जीनी इंजीनियरिंग का हमारे जीवन में कई उपयोग हैं जिनका वर्णन इस प्रकार हैं-
1. औद्योगिक उपयोग (Industrical Use)
यद्यपि दही, पनीर, सिरका, एल्कोहाल व वाइन (wine) आदि बनाने में मनुष्य बैक्टीरिया का उपयोग बहुत समय से कर रहा है किन्तु आनुवंशिकी में परिवर्तन द्वारा या जेनेटिक इन्जीनियरी द्वारा नये-नये आनुवंशिक लक्षणों वाले बैक्टीरिया बनाकर औद्योगिक स्तर पर विभिन्न प्रकार के रसायनों का संश्लेषण जीनी इंजीनियरिंग की ही देन है।
1. औद्योगिक रसायनों का संश्लेषण (Synthesis of Industrial Chemicals) : पुनयोंगज DNA (recombinant DNA) द्वारा मिथेनॉल, इथेनॉल, ऐसीटोन, ग्लिसरॉल, फ्रक्टोस, सिट्रिक अम्ल, लैक्टिक अम्ल तथा ऐसिटिक अम्ल, आदि औद्योगिक रसायनों का औद्योगिक स्तर पर संश्लेषण किया जा रहा है।
2. जैविक पदार्थों का औद्योगिक संश्लेषण (Synthesis of Substances of Living Beings) : उच्च वर्ग के जीवों के लिये विटामिन्स, हॉर्मोन, इन्टरफेरॉन्स, एंटीबॉयोटिक्स, एंजाइम्स, वैक्सीन, आदि का औद्योगिक स्तर पर उत्पादन जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा रूपान्तरित बैक्टीरिया की सहायता से किया जा सकता है। औद्योगिक उपयोग के एन्जाइम्स का बड़े पैमाने पर उत्पादन भी इसी प्रकार के बैक्टीरिया की सहायता से किया जा सकता है।
2. चिकित्सीय उपयोग (Medicinal Use)
नयी प्रकार की दवाइयों का संश्लेषण, रोगों को पहचानने ( diagnosis) के लिए मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज का संश्लेषण (synthesis of monoclonal anthibodies MAB), आनुवंशिक रोगों की पहचान, आदि में भी जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया जा रहा है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज को हाइब्रिडोमा तकनीकी द्वारा तैयार किया जाता है। Georges Kohler ने 1975 में इस तकनीकी का विकास किया था। Greever (1981) ने जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकी द्वारा सिकल सेल एनीमिया के लिये जिम्मेदार जीन की पहचान की।
जेनेटिक इंजिनियरिंग द्वारा मानव में पाये जाने वाले severe combined immuno-dificiency (SCID) के रोगोपचार में सफलता मिली है।
3. जीनी चिकित्सा (Gene Therapy)
मनुष्यों में लगभग 3,000 रोग सम्भवत: त्रुटिपूर्ण जीन्स के कारण होते हैं। इन्हें आनुवंशिक रोग कहते हैं। इस प्रकार के रोग जैसे हीमोफीलिया (haemophilia), डायबेटीज (diabetes), सिकल सेल एनीमिया (sickle cell anaemia), फिनाइल-कीटोन्यूरिया (phenylketonuria), एल्केप्टोन्यूरिया (alkeptonuria), आदि रोगों के त्रुटिपूर्ण जीन्स को पहचानकार या तो गलत न्येक्लिओटाइड्स का सही न्यूक्लिओटाइड्स द्वारा विस्थापित करके जीन्स को सही बना दिया जाता है अथवा त्रुटिपूर्ण जीन को सही जीन्स से विस्थापित कर दिया जाता है। इसको जीनी चिकित्सा या जीनी सर्जरी (gene therapy or gene surgery) कहते हैं। इसे जीनी प्रतिस्थापन (gene replacement) भी कहते हैं।
4. रोगजनक विषाणुओं एवं जीवाणुओं का रूपान्तरण (Modification of Pathogenic Viruses and Bacteria)
जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा रोगजनक विषाणुओं और जीवाणुओं के आनुवंशिक पदार्थ में परिवर्तन करके उन्हें निष्प्रभावी बनाया जा सकता है।
5. विषाणु प्रतिरोधी जन्तुओं का विकास (Development of Virus-resistant Strains of Animals)
जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा मानव के समान पालतू पशुओं व पक्षियों के आनुवंशिक पदार्थ को सुधारा जा सकता है और विषाणु-प्रतिरोधी किस्मों का विकास किया जा सकात है। मुर्गियों की ऐसी उपजातियों का विकास किया जा चुका है। इससे दुग्ध उद्योग व मुर्गी उद्योग को लाभ हो रहा है।
6. कृषि क्षेत्र में उपयोग (Use of Agriculture)
जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा अन्तरजातीय जीन निवेशन (interspecific gene insertion) सम्भव है जिससे पादपों की ऐसी नई प्रजातियों का विकास किया जात सकता है जिनमें निम्न लक्षण हों :-
1. प्रतिरोधी जातियों का विकास (Evolution of Resistant Varieties of Plants) : इसके अंतर्गत ऐसी नई पादप प्रजातियों का विकास किया गया है तथा किया जा सकता है जिनमें रोगोत्पादक विषाणुओं के संक्रमण से बचे रहने की क्षमता हो अथवा मिट्टी की लवणता, सूखे या कोहरे, आदि को सहने की क्षमता हो अथवा उन पर कीटों के आक्रमण का कोई असर न हो।
2. पादप प्रजातियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाना (Increase in Plant Production) : नये genes का प्रवेश कराकर ऐसी पादप प्रजातियों का विकास किया जा सकता है जिनमें वृद्धि हॉर्मोन्स ऑक्सिन्स (auxins) तथा साइटोकाइनिन्स (cytokinins) के संश्लेषण की दर को बढ़ाया जा सकता है। इससे फसलों की पैदावार बढ़ सकती है। पौधों पर फलों व बीजों का आकार व संख्या बढ़ाई जा सकती है। इस प्रकार टमाटर, प्याज, मटर, गेहूं, चावल, मक्का आदि की उत्कृष्ट प्रजातियों का विकास किया गया है।
3. पादपों में नाइट्रोजन अनुबन्धन क्षमता का विकास (Introduction of Nitrogen Fixation Ability in Plants) : जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा राइजोबियम (Rhizobium) नामक बैक्टीरिया में पाये जाने वाले नाइट्रोजन अनुबन्धनं ( nitrogen fixation) के जीन (nif gene) को फलीरहित (non-leguminous) अनाज वाली फसलों में निवेशित कराया जा सकता है जिससे पर्यावरण की नाइट्रोजन का उपयोग करके उर्वरकों पर निर्भरता को कम किया जा सकता है।
4. वैक्सीनयुक्त पादपों का निमार्ण (Development of plants containing vaciines) : रोग विशेष के उत्तरदायी जीन को आलू में सतही एंटीजन उत्पन्न कराये जाते हैं। इन पुर्नयोजित आलुओं में इस एंटीजन के प्रति वैक्सीन होगी। अतः इन आलुओं को खाने से रोग-विशेष के लिए प्रतिरोध क्षमता का विकास हो जायेगा।
7. प्रदूषण नियंत्रण (Pollution Control)
समुद्र में खनिज तेल का फैलाव, कीटनाशी, पीड़कनाशी, बहिःस्रावी निस्यंद (effluent seepage), कारखानों से निकले रासायनिक बहिःस्राव (chemical effluents) तथा घरों से निकलने वाले वाहित मल या सीवेज (sewage) से उत्पन्न प्रदूषण को रोकने के लिये विशेष बैक्टीरिया का निर्माण किया गया है जिन्हें सुपरबग (superbugs) कहते हैं। इसी प्रकार संग्रह टैंकों में से ग्रीस को साफ करने के लिये नये बैक्टीरियल स्ट्रेन तैयार किये गये हैं।
8. जैविक अपकृष्ट का रूपान्तरण (Transformation of Biological Wastes)
जैविक अपकृष्ट या घरेलू कूड़ा-करकट (biological waste) से ईथायल एल्कोहल का उत्पादन जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा बने विशेष जीवाणुओं के कारण ही सम्भव हुआ है।
9. मानव जीन्स का विश्लषण तथा निर्धारण (Determination and Analysis of Human Genes)
