फलों और बीजों का प्रकीर्णन: महत्व तथा प्रकार (Dispersal of Fruits & Seeds)
प्रकीर्णन का महत्त्व (Significance of DISPERSAL)
संसार के समस्त फल तथा बीजधारी पौधों में फलों और बीजी का प्रकीर्णन होता है। फलों और बीजों के प्रकीर्णन का महत्त्व स्पष्ट रूप से समझने के लिए यदि हम उस स्थिति का अनुमान करें जबकि यह वितरण व्यवस्था न होती तो निश्चय ही निम्न विषमताएँ उत्पन्न हो जाती-
(i) तमाम फल और बीज पैतृक भूमि (parent bed) पर ही गिरकर अंकुरित हो जाते और इस प्रकार एक स्थान पर बहुत-से, एक ही प्रकार के पौधे अंकुरित तथा विकसित हो जाते।
(ii) समान पौधों की मूलभूत आवश्यकताएँ एक समान होने के कारण, उनमें जीवन संघर्ष बहुत तीव्र हो जाता है और इसके फलस्वरूप कोई भी पौधा ठीक प्रकार से विकसित नहीं हो पाता।
(iii) दैवीय विपत्ति, जैसे आग इत्यादि लगने पर तथा शाकाहारी जन्तुओं द्वारा चरे जाने पर, सम्भव था कि उसी प्रकार के पौधे का वंश ही सृष्टि से समाप्त हो जाता, क्योंकि सब पौधे आस-पास की भूमि पर ही उगे होते।
(iv) इसके अतिरिक्त, नये शिशु पौधे को अच्छा प्रकाश, वायु तथा खनिज लवण भी समुचित प्राप्त न होते। फलों और बीजों का प्रकीर्णन पौधों को उपरोक्त विषम परिस्थितियों से बचाता है। परागकणों की ही तरह बीज और फलों में भी स्वगति की क्षमता नहीं होती जिस कारण इन्हें प्रकीर्णन के लिए कुछ सहायकों (agents) की आवश्यकता होती है। इन सहायकों (agents) के आधार पर प्रकीर्णन को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जाता है-
जल द्वारा प्रकीर्णन (Dispersal by Water = Hydrochory)
जल द्वारा वितरित होने वाले फलों और बीजों में प्लवन साधन (floating device) पाये जाते हैं, जैसे नारियल (Coconut) तथा लोडोइसिआ माल्डिविका (Lodoicea maldivica-Double coconut) में फल की तन्तुमय मध्य फलभित्ति (fibrous mesocarp)। ये फल प्रायः समुद्र में बह जाते हैं और इसी कारण समुद्री द्वीपों में विशेष रूप से पाये जाते हैं।
कुछ पौधे जैसे कमल (Lotus) में स्पंज के समान वायुकोषयुक्त पुष्पासन (spongy thalamus) पाया जाता है। यह पुष्पासन वायु तथा जल धाराओं के साथ जल में बहता रहता है। कुछ समय पश्चात् पुष्पासन सड़ जाता है और फल पृथक् हो जाते हैं। ये डूबकर तालाब की पेंदी में स्थिर हो जाते हैं और यहाँ पर बीजों का अंकुरण होता है। कुमुदिनी (waterlily) के बीज छोटे और हल्के होते हैं। इनमें एरिल स्पंजी होता है जिससे ये पानी पर तैर सकते हैं। फलों के फटने पर बीज पानी पर तैरने लगते हैं। ढलवाँ स्थलों (slopes) पर वर्षा के जल द्वारा फल व बीज दूर-दूर तक पहुँच जाते हैं। कभी-कभी तीव्र वर्षा के कारण पानी के तेज बहाव के साथ किसी स्थान के पौधे (फल सहित) ही अन्य स्थानों पर पहुँच जाते हैं।
विस्फोटक प्रक्रिया (Explosive Mechanism = Autochory)
कुछ फलों में फलभित्ति परिपक्व और शुष्क होने पर तन जाती हैं। किसी बाह्य यान्त्रिक दबाव (external mechanical pressure), जैसे जन्तु, वायु अथवा जल की बूँदों का स्पर्श अथवा आर्द्रता (humidity) सम्बन्धी परिवर्तन के कारण ये फल अकस्मात् फट जाते हैं जिसके कारण बीज दूर-दूर तक बिखर जाते हैं। एक्बेलियम (Ecballium) के पके फल में एक लसलसा पदार्थ होता है जो ऊँचे दाब पर रहता है।
