊर्जा के प्रयोग द्वारा जल का अवशोषण होता है। जड़ों की वल्कुट (cortex) कोशिकाएं श्वसन द्वारा उत्पादित ऊर्जा का उपयोग करके जल को एक ओर मृदा विलयन से खींचकर, दूसरी ओर धक्का देकर जाइलम में पहुँचाती हैं। यह एक पम्प समान क्रिया होती है। इस क्रिया पर पौधे के प्ररोह तन्त्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और यह क्रिया विसरण के नियमों के विरोध में होती है।

इस प्रकार का सक्रिय अवशोषण निम्न कारणों से प्रभावित होता है—

1. यदि किसी प्रकार (जैसे कम ताप, ऑक्सीजन की कमी करके अथवा किसी विष- KCN द्वारा) जड़ की श्वसन दर कम कर दी जाये तब जल-अवशोषण रुक जाता है।

2. यदि किसी प्रकार (ऑक्सीजन बढ़ाकर या ऑक्सिन द्वारा) जड़ की श्वसन दर की वृद्धि कर दी जाये तब जल अवशोषण की क्रिया भी बढ़ जाती है।


2. निष्क्रिय जल-अवशोषण (Passive absorption of water) (Water is absorbed through the root) - इस विचारधारा के अनुसार, जल का निष्क्रिय अवशोषण पौधे के वायवीय अंगों में हो रही तेज वाष्पोत्सर्जन (transpiration) क्रिया के कारण होता है तथा जड़ की कोशिकाएं इस क्रिया में निष्क्रिय रहती हैं। अतः इस विचारधारा के अनुसार, जल अवशोषण करने वाले चूषण बल (suction force) की उत्पत्ति वाष्पोत्सर्जन क्रिया पर निर्भर करती है जो विशेषकर पत्तियों में होती है। 

• जब पत्तियों की कोशिकाओं से वाष्पोत्सर्जन के कारण जल वाष्पित होकर निकलता है तो इन कोशिकाओं में जल की विसरण दाब- न्यूनता (diffusion pressure deficit) बढ़ जाती है और ऐसा होने पर जल आस-पास की कोशिकाओं से परासरण करके उस कोशिका की जल की न्यूनता (deficiency of water) को पूरी करने के लिये प्रवेश कर जाता है। 

• अब आस-पास की कोशाओं में विसरण दाब-न्यूनता (DPD) बढ़ जाती है, जिसको सन्तुलित करने के लिये जल को पत्तियों की जाइलम वाहिकाओं से आना पड़ता है। अतः यदि पत्तियों के जाइलम रस में कोई तनाव उत्पन्न होगा तो उसका प्रभाव जड़ के जाइलम रस तक पहुँचता है और वहाँ एक चूषण-दाब (suction pressure) उत्पन्न करता है जिस कारण जल मूलरोम व मूल वल्कुट (cortex) से होता हुआ जाइलम में आता रहता है।


जल अवशोषण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Absorption of Water)


1. प्राप्य भूमि जल (Available soil water) - यह पहले बताया गया है कि केशिका-जल (capillary water) ही पौधों के लिये उपयोगी होता है। यह जल उस भूमि की क्षेत्रीय जल-धारिता (water at field capacity) तथा स्थायी म्लानि-प्रतिशत (permanent wilting percentage) के बीच की मात्रा होती है। यदि मृदा में जल की मात्रा permanent wilting percentage या उससे कम हो जाती है तो पौधा मुरझा जाता है। यदि permanent wilting percentage से क्षेत्रीय जल धारिता तक जल की मात्रा बढ़ायी जाये तो जल-अवशोषण बढ़ता जायेगा परन्तु इससे अधिक जल की मात्रा होने से मृदा के अन्तराकोशीय स्थानों (intercellular spaces) से वायु निकल जाने से जल अवशोषण कम हो जाता है। इस अवस्था को जलाक्रान्ति (water-logging) कहते हैं।


2. मृदा का तापमान (Temperature of soil) - जब मृदा का तापमान कम होता है तो जड़ों द्वारा जल-अवशोषण की क्रिया की दर कम हो जाती है। अधिकतर पौधों को पर्याप्त अवशोषण के लिये 20° से 35°C तापमान की आवश्यकता होती है। कम तापमान के कारण जल-अवशोषण में निम्न कारणों से कमी हो जाती है-
  • मूल वृद्धि कम हो जाती है।
  • मृदा से मूल की ओर जल की गति धीमी (slow) हो जाती है।
  • कोशिका कला की पारगम्यता (permeability of cell membrane) कम हो जाती है।
  • कोशिकाद्रव्य का आलगत्व (viscosity) बढ़ जाता है।


3. मृदा विलयन की सान्द्रता (Concentration of soil solution) - यदि मृदा विलयन की सान्द्रता (इसलिये परासरण दाब भी) मूलरोम के रिक्तिका रस की सान्द्रता (परासरण दाब भी) की तुलना में कम होगी तो उन जड़ों द्वारा जल का अवशोषण सुगम होगा। यदि मृदा विलयन की सान्द्रता अधिक होगी तो जड़ों द्वारा जल अवशोषण कठिन होगा। दूसरी अवस्था में मृदा दैहिक रूप से शुष्क (physiologically dry) हो जाती है। कभी-कभी खेती में उर्वरकों (fertilizers) का प्रयोग करने पर यदि शीघ्र ही काफी जल से खेतों की सिंचाई नहीं होती तो मृदा में लवणों की सान्द्रता अधिक हो जाने के कारण पौधे मुरझा जाते हैं।


4. मृदा की वायु (Soil air) - अच्छे वातन वाली (well aerated) मृदा से जल का अवशोषण अधिक होता है तथा है जलाक्रान्ति मृदा (water-logged soil) से जल का अवशोषण कम होता है। इसका कारण यह है कि जल अवशोषण क्रिया भौतिक प्रक्रम (physical process) नहीं है, परन्तु यह एक जैविक क्रिया (vital activity) है जिसके लिये ऑक्सीजन (O2) की आवश्यकता होती है। मूल कोशिकाओं को जीवित रखने के लिये श्वसन की आवश्यकता होती है, जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में नहीं होगा। साथ ही ऑक्सीजन की कमी में अनॉक्सीय जीवाणु (anaerobic bacteria) उत्पन्न हो जाते हैं। ये जीवाणु कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) एवं कार्बनिक अम्ल अधिक मात्रा में उत्पन्न करते हैं जो जड़ों के लिये घातक होते हैं।


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