ल्यूकोसोलेनिया - एक स्पंज (A Sponge – Leucosolenia)
पोरीफरा (Porifera) अर्थात् स्पंजें सबसे निम्न कोटि के बहुकोशिकीय (multicellular) जन्तु होते हैं। इनके शरीर की सब कोशिकाएँ बिल्कुल समान न होकर विभिन्न कार्यों के लिए विभाजित हो जातीं हैं तथा इसके अनुसार रचना में कई प्रकार की हो जाती हैं, परन्तु
- इनमें समान कोशिकाएँ ऊतक (tissues) नहीं बनातीं है।
- इनके भेद बहुत कम होते हैं और ये भी स्थाई नहीं होते हैं।
- इनमें तन्त्रिका तन्त्र के अभाव होता है जिसके कारण इनकी विभिन्न कोशिकाओं के कार्यों में परस्पर समन्वयन (co-ordination) नहीं होता है।
आज हम एक सरलतम् स्पंज-ल्यूकोसोलेनिया (Leucosolenia) के बारे में जानेंगे। इसकी संसार में कई जातियाँ ज्ञात हैं। जिनमें ल्यूकोसोलेनिया कॉम्प्लिकैटा (L. complicata), ल्यूकोसोलेनिया वेरियेबिलिस (L. variabilis) तथा ल्यूकोसोलेनिया बॉट्रिऑइडीज (L.botryoides) काफी पाई जाती हैं।
ल्यूकोसोलेनिया का वर्गीकरण (Classification of Leucosolenia)
जगत (Kingdom) - जन्तु (Animalia)
शाखा (Branch) - पैराजोआ (Parazoa)
संघ (Phylum) - पोरीफरा (Porifera)
वर्ग (Class) - कैल्केरिया (Calcarea)
गण (Order) - होमोसीला (Homocoela)
श्रेणी (Genus) - ल्यूकोसोलेनिया (Leucosolenia)
ऑलिन्थस (Olynthus) : अनेक विकसित स्पंजों में, embryonic development के बाद एक सरल-सी प्रावस्था बनती है। जिसे ऑलिन्थस कहते हैं। इसकी रचना प्राथमिक (primary or elementary) स्पंजों-जैसी ही होती है। इसीलिए, यह नाम वर्तमान स्पंजों के काल्पनिक पूर्वज (hypothetical ancestor) को भी दिया गया। ल्यूकोसोलेनिया की रचना ऑलिन्थस जैसी ही होती है; अन्तर केवल यह होता है कि ऑलिन्थस एक अकेली स्पंज मानी गई है, जबकि ल्यूकोसोलेनिया colonial होती है।
ल्यूकोसोलेनिया का प्राकृतिक वास एवं स्वभाव (Habitat and Habits)
ल्यूकोसोलेनिया की कॉलोनियाँ समुद्रतट के पास छिछले जल में पत्थरों, लट्ठों, पौधों, आदि पर कोमल व बेजान-सी दिखने वाली outgrowths के रूप में चिपकी होती हैं। कॉलोनी का प्रत्येक सदस्य निरन्तर समुद्री जल को अंदर खींचता और बाहर निकालता रहता है। शरीर में प्रवाहित इसी जलधारा से यह पता चलता है कि ये बेजान-सी outgrowths सजीव स्पंजें हैं। यह जलप्रवाह स्पंजों के जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। इन स्पंजों में उद्दीपनों से प्रभावित होकर प्रतिक्रिया करने की भी कुछ क्षमता होती है तथा इनमें जनन भी होता है।ल्यूकोसोलेनिया की संरचना (Morphology)
आकृति, माप एवं रंग (Shape, Size and Colour) : ल्यूकोसोलेनिया की कॉलोनियाँ सफेद या मटमैली-सी होती हैं। प्रत्येक कॉलोनी स्टोलन्स (stolons) नाम की महीन नलिकाओं के एक समतल (horizontal) जाल द्वारा चट्टान आदि पर चिपकी रहती है।
- चिपकने के लिए स्टोलन्स के सिरे चपटे व चिपचिपे होते हैं। स्टोलन्स से 1-2 सेमी लम्बी, नली जैसी तथा फूलदान के आकार की (vase-shaped) कई individual ल्यूकोसोलेनिया ऊपर की तरफ निकली रहती हैं।
