न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton's Law of Gravitation)
न्यूटन ने सन् 1686 ई० में यह बताया कि विश्व में पदार्थ का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस सर्वव्यापी आकर्षण-बल को 'गुरुत्वाकर्षण' कहते हैं।
न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी निम्न नियम दिये :
ब्रह्माण्ड में किन्हीं दो पिण्डों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण-बल पिण्डों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। बल की दिशा दोनों पिण्डों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश होती है।
मान लो दो पिण्ड जिनके द्रव्यमान m1 व m2 हैं(चित्रानुसार🠇), एक दूसरे से r दूरी पर स्थित हैं। यदि उनके बीच कार्य करने वाला आकर्षण-बल F है, तो गुरुत्वाकर्षण के नियमानुसार,
F ∝ m1 m2 / r²
अथवाF = G m1 m2 / r²
यहाँ G अनुक्रमानुपाती नियतांक है जिसे 'न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियतांक' (Newton's Gravitation Constant) कहते हैं। इसका मान पिण्डों की प्रकृति, माध्यम, समय, ताप, इत्यादि पर निर्भर नहीं करता। अतः यह एक 'सार्वत्रिक नियतांक' (universal constant) है।
उपरोक्त सूत्र में यदि,
अतः गुरुत्वाकर्षण नियतांक परिमाण में उस आकर्षण-बल के बराबर है जो एक दूसरे से एकांक दूरी पर स्थित एकांक द्रव्यमान वाले दो पिण्डों के बीच कार्य करता है।
सी० जी० एस० पद्धति में G के मात्रक डाइन-सेमी² /ग्राम² तथा एम० के० एस० प्रद्धति में न्यूटन-मीटर² / किग्रा² हैं ।
G का मान 6.67 x 10-¹¹ न्यूटन -मीटर² /किग्रा² है। इसका अर्थ यह है कि 1 मीटर की दूरी पर एक-एक किग्रा की दो वस्तुयें रखने पर उनके बीच 6.67×10-¹¹ न्यूटन का आकर्षण-बल लगता है।
m1 = m2 = 1 तथा r = 1 हो, तो F = G
अतः गुरुत्वाकर्षण नियतांक परिमाण में उस आकर्षण-बल के बराबर है जो एक दूसरे से एकांक दूरी पर स्थित एकांक द्रव्यमान वाले दो पिण्डों के बीच कार्य करता है।
सी० जी० एस० पद्धति में G के मात्रक डाइन-सेमी² /ग्राम² तथा एम० के० एस० प्रद्धति में न्यूटन-मीटर² / किग्रा² हैं ।
G का मान 6.67 x 10-¹¹ न्यूटन -मीटर² /किग्रा² है। इसका अर्थ यह है कि 1 मीटर की दूरी पर एक-एक किग्रा की दो वस्तुयें रखने पर उनके बीच 6.67×10-¹¹ न्यूटन का आकर्षण-बल लगता है।
G का मान इतना कम होने के कारण ही हम दैनिक जीवन में इस बल का अनुभव नहीं करते। परन्तु आकाशीय पिंडों के द्रव्यमान इतने अधिक होते हैं कि उनके बीच आकर्षण-बल का परिमाण भी अधिक होता है। आकाशीय ग्रहों या उपग्रहों में यह बल आवश्यक अभिकेन्द्र बल प्रदान करता है जिसके कारण पृथ्वी सूर्य के परितः तथा चन्द्रमा पृथ्वी के परितः परिक्रमा लगाता है।
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