ऊर्जा संरक्षण का नियम उदाहरण सहित, यान्त्रिक ऊर्जा का संरक्षण|hindi


ऊर्जा संरक्षण का नियम (Law of conservation of energy) उदाहरण सहित तथा यान्त्रिक ऊर्जा का संरक्षण


ऊर्जा का संरक्षण (Conservation of Energy)
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है और न नष्ट की जा सकती है। ऊर्जा केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित की जा सकती है। जब भी ऊर्जा किसी रूप में लुप्त होती है तो ठीक उतनी ही ऊर्जा अन्य रूपों में प्रकट हो जाती है। अतः विश्व की सम्पूर्ण ऊर्जा का परिमाण स्थिर रहता है । यह 'ऊर्जा संरक्षण का नियम' कहलाता है।

यान्त्रिक ऊर्जा का संरक्षण (Conservation of mechanical energy)
अनेक निकायों की स्थितिज ऊर्जा गति ऊर्जा में तथा गतिज ऊर्जा पुनः स्थितिज ऊर्जा में बदलती रहती है परन्तु दोनों का योग प्रत्येक समय स्थिर रहता है। यह यान्त्रिक ऊर्जा का संरक्षण है। परन्तु यह तभी लागू होता है जबकि कोई घर्षण-बल विद्यमान न हो।

ऊर्जा संरक्षण की सत्यता को प्रदर्शित करने वाले कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं :

(1) गुरुत्व के अन्तर्गत मुक्त रूप से गिरते पिंड का उदाहरण : मान लो कि द्रव्यमान m का एक पिंड पृथ्वी से ऊँचाई h पर स्थित एक बिन्दु A से गिराया जाता है(चित्रानुसार🠊)। प्रारम्भ में बिन्दु A पर वस्तु का वेग शून्य। अतः वस्तु में गतिज ऊर्जा शून्य है, केवल स्थितिज ऊर्जा है। अतः
ऊर्जा संरक्षण का नियम उदाहरण सहित, यान्त्रिक ऊर्जा का संरक्षण|hindi

पिण्ड में कुल ऊर्जा = गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा
= 0 + m g h = m g h

अब मान लो कि पिण्ड अपनी स्थिति से x दूरी नीचे बिन्दु B तक गिर चुका है, तथा बिन्दु B पर उसका वेग v है। तब

v² = u² + 2 g x = 0² + 2g x = 2g x

∴ बिन्दु B पर पिण्ड में गतिज ऊर्जा

= 1/2 mv² = 1/2 m × 2g x = mgx

 बिन्दु B पर पिण्ड में स्थितिज ऊर्जा

= mg (h - x),
क्योंकि अब वह पृथ्वी से (h -x) ऊँचाई पर है।

∴ बिन्दु B पर पिण्ड में कुल ऊर्जा

= गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा
= m g x + m g (h - x) = m g h


अब मान लो वह पिण्ड बिन्दु C तक गिर चुका है तथा पृथ्वी से टकराने ही वाला है। अब उसकी स्थितिज ऊर्जा शून्य हो गई है, उसमें केवल गतिज ऊर्जा है। इस समय तक वह h ऊँचाई से गिर चुका है। अब यदि उसका वेग v हो, तो

v'² = u² +2g h = 0² + 2g h = 2g h

पिण्ड में गतिज ऊर्जा = 1/2 mv'² = 1/2m × 2g h = m g h

बिन्दु C पर पिण्ड में कुल ऊर्जा = गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा

= m g h + 0 = m g h

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे पिण्ड पृथ्वी की ओर गिरता है उसकी गतिज ऊर्जा बढ़ती जाती है तथा स्थितिज "ऊर्जा घटती जाती है, परन्तु गतिज तथा स्थितिज ऊर्जाओं का योग आदि से अन्त तक स्थिर (m g h) रहता है। जब पिण्ड पृथ्वी से टकराता है तो उसकी कुल ऊर्जा ऊष्मा, ध्वनि तथा प्रकाश में बदल जाती है।


