पौधों में गति (Movement in Plants) : परिचय, प्रकार|hindi


पौधों में गति (Movement in Plants) : परिचय, प्रकार
पौधों में गति (Movement in Plants) : परिचय, प्रकार|hindi

जीवित पौधों की एक विशेषता यह है कि वातावरण के प्रभाव से अथवा कुछ आन्तरिक कारणों से या तो उनका सम्पूर्ण शरीर या शरीर का कोई अंग अपनी स्थिति में परिवर्तन करता रहता है। ऐसा परिवर्तन 'गति' (movement) कहलाता है। ‘गति’ जीवद्रव्य की संवेदनशीलता (sensitivity) अथवा उत्तेजनशीलता (irritability) के कारण होती है। उत्तेजनशीलता या संवेदनशीलता जीवद्रव्य का वह गुण है जिसके कारण उसमें किसी उद्दीपन ( stimulus) को ग्रहण करने एवं उसके प्रति अनुक्रिया (response) करने की शक्ति होती है। उद्दीपन (stimulus) वातावरण में होने वाला कोई भी ऐसा परिवर्तन है, जो पौधे को किसी प्रकार की अनुक्रिया करने पर बाध्य कर देता है। यह विभिन्न प्रकार का होता है, जैसे प्रकाश, ताप, स्पर्श, गुरुत्वाकर्षण, आदि। पौधे की कोई भी प्रतिक्रिया जो किसी उद्दीपन के कारण होती है, अनुक्रिया (response) कहलाती है। पौधे के विभिन्न अंग एक उद्दीपन के कारण विपरीत प्रकार की अनुक्रिया (response) कर सकते हैं, जैसे तना प्रकाश की ओर मुड़ता है और जड़ें प्रकाश की विपरीत दिशा में मुड़ती हैं।

प्रायः पौधे के कुछ विशेष अंग या उनके भाग ही उद्दीपन को ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे अंग या भाग को अवगमकारी अंग या भाग (perceptive organs or perceptiveregion) कहते हैं। एक उद्दीपन को ग्रहण करके या तो वही अंग अथवा उसका कोई भाग अनुक्रिया करता है अथवा उद्दीपन परिवहन करके अन्य अंगों में पहुँच जाता है जहाँ पर अनुक्रिया होती है। ऐसे भाग अथवा अंग को अनुक्रियाकारी अंग या भाग (response organs or responsive region) कहते हैं। उद्दीपन ग्रहण करने के कुछ समय पश्चात् अनुक्रिया प्रकट होती है। ऐसे समय को प्रतिक्रिया काल (reaction time) कहते हैं। अनुक्रिया होने के लिये कुछ अल्पतम काल के लिये उद्दीपन देते रहना आवश्यक होता है। ऐसे समय को प्रस्तुति काल (presentation time) कहते हैं। उद्दीपन की वह न्यूनतम मात्रा जो अनुक्रिया होने के लिये पर्याप्त होती है, प्रभावसीमा तीव्रता (threshold intensity) कहलाती है। कम शक्ति के उद्दीपन से पौधों में अनुक्रिया नहीं होती, परन्तु यदि ऐसे ही कम शक्ति वाले उद्दीपन, क्रम से बार-बार इस प्रकार से दिये जायें कि पहले उद्दीपन का प्रभाव समाप्त होने से पूर्व ही दूसरा कम शक्ति वाला उद्दीपन दे दिया जाये तब प्रत्येक उद्दीपन का प्रभाव परस्पर जुड़ता रहता है और अनुक्रिया हो जाती है। इसे 'उद्दीपन के संकलन का नियम' (law of summation of stimuli) कहते हैं।


गतियों का वर्गीकरण (CLASSIFICATION OF MOVEMENTS)

पौधों में गतियों को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-

(अ) चलन गतियाँ (Movements of locomotion) 
(ब) वक्रण गतियाँ (Movements of curvature)


(अ) चलन गतियाँ (MOVEMENTS OF LOCOMOTION)

इस प्रकार की गति के अन्तर्गत जीवद्रव्य (protoplasm) का कोशा के अन्दर चलन, जीवद्रव्य के नग्न कोशिकांगो का चलन तथा एककोशीय एवं बहुकोशीय पौधों, जैसे क्लैमिडोमोनास (Chlamydomonas), वॉल्वॉक्स (Volvox), आदि या उनके स्वतन्त्र अंगों, जैसे युग्मक (gametes), अलैंगिक चल बीजाणु (zoospores), आदि का चलन आता है। ये गतियाँ दो प्रकार की होती हैं-

(1) स्वतः गतियाँ (Autonomous or spontaneous movements)
(2) प्रेरित गतियाँ (Induced or paratonic movements)


(ब) वक्रण गतियाँ (MOVEMENTS OF CURVATURE)

इन गतियों में पौधे अपने स्थान पर स्थिर रहते हैं, उनके अंगों की स्थिति में परिवर्तन होता है जिससे वक्रता आ जाती है। ये गतियाँ निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं-
  1. यान्त्रिक गतियाँ (Mechanical Movements) 
  2. जैव गतियाँ (Vital Movements)

(1) यान्त्रिक गतियाँ (Mechanical Movements)

ये गतियाँ पौधों के अजीवित (nonliving) अंगों में पायी जाती हैं।

इस प्रकार की गतियाँ जल की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर निर्भर करती हैं जिससे इन्हें आर्द्रता-प्रेरित गति (hygroscopic movements) भी कहते हैं। फर्न बीजाणुधानी का वलय (annulus) कोशिकाओं से जल के वाष्पन के कारण पीछे की ओर मुड़ जाता है। इक्वीसीटम (Equisetum) के बीजाणु के साथ लगे इलेटर (elaters) जल की कमी होने पर फैल जाते हैं।

(2) जैव गतियाँ (Vital Movements)

ये वक्रण गतियाँ पौधों के जीवित अंगों में पायी जाती हैं। गतियाँ दो प्रकार की होती हैं -
  • स्वत: गतियाँ (Autonomous=spontaneous movements) — ये गतियाँ पौधे के शरीर की आन्तरिक योग्यताओं व कारकों के कारण होती हैं।
  • प्रेरित गतियाँ (Paratonic=induced movements)—ये बाह्य कारक अथवा उद्दीपन के कारण होती हैं।


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