जेली मछली (Jelly Fish) ऑरीलिया (Aurelia)
जीवन वृत्त में प्रमुख वयस्क प्रावस्था जिसमें मेड्यूसा (medusa) होती है तथा मीसोग्लिया (mesogloea) मोटी होती है। अतः देखने में मेड्यूसा पारदर्शक जेली-जैसा दिखता है। जिस कारण ऐसे नाइडेरिया को “जेली मछलियाँ” कहते हैं। यह मुख्यतः समुद्र में पाई जाती हैं। इन से संबंधित अन्य तथ्यों के बारे में हम नीचे जानेंगे।
वर्गीकरण (Classification)
जगत (Kingdom) - जन्तु(Animalia)
शाखा (Branch) - यूमेटाजोआ (Eumetazoa)
प्रभाग (Division) - रेडिएटा (Radiata)
संघ (Phylum) - नाइडेरिया (Cnidaria)
वर्ग (Class) - स्काइफोजोआ (Scyphozoa)
गण (Order) - सीमिओस्टोमी (Semaeostomae)
श्रेणी (Genus) - ऑरीलिया (Aurelia)
1. मेड्यूसी एकाकी (solitary) होते हैं परन्तु प्रायः बड़े-बड़े झुण्डों (shoals) में समुद्र की सतह पर निश्चेष्ट उतराती (floating) या तैरती (swimming) हुई पाई जाती हैं। भारतीय समुद्र में भी ये काफी मिलती हैं।
2. मेड्यूसा का शरीर तश्तरी या प्यालीनुमा होता है। जिसका व्यास 8 से 30 सेमी तथा रंग हल्का लाल तथा चतुष्टयी अरीय सममिति (tetramerous radial symmetry) वाला होता है।
3. मेड्यूसा का ऊपरी तल कुछ उत्तल (convex) और निचला अवतल (concave) जैसा होता है। ऊपरी तल को उच्चछतरीय (exumbrellar) तथा निचले तल को अध:छतरीय (subumbrellar) कहते हैं। अधःछतरीय तल के मध्य से मैनुब्रियम (manubrium) नामक छोटी-सी चौकोर संरचना लटकी होती है जिसके शिखर पर चौकोर मुख (mouth) होता है। मुखद्वार के चारों कोणों से एक-एक बड़ी व लचीली मुखीय भुजाएँ (oral arms) लटकी होती हैं। इन भुजाओं के किनारे कुछ कटे हुए और रोमयुक्त (ciliated) होते हैं। मेड्यूसा के वृत्ताकार किनारे पर अधःछतरीय भाग एक सँकरी पट्टी के रूप में उच्चछतरीय भाग से आगे निकला रहता है जिसे वीलैरियम (vellarium) कहते हैं।
4. इसके शरीर के वृत्ताकार किनारे पर वीलैरियम से अनेक छोटे-छोटे खोखले स्पर्शक (tentacles) लटके होते हैं। आठ निश्चित त्रिज्याओं (radii) पर वृत्ताकार किनारा कटा होता है और प्रत्येक कटाव में एक सन्तुलन संवेदांग (balancing organ) होता है जिसे टेन्टैकुलोसिस्ट (tentaculocyst) या रोपैलियम (rhopallium) कहते हैं। प्रत्येक रोपैलियम के इधर-उधर एक-एक त्रिकोणाकार-सी लटकन होती है जिसे तटीय प्रवर्ध (marginal lappet) कहते हैं।
5. इनकी देहभित्ति की एपिडर्मिस (epidermis) तथा गैस्ट्रोडर्मिस (gastrodermis) में असंख्य निमैटोसिस्ट कोशिकाएँ होती है। उच्चछतरीय तथा अधःछतरीय देहभित्ति के बीच में चपटी जठरवाहिनी गुहा (gastrovascular cavity) होती है। यह गुहा एक बड़ी, केन्द्रीय जठरगुहा (stomach or gastric cavity) होती है जो वृत्ताकार किनारे पर वीलैरियम में स्थित वृत्ताकार नलिका (circular canal) तथा इन दोनों को परस्पर जोड़ने वाली और निश्चित त्रिज्याओं पर स्थित सोलह अरीय नलिकाओं (radial canals) में बँटी होती है। जठरगुहा का अधिकांश भाग चार बड़े कक्षों (pouches) में बँटा होता है। अरीय नलिकाओं के बीच-बीच के भागों में उच्चछतरीय एवं अधःछतरीय गैस्ट्रोडर्मिस के समेकन से एक ठोस स्तर बना होता है जिसे गैस्ट्रोडर्मी पटलिका (gastrodermal lamella) कहते हैं।