सकल संरचना (Gross Anatomy) : ल्यूकोसोलेनिया के सदस्यों के नली जैसे शरीर की radial symmetry होती है। इसकी गुहा को स्पंजगुहा अर्थात् पैरागैस्ट्रिक गुहा (spongocoel or paragastric cavity) कहते हैं। यह cavity स्टोलन्स की गुहा से जुड़ी होती है तथा प्रत्येक सदस्य के ऊपरी सिरे पर एक बड़े छिद्र द्वारा बाहर खुलती है, जिसे ऑस्कुलम (osculum) कहते हैं।
- इसकी गुहा महीन body wall से घिरी रहती है जिसमें अनेक सूक्ष्म छिद्र या रन्ध्र उपस्थित होते हैं जिन्हें ऑस्टिया (ostia) होते हैं। बाहरी जल लगातार ऑस्टिया के द्वारा स्पंजगुहा में आता है और ऑस्कुलम के द्वारा बाहर निकलता रहता है। इस प्रकार, स्पंजों में ऑस्टिया मुख का तथा ऑस्कुलम निकासद्वार का काम करती है।
देहभित्ति की कोशिकीय संरचना (Cellular Structure of Body Wall): इसकी महीन देहभित्ति दो परतों की बनी होती है - एक्टोडर्म एवं एण्डोडर्म। वयस्क स्पंज में इन दोनों कोशिकीय स्तरों को एक दूसरे से बाँधने के लिए इनके बीच एक जेलीनुमा मध्यवर्ती स्तर भी होता है। इस प्रकार, देहभित्ति में कुल तीन स्तर होते हैं—बाहरी पिनैकोडर्म, मध्यवर्ती मीसोहिल तथा भीतरी स्पंजगुहीय या जठर स्तर।
1. चर्म स्तर या पिनैकोडर्म (Dermal Layer or Pinacoderm) : यह विशेष प्रकार की, सिकुड़ने वाली, पिनैकोसाइट कोशिकाओं (pinacocyte cells) का single स्तर होता है। इसका बाहरी भाग चपटा एवं तश्तरीनुमा होता है। बीच के फूले हुए भाग में केन्द्रक होता है। कई पिनैकोसाइट्स के बाहरी भाग आपस में जुड़कर शरीर पर एक सुरक्षात्मक आवरण बनाते हैं।
2. मध्य स्तर अर्थात् मीसोहिल (Mesohyl) : इसमें Dermal तथा जठर स्तरों द्वारा स्रावित एक रंगहीन, चिपचिपे जेली जैसा पदार्थ, मैट्रिक्स (matrix) होता है। मैट्रिक्स में उपस्थित कण्टिकाएँ कंकाल (skeleton) का काम करती हैं। इसकी कोशिकाएँ अमीबा की भाँति असममित आकार की (amoeboid) होती हैं। ये pseudopodia द्वारा पूरी दीवार में भ्रमण करती हैं। इसलिए इन्हें अमीबोसाइट्स (amoebocytes) कहते हैं। ये कई महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं और कार्यों के अनुसार, कई प्रकार की होती हैं -
• आर्किओसाइट्स (Archaeocytes) : इनके पादाभ छोटे व मोटे (लोबोस–lobose) तथा केन्द्रक बड़ा होता व है। इनमें RNA बहुत होता है, क्योंकि सम्भवतः ये भ्रूणीय आरक्षण (embryonic reserve) के रूप में अविशेषित (unspecialised) अमीबोसाइट्स होती हैं जिनके रूपान्तरण से जनन कोशिकाओं सहित अन्य सभी प्रकार की कोशिकाएँ बनती हैं।
• क्रोमोसाइट्स (Chromocytes) : इनमें अनेक रंगा कणिकाएँ होती हैं जो सम्भवतः किसी उत्सर्जी पदार्थ की होती हैं।
• थीसोसाइट्स (Thesocytes) : इनमें संग्रहित पोषक पदार्थ होते हैं।
• स्क्लीरोब्लास्ट्स (Scleroblasts) : ये कंकाल कण्टिकाओं का निर्माण करती हैं। ल्यूकोसोलेनिया के साथ साथ कैल्केरिया वर्ग की सभी स्पंजों में इन्हें कैल्कोब्लास्ट्स (calcoblasts) कहते हैं।
• मायोसाइट्स (Myocytes) : ये अरेखित पेशी तन्तुओं जैसी लम्बी, पतली एवं संकुचनशील तर्कुरूपी कोशिकाएँ होती हैं। ये ऑस्कुलम के चारों ओर एक वर्तुल अवरोधनी (sphincter) बनाती हैं जो इसे आवश्यकतानुसार खोल या बन्द कर सकती हैं।
