बल तथा गति के नियम (Force and laws of motion)
बल तथा गति (Force and motion)
गति का अध्ययन करते समय हमने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि गति को उत्पन्न करने वाला 'कारक' क्या है? अब हम यह जानेंगे कि वह कौन-सा कारक है जिसके द्वारा गति उत्पन्न होती है या गति में परिवर्तन होता है तथा वह कारक गति को किस प्रकार प्रभावित करता है
वास्तव में किसी भी वस्तु में गति उत्पन्न करने के लिए किसी बाह्य 'प्रभाव' की आवश्यकता होती है जिसे 'बल' कहते हैं। इसे हम कुछ उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं जैसे- हम किसी भारी बण्डल को खिसकाने के लिये अपनी माँसपेशियों (muscles) पर तनाव डालकर बण्डल को धकेलते हैं। अर्थात् हम बण्डल पर बल लगाते हैं।
चुम्बक लोहे की कील को अपनी ओर खींच लेता है, इसका भी यही अर्थ है कि चुम्बक कील पर एक बल लगाता है। पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है अर्थात् पृथ्वी प्रत्येक वस्तु पर एक बल आरोपित करती है।
अत: बल वह धकेल (push) या खिंचाव (pull) होता है, अर्थात् वह बाह्य कारक है, जो किसी वस्तु की विराम अथवा गति की अवस्था में परिवर्तन करता है या परिवर्तन करने का प्रयत्न करता है। स्पष्ट है कि बल तथा गति के बीच महत्वपूर्ण सम्बन्ध है।
किसी वस्तु पर बल लगाने के निम्न प्रभाव हो सकते हैं :
(1) बल लगाने पर गतिशील वस्तु की चाल बदल सकती है। बल द्वारा वस्तु को विराम अवस्था से गति अवस्था में, अथवा गति अवस्था से विराम अवस्था में लाया जा सकता है ।
(2) बल वस्तु की गति की दिशा बदल सकता है; जैसे कि फुटबाल पर ठोकर मारकर, फुटबाल की गति की दिशा बदली जा सकती है। क्रिकेट के खेल में बल्लेबाज बल्ले द्वारा बल लगाकर गेंद को मनचाही दिशा में मोड़ सकता है।
किसी वस्तु पर बल लगाने के निम्न प्रभाव हो सकते हैं :
(1) बल लगाने पर गतिशील वस्तु की चाल बदल सकती है। बल द्वारा वस्तु को विराम अवस्था से गति अवस्था में, अथवा गति अवस्था से विराम अवस्था में लाया जा सकता है ।
(2) बल वस्तु की गति की दिशा बदल सकता है; जैसे कि फुटबाल पर ठोकर मारकर, फुटबाल की गति की दिशा बदली जा सकती है। क्रिकेट के खेल में बल्लेबाज बल्ले द्वारा बल लगाकर गेंद को मनचाही दिशा में मोड़ सकता है।
(3) बल द्वारा वस्तु का आकार भी बदला जा सकता है; जैसे रबड़ की गेंद को हाथ से दबाने पर उसका आकार बदला जा सकता है।
बल में दिशा व परिमाण दोनों होते हैं तथा यह एक सदिश राशि है ।
बल में दिशा व परिमाण दोनों होते हैं तथा यह एक सदिश राशि है ।
बल दो प्रकार के होते हैं :
- सन्तुलित बल
- असन्तुलित बल
सन्तुलित बल (Balanced Forces)
जब किसी वस्तु पर, कई बल एकसाथ कार्य कर रहे होते हैं तथा उनका परिणामी बल शून्य हो तो उन बलों को 'सन्तुलित बल' कहते हैं । सन्तुलित बलों के प्रभाव से वस्तु की स्थिति में परिवर्तन नहीं होता। यदि कोई वस्तु स्थिर है तो स्थिर रहेगी और यदि गति कर रही है तो उसी प्रकार गति करती रहेगी जैसे कि वस्तु पर कोई बल लग ही न रहा हो। सन्तुलित बलों के कारण वस्तु का आकर अथवा आकृति बदल सकती है।
इसे आप निम्न उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं जैसे,
1. यदि रबड़ की गेंद को दोनों हथेलियों के बीच रखकर, बराबर व विपरीत बल लगाकर दबायें तो गेंद की आकृति बदल जायेगी ; गेंद गोल न रहकर कुछ चपटी हो जायेगी।
2. रस्साकसी के खेल में जब दो टीमें रस्से को बराबर बल से अपनी-अपनी ओर खींचती हैं तो रस्सा तथा दोनों टीमें अपने स्थानों पर स्थिर रहते हैं। इस स्थिति में दोनों टीमों द्वारा रस्से पर लगाये गये बल सन्तुलित होते हैं।
असन्तुलित बल (Unbalanced Forces)
जब वस्तु पर लगे बलों का परिणामी बल शून्य न हो, तब उन बलों को 'असन्तुलित बल' कहते हैं। असन्तुलित बल के अन्तर्गत वस्तु की स्थिति, गति अथवा गति की दिशा में परिवर्तन हो जाता है ।
उदाहरण के लिये,
1. रस्साकसी में यदि एक टीम दूसरी से शक्तिशाली है तो वह रस्से को तथा दुर्बल टीम को अपनी ओर खींच लेती है। इस अवस्था में रस्से पर लगा बल असन्तुलित कहलायेगा।
2. यदि किसी गाड़ी (कार, बस, ट्रक इत्यादि) पर इंजन द्वारा बल लगाया जा रहा है और यह बल सड़क के घर्षण-बल से अधिक है तो कार पर आगे की ओर एक परिणामी बल लगता है और कार बल की दिशा में चलने लगती है।
अतः असन्तुलित बल, गति की अवस्था (चाल) तथा गति की दिशा में परिवर्तन करता है।
न्यूटन के गति के नियम (Newton's Laws of Motion)
यान्त्रिकी तीन प्राकृतिक नियमों पर आधारित है जिन्हें पहली बार न्यूटन ने सन् 1686 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Principia में लेखबद्ध किया। इसीलिए यह 'न्यूटन के गति के नियम' कहे जाते हैं। न्यूटन के ये नियम गति विज्ञान तथा खगोल विज्ञान (Astronomy) के मूल आधार हैं। इन नियमों की सत्यता का सर्वश्रेष्ठ प्रमाण यह है कि इन नियमों के आधार पर आकाशीय तथा पार्थिव (terrestrial) पिंडों की स्थितियों के विषय में जो भविष्यवाणियाँ की जाती हैं वे पूर्णत: ठीक बैठती हैं।
(i) पहला नियम (First rule) : यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है तो वह विराम अवस्था में ही रहेगी और यदि एकसमान वेग से सीधी रेखा में चल रही है तो वैसे ही चलती रहेगी, जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल लगाकर उसकी वर्तमान अवस्था में परिवर्तन न किया जाये।
(ii) दूसरा नियम (Second rule) : किसी वस्तु पर लगाया गया बल उस वस्तु के द्रव्यमान तथा उस वस्तु में बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती होता है।
(iii) तीसरा नियम (Third rule) : प्रत्येक क्रिया (action) की उसके बराबर, परंतु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया (Reaction) होती है।
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