खनिजों का वर्गीकरण (Classification of Minerals)|hindi


खनिजों का वर्गीकरण (Classification of Minerals)
खनिजों का वर्गीकरण (Classification of Minerals)|hindi

जीवों में इनके महत्त्व के अनुसार, खनिजों को चार श्रेणियों में बाँट सकते हैं-
  1. अकार्बनिक निक्षेपणों और संरचनात्मक जैविक अणुओं के घटक खनिज
  2. सक्रिय उपापचयी जैविक अणुओं के घटक खनिज
  3. एन्जाइमों के उत्प्रेरक खनिज
  4. विशिष्ट क्रियात्मक प्रक्रियाओं के नियामक खनिज

(1) अकार्बनिक निक्षेपणों और संरचनात्मक जैविक अणुओं के घटक खनिज (Minerals of Inorganic Deposits and Structural Biomolecules)
इन खनिजों को भी चार उपश्रेणियों में निम्न प्रकार बाँट सकते हैं-
  • रक्षात्मक आवरणों के घटक (Components of Protective Coverings) : कई प्रकार के प्रोटोजोआ (protozoans) में उनके शरीर के ऊपर सिलिका (silica) या कैल्सियम (calcium) का बना हुआ खोल होता है जिसे चोल (test) या कवच (shell) कहते हैं। इसी प्रकार संघ नाइडेरिया (Cnidaria) की अनेक जातियों के जीवों के शरीर पर कैल्सियम कार्बोनेट का बाह्यकंकाल बनता है जिसे कोरल (coral) कहते हैं। संघ मोलस्का (Mollusca) की कई जातियों के जीवों में भी शरीर पर कैल्सियमयुक्त कवच (shell) बनता है। इसी प्रकार संघ आर्थ्रोपोडा (Arthropoda) की अनेक जातियों में काइटिनयुक्त (chitinous) बाह्यकंकाल को दृढ़ बनाने के लिए इसमें कैल्सियम कार्बोनेट जमा हो जाता है।
  • ऊतकीय निक्षेपणों के घटक (Components of Tissue Deposits) : पौधों के विकसित ऊतकों में कोशिकाओं को परस्पर जोड़े रखने के लिए एक दृढ़ संयोजन (cementing) पदार्थ होता है जिसे पेक्टिन (pectin) कहते हैं। यह पदार्थ कैल्सियम पेक्टेट (calcium pectate) नामक लवण का बना होता है। इसी प्रकार, कशेरुकी जन्तुओं में हड्डियों और दाँतों की दृढ़ता इनमें कैल्सियम फॉस्फेट एवं कार्बोनेट के सघन निक्षेपण (deposits) के कारण होती है। इसीलिए, हड्डियों के चूरे (bone dust) का खाद के रूप में उपयोग होता है। हड्डियों और दाँतों की संरचना एवं दृढ़ता के लिए मैग्नीशियम आवश्यक होता है।
  • कोशिकीय निक्षेपणों के घटक (Components of Cellular Deposits) : पादप कोशिकाओं की सेलुलोस कोशिका भित्ति में प्रायः कैल्सियम कार्बोनेट और सिलिका के निक्षेपण पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ घासीय पौधों की पत्तियों में कोशिका-भित्ति में दृढ़ता प्रदान करने के लिए उनमें सिलिका के क्रिस्टलों के निक्षेपण होते हैं। इसी प्रकार, कुछ पादपों की pith तथा cortex की कोशिकाओं की भित्ति में कैल्सियम ऑक्जेलेट (calcium oxalate) नामक उत्सर्जी पदार्थ के क्रिस्टलों के निक्षेपण होते हैं। पिस्टिया (Pistia) तथा आईकॉर्निया (Eichhornia) नामक पादपों में इन निक्षेपणों को रैफाइड्स (raphides) कहते हैं। पिस्टिया और पपीता (Papaya) में इसी प्रकार के स्फेइरैफाइड्स (sphaeraphides) पाए जाते हैं।
  • संरचनात्मक जैव अणुओं के घटक (Components of Structural Biomolecules) : फॉस्फोरस (phosphorus), जीवकलाओं (biomembranes) के फॉस्फोलिपिड अणुओं तथा न्यूक्लीक अम्लों (DNA एवं RNA) के न्यूक्लिओटाइड एकलकों (monomers) का महत्त्वपूर्ण घटक होता है। इसी प्रकार, सल्फर (sulphur) दो ऐसे ऐमीनो अम्ल अणुओं का घटक होता है जो अनेक संरचनात्मक प्रोटीन्स के संश्लेषण में भाग लेते हैं।


