केकड़ा (Crab) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


केकड़ा (Crab)


केकड़ा (Crab) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi


केकड़े अनेक प्रकार के और कई श्रेणियों (genera) में वर्गीकृत होते हैं। कैंसर (Cancer), साइला (Scylla), ऊका (Uca), पोयूनस (Portunus), आदि व्यापक श्रेणियाँ हैं। इसकी अधिकांश जातियाँ समुद्री, कुछ नदियों, झीलों, गीली मिट्टी व दलदलों में पाई जाती है।

वर्गीकरण (Classification)

जगत (Kingdom)              -           जन्तु (Animalia)
शाखा (Branch)                 -           यूमेटाजोआ (Eumetazoa)
प्रभाग (Division)               -           बाइलैटरिया (Bilateria)
उपप्रभाग (Subdivision)    -            प्रोटोस्टोमिया  (Protostomia)
खण्ड (Section)                 -           यूसीलोमैटा (Eucoelomata)
संघ (Phylum)                   -           आर्थ्रोपोडा  (Arthropoda)
उपसंघ (Subphylum)        -           मैन्डीबुलैटा (Mandibulata)
वर्ग (Class)                       -            क्रस्टेशिया (Crustacea)
उपवर्ग (Subclass)             -           मैलैकोस्ट्रैका (Malacostraca)
गण (Order)                      -            डीकैपोडा (Decapoda)

केकड़ा (Crab) : वर्गीकरण, लक्षण, चित्र का वर्णन|hindi

लक्षण (Characteristic)

केकड़े के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-

1. इसका शरीर चौड़ा व चपटा-सा होता है। इसके पृष्ठतल की ओर खण्डों में या सिर, वक्ष एवं उदर भागों में विभेदित दिखाई नहीं देता, क्योंकि इसका सिर और वक्ष वाला भाग मिलकर बड़ा व चौड़ा-सा शिरोवक्ष (cephalothorax) बना लेते हैं तथा कम विकसित, छोटा-सा उदरभाग होता है जो पीछे की ओर होने के बजाय, अधरतल की ओर मुड़कर शिरोवक्ष से चिपका रहता है। 

2. शिरोवक्ष की सारी टरगाइट्स समेकित होकर एक चौड़ा व कठोर पृष्ठवर्म (carapace) बनाती हैं जो पूरे शरीर को ऊपर से ढके रहता है। इसीलिए, पृष्ठतल पर विखण्डीकरण एवं क्षेत्रीयकरण स्पष्ट नहीं होता है, परन्तु अधरतल की ओर स्पष्ट होता है।

3. इसके शरीर में खण्डों की मूल संख्या 6 सिर में, 8 वक्ष में तथा 6 उदर में होती है।

4. पृष्ठवर्म के आगे की ओर एक-एक जोड़ी छोटे ऐन्टिनी (antennae), ऐन्टिन्यूल्स (antennules) तथा वृत (stalks) पर स्थित संयुक्त नेत्र होते हैं। सिर के अन्य उपांग तथा वक्ष के प्रथम तीन जोड़ी उपांग मुख-उपांगों का काम करते हैं

5. इसके वक्ष के अन्तिम 5 जोड़ी उपांग लम्बे चलनपाद (walking legs) होते हैं। पहली जोड़ी के पाद शिकार को पकड़ने तथा शत्रु से लड़ने हेतु बड़े, मजबूत व सँडसीयुक्त (chelate) होते हैं। अपने चौड़े शिरोवक्ष तथा लम्बे पादों द्वारा केकड़े पक्षवर्ती गमन (sideways locomotion) कर सकते हैं।

6. इनके शरीर के उदर उपांग अविकसित रहते हैं। नर में केवल 2 जोड़ी उदर उपांग मैथुन अंगों के रूप में तथा मादा में 4 जोड़ी उदर उपांग अण्डों को साधने के लिए रूपान्तरित होते हैं।
इनमें श्वसन जल-क्लोमों (gills) द्वारा होता है।

7. यह जीव एकलिंगी होते हैं। इनके जीवन-वृत्त में जूइया (Zoea) नामक शिशु प्रावस्था होती है। इसके कायान्तरण (metamor-duniy phosis) से वयस्क बनता है।

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