एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं को प्रभावित करने वाले कारक|hindi


एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Effecting Enzyme Catalysis Reactions)
एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं को प्रभावित करने वाले कारक|hindi

एन्जाइमों में अभिक्रिया की दर को बढ़ाने की बहुत अधिक क्षमता होती है। कभी-कभी यह बढ़ोत्तरी अनुत्प्रेरित अभिक्रियाओं (uncatalysed reactions) की अपेक्षा दस लाख गुना तक होती है। एन्जाइम द्वारा उत्प्रेरित अभिक्रियाओं (catalysed reactions) की दरों को टर्नओवर संख्या (turnover number) कहते हैं। टर्नओवर संख्या, क्रियाधार (substrate) अणुओं की वह संख्या है जो इकाई समय में, एक एन्जाइम अणु द्वारा उत्पाद में बदलती है और यह एन्जाइम की सान्द्रता पर निर्भर होता है। इसलिए यदि एन्जाइम की सान्द्रता ज्ञात हो तो टर्नओवर संख्या की गणना (calculation) की जा सकती है।

टर्नओवर संख्या = प्रति इकाई समय में बने उत्पाद के मोल / एन्जाइम के मोल

अनेक एन्जाइमों की टर्नओवर संख्याओं की सूची नीचे तालिका में दी गई है। उच्चतम् टर्नओवर संख्या कार्बोनिक एनहाइड्रेस की है जो 3.6x10⁷ CO2 अणुओं को प्रति मिनट H2CO3 में बदलता है। जीव रसायन के अन्तर्राष्ट्रीय संघ ने अभिक्रिया दरों के लिए नई यूनिट की सिफारिश की है जिसे कैट (Kat) कहते हैं। एक कैट, एन्जाइम की वह मात्रा है जो प्रति सेकन्ड क्रियाधार के एक मोल (mole) को उत्पाद में बदलता है।
एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं को प्रभावित करने वाले कारक|hindi

एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं की दरें अनेक कारकों पर निर्भर करती हैं, जैसे - ताप, pH, एन्जाइम और क्रियाधार सान्द्रता, इत्यादि ।
  1. ताप का प्रभाव (Effect of Heat)
  2. pH का प्रभाव (Effect of pH)
  3. एन्जाइम की सान्द्रता का प्रभाव (Effect of Enzyme Concentration)
  4. निरोधक का प्रभाव (Effect of Inhibitors)


(1) ताप का प्रभाव (Effect of Heat)

नियत सीमाओं में ताप (heat), एन्जाइम उत्प्रेरित अभिक्रियाओं (enzyme-catalysed reactions) को उसी रूप में प्रभावित करता है जिस रूप में यह साधारण अनुत्प्रेरित (uncatalysed) रासायनिक अभिक्रियाओं को प्रभावित करता है। जैसे-जैसे ताप बढ़ता जाता है, रासायनिक अभिक्रिया की दर, सक्रियित अणुओं (activated molecules) की संख्या में वृद्धि के कारण बढ़ जाती है। परन्तु जब ताप नियत सीमा (optimum limit) से ऊपर बढ़ जाता है तब यह एन्जाइम की त्रिविम संरचना (three dimensional structure) तथा सक्रिय स्थलों को समाप्त कर देता है जिससे एन्जाइम की सक्रियता (reactivity) समाप्त हो जाती है।
इसी प्रकार निम्न ताप, जैसे हिमकारी ताप (freezing temperature) सामान्यतः एन्जाइम को निष्क्रियित (inactive) कर देता है। इस प्रकार यह इस नियम का पालन करता है कि दी गई परिस्थितियों में प्रत्येक एन्जाइम के लिए एक नियत ताप होता है जिस पर एन्जाइम की सक्रियता अपनी अधिकतम् सीमा पर होती है। इस ताप को इष्टतम अथवा अनुकूलन ताप (optimum temperature) कहते हैं।

