नर कॉकरोच के जननांग (Reproductive Organs of Male Cockroach)
नर कॉकरोच के जननांग में एक जोड़ी वृषण (Testes), एक जोड़ी शुक्रवाहिनियाँ (Vasa Deferentia), स्खलन नलिका (Ejaculatory Duct), छत्ररूपी ग्रन्थि (Mushroom-Shaped Gland), फैलिक ग्रन्थि (Phallic Gland) तथा बाह्य जननांग होते हैं।
1. वृषण (Testes) : ये abdominal भाग के दोनों पावों में, तीसरे या चौथे खण्ड से आठवें खण्ड तक फैले, एक-एक प्रमुख नर जननांग होते हैं। प्रत्येक वृषण 3-4 छोटे पिण्डों में बँटी एक मोटी एवं लम्बी-सी दण्ड के समान रचना होती है। प्रत्येक पिण्ड छोटे-छोटे गोल थैलीनुमा पिण्डकों (lobules or vesicles) में बँटा होता है। पूरे वृषण में ये पिण्डक एक महीन, धागेनुमा शुक्रवाहिनी (vas deferens) के इधर-उधर होते हैं और इसी में खुलते हैं।
2. शुक्रवाहिनियाँ (Vasa Deferentia) : प्रत्येक testis की शुक्रवाहिनी शरीर के पिछले सिरे के पास तक फैली रहती है। फिर दोनों शुक्रवाहिनियाँ आगे की ओर मुड़कर 8वें ही खण्ड की मध्यरेखा में परस्पर मिल जाती हैं और स्खलन नलिका में खुल जाती हैं।
3. स्खलन नलिका (Ejaculatory Duct) : यह लम्बी, तुम्बाकार एवं संकुचनशील नलिका होती है। शुक्रवाहिनियों के मिलन स्थान से मध्यरेखा में पीछे बढ़कर यह शरीर के पश्च छोर पर नर जनन छिद्र से बाहर खुल जाती है। यह भ्रूणीय विकास में शरीर की त्वचा के भीतर धँसने से बनती है। इसीलिए, इसकी दीवार पर भीतर महीन उपचर्म (cuticle) का स्तर होता है।
4. छत्ररूपी या यूट्रिकुलर ग्रन्थि (Mushroom-Shaped or Utricular Gland): यह शुक्रवाहिनियों के मिलन स्थान पर स्थित बड़ी-सी सफेद सहायक ग्रन्थि (accessory gland) होती है। इसमें तीन प्रकार की अनेक छोटी-छोटी थैलीनुमा नलिकाएँ होती हैं-
- परिधि की ओर लम्बी ग्रन्थिल नलिकाएँ (long glandular tubules)
- मध्य में आगे की ओर छोटी ग्रन्थिल नलिकाएँ (short glandular tubules) तथा
- मध्य में पीछे की ओर छोटी एवं गोल, फूली हुई-सी सफेद धब्बेदार नलिकाएँ, अर्थात् शुक्राशय (seminal vesicles)। इनमें शुक्राणु एकत्रित रहते हैं।
5. फैलिक या कोंग्लोबेट ग्रन्थि (Phallic or Conglobate Gland) : यह Ejaculatory Duct के अधर तल की ओर लम्बी, चपटी एवं तुम्बाकार थैलीनुमा सहायक ग्रन्थि होती है। इसका अगला चौड़ा भाग छठे उदरखण्ड में कुछ दाहिनी ओर होता है। पिछला सँकरा, नलिका जैसा भाग शरीर के पिछले छोर पर, जनन-छिद्र के पास, एक अलग छिद्र द्वारा बाहर खुलता है।
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6. नर के बाह्य जननांग या गोनै पोफाइसीज (Gonapophyses) : शरीर के पश्च छोर पर, नर जनन छिद्र के निकट स्थित, काइटिन की बनी तीन असममित-सी रचनाओं को नर गोनैपोफाइसीज या फैलोमीयर्स (phallomeres) कहते हैं। ये नर के बाह्य जननांग (external genitalia) होते हैं। एक फैलोमीयर, दाहिनी, एक बाईं तथा एक अधरतल की ओर होता है।
