जीनी अभियान्त्रिकी क्या है?:प्रारंभ, क्रिया-विधि,DNA-Library|hindi


जीनी अभियान्त्रिकी क्या है?: प्रारंभ, क्रिया-विधि, DNA-Library
जीनी अभियान्त्रिकी क्या है?:प्रारंभ, क्रिया-विधि,DNA-Library|hindi

जीनी अभियान्त्रिकी का प्रारम्भ (Beginning of Genetic Engineering)

  • जीनी अभियान्त्रिकी में DNA Recombination के लिए सबसे पहले DNA के अणुओं को खण्डों में तोड़ना आवश्यक है। सन् के 1970 तक वैज्ञानिकों को इसकी विधि का ज्ञान नहीं था। फिर सन् 1970 में नैथन्स (Nathans) एवं स्मिथ (Smith) ने हीमोफाइलस इन्फ्लूएन्जी (Haemophilus influenzae) नामक जाति के जीवाणुओं से एक ऐसे एन्जाइम को अलग किया जो DNA अणु को तोड़ सकता है। इस एन्जाइम को restriction endonuclease एन्जाइम कहा गया। इस खोज के लिए नैथन्स एवं स्मिथ को सन् 1978 का नोबेल पुरस्कार मिला।
  • जीवाणु इस एन्जाइम का संश्लेषण इन्हें संक्रमित करने वाले बैक्टीरियोफेज विषाणुओं (Bacteriophage viruses) के कुप्रभाव से बचने के लिए करते हैं।
  • यह एन्जाइम जीवाणु में घुसते ही वाइरस के DNA अणु को कैंची की तरह काट-काटकर खत्म कर देता है।
  • नैथन्स एवं स्मिथ की खोज के बाद, कुछ ही वर्षों में कई विभिन्न जातियों के जीवाणुओं में अन्य विभिन्न प्रकार के restriction endonuclease एन्जाइमों की उपस्थिति का पता चला।
  • इन एन्जाइमों द्वारा DNA अणुओं को छोटे-छोटे खण्डों में तोड़कर तथा डी०एन०ए० लाइगेज (DNA lygase) एन्जाइमों की सहायता से, एक DNA अणु के एक या अधिक खण्डों को दूसरे DNA अणुओं के खण्डों से जोड़कर पुनर्संयोजित डी०एन०ए० (recombinant DNA) अणुओं का निर्माण करना सम्भव हो गया।
  • इस प्रकार, restriction endonuclease एन्जाइमों की खोज से ही सन् 1970 में जीनी अभियान्त्रिकी की नींव पड़ी।


जीनी अभियान्त्रिकी की क्रिया-विधि (Working of Genetic Engineering)
  • जीनी अभियान्त्रिकी, अर्थात् पुनर्संयोजन डी०एन०ए० प्रौद्योगिकी (Recombinant DNA Technology) की क्रिया विधि काफी जटिल होती है। इसमें जिस जीव के DNA का अध्ययन या उपयोग किया जाता है उसे दाता जीव (donor organism) कहते हैं।
  • इसकी मूल प्रक्रिया में सबसे पहले donor organism के जीनोम (genome) के सारे DNA अणुओं को अलग करके इन्हें ऐसे छोटे-छोटे खण्डों में तोड़ा जाता है जिनमें से प्रत्येक में एक से लेकर कई-कई जीन्स (genes) हो सकते हैं।
  • फिर वांछित जीन का पता लगाकर जिस खण्ड में यह होता है उस खण्ड को किसी अन्य जीव के ऐसे छोटे DNA अणु से जोड़ते हैं जिसमें कि किसी कोशिका में स्वतन्त्र रूप से स्वः द्विगुणन की क्षमता होती है। इस छोटे DNA अणु को वाहक डी०एन०ए० अणु (carrier or vector DNA molecule) कहते हैं।
  • दाता के DNA खण्ड से जुड़कर वाहक का DNA अणु पुनर्संयोजित DNA बन जाता है।
  • सबसे पहला पुनर्संयोजित अणु सन् 1972 में पॉल वर्ग (Paul Berg) ने तैयार किया था। वाहक DNA अणुओं के रूप में मुख्यतः कुछ जातियों के जीवाणुओं में केन्द्रकाभ (nucleoid) के बाहर साइटोसॉल में स्थित प्लास्मिड्स (plasmids) का अथवा कुछ किस्मों के विषाणुओं (viruses) के DNA अणुओं का प्रयोग किया जाता है।
  • अब पुनर्संयोजित DNA अणु को किसी जीवाणु में प्रवेश कर देने से जीवाणु में नई प्रोटीन्स बनने लगती हैं और इस प्रकार जीवाणु का रूपान्तरण (transformation) हो जाता है।
  • इस रूपान्तरित जीवाणु का संवर्धन माध्यम (culture medium) में संवर्धन करके proliferation द्वारा इसकी लाखों की colony बनाई जा सकती है जिसे DNA clone कहते हैं। इस विधि द्वारा वांछित जीन के नियन्त्रण में बनने वाली प्रोटीन का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है अथवा पुनर्संयोजित DNA को दाता जीव की कोशिकाओं में पहुँचाकर इस जीव के जीनोम में हेर-फेर किया जा सकता है।

डी०एन०ए०-संग्रह (DNA-Library) : उपरोक्त विधि से किसी जीव-जाति के DNA अणुओं के सभी खण्डों का पृथक् वाहक DNA अणुओं से पुनर्संयोजन करके इनके पृथक् पुंजक (clones) बनाए जा सकते हैं। ऐसे पुंजकों के संग्रह को DNA-संग्रह कहते हैं। विविध अनुसन्धानीय (research) प्रयोगों में आवश्यकतानुसार इनका उपयोग किया जा सकता है।