अधिकांश एन्जाइम 50°C से ऊपर denatured हो जाते हैं। स्तनधारियों और पक्षियों का इष्टतम ताप (optimum temperature) 35°C से 40°C के बीच होता है। पौधों और अन्य जन्तुओं का इष्टतम ताप 20°C से 35°C के बीच होता है। कुछ प्रोकैरियोट्स (prokaryotes) तथा अंटार्कटिका क्षेत्र में पाए जाने वाली कुछ मछलियों में इसका अपवाद मिलता है कि ये क्रमशः गर्म स्रोतों में और हिमकारी ठण्डे ताप वाले स्थानों पर जीवनयापन के लिए अनुकूलित होते हैं। इनका इष्टतम ताप क्रमशः 80°C से ऊपर और हिमांक बिन्दु (freezing point) से नीचे होता है।

(2) pH का प्रभाव (Effect of pH)

हाइड्रोजन आयन सान्द्रण (hydrogen ion concentration) अर्थात् pH का एन्जाइम अभिक्रिया की दर पर स्पष्ट प्रभाव होता है। विशेष रूप से प्रत्येक एन्जाइम का एक pH मान होता है, जिस पर अभिक्रिया की दर इष्टतम (optimum) होती है। प्रायः यह 7.0 ± 1.5 pH के परिसर में होती है, जिसे हम इष्टतम या अनुकूलन pH कहते हैं।
इष्टतम pH मान वह होता है जिस पर एन्जाइम अधिक तेजी के साथ अभिक्रिया करते हैं। इस pH मान के कम या अधिक पर अभिक्रिया कम हो जाती है और नियत pH मान के घटने या बढ़ने पर एन्जाइम निष्क्रिय (inactive) हो जाता है अथवा विकृत (denatured) भी हो जाता है। इसलिए एन्जाइमों का अध्ययन करते समय बफर का प्रयोग किया जाता है, जिससे एन्जाइम इष्टतम pH पर रखा जा सके। यह ठीक है कि अधिकांश एन्जाइम उदासीन pH मानों के आस-पास इष्टतम रूप में कार्य करते हैं, परन्तु कुछ एन्जाइमों का इष्टतम pH, जैसे-आमाशय में पेप्सिन का असाधारण रूप में निम्न होता है। यह आमाशय की अम्लीय परिस्थितियों के प्रति अनुकूल है, जिसका pH 1.5 से लेकर 2.5 तक होता है, क्योंकि जठर रस (gastric juice) में HCI पाया जाता है। अग्न्याशयी एन्जाइमों का इष्टतम pH क्षारीय परिसर में होता है।

(3) एन्जाइम की सान्द्रता का प्रभाव (Effect of Enzyme Concentration)

एन्जाइम किसी अभिक्रिया की दर को उत्प्रेरण द्वारा बढाते हैं। ताप, pH और क्रियाधार सान्द्रण (substrate concentration) की स्थिर दशाओं में अभिक्रिया का वेग एन्जाइम की उपलब्ध मात्रा के प्रत्यक्ष रूप में आनुपातिक होता है, अर्थात् एन्जाइम की सान्द्रता के बढ़ने के साथ-साथ अभिक्रिया की दर भी बढ़ जाती है।


(4) निरोधक का प्रभाव (Effect of Inhibitors)

एन्जाइम के सक्रिय स्थल (active site) पर विशिष्ट क्रियाधार (specialized substrate) ही समावेश कर सकता है। कोशिका में कुछ विशेष पदार्थ पाये जाते हैं, जो इन सक्रिय स्थलों पर बँध जाते हैं और वास्तविक क्रियाधार (substrate) के अणुओं से प्रतियोगिता रखते हैं। जिससे विकर (enzyme) की क्रिया प्रभावित होकर मन्द हो जाती है। ये निम्न प्रकार के होते हैं-

