स्तनी वर्ग अर्थात मैमेलिया (Class Mammalia) : परिचय, लक्षण, वर्गीकरण|hindi


स्तनी वर्ग अर्थात मैमेलिया (Class Mammalia) : परिचय, लक्षण, वर्गीकरण
स्तनी वर्ग अर्थात मैमेलिया (Class Mammalia) : परिचय, लक्षण, वर्गीकरण|hindi

इस वर्ग के अंतर्गत सभी प्रकार के स्तनी जीव आते हैं जैसे कंगारू, चूहे, सिल्लू, गिलहरी, खरगोश, चमगादड़, बिल्ली, व्हेल मछली, हाथी, घोड़ा, ऊँट, बैल, बन्दर, मनुष्य, आदि। इस वर्ग के जंतुओं को हम अपने आसपास देख सकते हैं। यहां तक कि हम भी इसी वर्ग के अंतर्गत आते हैं। 

स्तनी वर्ग अर्थात मैमेलिया वर्ग के जंतुओं के लक्षण (Characteristics of animals of Mammalia class)

मैमेलिया वर्ग के जंतुओं के कई लक्षण होते हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया है।
  1. मैमेलिया वर्ग के जंतु रचना, क्रियाशीलता एवं बुद्धि में अधिकतम् विकसित जन्तु जंतु होते हैं। 
  2. इसके अंतर्गत अधिकांश स्थलीय, कुछ जलीय, कुछ वायु में उड़नशील जीव आते हैं। 
  3. इन जीवों की त्वचा पर वालों का आवरण (पीलेज = pelage) तथा शिशु-पोषण के लिए दुग्ध का स्रावण करने वाली स्तन ग्रन्थियाँ (mammary glands) स्तनियों के अद्वितीय लक्षण (unique or diagnostic characters) होते हैं। 
  4. मैमेलिया वर्ग के जीव में माप में लगभग 5 सेमी लम्बे छछूंदरों और चूहों से लेकर 32 मीटर तक लम्बी व्हेल मछली (वर्तमान का सबसे बड़ा जन्तु) इसके अंतर्गत आते हैं। 
  5. अपनी सुरक्षा के लिए इनके शरीर पर कई प्रतिरक्षी अंग उपस्थित रहते हैं जैसे सिर पर सींग, अँगुलियों पर नाखून, पंजे या खुर तथा कुछ में त्वचा पर शल्क या शूक (spines) आदि। यह है पक्षियों की भाँति समतापी (homoiothermal) होते हैं इनके बाल ताप नियन्त्रण में सहायक होते हैं। 
  6. इनकी त्वचा मोटी व जलरोधक होती है। इसमें अनेक ग्रन्थियाँ स्वेद ग्रन्थियाँ (sweat glands) पसीने का स्रावण करके ताप नियन्त्रण में सहायक होती है तथा तैल ग्रन्थियों (sebaceous glands) से स्रावित तैल बालों को चिकना एवं जलरोधक बनाता है। स्तन ग्रन्थियाँ दुग्ध का स्रावण करती हैं।
  7. इनके बाह्य कर्ण में, सरीसृपों एवं पक्षियों के विपरीत, कर्णपल्लव (ear pinnae) भी उपस्थित रहते हैं। 
  8. मैमेलिया वर्ग के जीवों के शरीर में द्वितीयक तालु के विकास के कारण, मुखगुहा से पृथक् वायुमार्ग होता है; अतः अन्तः नासाद्वार मुख-ग्रासन गुहिका में काफी पीछे स्थित होता है इसीलिए गुहिका में भोजन को काफी देर रोका जा सकता है।
  9. इनकी गुहिका में दाँत हड्डियों के गड्ढों (sockets) में स्थित (गर्तदन्ती अर्थात् थीकोडॉन्ट—thecodont), कई प्रकार के (विषमदन्ती अर्थात् हिटरोडॉन्ट—heterodont) तथा अधिकांश सदस्यों में जीवन में केवल दो बार निकलने वाले (द्धिवादन्ती अर्थात् डाइफियोडॉन्ट —diphyodont) होते हैं। 
  10. मैमेलिया वर्ग के जीवों का नासावेश्म (nasal chambers) अत्यधिक विकसित होता है। इनमें श्लेष्मिक कला से ढकी टरबाइनल हड्डियों का बना चक्करदार वायुमार्ग होता है। श्लेष्म अन्तःश्वसित वायु को साफ, नम व गरम करता है। 
  11. इनकी देहगुहा पेशीयुक्त अनुप्रस्थ पट्टीनुमा डायफ्रॉम (diaphragm) द्वारा वक्षीय (thoracic) तथा उदर (abdominal) गुहाओं में बँटी रहती है। इसकी वक्षीय गुहा स्वयं एक मध्यवर्ती हृदयावरण अर्थात् पेरिकार्डियम तथा दो पावय प्यूरल गुहाओं में बँटी रहती है। 
  12. इनके शरीर में कपाल गुहा (cranial cavity) बड़ी होती है। 
  13. इनके निचले जबड़े के प्रत्येक अर्धाश में स्क्वैमोसल से सधी केवल डेन्टरी (dentary) हड्डी होती है, क्योंकि क्वाड्रेट तथा सस्पेंसोरियम की हड्डियाँ श्रवण अस्थिकाओं (ear-ossicles) में रूपान्तरित हो जाती हैं। 
  14. इनमें ऑक्सिपिटल कॉन्डाइल्स दो होते हैं। 
