ऊर्जा(Energy): परिभाषा, मात्रक, अभिधारणा|hindi


ऊर्जा(Energy): परिभाषा, मात्रक, अभिधारणा
ऊर्जा(Energy): परिभाषा, मात्रक, अभिधारणा|hindi

ऊर्जा की अभिधारणा (Concept of Energy)

जब कोई मनुष्य नाव चलाता है, अनाज पीसता है या ठेला-गाड़ी चलाता है तो हम कहते हैं कि वह मनुष्य कार्य करता है। प्रत्येक कार्य करने में किसी वस्तु पर बल लगता है जो उस वस्तु को उसकी मूल अवस्था से विस्थापित कर देता है यदि F बल के प्रभाव में हुआ विस्थापन d हो तथा किया गया कार्य W से प्रदर्शित किया जाये तो

    W=F.d

अर्थात् किसी बल तथा उस बल के प्रभाव में हुए विस्थापन के गुणनफल को किया गया कार्य (work done) कहते हैं।

किसी वस्तु की कार्य करने की क्षमता को उस वस्तु की ऊर्जा कहते हैं। 
प्रत्येक द्रव्य में एक निश्चित ऊर्जा होती है। ऊर्जा परिवर्तन के कारण ही द्रव्य के संगठन, संरचना तथा गुणों में परिवर्तन होता है। ऊर्जा में न तो भार होता है और न ही इसका कोई आकार होता है। ज्ञानेन्द्रियों द्वारा हम ऊर्जा के प्रभाव का अनुभव अवश्य करते हैं।

प्रकृति में ऊर्जा मुख्यतः निम्नलिखित रूपों में पायी जाती है-ऊष्मा, प्रकाश, ध्वनि, चुम्बकत्व, यांत्रिक ऊर्जा (गतिज ऊर्जा एवं स्थितिज ऊर्जा) तथा रासायनिक ऊर्जा। ऊर्जा के प्रत्येक रूप में कार्य करने की क्षमता होती है। ऊर्जा साधारणतया न तो नष्ट की जा सकती है तथा न ही उत्पन्न की जा सकती है लेकिन ऊर्जा को एक रूप से किसी दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। पदार्थों में होने वाले सभी रूपान्तरण प्राय: ऊर्जा के रूपान्तरण के कारण ही होते हैं।

इस प्रकार, उस प्रत्येक वस्तु में जो कुछ न कुछ कार्य कर सकती है, ऊर्जा होती है। 
उदाहरण के लिए: फेंका गया पत्थर खिड़की का शीशा तोड़ सकता है, चाबी भरी घड़ी की स्प्रिंग घड़ी को चला सकती है, खिचा हुआ तीर लक्ष्य को भेद सकता है, जलता कोयला जल को भाप में बदल सकता है, इन्जन के बॉयलर में भरी भाप सिलिण्डर में भेजने पर इन्जन को चला सकती है। अतः इन सभी में ऊर्जा है।

ऊर्जा का जब एक रूप से दूसरे में; अथवा एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानान्तरण होता है तभी कार्य सम्पन्न होता है। जब हम पत्थर फैकते हैं तो अपने शरीर की कुछ ऊर्जा पत्थर को स्थानान्तरित करते हैं। कार के दौड़ने में पैट्रोल की ऊर्जा कार के पहियों को स्थानान्तरित होती है।


ऊर्जा का मात्रक : चूँकि कार्य ऊर्जा के स्थानान्तरण से होता है अतः जितना कार्य होता है वही स्थानान्तरित ऊर्जा की माप होती है। अतः ऊर्जा का भी वही मात्रक होता है जो कि कार्य का है अर्थात् ऊर्जा का मात्रक 'जूल' होता है।


द्रव्यमान तथा ऊर्जा में सम्बन्ध -
आइन्सटीन (1905) के अनुसार यदि द्रव्य नष्ट होता है तो उसके तुल्य ऊर्जा निर्मुक्त होती है। द्रव्यमान तथा ऊर्जा में निम्नलिखित सम्बन्ध है-

E=mc²

(जहाँ, E = उत्पन्न ऊर्जा की मात्रा (अर्ग में)
m = नष्ट हुआ द्रव्यमान (ग्राम में)
c= प्रकाश का वेग = 3 x 10¹⁰ से०मी० प्रति सेकण्ड



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