ल्यूकोसोलेनिया में प्रजनन (Reproduction in Leukosolenia)|hindi


ल्यूकोसोलेनिया में प्रजनन (Reproduction in Leukosolenia)

ल्यूकोसोलेनिया में प्रजनन (Reproduction in Leukosolenia)|hindi

ल्यूकोसोलेनिया में अलैंगिक (asexual) तथा लैंगिक (sexual), दोनों प्रकार का प्रजनन होता है। आज हम इनमें प्रजनन की दोनों विधियों का अध्ययन करेंगे।


अलैंगिक प्रजनन (asexual reproduction)

इनमें अलैंगिक प्रजनन (asexual reproduction) कई विधियों से होता है।जिनका वर्णन इस प्रकार है-
  1. मुकुलन (Budding)
  2. शाखान्वयन एवं पुनरुद्भवन (Branching and Regeneration)
  3. कायिक न्यूनीकरण (Formation of Reduction Bodies)
  4. अन्तःमुकुलक या जेम्यूल्स (Gemmules)

1. मुकुलन या बडिंग (Budding) : सभी स्पंजों में अलैंगिक जनन की यह प्रमुख विधि होती है। स्पंज के शरीर अर्थात stolons से नन्हीं कलिकाएँ (buds) निकलकर वृद्धि करती हैं तथा वृद्धि द्वारा वयस्क स्पंजें बन जाती हैं। कॉलोनियों का निर्माण एवं विस्तार इसी प्रकार होता है।

2. शाखान्वयन एवं पुनरुद्भवन (Branching and Regeneration) : इस विधि में stolons के छोटे-छोटे टुकड़े मातृ कॉलोनी से टूटकर अलग हो जाते हैं और पुनरुद्भवन एवं मुकुलन (Budding) द्वारा नई कॉलोनियाँ बना लेते हैं। स्पंजों का शरीर multicellular होता है जिसके कारण इनमें  पुनरुद्भवन की क्षमता बहुत अधिक होती है। विल्सन (Wilson, 1907) ने एक स्पंज को टुकड़ों में काटकर उन्हें मसल कर महीन रेशम के कपड़े में से छान दिया। जिससे स्पंजकाय की सारी कोशिकाएँ पृथक् हो गईं। फिर उन्होंने देखा कि वातावरण अनुकूल हो ने पर यह कोशिकाएँ छोटे-छोटे समूहों या स्पंजिकाओं (spongelets) में जुड़कर स्पंजकाय बना लेती हैं।

3. कायिक न्यूनीकरण (Formation of Reduction Bodies) : प्रतिकूल वातावरण में अनेक स्पंजों में स्पंजकाय अनेक छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाता है। अमीबोसाइट्स का प्रत्येक टुकड़ा पिनैकोडर्म स्तर से ढका हुआ, एक पिण्ड होता है। वातावरण के ठीक होने पर प्रत्येक टुकड़ा एक पूर्ण स्पंजकाय में विकसित हो जाता है।

4. अन्तःमुकुलक या जेम्यूल्स (Gemmules) : ल्यूकोसोलीनिया में तो नहीं, लेकिन अलवणजलीय और कुछ समुद्री स्पंजों में, प्रतिकूल मौसम बचने के लिए इनके जीवन-वृत्त में नियमित रूप से अन्तःमुकुलन (internal budding) होता है। इसमें पूरे स्पंज के शरीर में आर्किओसाइट कोशिकाओं के छोटे-छोटे गोल पिण्ड बन जाते हैं। 

अमीबोसाइट्स प्रत्येक पिण्ड के चारों ओर एक दृढ़ रक्षात्मक आवरण बनाती हैं। जनक स्पंज तो समाप्त हो जाती है, परन्तु अगले अनुकूल मौसम  तक अन्तःमुकुलक, बीजों की भाँति बच जाते हैं। ये हल्के होने के कारण हवा में इधर-उधर उड़कर स्पंज को फैलाते भी हैं। अनुकूल वातावरण में प्रत्येक अन्तःमुकुलक का आर्किओसाइट पिण्ड बाहर निकलकर एक नई स्पंज में विकसित होता है।


लैंगिक प्रजनन (Sexual Reproduction)

लैंगिक जनन के लिए ल्यूकोसोलीनिया में जनद (gonads) नहीं होते, फिर भी जननकाल में युग्मक कोशिकाएँ (gametes), शुक्राणु एवं अण्डाणु (sperms and ova), बनती हैं। शुक्राणु एवं अण्डाणु दोनों प्रायः एक ही स्पंजकाय में बनते हैं। अतः अधिकांश स्पंजें द्विलैंगिक (hermaphrodite or bisexual) होती हैं।