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जीनी अभियान्त्रिकी बनाम जैवप्रौद्योगिकी (Genetic Engineering Vs. Biotechnology)

विज्ञान का विशेष ज्ञान न होते हुए भी प्राचीनकाल से ही मानव बेकरी (bakery) में तथा मदिरा, बीयर, पनीर, सिरका, प्राकृतिक औषधियों आदि के उत्पादन में अनजाने ही जीवाणुओं (bacteria), खमीर (yeast) आदि का उपयोग करता रहा है। 
  1. आधुनिक युग में जननिकी (आनुवंशिकी) का ज्ञान इस सम्बन्ध में मानव के लिए एक तरह से वरदान स्वरूप सिद्ध हुआ है। 
  2. इसकी सहायता से, मेन्डलवाद (Mendelism) के सिद्धान्तों पर आधारित संकरण (cross breeding) द्वारा, आधुनिक वैज्ञानिकों 'ने फलों, सब्जियों, अनाजों, दलहनों, कपास आदि की कई उत्तम नस्लें (varieties) उत्पन्न की हैं और इनकी उपज में वृद्धि करने में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की है। यह सब जिसके अन्तर्गत हुआ उसे हरित क्रान्ति (Green Revolution) कहते हैं। 
  3. हरित क्रांति जननिकी की ही सफलता की एक कहानी है। इसी प्रकार, cross breeding द्वारा वैज्ञानिकों ने मनुष्य के लिए लाभदायक पशु-पक्षियों की भी उन्नत नस्लें उत्पन्न की हैं। 
  4. आनुवांशिकी की सहायता से ही आधुनिक वैज्ञानिकों ने मानव के लिए उपयोगी पदार्थ बनाने वाले जीवाणुओं तथा कवकों (fungi) का बड़े पैमाने पर संवर्धन (culture) करके इनसे उपयोगी पदार्थों को प्राप्त करने की विधियों की खोज की है। उदाहरणार्थ, जीवाणुओं से स्ट्रेप्टोमाइसिन (streptomycin) तथा कवकों से पेनिसिलिन (penicillin) जैसी प्रतिजैविक (antibiotic) औषधियाँ प्राप्त की जा रही हैं। 
  5. बेकरी, मादक पदार्थों के उत्पादन, ऊर्जा उत्पादन आदि के अरबों-खरबों रुपयों के उद्योगों में खमीर (yeast) का अब व्यापक उपयोग हो रहा है।

अब, आधुनिक वैज्ञानिकों ने, cross breeding द्वारा ही नहीं, बल्कि जीवों के आनुवंशिक पदार्थ (DNA) में जीनी हेर-फेर (gene manipulation) करके भी सूक्ष्मजीवों (microbes), पादपों तथा जन्तुओं की अधिक उपयोगी नस्लों की उत्पत्ति करने वाली विधियों का आविष्कार करके नए युग की शुरुआत की है जो मानव के लिए अधिक उपयोगी होंगी। 

आनुवंशिक पदार्थ में जीनी हेर-फेर करने की प्रक्रिया को जीनी या आनुवंशिक अभियान्त्रिकी या आण्विक जीनी अभियान्त्रिकी (molecular genetic engineering) कहते हैं। इसमें किसी जीव-जाति की जीन राशि में से दोषपूर्ण या खराब आनुवंशिक लक्षणों के जीन्स को हटाकर, उत्कृष्ट लक्षणों के बाहरी जीन्स (foreign genes) को डाला जाता हैं। इस प्रकार, पुनर्संयोजन डी०एन०ए० प्रौद्योगिकी (Recombination DNA Technology) जीनी अभियान्त्रिकी का मूल आधार होती है।

इस विधि द्वारा उत्पन्न जीव-जातियों की नस्लों को जीन-परिवर्ती (transgenic) कहते हैं। DNA अणुओं में न्यूक्लिओटाइड एकलकों के अनुक्रमों का तथा इन अनुक्रमों में genes का पता लगाकर DNA अणुओं के मानचित्र (DNA-fingerprints) तैयार करने को जीनोमिक्स (Genomics) कहते हैं। इससे जीनी अभियान्त्रिकी का तीव्र विकास हो रहा है।

सम्पूर्ण जीवों (मुख्यतः सूक्ष्मजीवों), या जीवों द्वारा उत्पन्न पदार्थों, या जैव प्रक्रियाओं (biological processes) के औद्योगिक स्तर पर उपयोग को जैवप्रौद्योगिकी (biotechnology) कहते हैं।

 उदाहरण के लिए, मदिरा को बनाने के लिए खमीर कोशिकाओं (yeast cells) का उपयोग जैवप्रौद्योगिकी के ही अन्तर्गत आता है। आनुवंशिक इंजीनियरी से आधुनिक काल में जैवप्रौद्योगिकी का ऐसा विस्तार हुआ है जो कभी सोचा नहीं था। वैज्ञानिकों ने, DNA पुनर्संयोजन द्वारा, जीवाणुओं की ऐसी जीन उत्परिवर्ती नस्लें तैयार की हैं जो मानव शरीर में संश्लेषित होने वाले प्रोटीन हॉरमोनों (hormones – इन्सुलिन, वृद्धि हॉरमोन आदि) तथा अन्य लाभदायक प्रोटीन पदार्थों का औद्योगिक स्तर पर संश्लेषण करते हैं।

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