आवर्धक लेंस(Magnifying Glass in hindi):सिद्धांत,प्रतिबिंब का बनना तथा उसके उपयोग
आवर्धक लेंस (Magnifying Glass)
सिद्धांत (Principle) : आवर्धक लेंस इस तथ्य पर आधारित होता है कि जब कोई वस्तु उत्तल लेंस के प्रकाश केंद्र अथवा फोकस के मध्य रखी जाए तब वस्तु का सीधा और बड़ा प्रतिबिंब दिखाई देता है। यह एक सरल प्रकाशिक यंत्र होता है।
प्रतिबिंब का बनना (Reflection formation) : किसी छोटी वस्तु को देखने के लिए लेंस को वस्तु की इतना समीप ले जाते हैं कि वस्तु, लेंस तथा लेंस की फोकस दूरी के बीच में आ जाए। तब लेंस द्वारा वस्तु का आभासी, सीधा तथा वस्तु से बड़ा प्रतिबिंब बन जाता है। नेत्र को लेंस के समीप ले जाकर लेंस में से देखने पर हमें यही प्रतिबिंब दिखाई देता है। वस्तु को लेंस व उसके फोकस के बीच में ऐसी स्थिति में रखते हैं कि प्रतिबिंब नेत्र से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी पर बने।
निम्न चित्र में AB एक छोटी वस्तु है जो लेंस L तथा उसके प्रथम फोकस F' के बीच में रखी हुई है। AB का आभासी, सीधा तथा बड़ा प्रतिबिंब A'B' बन रहा है। माना की आंख से इस प्रतिबिंब की दूरी स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D के बराबर है। चूंकि नेत्र लेंस के बहुत समीप है, अतः लेंस से प्रतिबिंब की दूरी लगभग D ही है।
यदि लेंस ना हो तो वस्तु AB, नेत्र के अत्यंत समय होने के कारण स्पष्ट दिखाई नहीं देगी। परंतु लेंस के होने पर नेत्र वस्तु के प्रतिबिंब A1B1 को देखता है जो कि नेत्र से स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर होने के कारण स्पष्ट दिखाई देता है। यदि वस्तु AB, नेत्र से D दूरी पर रखकर सीधे (बिना लेंस से) देखी जाए तो वह स्पष्ट तो होगी परंतु छोटी दिखाई देगी क्योंकि तब वस्तु नेत्र पर अपेक्षाकृत छोटा कोण बनाएगी।
यदि वस्तु AB का प्रतिबिंब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी D पर बने तथा लेंस की फोकस-दूरी f हो तो सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता निम्न होती है:
M = 1+D/f
यदि हम वस्तु को लेंस की फोकस पर रख कर देखेंगे तब इसका बड़ा प्रतिबिंब अनंत पर बनेगा। इस अवस्था में नेत्र श्रांत अवस्था में रहती है तथा मांस पेशियों पर तनाव नहीं पड़ता। परंतु लेंस की आवर्धन क्षमता कुछ घट जाती है। इस दशा में आवर्धन क्षमता निम्न होती है:
M = D/f
इन समीकरणों से स्पष्ट होता है कि लेंस की फोकस दूरी f जितनी कम होगी ,आवर्धन-क्षमता M उतनी ही अधिक होगी। परंतु बहुत अधिक छोटी फोकस-दूरी का लेंस मोटा होता है तथा उससे बनने वाले प्रतिबिंब में अनेक दोष आ जाते हैं। अतः अधिक आवर्धन-क्षमता प्राप्त करने के लिए सरल सूक्ष्मदर्शी के स्थान पर संयुक्त सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग किया जाता है।
उपयोग (Uses) : आवर्धक लेंस का उपयोग प्रायः घड़ीसाजों, पुस्तक के छोटे अक्षरों को पढ़ने अथवा यंत्रों में लिखे माप को पढ़ने में किया जाता है। इनका प्रयोग बहुत सूक्ष्म जीवों जैसे बैक्टीरिया ,वायरस आदि को देखने के लिए नहीं किया जा सकता है।
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