  15. कशेरुकाएँ अगर्ती (acoelous) होती हैं। इनका सेन्ट्रम एम्फीप्लैटियान (amphiplatyan) अर्थात् इसके दोनों सिरे चपटे एवं एक-एक उपास्थीय गद्दी, एपीफाइसिस (epiphysis), द्वारा ढके रहते हैं। मैमेलिया वर्ग के इन जीवों की गरदन में आदर्श रूप में केवल 7 ग्रीवा (cervical) कशेरुकाएँ उपस्थित रहती है। 
  16. मैमेलिया वर्ग के इन जंतुओं में श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है। 
  17. इनका हृदय चौवेश्मी होता है (दो अलिन्द एवं दो निलय) तथा शिरापात्र (sinus venosus) अनुपस्थित होता है। लाल रुधिराणु केन्द्रकविहीन होते हैं। केवल बायीं दैहिक चाप (systemic arch) उपस्थित होता है।
  18. इनका मस्तिष्क अपेक्षाकृत बड़ा होता है। प्रमस्तिष्क (cerebrum) तथा निमस्तिष्क अत्यधिक विकसित और रचना में जटिल होता है। प्रमस्तिष्क में कॉर्पस कैलोसम (corpus callosum) नामक विशेष रचना होती है तथा दृष्टिपिण्ड चार (corpora quadrigemina) तथा ठोस होता है। 
  19. मैमेलिया वर्ग के जीवों की कपाल तन्त्रिकाओं (cranial nerves) की 12 जोड़ियाँ होती हैं । 
  20. इनके शरीर में नेत्र तथा श्रवणांग (eyes and ears) अत्यधिक विकसित होते हैं। अन्तःकर्ण की कलागहन में एक जटिल कॉक्लिया (cochlea) होती है तथा मध्य कर्ण में तीन श्रवण अस्थिकाएँ (ear ossicles) उपस्थित रहते हैं। इनमें बाह्य कर्ण विकसित होता है। 
  21. इस वर्ग के जंतुओं में नर व मादा पृथक् होते हैं। इनमें स्पष्ट लिंगभेद (sexual dimorphism) होता है। नर में वृषण प्रायः देहगुहा से बाहर, वृषण कोषों (scrotal sacs) में होता है। मैथुन के लिए नर में शिश्न (penis) होते हैं। इनका मूत्रोजनन छिद्र प्रायः गुदा से पृथक् होता है।
  22. मैमेलिया वर्ग के जीवों में निषेचन मादा की अण्डवाहिनियों में होता है तथा भ्रूणीय परिवर्धन गर्भाशय में होता है। अतः अधिकांश स्तनी, अण्डयुज (oviparous) न होकर जरायुज (viviparous) होते हैं। अर्थात यह बच्चों को जन्म देते हैं। कुछ स्तनियों में, मादा में जनन क्रियाओं से सम्बन्धित एक रजोधर्म चक्र (menstruous cycle) चलता है। युग्मनज अर्थात् जाइगोट में पीत (yolk) कम (लघुपीतकीय-microlecithal) होता है। अतः अधिकांश के गर्भाशय में भ्रूण के पोषण हेतु अपरा या आँवल या प्लैसेन्टा (placenta) बनता है। मैमेलिया वर्ग की लगभग 4,000 जातियाँ ज्ञात हैं। 
जो दो उपवर्गों तथा कई अधिवर्गों (infraclasses) और गणों में वर्गीकृत हैं। मैमेलिया वर्ग की के उन उपवर्गों, अधिवार्गों तथा गणों का  वर्णन इस प्रकार है-
  • उपवर्ग प्रोटोथीरिया (Subclass Prototheria)
  • उपवर्ग थीरिया (Subclass Theria)
(क) उपवर्ग प्रोटोथीरिया (Subclass Prototheria)
इस उप वर्ग के अंतर्गत निम्न कोटि के स्तनी आते हैं जो उन सरीसृपों (थिरैप्सिड्स-therapsids) में मिलते-जुलते होते हैं, जिन्हें स्तनियों के पूर्वज (ancestors) माना जाता है। इन जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • ये अण्डयुज (oviparous) होते हैं, अर्थात् अण्डे देते हैं, फिर भी सक्रिय स्तन ग्रन्थियाँ उपस्थित स्पष्ट चूचुक (teats) अनुपस्थित होते हैं।
  • इनमें मूत्रोजनन छिद्र तथा गुदा पृथक् नहीं होता है, केवल एक ही अवस्कर द्वार (cloacal aperture) होता है। 
  • वृषण उदरगुहा में स्थित होता है। 
  • इनमें कॉर्पस कैलोसम अनुपस्थित रहता है। 
  • इनके शरीर का ताप कम (25° से 28° सेण्टीग्रेड) तथा कुछ सीमा तक परिवर्तनशील होता है। 
  • इन जीवो में दाँत केवल शिशु में होते हैं जबकि वयस्क में दन्तविहीन हॉर्नी चोंच (beak) होती है। 
  • इनमें कर्णपल्लव अनुपस्थित रहते हैं। 
  • इन जीवो की मादा में गर्भाशय तथा योनि का अभाव होता है।
इन्हें तीन अधिवर्ग में विभाजित किया गया है-