मानव गुणसूत्रों को प्रतिबन्ध एंडोन्यूक्लीयेज एंजाइम्स के द्वारा छोटे-छोटे खंडों में तोड़कर और उनके क्लोनिंग (Cloning) द्वारा उनकी अनेक प्रतिलिपियां तैयार की गई हैं। इनके विश्लेषण द्वारा सभी जीन्स की संरचना का पता लगाया गया है और इस प्रकार मानव गुणसूत्रों पर स्थित जीन्स की कुल संख्या का अनुमान 30,000 के लगभग है। अब मानव जीन्स की जीन लाइब्रेरी (gene library) तैयार की गई है। यह सब जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा तैयार किये गये खोजी DNA अणुओं के तैयार करने से सम्भव हुआ है।
10. DNA फिंगर प्रिंटिंग (DNA Finger Printing)
DNA का एण्डोन्यूक्लीयेज एंजाइम की सहायता से विदलन करके DNA खंडों की मैचिंग द्वारा किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है। इसे फिंगर प्रिंटिंग कहते हैं। प्रत्येक जीव के DNA की संरचना तथा आनुवंशिकता विशिष्ठ और अन्य जीवों से भिन्न होती है। इस तकनीक द्वारा किसी व्यक्ति, उसके माता-पिता, संतान, अपराधी व बलात्कारी मनुष्य की पहचान की जा सकती है। इस तकनीक की खोज एलेक जेफ्रीव ने सन् 1986 में की थी ।
11. ट्रान्सजीनिक जीव (Transgenic Organisms)
जिन जीवों के जीवोम में जीन अभियांत्रिकी द्वारा किसी दूसरी जाति के क्रियात्मक जीन्स का प्रवेश करा दिया जाता है, उन्हें ट्रान्सजीनिक जीव तथा प्रविष्ट की गई जीन्स को ट्रांसजीन्स कहते हैं। ट्रांसजीन्स के प्रवेश द्वारा जीवों में नये आनुवंशिक गुणों का समावेश सम्भव हो जाता है। वैज्ञानिकों ने ट्रांन्सजीनिक जन्तुओं, पादपों व जीवाणुओं की उत्पत्ति में सफलता पाली है। इन्हें जेनेटिकली मॉडीफाइड जीव (GM organnisms) कहते हैं। आजकल आपने GM प्रकार के कपास व बैंगन के बारे में अवश्य सुना होगा। ट्रांसजीनिक तम्बाकू, टमाटर व आलू तो काफी समय से उगाये जा रह हैं। ट्रांसजीनिक टमाटर को काफी समय तक रखा जा सकता है। GM crops विषाणु रोगों के प्रतिरोधी होती हैं ओर इन पौधों की उत्पादन क्षमता बहुत होती है।
1. औद्योगिक उपयोग (Industrical Use)
यद्यपि दही, पनीर, सिरका, एल्कोहाल व वाइन (wine) आदि बनाने में मनुष्य बैक्टीरिया का उपयोग बहुत समय से कर रहा है किन्तु आनुवंशिकी में परिवर्तन द्वारा या जेनेटिक इन्जीनियरी द्वारा नये-नये आनुवंशिक लक्षणों वाले बैक्टीरिया बनाकर औद्योगिक स्तर पर विभिन्न प्रकार के रसायनों का संश्लेषण जीनी इंजीनियरिंग की ही देन है।
1. औद्योगिक रसायनों का संश्लेषण (Synthesis of Industrial Chemicals) : पुनयोंगज DNA (recombinant DNA) द्वारा मिथेनॉल, इथेनॉल, ऐसीटोन, ग्लिसरॉल, फ्रक्टोस, सिट्रिक अम्ल, लैक्टिक अम्ल तथा ऐसिटिक अम्ल, आदि औद्योगिक रसायनों का औद्योगिक स्तर पर संश्लेषण किया जा रहा है।
- Pseudomonas putida से नेफ्थेलीन डिऑक्सीजेनेस (naphthalene deoxygenase) एंजाइम के संश्लेषण के लिए जीन को अलग करके E. coli में निवेशित किया गया ताकि औद्योगिक स्तर पर प्रयोगशाला में indigo dye का संश्लेषण किया जा सके।
- धातुओं के तनु विलयन में से आनुवंशिक अभियंत्रित (genetically engineered) बैक्टीरिया द्वारा कीमती धातुओं को के अलग किया जा सकता है।
- Thiobacillus नामक बैक्टीरिया फोटोग्राफ फिल्म बनाने वाले कारखानों से निकले अपशिष्ट जल (waste water) से सिल्वर को अलग कर सकते हैं।
- पेट्रोल, औद्योगिक विलायक (industrial solvents), आसंजक (adhesives), कीटनाशी (pesticides), रंजक (dyes), विस्फोटक (explosives), विभिन्न प्रकार के प्रसाधन पदार्थों (cosmetics) वे औद्योगिक महत्व के पदार्थों को खनिज तेलों से तैयार किया जाता है। जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा रूपान्तरित बैक्टीरिया द्वारा इन पदार्थों को पादपों के किण्वन से प्राप्त किया जा सकता है।
