बीज प्रसुप्ति या सुषुप्तावस्था (Dormancy)क्या है?: कारण| In Hindi


बीज प्रसुप्ति या सुषुप्तावस्था (Dormancy)क्या है?

बीज प्रसुप्ति या सुषुप्तावस्था (Dormancy)क्या है?: कारण


फलों तथा बीजों का जल, वायु तथा जंतुओं द्वारा प्रकीर्णन होता है। उन बीजों के अंकुरण के लिये प्रायः तीन दशाएँ आवश्यक होती हैं- जल, ऑक्सीजन तथा उचित तापक्रम। परन्तु अनेक पौधों के बीज पकने के तुरन्त बाद इन अनुकूल परिस्थितियों में भी अंकुरित (germinate) नहीं होते हैं। ऐसे बीजों में कुछ बाधाएँ होती हैं, जिनके हटने पर ही बीज अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित हो जाते हैं। ऐसे बीजों को प्रसुप्त बीज (dormant seeds) तथा इनके अंकुरित होने की अक्षमता (inability) को प्रसुप्ति या सुषुप्तावस्था (dormancy) कहते हैं। 

'प्रसुप्ति' वास्तव में बीजों तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि अनेक प्रकन्द (rhizomes), शल्क कन्द (bulbs) तथा कन्द (tubers), आदि भी प्रसुप्ति की दशा में रह सकते हैं, प्रसुप्ति की अवधि कुछ दिनों तक रहती है, जैसे एल्म (Elm) तथा विलो (Willow) के बीजों में अथवा यह कई वर्षों तक भी रह सकती है, जैसे स्नेपड्रेगन (Snapdragon) तथा कुछ लेग्युम्स (legumes) में। प्रसुप्ति प्रायः प्राकृत पौधों (native plants) में, खेती के पौधों की अपेक्षा अधिक होती है, क्योंकि खेती के लिये मनुष्य ने पौधों की ऐसी जातियाँ विकसित की हैं, जिनके बीज शीघ्रता से अंकुरित (germinate) हो जाते हैं। 


प्रसुप्ति के कारण (Causes of Dormancy) 


प्रसुप्ति के कारणों को दो निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है- 

(A) प्रसुप्ति के बाह्य कारण (External causes of Dormancy)
(B) प्रसुप्ति के आन्तरिक कारण (Internal causes of Dormancy)


(A) प्रसुप्ति के बाह्य कारण (External causes of Dormancy)- कुछ पौधों के बीज शरद् ऋतु के अन्तिम भाग में परिपक्व होते हैं, उस समय उनके अंकुरण के लिये तापमान उच्च रहता है अतः ये ताप कम होने तक प्रसुप्त (dormant) रहते हैं। ऑक्सीजन की अपर्याप्त उपलब्धि के कारण भी बीजों का अंकुरण रुक जाता है। कुछ बीज पकने पर तालाब में गिरते हैं और पेंदी में मृदा से आच्छादित हो जाते हैं जिससे उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है। यहाँ पर बीज बहुत अधिक अवधि तक प्रसुप्त (dormant) रह सकते हैं और केवल सतह पर लाये जाने पर ही अंकुरित (germinate) होते हैं।


पौधों की कुछ जातियों के बीज, जैसे सलाद (Lettuce), तम्बाकू की कुछ किस्में, और मिसिल्टो (Viscum), आदि प्रकाश की अनुपस्थिति में अंकुरित नहीं होते हैं लेकिन बहुत कम प्रकाश में रखने पर भी अंकुरित हो जाते हैं। ऐसे बीजों में दृश्य स्पेक्ट्रम (visible spectrum) का लाल (R 660nm) क्षेत्र अंकुरण के लिये बहुत प्रभावी होता है तथा सुदूर लाल (Far-red 730 nm) क्षेत्र, लाल प्रकाश के प्रभाव को समाप्त कर देता है। बीजों के अंकुरण पर लाल (red) तथा सुदूर लाल (far-red) प्रकाश का प्रभाव, फाइटोक्रोम (phytochrome) नामक प्रोटीन वर्णक (pigment) के कारण होता है। 


(B) प्रसुप्ति के आन्तरिक कारण (Internal causes of Dormancy) – ये मुख्यतः निम्न हैं- 