(i) अधिवर्ग इयोथीरिया (Infraclass Eotheria) : इस अधिवर्ग के अंतर्गत सब विलुप्त जातियां आती हैं।
(ii) अधिवर्ग ऐलोथीरिया (Infraclass Allotheria): इस अधिवर्ग के अंतर्गत सब विलुप्त जातियां आती हैं।
(iii) अधिवर्ग ऑर्निथोडेल्फिया (Infraclass Ornithodelphia) : इसके अंतर्गत विद्यमान प्रोटोथीरिया आते हैं। जो ऑस्ट्रेलिया, तस्मानिया (Tasmania) एवं न्यू गिनी के वासी होते हैं। इनके लक्षण वही होते हैं जो उपवर्ग प्रोटोथीरिया के लिए दिए गए हैं। सब सदस्य एक ही गण मोनोट्रीमैटा (Monotremata) में वर्गीकृत होते हैं उदाहरण-बत्तख चोंची प्लैटिपस (Duckbilled platypus) तथा काँटेदार कीटभक्षी (Spiny ant-eaters or echidnas)। बत्तख-चोंची प्लैटिपस की एक ऑर्निथोरिंकस (Ornithorhynchus) तथा काँटेदार कीटभक्षियों की दो श्रेणियाँ- टैकिग्लॉसस (Tachyglossus) एवं जैग्लॉसस (Zaglossus) पाई जाती हैं।


(ख) उपवर्ग थीरिया (Subclass Theria) 
इस उपवर्ग के जंतुओं के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • यह जीव जरायुजी (viviparous) अर्थात् बच्चे देने वाले स्तनी होते हैं। 
  • इनमें स्तन ग्रन्थियों से सम्बन्धित चूचुक (nipples) उपस्थित होते हैं। 
  • कर्णपल्लव प्रायः उपस्थित रहते हैं।
  • इनके शिशु एवं वयस्क, दोनों दन्तयुक्त होते हैं। 
  • इनका गुदा एवं मूत्रोजनन छिद्र प्रायः पृथक् होता है। 
  • नर में वृषण प्रायः वृषण कोषों में पाया जाता है। 
  • मादा में योनि एवं गर्भाशय उपस्थित होता है। गर्भाशयों में भ्रूण के पोषण हेतु भ्रूणीय कलाओं से बना आँवल या अपरा अर्थात् प्लैसेन्टा (placenta) उपस्थित रहता है।
इसे तीन अधिवर्गों में वर्गीकृत किया गया है-
  1. अधिवर्ग पैन्टोथीरिया (Infraclass Pantotheria)
  2. अधिवर्ग मेटाथीरिया (Infraclass Metatheria)
  3. अधिवर्ग यूथीरिया (Infraclass Eutheria)
(i) अधिवर्ग पैन्टोथीरिया (Infraclass Pantotheria) : इसके अंतर्गत सभी विलुप्त जीव आते हैं।
(ii) अधिवर्ग मेटाथीरिया (Infraclass Metatheria): इस अधिवर्ग को एक ही गण, मार्सपियेलिया (Order Marsupialia) में वर्गीकृत किया गया है जिसके अंतर्गत विलुप्त एवं विद्यमान जातियाँ आती है। इस अधिवर्ग के जीवो के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • इनमें मादा के उदर पर, चूचुकों को ढके हुए, त्वचा की थैली होती है जिसे शिशुधानि अर्थात् मासूपियम (marsupium) कहते हैं। जन्म के समय शिशु अपरिपक्व एवं असहाय होते हैं। ये शिशुधानि में रेंगकर मुख द्वारा चूचुकों से चिपक जाते हैं और दुग्धपान करते रहते हैं। परिपक्व हो जाने पर ये स्वतन्त्र हो जाते हैं, परन्तु बाल्यावस्था में भी शिशुधानि का सुरक्षा के लिए उपयोग करते हैं।
  • इनकी कपाल गुहा छोटी होती है। 
  • इनमें दाँत जीवन में केवल एक ही बार निकलते हैं (मोनोफियोडोन्ट—monophyodont)। इन्साइजर दन्त (incisor teeth) दोनों जबड़ों में समान नहीं होते हैं।
  • इनके मस्तिष्क में कॉर्पस कैलोसम अनुपस्थित होता है।
  • इनमें प्लैसेन्टा बहुत कम विकसित या अनुपस्थित होता है। 
  • इनकी मादाओं में जोड़ीदार योनि एवं गर्भाशय उपस्थित रहते हैं।
इनकी कुछ ही श्रेणियाँ आजकल ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में पाई जाती हैं। उदाहरण-तस्मानिया का डैसीयूरस (Dasyurus), ऑस्ट्रेलिया का कंगारू अर्थात् मैक्रोपस (Macropus), अमेरिका का ओपोसम (Opossum— Didelphis), आदि।