2. जैविक पदार्थों का औद्योगिक संश्लेषण (Synthesis of Substances of Living Beings) : उच्च वर्ग के जीवों के लिये विटामिन्स, हॉर्मोन, इन्टरफेरॉन्स, एंटीबॉयोटिक्स, एंजाइम्स, वैक्सीन, आदि का औद्योगिक स्तर पर उत्पादन जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा रूपान्तरित बैक्टीरिया की सहायता से किया जा सकता है। औद्योगिक उपयोग के एन्जाइम्स का बड़े पैमाने पर उत्पादन भी इसी प्रकार के बैक्टीरिया की सहायता से किया जा सकता है।
- हॉर्मोन्स (Hormones) : इस विधि द्वारा इन्सुलिन, सोमेटोस्टेटिन, थाइमोसिन तथा मानव-वृद्धि हॉर्मोन (human growth hormone), आदि का उत्पादन किया गया है।
- वैक्सीन (Vaccines) : इस विधि द्वारा हिपेटाइटिस (hepatitis), रेबीज (rabies), हैजा (cholera) तथा मलेरिया (malaria), आदि रोगों से बचने के लिये टीके या वैक्सीन तैयार किये गये हैं।
- इन्टरफेरॉन (Interferons) : वाइरल संक्रमण से रक्षा के लिये शरीर विशेष प्रकार के प्रोटीन उत्पन्न करता है। इन्हें इन्टरफेरॉन्स कहते हैं। इनको E. coli नामक बैक्टीरिया तथा Saccharomyces cerevisae नामक यीस्ट कोशिकाओं से प्राप्त किया जाता है।
- रुधिर कारक (Blood factors) : रुधिर स्कंदन कारक-VIII (blood clotting factor-VIII) तथा रुधिर थक्के को घोलने वाला पदार्थ प्लास्मिनोजन (plasminogen) का जेनेटिक इंजीनियरिंग -बैक्टीरियल कोशिकाओं से उत्पादन किया जाने लगा है।
- एंजाइम्स (Enzymes) : अपमार्जक (detergents) तथा प्रोटीन पाचक एंजाइम्स : प्रोटियेसेस (proteases), सेलुलोस जैसे जटिल कार्बोहाइड्रेट्स के विखंडन के लिये ऐमाइलेसेस (amylases) तथा पनीर उद्योग में उपयोग में आने वाले एंजाइम रेनिन (renin), आदि का उत्पादन पुनयोजित DNA वाले बैक्टीरिया की मदद से किया जाता है।
2. चिकित्सीय उपयोग (Medicinal Use)
नयी प्रकार की दवाइयों का संश्लेषण, रोगों को पहचानने ( diagnosis) के लिए मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज का संश्लेषण (synthesis of monoclonal anthibodies MAB), आनुवंशिक रोगों की पहचान, आदि में भी जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया जा रहा है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज को हाइब्रिडोमा तकनीकी द्वारा तैयार किया जाता है। Georges Kohler ने 1975 में इस तकनीकी का विकास किया था। Greever (1981) ने जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकी द्वारा सिकल सेल एनीमिया के लिये जिम्मेदार जीन की पहचान की।
जेनेटिक इंजिनियरिंग द्वारा मानव में पाये जाने वाले severe combined immuno-dificiency (SCID) के रोगोपचार में सफलता मिली है।
3. जीनी चिकित्सा (Gene Therapy)
मनुष्यों में लगभग 3,000 रोग सम्भवत: त्रुटिपूर्ण जीन्स के कारण होते हैं। इन्हें आनुवंशिक रोग कहते हैं। इस प्रकार के रोग जैसे हीमोफीलिया (haemophilia), डायबेटीज (diabetes), सिकल सेल एनीमिया (sickle cell anaemia), फिनाइल-कीटोन्यूरिया (phenylketonuria), एल्केप्टोन्यूरिया (alkeptonuria), आदि रोगों के त्रुटिपूर्ण जीन्स को पहचानकार या तो गलत न्येक्लिओटाइड्स का सही न्यूक्लिओटाइड्स द्वारा विस्थापित करके जीन्स को सही बना दिया जाता है अथवा त्रुटिपूर्ण जीन को सही जीन्स से विस्थापित कर दिया जाता है। इसको जीनी चिकित्सा या जीनी सर्जरी (gene therapy or gene surgery) कहते हैं। इसे जीनी प्रतिस्थापन (gene replacement) भी कहते हैं।
