स्पंज का वैज्ञानिक नाम पोरिफेरा (Porifera) हैं। इस संघ के अंतर्गत सभी प्रकार के स्पंज आते हैं। यह सबसे निम्न कोटि के बहुकोशिकीय जन्तु या मेटाजोआ (metazoa) होते हैं। इनके शरीर की कोशिकाएं कुछ श्रम विभाजन को प्रदर्शित करती हैं अर्थात इसकी सभी कोशिकाएं सामान न होकर कार्य के अनुसार विभाजत हो जाती हैं तथा उसके अनुसार विभिन्न रचना में विभाजित हो जाती हैं। लेकिन इसकी सामान कोशिकाएं ऊतक नहीं बनती हैं। इनके भेद बहुत कम होते हैं और जो होते हैं वे भी स्थाई नहीं होते हैं। स्पंजों में तंत्रिका का अभाव होता है जिसके कारण विभिन्न कोशिकाओं में हो रहे इसके कार्यों में परस्पर समन्वय (Co-ordination) नहीं होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि स्पंज में शरीर गठन केवल कोशिकीय स्तर का होता है जो कुछ प्रकार की कोशिकाओं को समूह होता है।
पानी सोखने के लिए स्पंजें अतीतकाल से प्रसिद्ध हैं। आजकल रबर, नाइलोन, आदि के नकली स्पंज बनते हैं। प्राकृतिक स्पंज पोरिफेरा के कुछ सदस्यों का कंकाल (skeleton) होता है। इनके शरीर पर ऑस्टिया (ostia) नामक अनेक सूक्ष्म छिद्र होते हैं जिनसे बाहरी जल निरन्तर शरीर में घुसता रहता है। स्पंजों की लगभग 10,000 जातियाँ ज्ञात हैं। इसकी अधिकाँश जातियां समुद्रों में पत्थरों में, चट्टानों आदि पर बेजान सी दिखने वाली अपवृद्धियाँ होती हैं। पूरी दुनिया में इसकी कई जातियां ज्ञात है जिसमें से ल्यूकोसोलोनिया कॉम्प्लीकैटा, ल्यूकोसोलोनिया वेरिएबिलिस तथा ल्यूकोसोलोनिया बॉट्रिऑइडीज काफी पाई जाती हैं।
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