हीरूडिनेरिया(Hirudinaria)साधारण भारतीय जोंक:वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


हीरूडिनेरिया (HIRUDINARIA) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन
हीरूडिनेरिया(Hirudinaria)साधारण भारतीय जोंक:वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi

हीरूडिनेरिया (Hirudinaria) (साधारण भारतीय जोंक-Leech)
हीरूडिनेरिया  को साधारण भाषा में भारतीय जोंक कहते हैं। यह साधारणतः सभी तालाबों में पाया जाता हैं। यह मुख्यतः पालतू जानवरों को अधिक हानि पहुँचात है। इससे सम्बंधित अन्य तथ्यों के बारे में हम नीचे पढ़ेंगे। 
हीरूडिनेरिया(Hirudinaria)साधारण भारतीय जोंक:वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


वर्गीकरण (Classification)

जगत (Kingdom)              -       जन्तु (Animalia)
शाखा (Branch)                 -       यूमेटाजोआ (Eumetazoa)
प्रभाग (Division)               -       बाइलैटरिया (Bilateria)
उपप्रभाग (Subdivision)    -       प्रोटोस्टोमिया  (Protostomia)
खण्ड (Section)                 -       यूसीलोमैटा (Eucoelomata)
संघ (Phylum)                   -       ऐनेलिडा  (Annelida)
वर्ग (Class)                       -       हीरूडीनिया (Hirudinea)
गण (Order)                      -       नैथोब्डेलाइडा  (Gnathobdellida)
जाति (Genus)                   -        हीरूडिनेरिया (Hirudinaria)

हीरूडिनेरिया(Hirudinaria)साधारण भारतीय जोंक:वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi



लक्षण (Characteristics)
जोंक के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं -
  1. यह तालाबों, झीलों, गीली मिट्टी, दलदल, आदि के वासी होते हैं जो भोजन के लिए पशुओं एवं मनुष्यों के शरीर से चिपककर उनका रूधिर चूसते है, अर्थात् यह बाह्य परजीवी (external parasite) होते हैं।
  2. इनका शरीर 12 से 38 सेमी तक लम्बा, कृमि-सदृश, कुछ चपटा व गहरा भूरा-सा होता है। इनके शरीर के पृष्ठतल पर गहरे रंग के धब्बे व धारियाँ पाई जाती है।
  3. इनका शरीर 33 समखण्डों में बँटा रहता है, लेकिन विविध खण्ड बाहर से वृत्ताकार झुर्रियों द्वारा दो से पाँच मुद्राकार छल्लों (annuli) में बँटे दिखाई देते हैं।
  4. इनका शीर्ष अविकसित होता है। इनके अग्र छोर के अधरतल पर एक मांसल, प्यालीनुमा अग्र चूषक (anterior sucker) और इसमें एक त्रिअरीय मुख होता है।
  5. इसके पश्च छोर पर एक बड़ा पश्च चूषक (posterior sucker) होता है और इसके ठीक आगे, मध्यपृष्ठ रेखा में गुदा (anus) उपस्थित होता है। चूषक गमन और पोषद के शरीर से चिपक में सहायक होता है।
  6. इसके शरीर के पहले पाँच खण्डों में, पृष्ठल पर, एक-एक जोड़ी नेत्र उपस्थित रहते हैं। सभी खण्डों के प्रथम छल्ले के पृष्ठतल पर संवेदी अंकुर तथा छठे से 22 वें खण्डों में अधरतल पर जोड़ीदार उत्सर्गिका छिद्र (nephridiopores) उपस्थित रहते हैं। मध्यपृष्ठ रेखा पर 10 वें खण्ड में नर तथा 11 वें खण्ड में मादा जनन छिद्र होते हैं।
  7. इसका शरीर एक भित्ति द्वारा ढका रहता है। यह देहभित्ति मोटी, नम व चिप चिपी होती है। इसके नीचे, सीलोम गुहा में, गहरा, भूरा-सा रंगायुक्त बोट्रिऑएडल ऊतक (botryoidal tissue) भरा हुआ रहता है। अतः सीलोम केवल चार हीमोसीलोमिक वाहिकाओं (haemocoelomic channels) के रूप में रह जाती है जो परिसंचरण का काम करती हैं। इनमें उपस्थित देहगुहीय द्रव्य रुधिर का काम करता है। जिसमें हीमोग्लोबिन घुला रहता है।
  8. इसके मुख के प्रकोष्ठ में तीन हनु (jaws) होते हैं। इन हनु (jawa) के पास अनेक एककोशिकीय लार ग्रन्थियाँ खुलती हैं। इनकी लार में उपस्थित हिरूडिन (hirudin) नामक पदार्थ रुधिर चूसते समय रुधिर-जामन को रोकता है। प्रकोष्ठ के पीछे, आहारनाल में ग्रसनी, छोटी ग्रासनली, 10 समखण्डीय कक्षों में बँटी गलथैली (crop), छोटा-सा आमाशय तथा सँकरी आँत उपस्थित रहती है। पोषद के रूधिर का पाचन व अवशोषण आमाशय एवं आँत में होता है।
  9. इनमें श्वसन देहभित्ति से प्रसरण द्वारा होता है।
  10. इनके शरीर में उत्सर्जन के लिए छठे से 22 वें खण्डों में एक-एक जोड़ी उत्सर्गिकाएँ 
  11. इनका तन्त्रिका तन्त्र लगभग वैसा ही होता है जैसा केंचुए, आदि में होता है।
  12. यह द्विलिंगी होते हैं। इनके प्रमुख नर जननांग 12 वें से 22 वें खण्डों में स्थित ग्यारह जोड़ी वृषण कोष (testis sacs) होते हैं जबकि मादा जननांग ग्यारहवें खण्ड में स्थित होता है जिसमें एक जोड़ी अण्डाशय कोष (ovisacs) उपस्थित होते हैं। इनमें जननवाहिनियाँ एवं सहायक जननांग विकसित होते हैं। अण्डनिक्षेपण अस्थाई क्लाइटेलम पर बने, हल्के पीले ककूनों (cocoons) में होता हैं।
जोक मुख्यतः पानी में पाए जाते है। जब कोई पालतू पशु जैसे गाय, भैंस इत्यादि पानी या तालाबों में जाते हैं तो यह उनके शरीर पर चिपक जाते हैं और उन्हें बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। इन्हें उनके शरीर से एक-एक करके निकालना होता है।


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