(2) सक्रिय उपापचयी जैविक अणुओं के घटक खनिज (Minerals as Components of Biologically Active Molecules)
  • लौह तथा पोरफाइरिन रंगा (porphyrin pigment) के संयोजन से हीम (heme) बनता है जो लाल रुधिराणुओं (erythrocytes or RBCs) की  haemoglobin तथा पेशियों की myoglobin का घटक होता है। हीमोग्लोबिन रुधिर में O2 का परिवहन करता है। इसकी या लौह की कमी से anaemia हो जाती है। myoglobin पेशियों में O2 के आरक्षण का काम करती है।
  • मैग्नीशियम तथा पोरफाइरिन pigment के मिलने से पौधों का हरा pigment पदार्थ chlorophyll बनता है।
  • कशेरुकी जन्तुओं में आयोडीन थाइरॉक्सिन (thyroxine) हॉरमोन का घटक होता है। इसका यही प्रमुख महत्त्व होता है इसीलिए यह पौधों के लिए अनिवार्य नहीं होती है। इसकी कमी से हमारी thyroid gland फूलकर बड़ी हो जाती है जिससे हमारी गरदन फूल जाती है। इसी को goitre का रोग कहते हैं। आयोडीनयुक्त नमक खाते रहने से यह रोग नहीं होता है।
  • कोशिकाओं में energy carrier अणुओं— ATP, GTP, CTP एवं UTP— तथा hydrogen को ग्रहण करने वाले अणुओं— NAD, NADP, FAD एवं FMN में फॉस्फोरस आवश्यक घटक होता है। (v) कुछ उच्च अकशेरुकी जन्तुओं में haemocyanin श्वसन रंगा (respiratory pigment) का काम करती है। यह ताँबायुक्त (copper-containing) पदार्थ होता है। 
  • विटामिन B1 (थायमीन—thiamine) तथा H (बायोटिन –biotin) में सल्फर एक आवश्यक घटक होता है।
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(3) एन्जाइमों के उत्प्रेरक खनिज (Minerals as Activators of Enzymes)
अधिकांश एन्जाइम ऐसे होते हैं जिनमें से किसी न किसी धातुई खनिज के आयन संयोजित होते हैं। इन एन्जाइमों को धातुएन्जाइम (metalloenzymes) कहते हैं। इनके खनिज आयन इन्हें क्रियाशील बनाते हैं। अतः इन्हें एन्जाइमों के cofactors कहते हैं। इससे स्पष्ट है कि जीव के शरीर को जीवित दशा में बनाए रखने वाली महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाएँ खनिज आयनों पर ही निर्भर करती हैं। प्रमुख प्रक्रियाएँ तथा इनसे सम्बन्धित आयन निम्नलिखित हैं-
  • Glycolysis तथा Fat metabolism में ATP की ऊर्जा को खर्च करने वाली अभिक्रियाओं तथा कुछ अन्य अभिक्रियाओं के कई एन्जाइमों में मैग्नीशियम के आयन सहकारक होते हैं। 
  • प्रकाश-संश्लेषण तथा कोशिकीय श्वसन प्रक्रियाओं के उत्प्रेरक साइटोक्रोम ऑक्सीडेज (cytochrome oxidase) एन्जाइमों में लौह (iron) और ताँबा (copper) इलेक्ट्रॉन-वाहक सहकारक होते हैं। ताँबा वसा उपापचय और संयोजी ऊतक तन्तुओं के संश्लेषण से सम्बन्धित कुछ अभिक्रियाओं के एन्जाइमों का भी सहकारक होता है। 
  • जल-अपघटन (hydrolysis) द्वारा पाचन अभिक्रियाओं, न्यूक्लीक अम्ल उपापचय तथा कुछ अन्य अभिक्रियाओं के लगभग 300 धातुएन्जाइमों में जिन्क (zinc) सहकारक होता है।
  • यूरिया, ग्लाइकोप्रोटीन्स तथा ओलिगोसैकेराइड्स के संश्लेषण और फॉस्फेट समूह के स्थानान्तरण से सम्बन्धित अभिक्रियाओं के कई एन्जाइमों में सहकारक मैंगनीज (manganese) के आयन होते हैं।
  • नाइट्रोजन यौगिकीकरण (nitrogen fixation) की अभिक्रियाओं के नाइट्रोजीनेज (nitrogenase) एन्जाइमों में मॉलिब्डेनम (molybdenum) सहकारक होता है।
  • कोबाल्ट (cobalt) विटामिन B12 (कोबालैमिन–cobalamin) का घटक होता है। यह विटामिन लाल रुधिराणुओं के निर्माण से सम्बन्धित एन्जाइमों का सहएन्जाइम (coenzyme) होता है। अतः इसकी कमी से anaemia के रोग की सम्भावना होती है।
  • लौह (iron) लाइसोसोम्स के माइएलोपरोक्सिडेज (myeloperoxidase) एन्जाइम का सहकारक होता है। यह एन्जाइम कशेरुकी जन्तुओं में रुधिर के न्यूट्रोफिल्स (neutrophils) द्वारा जीवाणुओं के भक्षण अर्थात् फैगोसाइटोसिस (phagocytosis) तथा विघटन से सम्बन्धित अभिक्रियाओं का उत्प्रेरक होता है।
  • कोशिकाओं के साइटोसॉल में परऑक्साइड्स (peroxides) का विघटन करने वाले एन्जाइम, ग्लूटैथिऑन परऑक्सीडेज (glutathione peroxidase), में सहकारक सेलीनियम (selenium) होता है।