1. सबसे पहले gametes क्वॉनोसाइट स्तर के ठीक नीचे, सामान्य जनक कोशिकाओं (germinal cells) oogonia एवं spermatogonia के रूप में दिखाई पड़ती हैं।

2. oogonia अपने पास वाली अमीबोसाइट कोशिका को खाकर बड़ी हो जाती है जिसे, प्राथमिक oocytes कहते हैं। इनमें पोषक पदार्थ संचित होते हैं।

3. अब प्राथमिक oocytes, oogenesis द्वारा अर्धसूत्री अण्डाणुओं (meiotic eggs) में बदल जाती हैं।

4. स्परमैटोगोनिया spermatogenesis के द्वारा अर्धसूत्री स्परमैटिड्स (spermatids) में विभाजित हो जाती हैं जो फिर स्परमैटिलिओसिस (spermateleosis) द्वारा सामान्य पूंछ युक्त शुक्राणुओं में बदल जाते हैं।


निषेचन (Fertilization)

Leucosolenia में निषेचन निम्न प्रकार से होता है -

1. इसमें sperms, ova से पहले परिपक्व होते हैं। परिपक्व sperms जल की धारा के साथ बाहर निकलकर उसी या अन्य कॉलोनियों की स्पंजों में पहुँचते हैं।

2. स्पंजगुहा से प्रत्येक शुक्राणु किसी एक कीप कोशिका में चला जाता है।

3. कीप कोशिका में शुक्राणु की पूँछ नष्ट हो जाती है तथा इसका शीर्ष एक capsule में बन्द हो जाता है।

4. रूपान्तरित कीप कोशिका अपना स्थान छोड़कर pseudopodia द्वारा आस-पास स्थित किसी अण्डाणु तक पहुँचती है और उससे चिपककर अपना शुक्राणु इसे दे देती है।

5. फिर यह अण्डाणु से हटकर मीसोहिल में चली जाती है।

6. अब शुक्राणु का केन्द्रक अण्डाणु के केन्द्रक से मिल जाता है जिससे इनका निषेचन हो जाता है।

इस प्रकार, निषेचन, स्पंज शरीर में अंदर तथा cross-fertilization द्वारा होता है।


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भ्रूणीय परिवर्धन (Embryonic Development)

इसके भ्रूण का विकास निम्न प्रकार से होता है-

1. निषेचन के बाद अण्डाणु या जाइगोट (zygote) में, पूर्णभेदी विदलन (holoblastic cleavage) द्वारा विभाजन प्रारम्भ हो जाता है।

2. पहले तीन विभाजन vertical होता हैं। अतः zygote आठ समान कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है।

3. इनमें चौथा विभाजन horizontal होता है, परन्तु भ्रूण की मध्य रेखा पर नहीं होता है।

4. अतः भ्रूण में अब एक ओर आठ छोटे लघुखण्ड या माइक्रोमीयर्स (micromeres) तथा दूसरी ओर आठ बड़े खण्ड (macromeres) हो जाते हैं। यह भ्रूण की मॉरूला (morula) प्रावस्था होती है।

5. बड़े खण्डों वाला भाग जनक स्पंज के क्वॉनोसाइट स्तर की ओर होता है।

6. आगे चलकर इन macromeres से बनने वाले स्पंज का पिनैकोसाइट स्तर तथा छोटे micromeres से क्वॉनोसाइट स्तर बनता है।

ल्यूकोसोलेनिया में प्रजनन (Reproduction in Leukosolenia)|hindi


ब्लैस्टुला प्रावस्था (Blastula Stage)

भ्रूणीय विकास के अंतर्गत इसके बाद Blastula stage आती है। जिसका वर्णन इस प्रकार है-

1. भ्रूण में अब एक केन्द्रीय गुहा बनने लगती है जिसे ब्लास्टोसील (blastocoel) कहते हैं। सभी macromeres (16) इस गुहा के चारों ओर एक स्तर में पंक्ति बना लेते हैं। इसी खोखले भ्रूण को ब्लैस्टुला (blastula) कहते हैं।

2. इसके छोटे micromeres जल्दी-जल्दी विभाजित होकर संख्या में बढ़ते रहते हैं तथा लम्बे होकर एक जगह इकठ्टे हो जाते हैं।

3. इनके अंदर की ओर वाले सिरों पर एक-एक flagellum बन जाते है। बड़े macromeres विभाजित नहीं होते हैं, बल्कि गोलाकार तथा कणिकामय हो जाते हैं।

4. इससे भ्रूण के इस गोले के बीच में एक छेद बन जाता है जो blastocoel में खुलता है। इसे ही भ्रूणमुख (embryonic mouth) कहते हैं, क्योंकि इससे भ्रूण अपने पोषण के लिए पास की अमीबोसाइट्स कोशिकाओं को खाता है। इसीलिए, भ्रूण को अब स्टोमोब्लैस्टुला (stomoblastula) कहते हैं।


