ब्रिटिश वैज्ञानिक मैक्सवेल ने सन् 1865 में केवल गणितीय सूत्रों के आधार पर यह प्रमाणित किया कि जब कभी किसी वैद्युत परिपथ में वैद्युत धारा बहुत उच्च आवृत्ति से बदलती है (अर्थात् परिपथ में उच्च आवृत्ति के वैद्युत दोलन होते हैं) तो उस परिपथ से ऊर्जा तरंगों के रूप में चारों ओर को प्रसारित होने लगती है। इन तरंगों को 'विद्युत चुम्बकीय तरंगें' कहते हैं। इन तरंगों में वैद्युत क्षेत्र E तथा चुम्बकीय क्षेत्र B परस्पर लम्बवत् तथा तरंग के संचरण की दिशा के भी लम्बवत् होते हैं। इन तरंगों के संचरण के लिए माध्यम का होना आवश्यक नहीं है; अर्थात् विद्युत-चुम्बकीय तरंगें निर्वात् में होकर चल सकती हैं। मैक्सवेल ने गणनाओं द्वारा यह स्थापित किया कि विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की चाल 3.0 x 10⁸ मीटर/सेकण्ड है जो कि निर्वात में प्रकाश की चाल है। इस आधार पर मैक्सवेल ने अपना यह मत दिया कि प्रकाश विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में संचरित होता है।
विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
- विद्युत-चुम्बकीय तरंगें त्वरित आवेश द्वारा उत्पन्न की जाती हैं।
- इन तरंगों के संचरण के लिए किसी पदार्थिक माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।
- ये तरंगें निर्वात् अथवा मुक्त स्थान में 1/μo εo वेग से चलती हैं जिसका मान प्रकाश की चाल के बराबर होता है।
- वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिवर्तनों की दिशाएँ परस्पर लम्बवत् होती हैं तथा संचरण की दिशा के भी लम्बवत् होती हैं। इस प्रकार, विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ होती है।
- वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में परिवर्तन साथ-साथ होते हैं तथा क्षेत्रों के महत्तम मान Eo व Bo एक ही स्थान पर तथा एक ही समय होते हैं।
- निर्वात् में विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिमाणों का सम्बन्ध E/B = c होता है।
- वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों में ऊर्जा, औसतन वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में बराबर-बराबर बँटी होती है।
- निर्वात् में, औसत वैद्युत ऊर्जा घनत्व 1/2εo E2 तथा औसत चुम्बकीय ऊर्जा घनत्व B²/2μo होता है।
- विद्युत-चुम्बकीय तरंग में प्रकाशिक प्रभाव वैद्युत क्षेत्र वेक्टर के कारण होता है।
अवरक्त किरणें दृश्य विकिरण के लाल रंग से अधिक तरंगदैर्घ्य (7.8×10-⁷ मी से 15 x10-³ मी तक) की किरणें अवरक्त किरणें कहलाती हैं।
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