4. रोगजनक विषाणुओं एवं जीवाणुओं का रूपान्तरण (Modification of Pathogenic Viruses and Bacteria)
जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा रोगजनक विषाणुओं और जीवाणुओं के आनुवंशिक पदार्थ में परिवर्तन करके उन्हें निष्प्रभावी बनाया जा सकता है।
5. विषाणु प्रतिरोधी जन्तुओं का विकास (Development of Virus-resistant Strains of Animals)
जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा मानव के समान पालतू पशुओं व पक्षियों के आनुवंशिक पदार्थ को सुधारा जा सकता है और विषाणु-प्रतिरोधी किस्मों का विकास किया जा सकात है। मुर्गियों की ऐसी उपजातियों का विकास किया जा चुका है। इससे दुग्ध उद्योग व मुर्गी उद्योग को लाभ हो रहा है।
6. कृषि क्षेत्र में उपयोग (Use of Agriculture)
जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा अन्तरजातीय जीन निवेशन (interspecific gene insertion) सम्भव है जिससे पादपों की ऐसी नई प्रजातियों का विकास किया जात सकता है जिनमें निम्न लक्षण हों :-
1. प्रतिरोधी जातियों का विकास (Evolution of Resistant Varieties of Plants) : इसके अंतर्गत ऐसी नई पादप प्रजातियों का विकास किया गया है तथा किया जा सकता है जिनमें रोगोत्पादक विषाणुओं के संक्रमण से बचे रहने की क्षमता हो अथवा मिट्टी की लवणता, सूखे या कोहरे, आदि को सहने की क्षमता हो अथवा उन पर कीटों के आक्रमण का कोई असर न हो।
- स्ट्रोबेरी में पाले के प्रभाव को रोकने वाले जीन को प्रविष्ट कराने के लिये स्यूडोमोनासफ्लोरेसेन्स (Pseudomonas fluorescence) का उपयोग किया जाता है।
- पौधों में रोग अवरोधी जीन्स अथवा अन्य वांछित जीन्स पहुँचाने के लिए T, ट्यूमर इन्ड्यूसिंग प्लाज्मिड (tumor inducing plasmid) का उपयोग किया जाता है। Bt cotton का विकास इसी से किया गया है।
- कपास को हानिकारक काटों (insect pests) से बचाव की क्षमता के लिए बेसिलस यूरिजेनेनेसिस (Bacillus thuriengenesis) के कीटनाशी जीन का उपयोग किया गया है।
2. पादप प्रजातियों की उत्पादन क्षमता बढ़ाना (Increase in Plant Production) : नये genes का प्रवेश कराकर ऐसी पादप प्रजातियों का विकास किया जा सकता है जिनमें वृद्धि हॉर्मोन्स ऑक्सिन्स (auxins) तथा साइटोकाइनिन्स (cytokinins) के संश्लेषण की दर को बढ़ाया जा सकता है। इससे फसलों की पैदावार बढ़ सकती है। पौधों पर फलों व बीजों का आकार व संख्या बढ़ाई जा सकती है। इस प्रकार टमाटर, प्याज, मटर, गेहूं, चावल, मक्का आदि की उत्कृष्ट प्रजातियों का विकास किया गया है।
3. पादपों में नाइट्रोजन अनुबन्धन क्षमता का विकास (Introduction of Nitrogen Fixation Ability in Plants) : जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा राइजोबियम (Rhizobium) नामक बैक्टीरिया में पाये जाने वाले नाइट्रोजन अनुबन्धनं ( nitrogen fixation) के जीन (nif gene) को फलीरहित (non-leguminous) अनाज वाली फसलों में निवेशित कराया जा सकता है जिससे पर्यावरण की नाइट्रोजन का उपयोग करके उर्वरकों पर निर्भरता को कम किया जा सकता है।
4. वैक्सीनयुक्त पादपों का निमार्ण (Development of plants containing vaciines) : रोग विशेष के उत्तरदायी जीन को आलू में सतही एंटीजन उत्पन्न कराये जाते हैं। इन पुर्नयोजित आलुओं में इस एंटीजन के प्रति वैक्सीन होगी। अतः इन आलुओं को खाने से रोग-विशेष के लिए प्रतिरोध क्षमता का विकास हो जायेगा।