(1) बीजावरण की जल के लिये अपारगम्यता (Impermeability of seed coat to water)- अनेक पौधों के बीजों में बीजावरण कठोर व जल के लिये अपारगम्य होता है, अतः बीज जल के सम्पर्क में रहने पर भी जल अवशोषित नहीं कर पाते और उनमें अंकुरण नहीं हो पाता। ऐसे बीज लम्बी अवधि तक भूमि में पड़े रहते हैं। प्राकृतिक अवस्था में मिट्टी के कणों के अपघर्षण (scarification) तथा जीवाणुओं व कवकों की क्रियाओं के फलस्वरूप बीजावरण धीरे-धीरे कमजोर होकर पारगम्य हो जाता है, इसके बाद ही बीज जल का अवशोषण करके अंकुरित होते हैं। 


(2) बीजावरण की ऑक्सीजन के लिये अपारगम्यता (Impermeability of seed coat to oxygen)- कभी-कभी बीजों में प्रसुप्ति, बीजावरण के ऑक्सीजन के लिये अपारगम्य होने के कारण होती है। जो कारक या पदार्थ बीजावरण को जल के लिये अपारगम्य बनाते हैं, वे ही धीरे-धीरे इसे ऑक्सीजन के लिये भी अपारगम्य बनाते हैं। जैन्थियम (Xanthium), अनेक घासों तथा कम्पोजिटी (Compositae) कुल के कुछ पौधों के बीजों में इसी प्रकार की प्रसुप्ति (dormancy) पायी जाती है।



3) यान्त्रिक रूप से प्रतिरोधी बीजावरण (Seed coat mechanically resistant)- कुछ पौधों के बीजों में बीजावरण द्वारा जल व ऑक्सीजन तो ग्रहण कर ली जाती है, परन्तु बीजावरण इतना कठोर होता है कि भ्रूण (embryo) की पूरी वृद्धि नहीं हो पाती और उसका विकास केवल बीजावरण तक ही सीमित हो पाता है। बीजावरण न टूट पाने के कारण अंकुरण रुक जाता है, जैसे ऐलिस्मा प्लैंटेगो (Alisma plantago) के बीज में भ्रूण पानी के कारण फूल जाता है और अन्तःशोषण दाब (imbibition pressure) से बीजावरण को दबाता है, परन्तु उसे तोड़ नहीं पाता और अंकुरण रुक जाता है। इस प्रकार की प्रसुप्ति (dormancy) के कुछ अन्य उदाहरण काली सरसों (Brassica nigra), लेपिडियम (Lepidium), ऐमारेन्थस रेट्रोफ्लेक्सस (Amaranthus retroflexus), आदि हैं।



(4) अपूर्ण परिवर्धित भ्रूण (Imperfectly developed embryo)- इस प्रकार की प्रसुप्ति (dormancy) में बीज के अन्दर भ्रूणीय विकास (embryonic development), क्रिया पूर्ण भी नहीं हो पाती कि वे मातृ पौधे से पृथक् हो जाते हैं। ऐसे बीजों में भ्रूणीय विकास की निषेचित अण्ड से लेकर, पूर्ण परिवर्धित भ्रूण के सभी श्रेणीकरण (gradation) पाये जाते हैं। कुछ बीजों में भ्रूणीय परिवर्धन शरद् अथवा शीत ऋतु में धीरे-धीरे होता है और बसंत ऋतु में अंकुरण के ठीक पूर्व तक पूर्ण हो जाता है, जैसे- ऐरीथ्रोनियम (Erythronium), रेननकुलस (Ranunculus) तथा इलेक्स (Ilex), आदि। 


(5) भ्रूण की परिपक्वन के बाद शुष्क भण्डारण आवश्यकता (Embryo requiring after ripening in dry storage)- कुछ परिपक्व बीजों में भ्रूण (embryo) पूर्ण विकसित होते हैं, परन्तु उन्हें अंकुरण से पूर्व कुछ समय तक शुष्क वातावरण में रखना आवश्यक हो जाता है, ऐसा न करने पर उनमें अंकुरण नहीं होता। इस प्रक्रिया में बीजों में अनेक ऐसे उपापचयी (metabolic) परिवर्तन होते हैं जो अंकुरण के लिये आवश्यक हैं। क्रेटीगस (Crategus) के बीजों में यह बाद का परिपक्वन प्रक्रम (after ripening process) एक से तीन महीनों में पूरा हो जाता है। इस प्रक्रिया में जैसे-जैसे बाद का पक्वन बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे भ्रूण (embryo) की अम्लीयता में वृद्धि होती जाती है। इससे जल का अवशोषण बढ़ता है और अंकुरण शीघ्र होता है। 