6. सोलह अरीय नलिकाओं में चार प्रतिअरीय (per-radial) नलिकाएँ मुख के कोणों की सीध में और शाखान्वित होती हैं। इनके ठीक बीच-बीच में चार शाखान्वित अन्तरअरीय (inter-radial) नलिकाएँ होती हैं। प्रतिअरीय तथा अन्तरअरीय नलिकाओं के ठीक बीच-बीच में अशाखित अधिअरीय (adradial) नलिकाएँ होती हैं। इस प्रकार, पूर्ण जठरवाहिनी गुहा एक जटिल जल-परिवहन तन्त्र (water-vascular system) बनाती है जिसमें कि एक निश्चित दिशा में समुद्री जल निरन्तर बहता रहता है।
7. तैरने की प्रक्रिया में मेड्यूसा एपिडर्मिस की कोशिकाओं के पेशीय प्रवध के क्रमिक संकुचन से जल को पीछे की ओर धकेलता हुआ आगे बढ़ता है।
8. इसके पूर्ण शरीर पर उपस्थित निमैटोसिस्ट छोटे जन्तुओं को मूर्छित करते हैं। ये शिकार श्लेष्म में चिपक जाते हैं। रोमों की सहायता से मुखीय भुजाएँ मूर्छित शिकारों को मुख में पहुँचाती हैं। जलधारा के साथ शिकार पाचन के लिए जठरगुहा में पहुँच जाते हैं। जठरगुहा की दीवार पर अनेक स्पर्शक अर्थात् जठर तन्तु (gastric filaments) होते हैं। पाचन मुख्यतः जठरगुहा में गैस्ट्रोडर्मिस की ग्रन्थि कोशिकाओं से स्रावित पाचक रसों द्वारा होता है। पचे हुए पदार्थ जल-परिवहन तन्त्र द्वारा पूर्ण शरीर में वितरित होते हैं।
9. इनमें गमन की प्रक्रिया में शरीर के सन्तुलन के नियन्त्रण हेतु व्यापक तन्त्रिका जाल (nerve net) होता है जो अधःछतरीय दीवार में अधिक विकसित होता है और रोपैलिया द्वारा प्रभावित होता है।
10. मेड्यूसी एकलिंगी (unisexual) होते हैं। इनकी जठरगुहा के प्रत्येक जठर कक्ष में एक बड़ा, गहरे लाल या बैंजनी रंग का बड़ा-सा, U (यू) की आकृति का जनद (gonad) होता है जो बाहर से ही स्पष्ट चमकता है।
11. इनमें अण्डाणुओं का निषेचन मादा के जठर कोष्ठों में होता है जहाँ नर के शुक्राणु बाहर से जलधारा के साथ पहुँच हैं। निषेचन से बने युग्मनज या जाइगोट मुखीय भुजाओं की खाँचों में पहुँचते हैं जहाँ प्रत्येक भ्रूणीय विकास द्वारा प्रत्येक जाइगोट एक रोमयुक्त (ciliated) प्लैनुला लार्वा (planula larva) बनता है। प्लैनुला जल में स्वतन्त्र होकर किसी ठोस वस्तु पर चिपक जाता है। धीरे धीरे प्लैनुला लार्वा हाइड्रा के समान एक स्पर्शकयुक्त पॉलिप (polyp) जैसी रचना में विकसित होता है जिसे स्काइफिस्टोमा (scyphistoma) लार्वा कहते हैं।
12. स्काइफिस्टोमा वृद्धि करके बड़ा हो जाता है। फिर पास-पास स्थित कई मुद्राकार खाँचों (ring-like grooves) द्वारा स्काइफिस्टोमा चपटी तस्तरियों जैसे खण्डों में बँट जाता है जिन्हें एफाइरा लार्वी (ephyra larvae) कहते हैं। खाँचों द्वारा विभाजित होते हुए लार्वा को स्ट्रोबिला (strobila) कहते हैं। प्रत्येक एफाइरा के वृत्ताकार किनारे पर आठ कटाव होते हैं। ये लार्वी पृथक् होकर जल में स्वतन्त्र तैरती हैं और प्रत्येक का विकास वयस्क मेड्यूसा में हो जाता है।
FAQs
1. क्या जेलीफिश मरने के बाद भी डांक मारती है?
