संयोजकता (valency) क्या है? : परिभाषा, उदाहरण|hindi


संयोजकता (valency) क्या है? : परिभाषा, उदाहरण
संयोजकता (valency) क्या है? : परिभाषा, उदाहरण|hindi

संयोजकता (valency)की परिभाषा
किसी तत्व की संयोजकता (valency) उसके परमाणुओं की रासायनिक संयोग करने की क्षमता अर्थात् संयोजन क्षमता (combining capacity) को प्रदर्शित करती है। फ्रैंकलैण्ड (1852) ने संयोजकता को एक पूर्ण संख्या में प्रदर्शित करने का सुझाव दिया था। ऐसा करने के लिए हाइड्रोजन की संयोजकता 1 मानी गयी थी तथा संयोजकता की परिभाषा इस प्रकार दी गयी थी — किसी तत्व की संयोजकता हाइड्रोजन के परमाणुओं की वह संख्या है जो उस तत्व के एक परमाणु से संयोग करती है।

संयोजकता की इस परिभाषा के अनुसार हाइड्रोजन क्लोराइड (HCI), जल (H2O) व अमोनिया (NH3 ) में क्लोरीन (CI), ऑक्सीजन (O) व नाइट्रोजन (N) की संयोजकताएँ क्रमशः 1, 2 व 3 हैं परन्तु मेथेन (CH4), एथेन (C2H6), एथिलीन (C2H4) व ऐसेटिलीन (C2H2 ) में कार्बन (C) की संयोजकताएँ क्रमशः 4, 3, 2 व 1 प्रतीत होती हैं। कोसेल (Kossel) तथा लीविस (Lewis) ने सन् 1916 में तत्वों के परमाणुओं के संयोग करने की क्षमता को परमाणु संरचना के ज्ञान के आधार पर समझाने के लिए संयोजकता का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया।

संयोजकता के इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त के अनुसार किसी तत्व के एक परमाणु द्वारा रासायनिक संयोग में स्थानान्तरण या साझे में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या को उस तत्व की संयोजकता कहते हैं।
एक संयोजकता वाले तत्वों को एक संयोजक (monovalent) कहते हैं। इसी प्रकार 2, 3, 4 तथा 5 संयोजकता वाले तत्वों को क्रमशः द्विसंयोजक (bivalent), त्रिसंयोजक (trivalent), चतु: संयोजक (tetravalent) तथा पंचसंयोजक (pentavalent) कहते हैं।


मूलकों की संयोजकताएँ - मूलकों की संयोजकताएँ तत्वों की भाँति फ्रैंकलैण्ड द्वारा दी गई परिभाषा अथवा संयोजकता के इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त के आधार पर ज्ञात की जा सकती हैं। एथिल मूलक (C2H5) एक हाइड्रोजन परमाणु (H) से संयोग करके एथेन (C2H6) बनाता है। इस क्रिया में एथिल मूलक एक इलेक्ट्रॉन साझे में प्रयुक्त करता है। अतः एथिल मूलक की संयोजकता 1 है।

आयनों की संयोजकताएँ - किसी आयन का आवेश उसमें उपस्थित परमाणु या परमाणुओं के समूह द्वारा वैद्युत-संयोजक बन्ध बनाने में लिये गये या दिये गये इलेक्ट्रॉनों की संख्या को प्रदर्शित करता है। अतः किसी आयन के आवेश की मात्रा उसमें उपस्थित परमाणु या परमाणुओं के समूह की वैद्युत-संयोजकता को प्रदर्शित करती है। इसे प्रायः उस आयन की संयोजकता ही कहते हैं। धनायनों की संयोजकता धनात्मक तथा ॠणायनों की संयोजकता ऋणात्मक होती है। उदाहरण के लिए- CO3-- की संयोजकता -2 तथा Al+++ की संयोजकता +3 है।

यदि किसी आयनिक यौगिक के आयनों की संयोजकताएँ ज्ञात हो तो उसका अणु सूत्र लिखने के लिए निम्नलिखित पदों (steps) को इसी क्रम में प्रयुक्त करते हैं-
  1. सर्वप्रथम धनायन व ऋणायन के सूत्रों को साथ-साथ लिखते हैं। धनायन का सूत्र बायीं ओर तथा ऋणायन का सूत्र दाहिनी ओर लिखते हैं। धनायन व ऋणायन के सूत्रों के दोनों ओर कोष्ठक लगा देते हैं। 
  2. इसके बाद धनायनों व ऋणायनों को संख्याओं को कोष्ठकों के दाहिनी व नीचे की ओर लिखते हैं।धनायनों की संख्या = ॠणायन की संयोजकता तथा ऋणायनों की संख्या = धनायन की संयोजकता। 
  3. यदि धनायनों व ऋणायनों की संख्याओं को 2 या 3 से भाग दिया जा सकता तो ऐसा कर लेते हैं। 
  4. इस प्रकार प्राप्त सूत्र में यदि संख्या 1 का प्रयोग किया गया है तो उसे हटा देते हैं। आयनों के आवेशों तथा अनावश्यक कोष्ठकों को भी हटा देते हैं।
इस प्रकार हमें उस यौगिक का अणु सूत्र प्राप्त हो जाता है।

उदाहरण: अमोनियम आयन (NH4+) की संयोजकता 1 तथा सल्फेट आयन (SO4--) की संयोजकता 2 होती है। अमोनियम सल्फेट का अणु सूत्र लिखने के लिये उपरोक्त नियम सं० (i) के अनुसार (NH4+) (SO4‐-) प्राप्त होता है। नियम सं० (ii) के अनुसार (NH4+)2(SO4--)1 प्राप्त होता है। इस उदाहरण में नियम सं० (iii) लागू नहीं होता है। नियम सं० (iv) के अनुसार (NH4)2 SO4 प्राप्त होता है। अतः अमोनियम सल्फेट का अणु सूत्र (NH4 )2 SO4 होता है।

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