(a) प्रतिस्पर्धी निरोधक (Competitive inhibitors) — कुछ पदार्थों की आण्विक संरचना, क्रियाधारी (substrate) अणुओं के समान होती है। इन्हें प्रतिस्पर्धी निरोधक (competitive inhibitors) कहते हैं। ये पदार्थ, एन्जाइम के सक्रिय स्थलों से संलग्न हो जाते हैं। इससे सभी क्रियाधार अणुओं (substrate molecules) को एन्जाइम से संलग्न होने के लिए स्थान नहीं मिल पाता और एन्जाइम सक्रियता (enzyme reactivity) निरोधित (inhibit) हो जाती है, जैसे—सक्सिनिक अम्ल (succinic acid) के ऑक्सीकरण के लिए सक्सिनिक डीहाइड्रोजिनेस (succinic dehydrogenase) एन्जाइम, उत्प्रेरक है। सक्सिनिक अम्ल तथा मैलोनिक अम्ल (malonic acid) की आण्विक संरचना (molecular structure) समान होती है, अतः यदि माध्यम में कुछ मैलोनिक अम्ल डाल दिया जाए तो यह एन्जाइम के सक्रिय स्थल (active site) से संलग्न हो जाता से है और सक्सिनिक अम्ल का ऑक्सीकरण रुक जाता है।

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प्रतिस्पर्धी निरोधक (competitive inhibitor) का उपयोग कुछ जीवाणु जनित रोगों (bacterial oriented diseases) के नियन्त्रण के लिए किया जाता है। जीवाणुओं की वृद्धि के लिए फोलिक अम्ल आवश्यक होता है। इसका निर्माण पैरा अमीनो बेन्जोइक अम्ल (p-aminobenzoic acid) से होता है। सल्फा औषधि (sulfa drugs) जैसे, सल्फापाइरीडीन (sulfapyridine) एवं सल्फानिलेमाइड (sulfanilamide), आदि तथा p- अमीनो बेन्जोइक अम्ल (p-aminobenzoic acid) की आण्विक संरचना समान होती है। अतः सल्फा औषधि, एन्जाइम के सक्रिय स्थल से जुड़ जाती है। p-अमीनो बेन्जोइक अम्ल, एन्जाइम के सक्रिय स्थल (active site) से संलग्न नहीं हो पाता जिससे फोलिक अम्ल (folic acid) का संश्लेषण रुक जाता है, जो जीवाणुओं के लिए घातक सिद्ध होता है।

(b) अप्रतिस्पर्धी निरोधक (Noncompetitive inhibitors) – कुछ पदार्थों की आण्विक संरचना यद्यपि क्रियाधार (substrate) अणुओं के समान नहीं होती, परन्तु फिर भी ये पदार्थ एन्जाइम के सक्रिय स्थल से न जुड़कर किसी दूसरे स्थान से संलग्न हो जाते हैं जिससे एन्जाइम के सक्रिय स्थल (active site) की आकृति में अन्तर आ जाता है जिससे क्रियाधार (substrate) एन्जाइम के सक्रिय स्थल (active site) से संयोग नहीं कर पाता है। इस प्रकार अप्रतिस्पर्धी निरोधक एन्जाइम की क्रिया की गति को अवरुद्ध करते हैं। ऐसे पदार्थों को अप्रतिस्पर्धी निरोधक (noncompetitive inhibitors) कहते हैं, जैसे सायनाइड आयन, श्वसन क्रिया में आवश्यक साइटोक्रोम ऑक्सीडेस एन्जाइम की क्रियाशीलता को निरोधित (inhibit) कर देता है। अप्रतिस्पर्धी निरोधक को कोशिका विष (cell poison) भी कहते हैं।