(2) सरल लोलक का उदाहरण : मान लो किसी सरल लोलक की माध्य स्थिति A है (चित्रानुसार🠇)। जब गोलक को A से हटाकर B पर लाते हैं तो उसका गुरुत्व केन्द्र कुछ ऊपर उठता है, अतः गुरुत्व बल के विरुद्ध 'कार्य' किया जाता है। यह कार्य गोलक में स्थितिज ऊर्जा के रूप में रहता है। इस प्रकार स्थिति B में होने पर गोलक में केवल स्थितिज ऊर्जा होती है।
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जब गोलक को स्थिति B पर स्वतन्त्र छोड़ देते हैं तो वह माध्य स्थिति A की ओर आने लगता है। इससे उसका गुरुत्व केन्द्र नीचा होने लगता है तथा वेग बढ़ने लगता है। अतः उसकी स्थितिज ऊर्जा कम होने लगती है तथा गतिज ऊर्जा बढ़ने लगती है। माध्य स्थिति में आने पर गोलक की सम्पूर्ण स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में बदल जाती है।

जब गोलक स्थिति B' की ओर जाता है तो गुरुत्व-केन्द्र फिर ऊपर उठने लगता है तथा उसका वेग कम होने लगता है। अतः गोलक की स्थितिज ऊर्जा बढ़ने लगती है तथा गतिज ऊर्जा घटने लगती है। स्थिति B' में, जहाँ वह क्षण मात्र के लिये ठहरता है, उसकी सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा में बदल जाती है।

इस प्रकार, स्थितियों B तथा B' में गोलक में केवल स्थितिज ऊर्जा होती है माध्य स्थिति A में केवल गतिज ऊर्जा होती है। तथा अन्य स्थितियों में उसमें दोनों प्रकार की ऊर्जायें (गतिज ऊर्जा + स्थितिज ऊर्जा) होती हैं। गणना द्वारा यह देखा जा सकता है कि प्रत्येक स्थिति में गोलक की कुल यान्त्रिक ऊर्जा उतनी ही रहती है।
परन्तु यहाँ भी यह बात ध्यान देने की है कि वायु के घर्षण के कारण गोलक की यान्त्रिक ऊर्जा धीरे-धीरे क्षय होती रहती है तथा अन्त में गोलक ठहर जाता है।

(3) स्प्रिंग का उदाहरण : दिए गए चित्र में एक स्प्रिंग लटकी है जिसके सिरे पर एक द्रव्यमान बँधा है। द्रव्यमान अपनी माध्य स्थिति में है। जब द्रव्यमान को थोड़ा नीचे खींचकर छोड़ देते हैं। तो यह ऊपर-नीचे कम्पन करने लगते है। कम्पन की विभिन्न स्थितियाँ चित्र में दिखाई गई हैं।

जब द्रव्यमान की नीचे खींचते हैं तो स्प्रिंग खिंचती है। स्प्रिंग को खींचने में किया गया कार्य इसमें स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। अतः द्रव्यमान की निम्नतम स्थिति में कुल ऊर्जा स्प्रिंग में स्थितिज ऊर्जा के रूप में रहती है (चित्र a) में।
ऊर्जा संरक्षण का नियम उदाहरण सहित, यान्त्रिक ऊर्जा का संरक्षण|hindi



जब द्रव्यमान को छोड़ देते हैं तो स्प्रिंग अपनी सामान्य अवस्था में आने लगती है तथा इसके साथ ही द्रव्यमान अपनी माध्य स्थिति की ओर लौटने लगता है। अतः स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा द्रव्यमान की गतिज ऊर्जा में बदलने लगती है। द्रव्यमान के माध्य स्थिति में आने पर कुल ऊर्जा द्रव्यमान की गतिज ऊर्जा के रूप में ही होती है (चित्र b) में।

द्रव्यमान माध्य स्थिति में ठहरता नहीं है बल्कि जड़त्व के कारण ऊपर की ओर बढ़ता है जिससे कि स्प्रिंग दबने लगती है। पुनः द्रव्यमान की गतिज ऊर्जा स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा में बदलने लगती है। द्रव्यमान की उच्चतम स्थिति में इसकी गतिज ऊर्जा शून्य हो जाती है तथा कुल ऊर्जा स्प्रिंग की स्थितिज ऊर्जा के ही रूप में संचित हो जाती है। (चित्र c) में। इस प्रकार गतिज तथा स्थितिज ऊर्जाओं का परस्पर रूपान्तरण होता रहता है परन्तु कुल ऊर्जा का मान प्रत्येक स्थिति में उतना ही रहता है।




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