प्रकृति में डी०एन०ए० का पुनर्संयोजन (DNA Recombination in Nature)
हम यह जानते है कि प्रत्येक जीव-जाति के अपने विशिष्ट आनुवंशिक लक्षण होते हैं और इन लक्षणों के दृश्यरूप प्रकटन (visual appearance) की संकेत सूचनाएँ (coded informations) उस स्थाई रूपरेखा (blueprint) में होती हैं जो उस जाति के सदस्यों की कोशिकाओं में उपस्थित आनुवंशिक पदार्थ — DNA— में संरक्षित रहती हैं। इसीलिए प्रत्येक जीव-जाति के प्रत्येक सदस्य के शरीर की प्रत्येक कोशिका में DNA के अणुओं की संख्या और रासायनिक संयोजन समान होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो, प्रत्येक जीव-जाति का, अन्य जीव-जातियों से भिन्न, अपना पृथक् गुणसूत्र प्ररूप (karyotype) तथा जीन प्ररूप (genotype) होता है।
फिर भी, लैंगिक जनन (sexual reproduction) द्वारा सन्तानोत्पत्ति करने वाली प्रत्येक जीव-जाति के विभिन्न सदस्यों के बीच हमें मूल आनुवंशिक लक्षणों में तो नहीं, परन्तु इन लक्षणों के दृश्यरूप प्रकटन में इतनी विभिन्नताएँ दिखाई देती हैं कि हम विभिन्न सदस्यों की एक-दूसरे से पृथक् पहचान कर लेते हैं। इससे स्पष्ट आभास होता है कि प्रकृति एक ऐसी विशाल प्रयोगशाला है जहाँ विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा जीवों के आनुवंशिक पदार्थ में छोटे छोटे से ऐसे परिवर्तन होते रहते हैं जो जीव-जातियों की आबादियों में आनुवंशिक विभिन्नताओं (genetic variations) का मूल आधार बनते हैं।
आनुवंशिक पदार्थ के इन परिवर्तनों की दो प्रमुख श्रेणियाँ होती हैं— उत्परिवर्तन (mutations) तथा DNA पुनर्संयोजन (DNA recombinations ) ।
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उत्परिवर्तन DNA के अणुओं के रासायनिक संयोजन में ऐसे छोटे-छोटे परिवर्तनों को कहते हैं जो शरीर की भीतरी दशाओं अथवा बाहरी वातावरण की कुछ विशेष दशाओं के कारण पर्याप्त संख्या में होते रहते हैं। इसके विपरीत, DNA अणुओं के बीच कुछ खण्डों की अदला-बदली से, या इनमें से कुछ खण्डों के पृथक् हो जाने से, या इनमें कुछ नए खण्डों के जुड़ जाने से इन अणुओं का पुनर्संयोजन हो जाता है। इससे genes का पुनर्विन्यास (rearrangement) हो जाता है और आनुवंशिक लक्षणों के दृश्यरूप प्रकटन में विभिन्नताएँ स्थापित हो जाती हैं।
DNA का पुनर्संयोजन समजात (homologous) तथा असमजात (nonhomologous), दोनों ही प्रकार के DNA अणुओं के बीच हो सकता है।
समजात (homologous) तथा असमजात (nonhomologous) को विस्तार से पढ़ने के लिए हमारे आगे वाले पोस्ट देखें।
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