Also Read-
- लिंग-सहलग्न गुण क्या है?: मानव में लिंग-सहलग्न गुण (Sex-Linked Characters)|hindi
- लिंग-सहलग्न वंशागति (Sex-linked Inheritance) क्या है?|hindi
- आनुवंशिक विकार तथा उनकी वंशागति(genetic disorders)| hindi
- सुजननिकी (Eugenics) किसे कहते हैं?: परिभाषा, इतिहास, उपयोग|hindi
- निषेधात्मक तथा सकारात्मक सुजननिकी (Negative,Positive Eugenics)|hindi
- आनुवंशिक विभिन्नताएँ (Genetic Variations), डी०एन०ए० का पुनर्संयोजन|hindi
7. प्रदूषण नियंत्रण (Pollution Control)
समुद्र में खनिज तेल का फैलाव, कीटनाशी, पीड़कनाशी, बहिःस्रावी निस्यंद (effluent seepage), कारखानों से निकले रासायनिक बहिःस्राव (chemical effluents) तथा घरों से निकलने वाले वाहित मल या सीवेज (sewage) से उत्पन्न प्रदूषण को रोकने के लिये विशेष बैक्टीरिया का निर्माण किया गया है जिन्हें सुपरबग (superbugs) कहते हैं। इसी प्रकार संग्रह टैंकों में से ग्रीस को साफ करने के लिये नये बैक्टीरियल स्ट्रेन तैयार किये गये हैं।
8. जैविक अपकृष्ट का रूपान्तरण (Transformation of Biological Wastes)
जैविक अपकृष्ट या घरेलू कूड़ा-करकट (biological waste) से ईथायल एल्कोहल का उत्पादन जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा बने विशेष जीवाणुओं के कारण ही सम्भव हुआ है।
9. मानव जीन्स का विश्लषण तथा निर्धारण (Determination and Analysis of Human Genes)
मानव गुणसूत्रों को प्रतिबन्ध एंडोन्यूक्लीयेज एंजाइम्स के द्वारा छोटे-छोटे खंडों में तोड़कर और उनके क्लोनिंग (Cloning) द्वारा उनकी अनेक प्रतिलिपियां तैयार की गई हैं। इनके विश्लेषण द्वारा सभी जीन्स की संरचना का पता लगाया गया है और इस प्रकार मानव गुणसूत्रों पर स्थित जीन्स की कुल संख्या का अनुमान 30,000 के लगभग है। अब मानव जीन्स की जीन लाइब्रेरी (gene library) तैयार की गई है। यह सब जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा तैयार किये गये खोजी DNA अणुओं के तैयार करने से सम्भव हुआ है।
10. DNA फिंगर प्रिंटिंग (DNA Finger Printing)
DNA का एण्डोन्यूक्लीयेज एंजाइम की सहायता से विदलन करके DNA खंडों की मैचिंग द्वारा किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है। इसे फिंगर प्रिंटिंग कहते हैं। प्रत्येक जीव के DNA की संरचना तथा आनुवंशिकता विशिष्ठ और अन्य जीवों से भिन्न होती है। इस तकनीक द्वारा किसी व्यक्ति, उसके माता-पिता, संतान, अपराधी व बलात्कारी मनुष्य की पहचान की जा सकती है। इस तकनीक की खोज एलेक जेफ्रीव ने सन् 1986 में की थी ।
11. ट्रान्सजीनिक जीव (Transgenic Organisms)
जिन जीवों के जीवोम में जीन अभियांत्रिकी द्वारा किसी दूसरी जाति के क्रियात्मक जीन्स का प्रवेश करा दिया जाता है, उन्हें ट्रान्सजीनिक जीव तथा प्रविष्ट की गई जीन्स को ट्रांसजीन्स कहते हैं। ट्रांसजीन्स के प्रवेश द्वारा जीवों में नये आनुवंशिक गुणों का समावेश सम्भव हो जाता है। वैज्ञानिकों ने ट्रांन्सजीनिक जन्तुओं, पादपों व जीवाणुओं की उत्पत्ति में सफलता पाली है। इन्हें जेनेटिकली मॉडीफाइड जीव (GM organnisms) कहते हैं। आजकल आपने GM प्रकार के कपास व बैंगन के बारे में अवश्य सुना होगा। ट्रांसजीनिक तम्बाकू, टमाटर व आलू तो काफी समय से उगाये जा रह हैं। ट्रांसजीनिक टमाटर को काफी समय तक रखा जा सकता है। GM crops विषाणु रोगों के प्रतिरोधी होती हैं ओर इन पौधों की उत्पादन क्षमता बहुत होती है।
No comments:
Post a Comment