रसारोहण की क्रियाविधि (Mechanism of Ascent of Sap)|hindi


रसारोहण की क्रियाविधि (Mechanism of Ascent of Sap)


जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा घुलित खनिज लवण पौधों में पत्तियों तक जाइलम द्वारा पहुँचते हैं। छोटे-छोटे पौधों में तो पानी को 1-4 फीट ऊँचा ही चढ़ना पड़ता है, बड़े-बड़े वृक्षों में जो 300 फीट से भी अधिक ऊँचे हो सकते हैं, पानी किस प्रकार गुरुत्वाकर्षण के विपरीत चढ़ता है, यही बात विवाद का कारण बनी, जिस पर विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा अलग-अलग मत व्यक्त किए हैं। इन मतों को दो समूहों में बाँट लेते हैं। जैविकवाद के अनुसार, रसारोहण एक जैविक क्रिया है, इसके विपरीत भौतिकवाद के अनुसार, रसारोहण के लिए कोशिकाओं का जीवित होना आवश्यक नहीं है। 

जैव-शक्ति वाद (Vital-force theory)

सबसे पहले गॉडलेवस्की (Godlewski) ने सन् 1884 में यह वाद प्रस्तुत किया कि पौधे में रसारोहण जाइलम में उपस्थित मृदूतकीय कोशिकाओं की पम्पिंग क्रिया के द्वारा होता है। उन्होंने यह भी कहा कि रसारोहण क्रिया इन कोशिकाओं के परासरण दाब के निरन्तर परिवर्तन के कारण होती है।

स्ट्रासबर्गर (Strasburger) ने सन् 1894 में इसको अस्वीकार किया तथा बताया कि जाइलम ऊतक की इन जीवित कोशिकाओं को विषैले पदार्थ से नष्ट कर देने पर भी रसारोहण की क्रिया पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता ।

भारतीय वैज्ञानिक सर जे० सी० बोस (Sir J. C. Bose) ने सन् 1923 में अपने विद्युत उपकरणों के आधार पर सिद्ध किया कि रसारोहण कॉर्टेक्स की सबसे भीतरी पर्त की कोशिकाओं में होने वाले स्पन्दन के कारण होता है। इस प्रकार स्पन्दन के कारण जल एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पम्प होता रहता है। उनके अनुसार मृत जाइलम वाहिनियाँ केवल आशय का कार्य करती हैं तथा आवश्यकतानुसार इन आशयों से जीवित कोशिकाएँ जल खींचती रहती हैं। जिसके बाद अनेक प्रयोगों के आधार पर इसे अमान्य कर दिया गया।

भौतिकवाद (Physical theory)

इसके अनुसार, रसारोहण भौतिक दबावों एवं अनुक्रियाओं पर आधारित क्रिया है; जैसे- केशिकात्व (capillarity), अन्तःशोषण (imbibition), वायुमण्डलीय दाब (atmospheric pressure), वाष्पोत्सर्जन खिंचाव (transpiration pull) आदि।




आधुनिक वाद : वाष्पोत्सर्जन-संसंजन-तनाव वाद (Modern theory: Transpiration-cohesion-tension theory)

बड़े-बड़े वृक्षों में रसारोहण क्रिया को पूर्ण रूप से समझने के लिए अनेक बलों को एकसाथ क्रियात्मक रूप में संयोजित करके डिक्सन तथा जॉली (Dixon and Jolly, 1895) ने वाष्पोत्सर्जन-संसंजन-तनाव वाद (transpiration cohesion-tension theory) प्रस्तुत किया है।

इस वाद को सर्वाधिक मान्यता मिली, है इसे रसारोहण का आधुनिक मत कहते हैं।

यह वाद प्रमुखतः अग्रलिखित तीन तथ्यों पर निर्भर करता है -

(क) जाइलम वाहिकाओं में जल का अटूट जल स्तम्भ,

(ख) जल के अणुओं के मध्य शक्तिशाली संसंजन (cohesion) बल तथा

(ग) वाष्पोत्सर्जन कर्षण (transpiration pull) के कारण जल स्तम्भ पर तनाव।

1. जाइलम वाहिकाएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित ही नहीं होतीं, लेकिन इनके अन्दर उपस्थित जल एक अविरत जल स्तम्भ के रूप में रहता है। 

