मोस (Moss) तथा फर्न (Fern) में अंतर|hindi


मोस (Moss) तथा फर्न (Fern) में अंतर 

मोस  (Moss) तथा फर्न (Fern) में अंतर|hindi


मोस (Moss) तथा फर्न (Fern) के Gametophyte तथा Sporophyte में कई अंतर हैं जिनका वर्णन हम आज नीचे करेंगे। 

मोस (Moss) तथा फर्न (Fern)

युग्मकोद्भिद् (Gametophyte)
  1. मोस का युग्मकोद्भिद् दो रूपों में होता है- (अ) पुंतन्तु (protonema) - यह भूमि पर रेंगता हुआ हरा, शाखित, सूत्रमयी रूप जैसा होता है जिस पर कलियाँ लगी होती हैं।(ब) युग्मकघर (gametophore) - जिसमें मुख्य अक्ष पर छोटी पत्तियाँ व मूलाभास लगे होते हैं। जबकि फर्न का Gametophyte हरा, हृदय के आकार का प्रोथैलस (prothallus) भूमि पर पड़ा, चपटा, dorsiventral होता है। इसके ventral side पर मूलाभास (rhizoids) पाये जाते हैं।
  2. मोस में स्त्रीधानीधर (archegoniophore) तथा पुंधानीघर (antheri diophore) क्रमश: मादा तथा नर शाखाओं के आगे वाले भाग पर पत्तियों से ढके रहते हैं। जबकि फर्न में स्त्रीधानीधर एवं पुंधानीधर नहीं होते हैं। प्रोथैलस के ventral side पर मध्य भाग में स्त्रीधानी खाँच (archegonium notch) की ओर और पुंधानी सँकरे भाग की ओर स्थित रहती है।
  3. मोस में  Antheridium club-shaped होती है। इसमें वृन्त होता है। Antheridium के समूह के साथ सहसूत्र (paraphysis) पाये जाते हैं और दोनो रचनाएँ "पत्तियों" से ढकी रहती हैं। जबकि  फर्न का Antheridium गुम्बद के आकार की लगभग गोल होती है और मूलाभासों के पास स्थित होती है। इसमें वृन्त नहीं होता तथा सहसूत्र (paraphysis) अनुपस्थित होता है।
  4. मोस में Antherozoids द्विपक्ष्माभियुक्त (bipolarcharged) होते हैं। जबकि फर्न के Antherozoids में बहुत सी पक्ष्माभिकाएँ होती हैं।
  5. मोस की Archegonium की ग्रीवा लम्बी तथा सीधी होती है। जबकि फर्न की Archegonium की ग्रीवा छोटी तथा एक ओर मुड़ी होती है।
  6. मोस की Archegonium की ग्रीवा में 10 या अधिक एककेन्द्रीय ग्रीवा नाल कोशाएँ होती हैं। ग्रीवा के चारों ओर ग्रीवा कोशाओं की छः उदग्र पंक्तियाँ होती हैं तथा शीर्ष पर चार cover cells होती हैं। जबकि फर्न की Archegonium की ग्रीवा में एक Binucleate Neck canal cell होती है। Neck के चारों ओर ग्रीवा कोशाओं की चार उदग्र पंक्तियाँ होती हैं। शीर्ष पर चार ढक्कन कोशाएँ (cover cells) अनुपस्थित होती हैं।
  7. मोस की Archegonium के परिपक्व होने पर नलिका से शक्कर मिला हुआ श्लेष्म निकलता है जिसके कारण Antherozoids आकर्षित होते हैं। जबकि फर्न की Archegonium के परिपक्व होने पर नलिका से मैलिक अम्ल मिला हुआ श्लेष्म निकलता है जिसके कारण Antherozoids आकर्षित होते हैं।
  8. मोस तथा फर्न दोनों के पौधे अपना - अपना भोजन स्वयं ही बनाता है। 


बीजाणु - उद्भिद् (Sporophyte) 
  1. मोस का Sporophyte तीन भागों में विभाजित होता है—पाद (foot), वृन्त (seta) और सम्पुट (capsule)। इसमें किसी प्रकार की पत्तियाँ नहीं पायी जातीं। जबकि फर्न का Sporophyte भी तीन भागों में विभाजित रहता है-जड़, तना और पत्तियाँ (इसमें पत्तियां पाई जाती हैं)। 
  2. मोस का Sporophyte फर्न के Sporophyte से छोटा और कम विकसित होता है। यह अपने भोजन के संश्लेषण के लिए Gametophyte से आवश्यक लवण (minerals) एवं जल लेकर अपना भोजन बनाता है। इस प्रकार यह आंशिक रूप से Gametophyte पर निर्भर रहता है, अर्थात् यह आंशिक परजीवी (semi parasite) होते है। जबकि फर्न का Sporophyte बड़ा तथा अधिक विकसित होता है। यह स्वयंपोषी पौधा है। यह केवल शिशु अवस्था में ही Gametophyte से भोजन लेता है।
  3. मोस के Capsule के वृन्त (seta) में संवहन स्ट्रैण्ड (conducting strand) तो होता है, परन्तु उसमें जाइलम (xylem) एवं फ्लोएम (phloem) नहीं पाया जाता है। जबकि फर्न का तना rhizome के रूप में होता है। इसमें संवहन बण्डल (vascular bundle) पाया जाता है जिसमें जाइलम (xylem) व फ्लोएम (phloem) पाया जाता है।
  4. मोस के capsule में spore sac होता है। जबकि फर्न के Sporophyte की पत्तियों की निचली सतह पर बीजाणुधानियाँ (sporangia) गुच्छों में लगी होती हैं। इनमें बीजाणु (spores) भरे होते हैं।
  5. मोस के Spore sac में असंख्य Spores भरे रहते हैं। जबकि फर्न की बीजाणुधानी में केवल 64 बीजाणु ही बनते हैं।
  6. मोस में Spores के वितरण में capsule शिखर पर से फटता है और peristomial teeth जो आर्द्रता ग्राही होते हैं, Spores के विसर्जन में सहयोग देते हैं। जबकि फर्न की बीजाणुधानी के वलय (annulus) से जल के वाष्प के रूप में उड़ने पर बीजाणुधानी मुख (stomium) के स्थान पर फट जाती है जिससे बीजाणुओं का विसर्जन होता है।
  7. Spores के अंकुरण से सर्वप्रथम protonema बनता है जिस पर उत्पन्न कलिकाएँ मुख्य पौधे को जन्म देती हैं। जबकि फर्न के बीजाणुओं के अंकुरण से फर्न युग्मकोद्भिद् का मुख्य पौधा उत्पन्न होता है। प्रथम तन्तु जैसी रचना नहीं बनती है।



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