बिच्छू (Scorpion):वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


बिच्छू (Scorpion)

बिच्छू (Scorpion):वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


बिच्छू मुख्यतः हर जगह ही पाए जाते हैं जैसे जंगलों में, पत्थरों के नीचे या पुराने घरों में इत्यादि। किंतु हर जगह पाए जाने वाले बिच्छू अलग-अलग प्रजाति के होते हैं इनमें से कुछ कम खतरनाक होते हैं लेकिन कुछ बहुत अधिक खतरनाक होते हैं जिनके डंक मारने पर किसी व्यक्ति या वह जानवर की मृत्यु तक हो सकती है। अफ्रीका के जंगलों में पाए जाने वाले बिच्छू बहुत ही अधिक खतरनाक होते हैं। इन के डंक में इतना जहर होता है की यह आसानी से किसी बड़े हाथी को मारने के लिए काफी होगा। बिच्छू की विस्तृत संरचना का अध्ययन हम नीचे करेंगे।


वर्गीकरण (Classification)

जगत (Kingdom)               -       जन्तु (Animalia)
शाखा (Branch)                  -       यूमेटाजोआ (Eumetazoa)
प्रभाग (Division)               -       बाइलैटरिया (Bilateria)
उपप्रभाग (Subdivision)     -       प्रोटोस्टोमिया  (Protostomia)
खण्ड (Section)                  -       यूसीलोमैटा (Eucoelomata)
संघ (Phylum)                    -       आर्थ्रोपोडा  (Arthropoda)
उपसंघ (Subphylum)         -       केलिसिरैटा (Chelicerata)
वर्ग (Class)                         -       ऐरैक्नाइडा (Arachnida)
गण (Order)                       -        स्कोर्पिओनाइडा (Scorpionida)

बिच्छू (Scorpion):वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


लक्षण (Characteristic)

1. बड़ा, काला (गहरा भूरा) बिच्छू जो जंगल में पत्थरों, लट्ठों या पुराने पेड़ों की ढीली छाल के नीचे रहता है। कच्चे घरों में प्रायः निकलने वाला पीला-सा छोटा बिच्छू भिन्न श्रेणी का होता है। सभी प्रकार के बिच्छू स्थलीय एवं रात्रिचर (nocturnal) होते हैं। ये कीड़ों, मकड़ियों, आदि को खाते हैं।

2. इनका शरीर 5-12 सेमी लम्बा चपटा-सा, दो प्रमुख भागों में बँटा हुआ होता है जो आगे छोटा-सा खण्डहीन अग्रकाय या प्रोसोमा (prosoma) तथा पीछे बड़ा अनुकाय या ओपिस्थोसोमा (opisthosoma) जैसा होता है।

3. अग्रकाय या प्रोसोमा सिर एवं वक्ष भागों के समेकन से बना शिरोवक्ष (cephalothorax) होता है। ऊपर से यह पृष्ठवर्म (carapace) द्वारा ढका जिस पर दो बड़े मध्यवर्ती तथा 2 से 5 जोड़ी छोटे पार्श्व नेत्र होते हैं। अधरतल की ओर इस पर 6 जोड़ी उपांग होते हैं जिनमें से एक जोड़ी सँडसीयुक्त केलिसेरी (chelicerae), एक जोड़ी सँडसीयुक्त पेडीपैल्प्स (pedipalps) तथा चार जोड़ी चलनपाद होते हैं।

4. अनुकाय या ओपिस्थोसोमा खण्डयुक्त परन्तु उपांगविहीन, उदर भाग होता है। यह अगले, चौड़े मध्यकाय या मीसोसोमा (mesosoma) तथा पिछले, सँकरे पश्चकाय या मेटासोमा (metasoma) में विभेदित रहता है। मध्यकाय या मीसोसोमा में 7 चौड़े-से तथा पश्चकाय या मेटासोमा में 5 लम्बे-से खण्ड होते हैं।

5. मीसोसोमा के प्रथम खण्ड के अधरतल (स्टरनाइट) पर छोटे-से द्विपालित ऑपर्कुलम (operculum) होते हैं जिन पर जनन छिद्र स्थित होता है । दूसरे खण्ड की स्टरनाइट पर एक जोड़ी कंघीनुमा पेक्टिन्स (pectines) नामक संवेदांग होते हैं। तीसरे से छठे खण्डों की स्टरनाइट्स पर एक-एक जोड़ी पार्श्व दृक् बिन्दु (stigma) नामक छिद्र जो बुक क्लोमों (book-lungs) के वेश्मों में खुलते हैं, होते हैं।

6. पश्चकाय या मेटासोमा में 5 लम्बे, बेलनाकार खण्ड अन्तिम खण्ड से निकले पुच्छदण्ड (telson) में एक जोड़ी विष ग्रन्थियाँ होती हैं। पुच्छदण्ड का पश्चभाग डंकनुमा (sting) होता है और इसके छोर पर विष ग्रन्थियाँ खुलती हैं। डंक द्वारा विष को शिकार के शरीर में छोड़कर मूर्छित किया जाता है। मनुष्य पर भी इनके विष का काफी प्रभाव होता है । 

7. इनकी देहगुहा हीमोसाएनिनयुक्त हल्के नीले रुधिर से भरी हीमोसील होती है।

8. इनके शरीर के अग्रछोर पर स्थित इनके मुख से पुच्छदण्ड के आधार में अधरतल पर स्थित गुदा तक फैली सीधी आहारनाल होती है। 

9. इनमें प्रमुख उत्सर्जी अंग दो जोड़ी मैल्पीघी नलिकाएँ (Malpighian tubules) होती हैं जो आँत में खुलती हैं। 

10. यह एकलिंगी जीव होते हैं। जनद मध्यकाय या मीसोसोमा में होता है जो नर में दो तथा  मादा में केवल एक होता है। मैथुन से पहले प्रणयनिवेदन नाच (courtship dance) होता है तथा मैथुन के बाद मादा प्रायः नर को मारकर खा जाती है। निषेचन एवं भ्रूणीय विकास मादा के शरीर में होता है। मादा एक बार में 2-3 दर्जन शिशुओं को जन्म देती है।

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