हल्के-से छुए जाने पर यह फट जाता है और इसके मुख से तरल पदार्थ तथा बीजों का फव्वारा निकल पड़ता है। ऐकेन्थेसी (Acanthaceae) कुल के बहुत से पौधों में जैसे, रूएलिया (Ruellia tuberosa) में जैकुलेटर (Jaculators) या मुड़े अंकुश होते हैं जो सीधे होकर बीजों के वितरण में सहायक होते हैं। जिरेनियम (Geranium) और अरण्ड (castor) में फल भारी झटके से फटकर बीजों का वितरण करते हैं। तेज धूप में फ्लॉक्स (phlox) के सूखे फल चटखकर बीजों का वितरण करते हैं।
गुलमेंहदी (Impatiense balasamina) के फल छूते ही फट जाते हैं इनकी कपाटें अन्दर की ओर सिमट जाती है और बीज तेज झटके के साथ बाहर निकलकर सभी दिशाओं में बिखर जाते हैं। चम्बुली (Bauhinia vauhlii-camel's foot climber) में फली की लम्बाई 30 सेमी से भी अधिक होती है। ये फलियाँ तेज आवाज के साथ फटकर बीजों को चारों ओर बिखेर देती हैं।
जन्तुओं द्वारा प्रकीर्णन (Dispersal By Animals = Zoochory)
कुछ फलों में हुक, कण्टक, शूल, कठोर रोम अथवा चिपचिपी ग्रन्थियाँ (glands) पाये जाते हैं जिनके द्वारा ये फल जन्तुओं के शरीर तथा रोमों से चिपक जाते हैं और जन्तुओं के साथ दूर-दूर तक वितरित हो जाते हैं। जैन्थियम (Xanthium) के फलों में बहुत-से मुड़े हुए काँटे होते हैं और चोरकाँटा (Andropogon) में मुड़े हुए कड़े रोम होते हैं। बघनखी (Martynia) के बीज में दो बहुत तेज, मुड़े, नुकीले, कड़े अंकुश होते हैं। लटजीरा (Achyranthes) के फलों में निपत्र व परिदलपुंज तेज होते हैं। गोखरू (Tribulus) के फल में तेज, दृढ़, काँटे होते हैं जो कि जन्तुओं के पैरों पर लिपट जाते हैं। ऐरिस्टिडा (Aristida) के फल में भी कड़े, मुड़े हुए रोम पाये जाते हैं।
कुछ फलों, जैसे बोरहाविया (Boerhaavia) और क्लीओम (Cleome) में चिपचिपी ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं जिनसे वे चरने वाले जन्तुओं से चिपककर वितरित होते हैं।
सरस फलों के बीज भी चिड़ियों अथवा जन्तुओं द्वारा फल खाये जाने पर वितरित होते हैं। अमरूद में चिड़िया फल का गूदे वाला भाग खाती है तो बीज भी गूदे के साथ खाये जाते हैं, परन्तु बीज अपच होने के कारण मल के साथ शरीर से बाहर आ जाते हैं। मिसिल्टो (Viscum) के बीज चिपचिपे गूदे से लगे रहते हैं और जिस समय चिड़िया फल खाती हैं बीज उनकी चोंच पर चिपक जाते हैं। जिस समय चिड़िया अपनी चोंच किसी पेड़ की शाखा से रगड़कर साफ करती है तो बीज पेड़ पर चिपक जाते हैं और अनुकूल परिस्थितियों में वहीं पर जम जाते हैं। बहुत से बीज तालाब इत्यादि में नहाती चिड़ियों के पंख से चिपककर वितरित होते हैं। बिस्रुला (Bisrula) तथा स्कोरपियूरस (Scorpiurus) के फल केटरपिलर लार्वा की भाँति दिखाई देते हैं। इसी भ्रमवश चिड़ियाँ इन्हें उठाकर ले जाती हैं।
रेफ्लेसिया (Rafflesia) के चिपचिपे बीजों का प्रकीर्णन हाथी द्वारा होता है।
चमगादड़ और गिलहरी, आदि शाकाहारी (herbivorous) जन्तु फलों के गूदे को खाकर बीजों को फेंक देते हैं और इस प्रकार फलों व बीजों के प्रकीर्णन में सहायक होते हैं। मनुष्य अनजानें में या आवश्यकतानुसार स्वेच्छा से कुछ फलों और बीजों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर वितरण करते हैं।
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