(iii) अधिवर्ग यूथीरिया (Infraclass Eutheria) :इस अधिवर्ग के अंतर्गत पूर्ण विकसित ऐलैन्टॉइक (allantoic) प्लैसेन्टायुक्त उच्चतम् स्तनी आते हैं। इस अधिवर्ग के जीवो के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • मादा के गर्भाशय में भ्रूण एवं शिशु का प्लैसेन्टा (placenta) द्वारा पोषण होने के कारण शिशु जन्म के समय पूर्णरूपेण परिपक्व होता है। 
  • इनमें शिशुधानि अर्थात् मासूपियम अनुपस्थित रहता है।
  • इनके शरीर का ताप अधिक और लगभग स्थाई होता है। 
  • इनके शरीर में चूचुक, कॉर्पस कैलोसम तथा मस्तिष्क भली-भाँति विकसित होता है। 
  • इनमें गर्भाशय एवं योनि केवल एक-एक होता है। मनुष्य भी इसी अधिवर्ग का सदस्य है।
करोटि, दाँतों तथा पादों, आदि के लक्षणों पर इस अधिवर्ग को 25 गणों में बाँटा गया है। 9 गणों में केवल विलुप्त जातियाँ हैं। कुछ विलुप्त और सारी विद्यमान जातियाँ निम्नलिखित 16 गणों में आती हैं। जिनका वर्णन इस प्रकार है-
  1. गण कीटभक्षी अर्थात् इन्सेक्टीवोरा (Order Insectivora)
  2. गण डर्मोप्टेरा (Order Dermoptera)
  3. गण काइरोप्टेरा (Order Chiroptera)
  4. गण इडेन्टेटा (Order Edentata)
  5. गण फोलीडोटा (Order Pholidota)
  6. गण रोडेन्शिया (Order Rodentia)
  7. गण लैगोमोर्फा (Order Lagomorpha)
  8. गण कार्नीवोरा (Order Carnivora)
  9. गण सिटेसिया (Order Cetacea)
  10. गण साइरीनिया (Order Sirenia)
  11. गण ट्यूव्यूलीडेन्टेटा (Order Tubulidentata)
  12. गण प्रोबोसिडिया (Order Proboscidea)
  13. गण हाइरैकॉइडिया (Order Hyracoidea)
  14. गण पेरीसोडैक्टाइला (Order Perissodactyla)
  15. गण आर्टिओडैक्टाइला (Order Artiodactyla)
  16. गण प्राइमेट्स (Order Primates)

1. गण कीटभक्षी अर्थात् इन्सेक्टीवोरा (Order Insectivora): यह सबसे छोटे स्तनी तथा सबसे निम्न कोटि के यूथीरिया होते हैं। इस गण के जीवो के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • यह जीव घास-फूस के नीचे या सुरंगों के वासी होते हैं। जो झींगुर, मक्खियाँ, चींटियाँ, आदि; कीटों पर निर्वाह करते हैं।
  • इनका सिर पिचका हुआ तथा आगे तुण्ड (snout) जैसा होता है।
  • इनके शरीर पर बाल घने, नेत्र छोटे व प्रायः बालों से ढके हुए रहते हैं। मस्तिष्क एवं दाँत रचना में सरल होते हैं तथा दाँत सब समान, छोटे और नुकीले होते हैं। 
  • इनके पैर दृढ़ होते हैं जो सुरंग खोदने हेतु उपयोजित होते हैं। इन पर पाँच-पाँच पंजेदार अँगुलियाँ होती है। चलते समय पैरों के तलवे भूमि पर चपटे पड़ते हैं, अर्थात् गमन पादतलचारी या प्लैन्टीग्रेड (plantigrade) होता है। 
  • कॉर्पस कैलोसम अनुपस्थित रहता है। 
  • इनमें वृषण उदरगुहा में होता है। 
  • इनके शरीर पर चूचुक उदर पर पूरी लम्बाई में रहता है। उदाहरण–झाऊ चूहा (hedgehog) या ऐरीनेसियस (Erinaceous), छछूंदर (mole) या टाल्पा (Talpa), श्रूज (shrews) या सोरेक्स (Sorex) जो सबसे छोटे स्तनी होते हैं ( कुछ का भार 5 ग्राम से भी कम ) ।

2. गण डर्मोप्टेरा (Order Dermoptera): इसके अंतर्गत उड़ने वाले लीमर (flying lemurs) आते हैं। मलेशिया, फिलिपीन, आदि देशों में केवल इनकी दो विद्यमान जातियाँ पाई जाती है। इस गण के जीवो के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • पेड़ों पर एक डाल से ग्लाइड करके दूसरी पर पहुँचने के लिए गरदन से पूँछ तक से रोमयुक्त त्वचा का पंखनुमा या पैराशूटनुमा भंज (fold) पैटेजियम (patagium) होता है।
  • इनके चारों पाद समान होते हैं। 
  • ये रात के समय फल एवं पत्तियाँ खाते हैं। उदाहरण दोनों विद्यमान जातियाँ एक ही श्रेणी गैलिओपिथेकस (Galeopithecus) में आती हैं।