नहीं, जेलीफिश मरने के बाद डंक नहीं मारती। जेलीफिश के डंक मारने के लिए उनके शरीर में शिकारी या अन्य जीवों से खुद की रक्षा के लिए जहर होता है। यह जहर उनके डंक में स्थित तंतुओं में जमा होता है। जब कोई जीव जेलीफिश के संपर्क में आता है, तो ये तंतु जीव के शरीर में घुस जाते हैं और जहर छोड़ देते हैं। जेलीफिश के मरने के बाद ये तंतु और जहर सक्रिय नहीं होते हैं, इसलिए जेलीफिश के मरने के बाद वह डंक नहीं मार सकती है।
2. क्या जेलीफिश को छूना सुरक्षित है?
नहीं, जेलीफिश को छूना सुरक्षित नहीं है। सभी जेलीफिश जहरीली नहीं होती हैं, लेकिन इसकी कई प्रजातियां जहरीली होती हैं। जहरीली जेलीफिश के डंक से दर्द, खुजली, जलन, लालिमा और सूजन जैसी समस्याएं हो सकती है। कुछ मामलों में, जहरीली जेलीफिश के डंक से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं, जैसे कि सांस लेने में तकलीफ, मतली और उल्टी, और यहां तक कि मौत भी।
3. जेलीफिश क्या खाती है?
जेलीफिश छोटे-छोटे जीवों, जैसे कि प्लवक, मछली के अंडे, और छोटे क्रस्टेशियंस का शिकार करती हैं। वे अपने डंक का उपयोग अपने शिकार को पकड़ने और मारने के लिए करती हैं।
4. दुनिया की सबसे बड़ी जेलीफिश कौन सी है?
दुनिया की सबसे बड़ी जेलीफिश lion's mane jellyfish (Cyanea capillata) है। इस जेलीफिश का व्यास लगभग 8 फीट तक होता है और इसके tentacles 120 फीट तक लंबे हो सकते हैं। यह जेलीफिश आर्कटिक, अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के ठंडे पानी में पाया जाती है।
5. जेलीफिश का डंक कितने समय तक रहता है?
जेलीफिश के डंक का प्रभाव व्यक्ति की संवेदनशीलता, डंक की गंभीरता और चिकित्सा सहायता प्राप्त करने की गति पर निर्भर करता है। कुछ लोगों में, जेलीफिश के डंक से होने वाले लक्षण कुछ घंटों या दिनों तक रहते हैं। लेकिन कुछ गंभीर मामलों में, जहरीली जेलीफिश के डंक से होने वाले लक्षण कई दिनों या यहां तक कि हफ्तों तक रहते हैं।
6. जेलीफिश का कार्य क्या है?
जेलीफिश एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक भूमिका निभाती हैं। वे प्लवक और अन्य छोटे जीवों को खाकर समुद्री आहार श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे शिकारी मछलियों और अन्य जीवों के लिए भी भोजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। साथ ही यह समुद्र के पानी में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के स्तर को संतुलित करने में भी मदद करती हैं।
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