DNA पुनर्संयोजन तकनीक (DNA Recombination Technique)|hindi


DNA पुनर्संयोजन तकनीक (DNA Recombination Technique)
DNA पुनर्संयोजन तकनीक (DNA Recombination Technique)|hindi

समजात तथा असमजात DNA पुनर्संयोजन (Homologous and Nonhomologous DNA Recombination)

प्रकृति में अधिकांश DNA पुनर्संयोजन DNA के समजात अणुओं या इन अणुओं के समजात खण्डों के बीच होते हैं। ये निम्नलिखित प्रक्रियाओं (processes) द्वारा होते हैं-

1. पारगमन (Crossing Over) : हम यह जानते हैं कि, लैंगिक जनन की प्रक्रिया में अर्धसूत्री विभाजन (meiosis) द्वारा एकसूत्री (haploid) लैंगिक कोशिकाएँ, अर्थात् गैमीट्स (gametes) बनती हैं। अर्धसूत्री विभाजन में homologous chromosome पहले संयुग्मित (conjugated) होते हैं और बाद में एक-दूसरे से अलग होते हैं। इस प्रक्रिया में, कैज्मैटा (chiasmata) नामक बिन्दुओं पर, इन गुणसूत्रों के बीच एक या एक से अधिक homologous  खण्डों की अदला-बदली होती है जिसे Crossing Over कहते हैं। Crossing Over के कारण homologous chromosomes के समजात DNA अणु recombined हो जाते हैं। इस प्रकार, इन अणुओं में माता-पिता के आनुवंशिक लक्षणों के नए-नए संयोजन (combinations) होते हैं और इसी से सन्तानों में आनुवंशिक विभिन्नताएँ होती हैं।

2. संयुग्मन (Conjugation) : जीवाणुओं तथा इन्हें संक्रमित करने वाले विषाणुओं (बैक्टीरियोफेज विषाणु Bacteriophage viruses) में आनुवंशिक पदार्थ का जीनोम (genome) छोटा और रचना में बहुत सरल होता है। अतः आनुवंशिकी के अध्ययन में इस जीनोम का व्यापक उपयोग किया जाता है। जीवाणुओं में न तो अर्धसूत्री विभाजन होता है और न ही crossing over, परन्तु फिर भी इनमें कुछ ऐसी प्राकृतिक प्रक्रियाएँ होती हैं जिनमें विभिन्न जीवाणुओं के जीनोमों के Combination से recombined DNA बनने की बहुत सम्भावना होती है। ऐसी प्रमुख प्रक्रियाएँ होती हैं- संयुग्मन, रूपान्तरण, पारक्रमण तथा स्थान परिवर्तन
  • इन प्रक्रियाओं में जीनोम का transfer हमेशाआंशिक रूप से तथा एक ही दिशा में होता है, अर्थात् एक जीवाणु का कुछ DNA दूसरे जीवाणु में पहुँचकर इसके DNA से जुड़ जाता है।
  • वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जीवाणुओं की कुछ जातियों में दो प्रकार के सदस्य होते हैं।
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उदाहरण के लिए-
  • हमारी बड़ी आँत में रहने वाले जीवाणु, ईस्केराइकिया कोलाइ (Escherichia coli), के कुछ सदस्यों में nucleoid में स्थित genome के DNA अणु के अतिरिक्त, DNA का एक ऐसा छोटा एवं वृत्ताकार अणु, अर्थात् plasmid होता है जो उर्वरक, अर्थात् लिंग कारक (fertility factor or sex factor-F-factor) का काम करता है।
  • जिन सदस्यों में यह कारक होता है उन्हें F+ तथा जिनमें नहीं होता उन्हें F- जीवाणु कहते हैं।
  • इस कारक के प्रभाव से F+ जीवाणुओं की सतह पर प्रोटीन्स के सूक्ष्म नलिका के जैसे प्रवर्ध (processes) बन जाते हैं। जिन्हें पिलाइ (pilli : तथा एक को पाइलस—pilus) कहते हैं।
  • संयुग्मन में कोई F+ जीवाणु अपने पिलाइ द्वारा किसी F-जीवाणु से जुड़ जाता है। इसके बाद F+ जीवाणु में लिंग कारक का स्वःद्विगुणन (self replication) होता है और इसकी एक copy F- जीवाणु में चली जाती है जहाँ यह लिंग कारक पूरा या फिर इसका एक या अधिक अंश जीवाणु के जीनोम के DNA अणु, अर्थात् गुणसूत्र (chromosome) से जुड़कर recombined DNA बना सकता है।