3. गण काइरोप्टेरा (Order Chiroptera): इसके अंतर्गत चमगादड़ (bats) आते हैं। इनका शरीर छोटा होता है तथा केवल यही स्तनी है जो वायु में उड़ने वाले होते हैं। 
  • इनके अग्रपाद वायु में उड़ने के लिए पंखनुमा हो जाते हैं तथा इनकी दूसरी से पाँचवीं अँगुलियाँ लम्बी और त्वचा के जाल (web) या भंज अर्थात् पैटेजियम (patagium) द्वारा परस्पर एवं पश्चपादों से (कुछ में पूँछ से भी जुड़ीं हुई रहती हैं। 
  • इनके पश्चपाद छोटे व पतले होते हैं। पाँच-पाँच अँगुलियों के दृढ़ पंजों द्वारा ये जन्तु दिन के समय अँधेरे स्थानों में पेड़ों, बिजली के तारों, आदि से उल्टे लटके रहते हैं। रात्रि में ये सक्रिय होकर भोजन की खोज में उड़ते हैं। अग्रपादों में पंजे केवल पहली अँगुली पर (कुछ में दूसरी पर भी) होते हैं।
  • इनकी दृष्टि-ज्ञान की क्षमता कम होती है, परन्तु श्रवण एवं स्पर्श- ज्ञान की अधिक होती है। इनमें एक ध्वनि या राडार उपतन्त्र (sonar or radar system) होता है। इस तन्त्र के अन्तर्गत, चमगादड़ तीव्र दर से (आवृत्ति - frequency – 50 हजार प्रति सेकण्ड) चूँ-चूँ की ध्वनि उत्पन्न करते हैं। उड़ते समय मार्ग में आगे उपस्थित बाधाओं से टकराकर इस ध्वनि की सीधी प्रतिध्वनि (echo) वापस आती है जिससे चमगादड़ों को इन बाधाओं का पूर्व ज्ञान हो जाता है। इसे ईकोलोकेशन (echolocation) प्रक्रिया कहते हैं।
  • अधिकांश सदस्य कीटभक्षी या फलाहारी (frugivorous) होते हैं जबकि कुछ नुकीले दाँतों वाले रुधिर-चूषक (sanguivorous) होते हैं।
  • इनकी हड्डियाँ हल्की, उरोस्थि अर्थात् स्टर्नम नौतलित (keeled) होती है(vi) इनमें वृषण उदरगुहा में उपस्थित रहता है। उदाहरण सभी प्रकार के चमगादड़ (bats) जैसे टेरोपस (Pteropus), वेस्परटिलियो (Vespertilio), वैम्पायर चमगादड़ (Vampire bat) या डेस्मोडस (Desmodus), आदि।

4. गण इडेन्टेटा (Order Edentata) : यह जीव अमेरिकी होते हैं तथा वृक्षाश्रयी (arboreal) या स्थलीय होते हैं। इस गण के जीवो के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • इनका पूरा शरीर घने बालों से ढका रहता है तथा कुछ में पृष्ठतल पर बालों के स्थान पर मोटी व हॉर्नी शल्कों का सुरक्षात्मक आवरण होता है। 
  • इनमें दाँत उपस्थित या अनुपस्थित रहते हैं। कुछ में केवल मोलर दन्त उपस्थित रहते हैं।  
  • इनका सिर लम्बा तथा तुण्डनुमा होता है। 
  • पिंकी जिह्वा लम्बी, पतली व चिपचिपी होती है जो पत्तियों या कीड़े-मकोड़ों को बीनकर खाने के लिए उपयोजित होती है। इनकी अँगुलियाँ पंजेदार होती है। इनके पंजे पेड़ों पर चढ़ने या चींटियों, दीमकों, आदि के बिल खोदने हेतु दृढ़ होते हैं। उदाहरण—वृक्षाश्रयी स्लॉथ्स (Sloths) जैसे ब्रैडीपस (Bradypus), आरमैडिलो (Armadillo) या डैसीपस (Dasypus) ।

5. गण फोलीडोटा (Order Pholidota) : इस गण के जीव अफ्रीका एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया के वासी होते हैं तथा यह जीव रात्रिचर (nocturnal) होते हैं।
  • इनकी त्वचा पर बाल बहुत कम होते हैं, परन्तु कड़े हॉर्नी शल्कों (scales) का कवच होता है। 
  •  इनकी तुण्ड (trunk) व जिह्वा लम्बी व चिपचिपी होती है। 
  • इनके मुंह में दाँत अनुपस्थित होते हैं। यह जिह्वा से कीड़े-मकोड़े बीनकर खाते हैं। 
  • इनके पैर छोटे होते हैं। इनके अग्रपादों पर दृढ़, मुड़े हुए पंजे होते हैं। उदाहरण- भारतीय सिल्लू (pangolin) या मैनिस (Manis)।