(6) अंकुरणरोधक पदार्थों की उपस्थिति (Presence of germinating inhibitors)- अनेक पौधों के भ्रूण, भ्रूणपोष, बीज, फल, आदि के ऊतकों में कुछ निरोधक या संदमक (inhibitors) पदार्थ, जैसे एबसिसिक अम्ल (abscisic acid), कौमेरिन (coumarin), फेरुलिक अम्ल (ferulic acid) तथा छोटी श्रृंखला वाले वसा अम्ल (fatty acid), आदि होते हैं। ये पदार्थ बीजों के अंकुरण को रोकते हैं।



प्रसुप्ति को दूर करने की विधियाँ (Methods of Breaking Dormancy) 


(A) बीजावरण की अपारगम्यता तथा प्रतिरोधकता दूर करना (To Remove the Impermeability and Resistance of Hard Seed Coat) 

(i) यान्त्रिक अपघर्षण (Mechanical scarification)- बीजावरण की जल व ऑक्सीजन के प्रति अपारगम्यता को समाप्त करने के लिये बीजों को यान्त्रिक रूप से एक ओर से थोड़ा काटा जाता है। ऐसे बीजों को किसी तेज धार वाले उपकरण से रगड़ा जाता है अथवा काँच के बारीक टुकड़ों के साथ या बालू के कणों के साथ प्रबलता से विलोडित (stirred) किया जाता है। इससे बीजावरण (seed coat) हल्का हो जाता है। इस प्रक्रिया को यान्त्रिक अपघर्षण (mechanical scarification) कहते हैं। 

(ii) रासायनिक अपघर्षण (Chemical scarification)- इस विधि में बीजों को किसी उपयुक्त तनु अम्ल, जैसे H2SO4, में कुछ समय तक रखा जाता है जिससे बीजावरण नरम (soft) हो जाता है। 

(iii) उच्च तापमान उपचार (High temperature treatment)- कुछ पौधों जैसे एल्फल्फा (Alfalfa) के बीजों को उच्च तापमान (85-90°C) पर जल में गर्म करने पर बीजावरण की जल के लिये पारगम्यता में वृद्धि होती है। कुछ बीजों को उच्च तापमान (120°C) में रखने पर बीजावरण की ऑक्सीजन के लिये पारगम्यता बढ़ जाती है और प्रसुप्ति (dormancy) समाप्त हो जाती है।


(B) अंकुरण निरोधक पदार्थों के प्रभाव को समाप्त करना (To Neutralize the Effect of Germination Inhibitors) 

बीजों को एकान्तर क्रम से कम तथा उच्च तापक्रम उपचार (low and high temperature treatment) देने से, बहते पानी में रखने से अथवा जलयोजित बीजों को पोटैशियम नाइट्रेट, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन, थायोयूरिया, आदि से उपचार करके, अंकुरण निरोधक पदार्थों के प्रभाव को समाप्त किया जा सकता है। 


प्रसुप्ति का महत्त्व (Importance of Dormancy)


प्रसुप्त बीज केवल प्रसुप्ति के कारणों के समाप्त होने पर ही अंकुरित (germinate) होते हैं। बीजों में प्रसुप्ति (dormancy) वास्तव में एक अनुकूलन (adaptation) है। इसके कारण बीज उचित वातावरणीय दशाओं में ही अंकुरित होते हैं, जिससे नया पौधा सफलतापूर्वक स्थापित हो सके। परिपक्व बीज विभिन्न माध्यमों से दूर-दूर प्रकीर्णित (dispersed) हो जाते हैं जहाँ पर वातावरणीय दशाएँ (environmental conditions) भिन्न-भिन्न होती हैं। 

प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रसुप्त बीज (dormant seed) बिना किसी हानि के काफी समय तक सुरक्षित पड़े रहते हैं और उपयुक्त पर्यावरणीय परिस्थितियाँ मिलने पर अंकुरित होते हैं। इस प्रकार बीज व्यर्थ नहीं जाते और जाति की निरन्तरता (continuity of species) भी बनी रहती है।







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