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(c) ऐलोस्टेरिक मोडुलेशन (Allosteric modulation) — कुछ एन्जाइमों में क्रियात्मक रूप से भिन्न दो बन्धन स्थल (binding sites) हो सकते हैं। एक बन्धन स्थल सक्रिय स्थल (active site) होता है और यह क्रियाधार (substrate) को बाँधता है तथा अभिक्रिया को उत्प्रेरित करता है। दूसरे प्रकार का बन्धन स्थल ऐलोस्टेरिक (allosteric) अथवा नियमन स्थल (regulatory site) कहलाता है और यह एक और अणु को बाँधने का काम करता है जिसे कार्यकर (effector) अथवा मॉडुलक (modulator) अथवा रेगुलेटर (regulator) कहते हैं। ऐसे एन्जाइमों को ऐलोस्टेरिक एन्जाइम (allosteric enzymes) कहते हैं।
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ये एन्जाइम स्वभावतः
ऑलिगोमेरिक (oligomeric) होते हैं, अर्थात् उनमें एक से अधिक उपइकाइयाँ होती हैं। सक्रिय स्थल (active site) और ऐलोस्टेरिक स्थल एन्जाइम की एक ही उपइकाई पर या भिन्न उपइकाइयों पर स्थित हो सकते हैं और बँधने के कारण उपइकाइयों के बीच उत्पन्न संरूपी परिवर्तन उपइकाइयों के बीच संचरत (transfer) कर दिए जाते हैं।

कार्यकर अणु (modulator) दो प्रकार के होते हैं-धनात्मक कार्यकर (positive modulator) अर्थात् सक्रियक (activators) जो एन्जाइम की क्रियाशीलता को बढ़ाते हैं और ऋणात्मक कार्यकर (negative modulator) अथवा अवरोधक या निरोधक (inhibitor) जो एन्जाइम की क्रियाशीलता को अवरुद्ध करते हैं। कार्यकर अणु (modulator) के बँधने से ऐलोस्टेरिक एन्जाइमों में रचना सम्बन्धी परिवर्तन (structural transformation) हो जाते हैं जो उनकी उत्प्रेरक क्रिया को प्रभावित करते हैं और इस प्रकार ऐलोस्टेरिक एन्जाइम की क्रिया-विधि रेगुलेटर द्वारा नियन्त्रित (controlled) होती है।

(d) पुनर्निवेशन निरोधन (Feedback inhibition) - इस प्रकार के निरोधन में किसी एन्जाइम अभिक्रिया के फलस्वरूप बनने वाला उत्पाद (product) उस एन्जाइम की सक्रियता का निरोधन करता है। ऐसे पदार्थ को मॉडुलक (modulator) कहते हैं। उदाहरण– हेक्सोकाइनेस (hexokinase) एन्जाइम, ग्लूकोस (glucose) से ग्लूकोस-6-फॉस्फेट (glucose-6-phosphate) के परिवर्तन को उत्प्रेरित (catalyse) करता है। ग्लूकोस-6-फॉस्फेट ही हेक्सोकाइनेस का निरोधन करता है।

कुछ उपापचयी क्रियाओं में अन्तिम उत्पाद (final product) का निर्माण अनेक रासायनिक चरणों के उपरान्त होता है। प्रत्येक चरण का नियन्त्रण पृथक् एन्जाइम द्वारा होता है। कभी-कभी अन्तिम चरण का उत्पाद पूर्व के किसी भी चरण के एन्जाइम की सक्रियता का निरोधन (inhibition) कर देता है। इस प्रकार के निरोधन का उपापचयी महत्त्व है। जब कोई उत्पाद आवश्यकता से अधिक मात्रा में बनने लगता है तो यह उत्पाद किसी प्रमुख विकर का निरोधन करने लगता है, इससे उत्पाद का निर्माण मन्द हो जाता है। उत्पाद की मात्रा कम हो जाने पर विकर फिर सक्रिय हो जाते हैं।



माइकेलिस स्थिरांक (Michaelies Constant)

किसी रासायनिक अभिक्रिया में क्रियाधार (substrate) की वह सान्द्रता जिस पर क्रिया की गति उसकी अधिकतम् गति की आधी होती है, माइकेलिस स्थिरांक कहलाती है। इसे Km से प्रदर्शित करते हैं। वास्तव में यह एन्जाइम का क्रियाधार से लगाव (affinity) का अनुमान देता है। Km का मान जितना कम होता है, उतना ही एन्जाइम का substrate से लगाव अधिक होता है। एक एन्जाइम में Km का मान अलग-अलग substrate के लिए भिन्न होता है, जैसे प्रोटिएस एन्जाइम अनेक प्रकार के प्रोटीन्स पर क्रिया करता है और सभी में इसके Km का मान भिन्न होता है।

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