6. गण रोडेन्शिया (Order Rodentia): यह गण स्तनियों का सबसे बड़ा गण है जो संसारभर में फैले है।इस गण के जीवो के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
  • इसके अंतर्गत अधिकांश छोटे व तेज भागने वाले जीव आते हैं जो जलीय, या बिलों में रहने वाले स्थलीय, या वृक्षाश्रयी होते हैं। 
  • इसके अधिकांश शाकाहारी होते हैं जो भोजन को कुतरकर खाने वाले होते हैं। इसके लिए दोनों जबड़ों पर, जीवनपर्यन्त वृद्धिशील और छेनीनुमा नुकीले, दो-दो इन्साइजर कुतर दन्त उपस्थित होते हैं। इनमें कैनाइन दन्त अनुपस्थित होते हैं। 
  • इनके शरीर पर बाल घने, कुछ में बड़े तथा कुछ में काँटेनुमा होते हैं। 
  • इनके अग्रपाद छोटे तथा भोजन को पकड़ने के लिए उपयोजित होते हैं। उदाहरण-घरेलू चूहा (house mouse) या मस (Mus), गिलहरी (Squirrel) या फुनैम्बुलस (Funambulus), सेही (porcupine) या हिस्ट्रिक्स (Hystrix), बीवर्स (Beavers), आदि। चूहे घरों में भोजन व कपड़ों को नष्ट करते, बिल खोदकर इमारतों को हानि पहुँचाते तथा प्लेग, टाइफस ज्वर (typhus), आदि रोगों को फैलाते हैं।

7. गण लैगोमोर्फा (Order Lagomorpha)
इस गण के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  • यह जीव शाकाहारी होते हैं जो घास-फूस को नुकीले इन्साइजर दन्तों द्वारा कुतर कुतरकर खाने वाले होते हैं। इनके ऊपरी जबड़े में 2 के बजाय 4 इन्साइजर दन्त और इनमें से पीछे वाले दो छोटे व कम विकसित होते हैं। इनमें कैनाइन दन्त अनुपस्थित होता है। 
  • इनकी पूँछ छोटी, पश्चपाद दृढ़ तथा कर्णपल्लव बड़े होते हैं। उदाहरण- शशक (Rabbit) या ओराइक्टोलैगस (Oryctolagus) तथा खरहा (Hare) या लीपस (Lepus)

8. गण कार्नीवोरा (Order Carnivora)
इस गण के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  • यह जीव स्थलीय या जलीय, चुस्त व शक्तिशाली स्तनी होते हैं जो कि मांसाहारी एवं शिकारी होते हैं अर्थात् यह परभक्षी (carnivorous and predatory) होते हैं।
  • इनमें शिकार को पकड़कर फाड़ने के लिए अँगुलियों पर दृढ़ पंजे तथा बड़े व नुकीले कैनाइन दन्त उपस्थित होते हैं। इन्साइजर दन्त छोटे, दोनों जबड़ों में तीन-तीन जोड़ी होते हैं। 
  • इनके अन्य दाँत तथा जबड़े भी मांस एवं हड्डियों को चबाने हेतु दृढ़ होते हैं। अन्तिम ऊपरी प्रीमोलर तथा प्रथम निचले मोलर दन्त नुकीले, मांस को चीरने वाले कारनैसियल दन्त (carnassial teeth) होते हैं। उदाहरण-कुत्ता, भेड़िया, आदि या कैनिस (Canis); बिल्ली, बाघ, आदि या फेलिस (Felis); शेर, चीता (Lion, Leopard), आदि या पैन्थेरा (Panthera); नेवला (Mongoose) या हरपेस्टीज (Harpestes), लोमड़ी (Fox) या वल्पीस (Vulpes), समुद्री सील (Seal) या फोका (Phoca), वालरस (Walrus) या ओडोबेनस (Odobanus), समुद्री शेर (Sea Lion) या जैलोफस (Zalophus), आदि। बब्बर शेर (Panthera leo or Lion) पहले पूरे उत्तरी और मध्य भारत में पाया जाता था, लेकिन अब केवल गुजरात में काठियावाड़ के गिर जंगलों (Gir forests) में मिलता है। समुद्री कार्नीवोर (Seals, Walruses and Sea Lions) जलीय जीवन के लिए उपयोजित होते हैं। इनमें पादों की अंगुलियों के बीच जाल (web) होता है जिससे तैरने में ये चप्पुओं (paddles) का कार्य करते हैं। इनकी पूँछ तथा कर्णपल्लव छोटे होते हैं।