(4) विशिष्ट क्रियात्मक प्रक्रियाओं के नियामक खनिज (Mineral Regulators of Specific Physiological Processes)
  • सोडियम, पोटैशियम तथा क्लोराइड आयन कोशिकाकला की permeability और विद्युत् विभव (electric andpotential) का तथा साइटोसॉल एवं बाह्यकोशिकीय प्रद्रव्य (ECF) की परासरणीयता (osmolality) का नियमन करते हैं। तन्त्रिकीय आवेगों के प्रसारण (nerve impulse conduction) में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। 
  • कैल्सियम आयन blood clotting, पेशी-संकुचन, कोशिकाकला की पारगम्यता तथा तन्त्रिकीय आवेगों के प्रसारण हेतु आवश्यक होते हैं।
  • कैल्सियम तथा मैग्नीशियम के आयन तन्त्रिकाओं एवं पेशियों की उत्तेजनशीलता (excitability) को कम करते हैं। 
  • फॉस्फोरस, क्लोरीन, सोडियम एवं पोटैशियम के आयन अम्ल क्षार सन्तुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं। मोनोबेसिक तथा डाइबेसिक फॉस्फेट्स (HPO4 तथा H2PO4) महत्त्वपूर्ण अम्ल-क्षार उभय प्रतिरोधी (acid base buffers) होते हैं जो हाइड्रोजन आयनों की सान्द्रता का नियन्त्रण करके कोशिकाओं और बाह्यकोशिकीय प्रद्रव्य में pH का नियमन करते हैं।
  • दाँतों के इनैमल बनने और दाँतों तथा हड्डियों की सुरक्षा हेतु फ्लोरीन आवश्यक होती है। 
  • लौह उपापचय तथा रुधिरवाहिनियों और संयोजी ऊतकों की वृद्धि के लिए ताँबा आवश्यक होता है। 
  • आमाशय में पाचन को सुगम बनाने हेतु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCI) की आवश्यकता होती है। HCI का स्रावण आमाशय की दीवार में उपस्थित जठरीय ग्रन्थियाँ करती हैं जिनमें HCI के संश्लेषण के लिए क्लोरीन का उपयोग होता है। 
  • राइबोसोम्स के दो भागों के जोड़ने और अलग करने की प्रक्रियाओं में मैग्नीशियम की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। 
  • पौधों की पत्तियों के रन्ध्रों (stomata) को खोलने-बन्द करने में पोटैशियम की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। 
  • मैग्नीशियम किडनी में पथरी के बनने को रोकता है।
  • वोरॉन (boron) हड्डियों के बनने में सहायता करता है।
  • क्रोमियम (chromium) इन्सुलिन (insulin) हॉरमोन के कार्य को प्रभावित करता है। 

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