• ग्रन्थिल कोशिकाएँ (Gland cells) : ये पिनैकोडर्म स्तर से भीतर की ओर, मीसोहिल में लटकी, छोटी कोशिकाएँ होती हैं। सम्भवतः ये श्लेष्म (mucus) का स्रावण करती हैं।
• ट्रोफोसाइट्स (Trophocytes) : ये अन्य विकासशील कोशिकाओं को पोषक पदार्थ देती हैं। अतः इन्हें धाय कोशिकाएँ (nurse cells) भी कहते हैं।
• कोलेनसाइट्स (Collencytes) : ये अपेक्षाकृत बड़ी, शाखान्वित एवं स्थिर कोशिकाएँ होती हैं। ये मीसोहिल के कोलैजन तन्तुकों का स्रावण करती हैं।
• जनन कोशिकाएँ (Sex cells) : ये केवल जनन काल में बनती हैं।
3. स्पंजगुहीय स्तर या क्वॉनोडर्म (Spongocoelic Layer or Choanoderm): पिनैकोडर्म की भाँति, यह भी विशेष प्रकार की, अण्डाकार-सी कीप कोशिकाओं का एक स्तर होता है। प्रत्येक कीप कोशिका आधार सिरे से मीसोहिल परत में धँसी रहती है। इसका केन्द्रक बड़ा होता है। इसके कोशिकाद्रव्य में कई food-vacuole होती हैं। एक लंबा, धागेनुमा flagellum कोशिका के सिरे से स्पंजगुहा में लटका रहता है। जो blepharoplast से जुड़ा होता है।
रन्ध कोशिकाएँ या पोरोसाइट्स (Porocytes) : पिनैकोडर्म में, पिनैकोसाइट्स के बीच-बीच में, बड़ी-बड़ी "रन्ध्र कोशिकाएँ" होती हैं। जो खोखली तथा शंक्वाकार-सी (conical) होती हैं। यह रन्ध्र कोशिकाएँ तीनों स्तरों में फैली रहती हैं। प्रत्येक रन्ध्र कोशिका के आर-पार ऑस्टियम (ostium) छिद्र होता है जिसमें से होकर समुद्री जल स्पंजोसील गुहा में जाता है। प्रत्येक रन्ध्र कोशिका में अपने ऑस्टियम को बन्द कर लेने की क्षमता भी होती है।
स्पंजों के पिनैकोडर्म एवं क्वॉनोडर्म स्तर अन्य मेटाजोआ के एपिथीलियमी स्तरों के समजात नहीं होते, क्योंकि इनमें आधार कला (basement membrane) नहीं होती। दूसरे, स्पंज कोशिकाओं की सभी किस्में अस्थाई और एक-दूसरे में बदल जाने वाली होती हैं। स्पंजों को इसीलिए "कोशिकीय स्तर" के जन्तु माना गया है।
ल्यूकोसोलेनिया में पोषण (Nutrition)
भोजन (Food) : स्पंजें जन्तुसमभोजी (holozoic) होती हैं। जलधारा के साथ आने वाले सूक्ष्म जीव जैसे प्रोटोजोआ, डाएटम्स, जीवाणु, आदि इनका आहार होते हैं।• ल्यूकोसोलेनिया की स्पंजगुहा में भोजन के कण कीप कोशिकाओं के कॉलर से चिपक जाते हैं।
• ये कोशिकाएँ अमीबा की तरह, pseudopodia द्वारा इन कणों का food vacuoles के रूप में अन्तर्ग्रहण कर लेती हैं।
• food vacuoles में कुछ पाचक एन्जाइम भोजन कणों का आंशिक रूप से पाचन करते हैं। फिर मीसोहिल की अमीबोसाइट्स कीप कोशिकाओं से इन vacuoles को लेकर पाचन को पूरा करती हैं। इस प्रकार इनका पाचन भी, अमीबा की तरह, पूरा अन्तःकोशिकीय होता है।
• इनमें दो, अम्लीय एवं क्षारीय, प्रावस्थाएँ होती हैं।
• अमीबोसाइट्स के मीसोहिल में लगातार चलने के कारण पचे हुए पोषक पदार्थ इनमें से रिस-रिसकर शरीर के विभिन्न भागों में जाते रहते हैं।
• समय-समय पर भ्रमणशील अमीबोसाइट्स जल के सम्पर्क में आकर उन food vacuoles को बाहर निकालती रहती हैं जिनमें पाचन पूरा हो चुका होता है।यह प्रक्रिया egestion कहलाती है। आवश्यकता से अधिक पोषक पदार्थों का संचय होने पर यह थीसोसाइट cell में होता है।
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