9. गण सिटेसिया (Order Cetacea)
इस गण के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  • इसके अंतर्गत मछलियों-जैसे जलीय, अधिकांश समुद्री, मांसाहारी स्तनी (व्हेल, सूँस, आदि) आते हैं। 
  • इनका शरीर प्रायः स्पिण्डलनुमा, धारारेखित सिर लम्बा, प्रायः नुकीला होता है। इनमें ग्रीवा अनुपस्थित होती है।
  • इनकी पूँछ लम्बी, चपटी तथा सिरे पर द्विशाखित होती है। 
  • इनके शरीर पर बाल बहुत कम होते हैं तथा केवल सिर पर ही होते हैं। 
  • इनके नेत्र छोटे होते हैं। 
  • इनके अग्रपाद, पंजेरहित, चौड़े व जालयुक्त चप्पुओं (paddles) के रूप में होते हैं जबकि कुछ में एक मांसल पृष्ठ पखना (fin) होता है। 
  • इनके कर्णपल्लव एवं पश्चपाद अनुपस्थित होते हैं।
  • इनमें एक या दो बाह्य नासाद्वार सिर के शिखर पर होते हैं। 
  • इनकी त्वचा के नीचे वसा का मोटा, तापरोधक स्तर–ब्लंबर (blubber) होता है।
  • इनके दाँत या तो सब समान एवं इनैमिलरहित होते हैं या अनुपस्थित होते हैं। 
  • इनका वृषण उदरगुहा में होता है। 
  • मादा में चूचुक उपस्थित होता है। उदाहरण - विभिन्न प्रकार की, 5 से 32 मीटर तक लम्बी, व्हेल (Whale) मछलियाँ एवं सूँस। गंगा नदी का डॉल्फिन (Dolphin) या प्लैन्टैनिटा (Plantanita), पॉरपॉएज (porpoise) या फोसीना (Phocaena)। नीली व्हेल वैलीनोप्टेरा मस्कुलस (Balaenoptera musculus) जो वर्तमान काल का सबसे बड़ा (32 मीटर तक लम्बा) और सबसे भारी (150 टन तक) जन्तु है।

10. गण साइरीनिया (Order Sirenia):  
इस गण के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  • यह समुद्र व इसके किनारे की नदियों और खाड़ियों के बड़े, व्हेल-जैसे शाकाहारी स्तनी जीव होते हैं। 
  • इनका शरीर स्पिण्डलनुमा होता है तथा सिर नुकीला नहीं होता है।
  • इनके अग्रपाद तथा पूँछ डाँड-सदृश होते हैं। इनकी पूँछ द्विशाखित नहीं होती है।
  • इनका मुंह छोटा तथा होंठ मांसल होता है। 
  • इनमें पश्चपाद एवं कर्णपल्लव अनुपस्थित होते हैं। 
  • इनके शरीर पर बाल बहुत कम तथा छितरे उपस्थित होते हैं। 
  • इनमें बाह्य नासाद्वार सिर के शिखर पर उपस्थित होता है। 
  • इनके दाँत इनैमलयुक्त होते हैं। 
  • इनका वृषण उदरगुहा में होता है। उदाहरण- ब्लवर भारतीय डूगोंग (Dugong) या हेलीकोर (Halicore), समुद्री गाय (Sea Cow) या ट्राइचेकस (Trichechus)।

11. गण ट्यूव्यूलीडेन्टेटा (Order Tubulidentata)
इस गण के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  • इसके अंतर्गत अफ्रीका का विचित्र, रात्रिचर आर्डवार्क (Aardvark) ओरिक्टेरोपस (Orycteropus) जीव आते हैं। 
  • इनका शरीर मजबूत तथा सूअर जैसा होता है। 
  • इनकी त्वचा मोटी होती है जिस पर बाल कम, छितरे हुए तथा बड़े काँटे-जैसे होते हैं। 
  • इनके कर्णपल्लव एवं तुण्ड लम्बी होते हैं।
  • इनका मुख नालवत् होता है तथा जिह्वा लम्बी, पतली, कीटों (विशेषतः दीमकों) को चाटने के लिए लसलसी सी होती है।
  • इनके दाँत इनैमलरहित होते हैं। इन्साइजर एवं कैनाइन दन्त अनुपस्थित रहते हैं। 
  • इनके अग्रपाद मजबूत होते हैं तथा इन पर बिल खोदने के लिए दृढ़ पंजे होते हैं। इनमें अँगूठा अनुपस्थित होता है।

12. गण प्रोबोसिडिया (Order Proboscidea) : इस गण के अंतर्गत हाथी आते हैं। इनके प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  • यह शाकाहारी होते हैं तथा भीमकाय होते हैं। वर्तमान स्थलीय जन्तुओं में यह सबसे बड़े व भारी (7 टन तक) जीव है। 
  • इनका सिर बड़ा तथा ग्रीवा छोटी होती है।
  • इनकी नासिका एवं ऊपरी होंठ मुख के सामने एक लम्बी सूँड (proboscis) के रूप में बढ़े हुए रहती है। 
  • इनके कर्णपल्लव चौड़े व चपटे होते हैं।
  • इनके पैर मोटे तथा खम्भवत् होते हैं। 
  • इनकी त्वचा मोटी तथा ढीली ढाली होती है जिस पर बाल कम होते हैं। 
  • इनका बाह्य नासाद्वार सूँड के शिखर पर होता है। 
  • ऊपरी इन्साइजर दन्त लम्बे होकर गजदन्तों (tusks) के रूप में मुख से बाहर निकले रहते हैं। कैनाइन व प्रीमोलर दन्त अनुपस्थित होते हैं। इनमें भोजन को चबाने हेतु प्रत्येक जबड़े में केवल एक या दो जोड़ी मोलर दन्त क्रियाशील होते हैं। इन पर इनैमल की कई-कई अनुप्रस्थ धारियाँ होती हैं। उदाहरण भारतीय हाथी–एलीफस (Elephas), अफ्रीकी हाथी लॉक्सोडोन्टा (Loxodonta)।