(i) दाहिना फैलोमीयर (Right Phallomere) : इसकी रचना जटिल होती है। इसका अगला भाग काइटिन की दो, आमने-सामने स्थित, झिल्लीनुमा प्लेटों का तथा पिछला भाग एक चपटे एवं कठोर प्लेटनुमा कण्टक पिण्ड (serrate lobe) का बना होता है। कण्टक पिण्ड के पिछले किनारे पर आरी की भाँति के छोटे-छोटे दाँत, छोर पर दो बड़े दाँत तथा आधार भाग पर एक बड़ा काँटा या हुक (hook) होता है।
(ii) बायाँ फैलोमीयर (Left Phallomere) : इसकी रचना भी जटिल होती है। इसके पिछले भाग से चार प्रवर्ध रूपी पिण्ड निकले होते हैं—(क) बाईं ओर लम्बा टिटीलेटर (titillator) जिसके सिरे पर एक हुक होता है, (ख) इसी के पास लम्बा स्यूडोपीनिस (pseudopenis) जिसका सिरा फूला होता है, (ग) इसके पास छोटा, कोमल एवं कण्टिकायुक्त (spiny) ऐस्पेरेट पिण्ड (asperate lobe) तथा (घ) दाईं ओर छोटा ऐक्यूटोलोबस (accutolobus) जिसके सिरे पर भी एक हुक होता है। ऐस्पेरेट पिण्ड पर फैलिक ग्रन्थि (phallic gland) खुलती है।
(iii) अधर फैलोमीयर (Ventral Phallomere) : यह रचना में सरल और दाहिने फैलोमीयर के ठीक पीछे भूरे रंग की चपटी प्लेट-जैसा होता है। नर जनन छिद्र इसी पर खुलता है।
नर जननांगों की कार्यिकी (Physiology)
युवावस्था में ही कॉकरोच के वृषणों में शुक्राणु (sperms) बनने लगते हैं। वयस्क अवस्था तक इनका बनना कम हो जाता है और छोटे वृषण हो जाते हैं। परिपक्व शुक्राणु Vasa Deferentia द्वारा छत्ररूपी ग्रन्थि के seminal vesicles में पहुँचकर एकत्रित होते रहते हैं। प्रत्येक seminal vesicles में ये परस्पर चिपककर एक समूह बना लेते हैं। जिसे शुक्राणुधर या स्परमैटोफोर (spermatophore) कहते हैं। मैथुन के समय नर जनन छिद्र से स्परमैटोफोर ही निकलते हैं। जैसे ही ये Ejaculatory Duct में पहुँचते हैं, छत्ररूपी ग्रन्थि की लम्बी नलिकाओं द्वारा स्रावित दूधिया पदार्थ इनके ऊपर एक आवरण बनाता है। अतः प्रत्येक स्परमैटोफोर थैलीनुमा बन जाता है। इसमें एक ओर छोटा छिद्र होता है।
छत्ररूपी ग्रन्थि की छोटी नलिकाओं द्वारा स्रावित पदार्थ इस छिद्र में होकर स्परमैटोफोर में भीतर भर जाता है। यह शुक्राणुओं का पोषण करता है। फिर Ejaculatory Duct के मध्य भाग में, इसकी दीवार से स्रावित पदार्थ से स्परमैटोफोर पर दूसरा आवरण बन जाता है। अतः शरीर से बाहर निकलने से पहले ही स्परमैटोफोर पर एक द्विस्तरीय आवरण बन जाता है। अन्त में मैथुन समाप्त होने पर फैलिक ग्रन्थि अपने द्वारा स्रावित पदार्थ इस पर उँडेल देती है जिससे इस पर तीसरा आवरण बन जाता है।
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