ऐम्फीब्लैस्टुला लार्वा (Amphiblastula Larva) 

Blastula stage के बाद ऐम्फीब्लैस्टुला लार्वा की stage आती है। इसका वर्णन इस प्रकार है -

1. स्टोमोब्लैस्टुला में एक परिवर्तन होता है। जिसके अंतर्गत इसके मुख में से होकर स्टोमोब्लैस्टुला का पूरा शरीर अंदर से बाहर की ओर पलट जाता है। 

2. जिसके फलस्वरुप macromeres के बाहरी सिरे अंदर की ओर तथा अंदर के सिरे बाहर की ओर हो जाते हैं। अतः micromeres के flagellum अब भ्रूण की सतह पर होते हैं। इस भ्रूण को ऐम्फीब्लैस्टुला लार्वा (amphiblastula larva) कहते हैं। 

3. इस flagellum की सहायता से जनक, स्पंज के क्वॉनोसाइट स्तर से होता हुआ स्पंजगुहा में आ जाता है और जलधारा के साथ ऑस्कुलम से बाहर निकल जाता है।



गैस्ट्रुला प्रावस्था (Gastrula Stage) 

ऐम्फीब्लैस्टुला लार्वा stage के बाद Gastrula stage आती है। इसका वर्णन इस प्रकार है -
    1. जल में स्वतन्त्र तैरते हुए ऐम्फीब्लैस्टुला में परिवर्तन होने लगता है। इसका कशाभी गोलार्द्ध (flagellar hemisphere) अंदर की ओर ठीक वैसे ही दबने लगता है जैसे कि गुब्बारे का कोई भाग अँगुली से दबाने पर दब जाएगा। इसे invagination कहते हैं। 

    2. इससे नई गुहा बनने लगती है जो वयस्क स्पंज की स्पंजगुहा होती है। 

    3. भ्रूण में इसके छिद्र को blastopore कहते हैं। 

    4. भीतर की ओर दबते दबते सभी flagellar micromeres, macromeres के ठीक नीचे पहुँचकर embryo को two-layered बना देते हैं। 

    5. इससे blastocoel cavity पूरी तरह से समाप्त हो जाती है तथा द्विस्तरीय embryo को गैस्टुला (gastrula) कहते हैं।


    ल्यूकोसोलीनिया से मिलती-जुलती कई स्पंजों, जैसे कि क्लैथराइना (Clathrina), में ब्लैस्टुला एवं गैस्टुला की stages अलग प्रकार की होती हैं। इन स्पंजों में प्रारम्भिक गैस्ट्रुला एक ठोस पैरेनकाइमुला लार्वा (parenchymula larva) के रूप में होता है।ऐम्फीब्लैस्टुला तथा पैरेनकाइमुला लार्वी जल में स्वतन्त्र तैरकर स्पंजों को समुद्र में दूर दूर तक फैला देती हैं।

    1. ल्यूकोसोलीनिया का गैस्ट्रुला शीघ्र ही अपने blastopore वाले सिरे से पत्थर आदि पर चिपक जाता है तथा blastopore बन्द हो जाता है। भ्रूण लम्बा होकर बेलनाकार हो जाता है। इसके दोनों स्तर मीसोहिल के जेली जैसे मैट्रिक्स का स्रावण करते हैं। 

    2. दोनों की कुछ कोशिकाएँ अमीबॉएड से होकर मीसोहिल में चली जाती हैं और विभिन्न कार्यों के लिए अपने आप को परिवर्तित कर लेती हैं। 

    3. इसके बाहरी स्तर की कुछ कोशिकाएँ रन्ध्र कोशिकाएँ अर्थात् पोरोसाइट्स (porocytes) में बदल जाती हैं। इनमें छोटे छोटे छिद्र बन जाते हैं जिन्हें ऑस्टिया (ostia) कहते हैं। 

    4. नली जैसे भ्रूण के ऊपरी स्वतन्त्र सिरे पर ऑस्कुलम बन जाता है। 

    ल्यूकोसोलेनिया में प्रजनन (Reproduction in Leukosolenia)|hindi


    इस प्रकार, भ्रूण एक शिशु स्पंज बन जाता है जिसमें जल प्रवाह आरम्भ हो जाता है। इसी को ऑलिन्थस प्रावस्था (Olynthus stage) कहते हैं। इसका आधार सिरा पतली नलिकाओं अर्थात स्टोलन्स (stolons) के रूप में इधर-उधर फैलने लगता है। स्टोलन्स से कॉलोनी के अन्य सदस्य कलिकाओं (buds) के रूप में निकलने लगते हैं। तथा कुछ ही समय में ल्यूकोसोलीनिया की कॉलोनी विकसित हो जाती है।


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