13. गण हाइरैकॉइडिया (Order Hyracoidea): इसके अंतर्गत अफ्रीकी कोनी (Conies) आते हैं। इसकी केवल दो श्रेणियाँ—प्रोकैविया (Procavia) एवं डेन्ड्रोहाइरैक्स (Dendrohyrax) होती हैं।इसके प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  • यह जीव छोटे, चूहों जैसे दिखते हैं। 
  • इनकी तुण्ड, कर्णपल्लव तथा पूँछ छोटी होती है। 
  • इनके अग्रपादों पर चार-चार, पश्चपादों पर तीन-तीन अँगुलियाँ होती हैं। इनके पश्चपादों की दूसरी अँगुलियाँ पंजेदार होती है जबकि अन्य सब अँगुलियाँ खुरदार होती हैं। 
  • इनमें कैनाइन दन्त अनुपस्थित होते हैं। 
  • यह जीव शाकाहारी होते हैं।

14. गण पेरीसोडैक्टाइला (Order Perissodactyla)
इस गण के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  • इस गण के जीव बड़े तथा शाकाहारी होते हैं। 
  • इनके पाद लम्बे होते हैं जिस पर विषम-अँगुलीय (odd toed) होती है अर्थात् इन पर । या 3 खुरदार अँगुलियाँ होती है। प्रायः एक ही तीसरी अँगुली का भूमि से स्पर्श होता है। 
  • इनका सिर तुण्डनुमा होता है। 
  • इनके दाँत विकसित तथा भोजन को पीसने हेतु उपयोजित होते हैं। कैनाइन छोटे या अनुपस्थित होते हैं। उदाहरण–अफ्रीकी जेब्रा (Zebra), गधा (Ass) एवं घोड़ा अर्थात् ईक्वस (Equus), गेंडा (Rhinoceros— इनमें तुण्ड पर एक या दो सींग) तपीर (Tapirus), आदि ।

15. गण आर्टिओडैक्टाइला (Order Artiodactyla)
इस गण के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  • यह समअँगुलीय (even-toed) लम्बे पादों वाले शाकाहारी जीव होते हैं। इनकी अँगुलियाँ 2 या 4 होती है तथा सभी खुरदार होती है। गमन के समय में केवल खुरों का भूमि से स्पर्श (unguligrade progression) होता है। 
  • इनमें दाँत प्रायः संख्या में कम होते हैं। मोलर दन्त घास-फूस को चबाने हेतु दृढ़ होते हैं। कुछ (सूअर) में कैनाइन दन्त बड़े, गजदन्तों (tusks) के रूप में होते हैं। 
  • इनके अनेक सदस्यों में सींग होती है। 
  • इनका आमाशय 4 कक्षों में बँटा रहता है। इसके अधिकांश सदस्य जुगाली करने वाले (cud chewing or ruminants) होते हैं। उदाहरण—सूअर या सुस (Sus), हिप्पोपोटैमस (Hippopotamus), ऊँट (Camel), हिरन (Cervus), अफ्रीका का जिराफ (Giraffe), भेड़ या ओविस (Ovis), बैल या बॉस (Bos) |

16. गण प्राइमेट्स (Order Primates) : इसके अंतर्गत बन्दर, कपि तथा मानव, आदि उच्चतम् विकसित जन्तु आते हैं। जिनमें से अधिकांश वृक्षाश्रयी तथा कुछ भूमिगत् होते हैं। 
इसके प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  • इनके पैर लम्बे होते हैं तथा प्रत्येक पर पाँच-पाँच लचीली एवं दृढ़, अधिकतर नखदार, पादांगुलियाँ होती हैं। 
  • इनके पैरों के अंगूठे वस्तुओं को पकड़ने हेतु प्रायः अन्य अँगुलियों के समकोण पर उपस्थित रहते हैं। 
  • इनकी गरदन लचीली होती है। इस पर सिर इधर-उधर घुमाया जा सकता है। 
  • इनमें त्रिविम दृष्टि (binocular vision) के लिए नेत्र सामने की ओर तथा पास-पास होते हैं। 
  • इनमें चूचुक वक्ष भाग में उपस्थित रहते हैं। 
  • वृषण प्रायः वृषण कोषों में होता है। 
  • इनके मस्तिष्क में मुख्यतः इसका सेरीब्रम होता है जो अत्यधिक विकसित होता है। अतः ये जन्तु सबसे अधिक बुद्धिमान होते हैं। 
  • यह एक बार में प्रायः एक ही बच्चे को जन्म देते हैं। उदाहरण-लीमर (Lemurs), टारसिअर्स (Tarsiers), बन्दर जैसे कि मैकेक्स (Macacus), लंगूर या सेम्नोपिथेकस (Semropithecus), गिब्बन या हायलोबेट्स (Hyalobates), गोरिल्ला (Gorilla), औरंग-उटान (Orang-Utan) या पोंगो (Pongo), चिम्पांजी (Chimpanzee) या पैन (Pan), मानव या होमो सैपियन्स (Homo sapiens)।




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