वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक|hindi


वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक|hindi

पौधों में वाष्पोत्सर्जन की क्रिया पर बहुत से कारक प्रभाव डालते हैं। इन कारकों को हम निम्नलिखित दो समूहों में बाँट सकते हैं-
  1. बाह्य कारक (External factors)
  2. आन्तरिक कारक (Internal factors)
बाह्य कारक (External Factors)
  1. वायुमण्डल की आपेक्षिक आर्द्रता [Relative humidity (R.H.) of atmosphere] - आपेक्षिक आर्द्रता किसी तापमान पर किसी स्थान के वास्तविक वाष्प की मात्रा तथा उसी स्थान में उसी तापक्रम पर उस जलवाष्प की मात्रा जो उसे पूर्णरूप से संतृप्त कर दे, का अनुपात है। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, 40% आपेक्षिक आर्द्रता का अर्थ है कि वायुमण्डल में पूर्ण संतृप्ति (complete saturation) होने के लिये जितनी जलवाष्प चाहिए उसका 2/5 भाग उपस्थित है और 3/5 (भाग) (60%) और अधिक जलवाष्प वायुमण्डल से ली जा सकती है। आपेक्षिक आर्द्रता अधिक तापक्रम पर कम और कम तापक्रम पर अधिक हो जाती है। किसी स्थान की आपेक्षिक आर्द्रता कम होने पर वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है और आपेक्षिक आर्द्रता अधिक होने पर वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
  2. प्रकाश (Light) – वाष्पोत्सर्जन पर सूर्य के प्रकाश का प्रभाव अधिक पड़ता है। प्रकाश के कारण पर्णमध्यक कोशाओं (mesophyll cells) से जल का वाष्पीकरण होता है। इसके अतिरिक्त अधिकांश पौधों में प्रकाश की उपस्थिति में ही रन्ध्र (stomata) खुलते हैं। इस कारण वाष्पोत्सर्जन रात्रि में बहुत धीमी गति से होता है, क्योंकि रन्ध्र (stomata) बन्द रहते हैं। इस अतिरिक्त प्रकाश के प्रभाव से वायुमण्डल का तापक्रम बढ़ता है। रन्ध्र (stomata) कम प्रकाश तीव्रता (50–100 ft candles) पर अथवा चन्द्रमा के प्रकाश में खुल जाते हैं। लाल तरंग दैर्ध्य वाली किरणें (600m) रन्ध्र (stomata) के खुलने में सबसे अधिक प्रभावी है। इसके बाद सबसे अधिक प्रभाव नीली (445m) तरंग दैर्ध्य वाली किरणों का पड़ता है (प्रकाश संश्लेषण की भाँति ही) ।
  3. वायु (Wind) — वायु की गति भी वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करती है। वायु की गति अधिक होने पर वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी तेज हो जाती है। इसका मुख्य कारण यह है कि पत्तियों के ऊपर एकत्र वाष्प वाली वायु शीघ्र हटा दी जाती है जिस कारण पत्ती के बाहर और अन्दर वाष्पदाब में अन्तर अधिक बना रहता है।
  4. तापक्रम (Temperature) - वायुमण्डल के तापक्रम का वाष्पोत्सर्जन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। जब वायुमण्डल का तापक्रम बढ़ जाता है तो उसके साथ ही वाष्पोत्सर्जन दर भी बढ़ जाती है। तापक्रम की अधिकता तथा न्यूनता पर प्रकाश नियन्त्रण रखता है।
  5. प्राप्य जल (Available water) – वाष्पोत्सर्जन पर प्राप्य जल (जो पौधे शोषित कर सकते हैं) का समुचित प्रभाव पड़ता है। यदि भूमि में जल की कमी होगी तो वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी धीमी हो जाती है। जल की अधिक कमी से पत्तियाँ मुरझाने लगती हैं।
  6. कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) — कार्बन डाइऑक्साइड की कम सान्द्रता में रन्ध्र खुलते हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन क्रिया अधिक होती है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की सान्द्रता बढ़ने से रन्ध्र बन्द होने लगते हैं। फलस्वरूप वाष्पोत्सर्जन क्रिया भी मन्द हो जाती है।


आन्तरिक कारक (Internal Factors)

पौधों के अवयव तथा उनकी आन्तरिक रचना का वाष्पोत्सर्जन पर प्रभाव पड़ता है। मुख्य आन्तरिक कारक निम्नलिखित हैं-

1. पत्तियों की रचना (Structure of leaves) - पत्तियों की रचना का वाष्पोत्सर्जन पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। यह सामान्य ज्ञान की बात है कि मरुस्थली पौधों में वाष्पोत्सर्जन कम करने के लिये उनमें बहुत से लक्षण पाये जाते हैं, जैसे कभी-कभी पत्तियाँ लुप्त हो जाती हैं तथा तने में पर्णहरिम (chlorophyll) बन जाता है। नागफनी में पत्तियाँ काँटों में बदल जाती हैं तथा तना चपटा व माँसल हो जाता है। इसे पर्णाभ स्तम्भ (phylloclade) कहते हैं। यह तने तथा पत्तियों दोनों का कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त पत्तियों के ऊपर उपत्वचा (cuticle) अथवा मोम (wax) की परतें बन जाती हैं तथा रन्ध्र गर्तों पर पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त वाष्पोत्सर्जन पर पत्ती की पर्णमध्यक कोशाओं (mesophyll cells) में जल की मात्रा का प्रभाव पड़ता है। ये कोशाएँ आन्तरिक वातावरण को जल प्रदान करती हैं। यदि पर्णमध्यक कोशाओं में जल की कमी हो जाती है तो वाष्पोत्सर्जन कम हो जाता है।

2. जड़ / प्ररोह अनुपात - सामान्यतया यदि जड़ व प्ररोह का अनुपात अधिक हो तो वाष्पोत्सर्जन की दर अधिक होगी।
वाष्पोत्सर्जन अवरोधक पदार्थ (Anti-transpirants) — ऐसे पदार्थ जिन्हें पौधों के ऊपर छिड़कने से वाष्पोत्सर्जन क्रिया कम हो जाये, परन्तु क्रियाओं पर, जैसे प्रकाश-संश्लेषण, इत्यादि पर इनका कुछ हानिकारक प्रभाव न हो, को वाष्पोत्सर्जन अवरोधक पदार्थ (anti-transpirants) कहते हैं। उदाहरण-एबसिसिक अम्ल (Abscisic acid), एस्पीरिन (Aspirin), फिनाइल मर्क्यूरिक ऐसीटेट (phenyl mercuric acetate) आदि। जल प्रतिबल (water stress) की दशा पत्तियों में एबसिसिक अम्ल का निर्माण होता है। यह हॉर्मोन कोशिकाकला का क्षरण (leakage) करता है जिसके कारण द्वार कोशाओं से पोटैशियम आयन्स बाहर निकलने लगते हैं और रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।



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