2. यह जल स्तम्भ विभिन्न स्थानों पर शाखान्वित होकर जड़ों से तने तथा शाखाओं, पत्तियों तथा पर्णकों में उपस्थित शिराओं और उनकी शाखाओं इत्यादि में होकर जल के द्रव-स्थैतिक तन्त्र (hydrostatic system) का निर्माण करता है। 

रसारोहण की क्रियाविधि (Mechanism of Ascent of Sap)|hindi


3. इस तन्त्र के एक सिरे पर उत्पन्न वाष्पोत्सर्जन खिंचाव पूरे जल स्तम्भ को प्रभावित करता है। इधर जल अणुओं में अत्यधिक संसंजन होने के कारण इतना अधिक आकर्षण बल होता है कि यह जल स्तम्भ अत्यधिक तनाव इत्यादि को सहन कर लेता है। 

4. संसंजन बल (cohesive force) के कारण 350 वायुमण्डलीय दाब पर भी जल स्तम्भ खण्डित नहीं होता है। जाइलम वाहिकाएँ केवल मृत आशय की तरह काम करती हैं तथा जल स्तम्भ का इनकी भित्तियों के साथ आसंजन (adhesive force) होता है। यह आसंजन बल भी जल स्तम्भ को खण्डित होने से बचाता है।

5. अविरत जल स्तम्भ पर वाष्पोत्सर्जन के कारण ऊपरी सिरों पर खिंचाव होता है। अतः सम्पूर्ण जल स्तम्भ ऊपर की ओर खिंचा चला जाता है (ठीक एक रस्से की तरह) जिसे कोई अनेक मंजिल ऊपर खड़े होकर भी कम बल लगाकर ही ऊपर खींच सकता है, क्योंकि रस्सी के सारे रेशे आपस में चिपक कर एक सामान्य स्तम्भ का निर्माण करते हैं।

6. पौधे के वायवीय भागों से जल का वाष्पोत्सर्जन होता है। प्रमुखतः पर्णरन्ध्र इस कार्य को करते हैं। पत्तियों पर उपस्थित पर्णरन्ध्र पत्तियों की पर्णमध्योतक की कोशिकाओं के बीच-बीच में पाए जाने वाले आन्तरकोशिकीय अवकाशों में भरी हुई जल वाष्प को वायुमण्डल में विसरित करते रहते हैं। 

7. इन अन्तराकोशिकीय स्थान में जलवाष्प की माँग निरन्तर मीसोफिल कोशिकाओं के द्वारा पूरी की जाती है। इस प्रकार मीसोफिल कोशिकाओं में जल की कमी को जाइलम वाहिकाओं में उपस्थित जल भण्डार से पूरा किया जाता है। 

8. इससे जाइलम वाहिकाओं में उपस्थित जल स्तम्भ पर एक प्रकार का खिंचाव उत्पन्न हो जाता है जो जाइलम वाहिकाओं में उपस्थित जल स्तम्भ को ऊपर खींचने लगता है। इसे वाष्पोत्सर्जन कर्षण या खिंचाव (transpiration pull) कहते हैं। 

9. उत्स्वेदन की दर के बढ़ने पर वाष्पोत्सर्जन कर्षण अधिक होता है। वाष्पोत्सर्जन कर्षण के कारण जड़ों द्वारा जल का निष्क्रिय अवशोषण होता है।

डिक्सन तथा जॉली (Dixon and Jolly, 1895) द्वारा प्रस्तुत वाष्पोत्सर्जन-संसंजन-तनाववाद (transpiration cohesion-tension theory) से रसारोहण क्रियाविधि को स्पष्ट किया जा सकता है।


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