3. रूपान्तरण (Transformation) : कुछ जीवाणु अपने वातावरण में उपलब्ध DNA अणुओं के नग्न  खण्डों को ग्रहण कर लेते हैं। ये DNA खण्ड जीवाणु के DNA अणु के समजात खण्डों से recombined हो जाते हैं। इसी प्रक्रिया को रूपान्तरण कहते हैं। इसकी खोज सन् 1928 में फ्रेडेरिक ग्रिफिथ (Frederick Griffith) ने की। उन्होंने पता लगाया कि pneumonia रोग के जनक जीवाणु (Streptococcus pneumoniae) की दो नस्लें होती हैं S नस्ल तथा R नस्ल। S नस्ल रोगजनक तथा R नस्ल अरोगजनक होती है। उन्होंने चूहों में मरे हुए S नस्ल तथा जीवित R नस्ल के जीवाणु एक साथ डाले तो उन्होंने देखा कि चूहों में pneumonia रोग हो गया है। इसके कारण की खोज करने पर उन्हें पता चला कि R नस्ल के जीवाणुओं ने S नस्ल के जीवाणुओं के DNA अणु के कुछ समजात खण्ड अपने DNA अणु में संयोजित कर लिए और  इसी कारण से ये रोगजनक बन गए।
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4. पारक्रमण (Transduction) : जीवाणुओं (bacteria) को संक्रमित (infect) करने वाले विषाणुओं (viruses) को बैक्टीरियोफेज़ेज (bacteriophages) कहते हैं।

ये कभी-कभी अपने अणु में host bacterium के DNA अणु का कुछ भाग coordinated कर लेते हैं। फिर जब ये विषाणु अन्य जीवाणुओं को संक्रमित करते हैं तो अपने DNA अणु में नए बने हुए भाग को मुक्त कर देते हैं। DNA का यह भाग फिर नए host bacterium के DNA अणु में coordinated हो जाता है। recombination की इसी प्रक्रिया को Transduction कहते हैं।

5. स्थान परिवर्तन (Transposition) : सन् 1940 में बारबरा मैक्लिंटोक (Barbara McClintock) ने Prokaryotic  तथा Eukaryotic कोशिकाओं में DNA अणुओं के ऐसे जीनरूपी खण्डों का पता लगाया जो अणु के एक स्थान से हटकर अन्य स्थान पर जुड़ते रहते हैं और इस प्रकार DNA अणुओं का recombination करते रहते हैं। इन खण्डों को जम्पिंग जीन्स (jumping genes) कहते हैं। इन खण्डों में न्यूक्लिओटाइड्स की औसतन 750 से 15000 जोड़ियाँ होती हैं। इनके दोनों छोरों पर समाक्षार अणुओं के विपरीत पुनरावृत्त अनुक्रम (inverted repeat sequences) होते हैं अर्थात एक छोर पर का अनुक्रम दूसरे छोर पर उल्टी दिशा में होता है। इन खण्डों को DNA अणु से पृथक करने का क्रम transposase enzyme करता है।

असमजात DNA पुनर्संयोजन (Nonhomologous DNA Recombination)
इस प्रकार के recombination में एक गुणसूत्र का कोई खण्ड इससे अलग होकर किसी अन्य homozygous गुणसूत्र से जुड़ता है। अतः इस प्रक्रिया को interchromosomal rearrangement कहते हैं। कभी-कभी स्थान परिवर्ती (transposons) भी ऐसा rearrangement करते हैं। कभी-कभी ऐसा rearrangement दो असमजात गुणसूत्रों के बीच खण्डों की पारस्परिक (reciprocal) अदला-बदली के कारण भी होता है।

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