कॉकरोच में जनन की प्रक्रिया का वर्णन इस प्रकार है-
मैथुन : मार्च से सितम्बर तक कॉकरोच का सक्रिय जननकाल होता है। मैथुन इन्हीं महीनों में रात में होता है। मादा कॉकरोच से एक स्रावित होने वाले पीले से sex attractant erogenous की तेज गन्ध से नर इसकी ओर आकर्षित होता है। ऐसे पदार्थ को बाह्य हॉरमोन या फीरोमोन (ectohormone or pheromone) कहते हैं। नर इसकी गन्ध को ऐन्टिनी की गन्ध संवेदिकाओं द्वारा ग्रहण करता है। गन्ध से उत्तेजित नर कॉकरोच पंख फड़फड़ाते हुए मादा की ओर बढ़ता है।
सम्पर्क में आते ही यह पहले एक ऐन्टिनी को घुमा-फिराकर निश्चित करता है कि यह सदस्य मादा ही है या नहीं। यदि यह मादा होती है तो दोनों आमने-सामने आकर एक-दूसरे की ऐन्टिनी को सहलाते हैं। यह एक प्रणय निवेदन (courtship) प्रतिक्रिया होती है। फिर नर कॉकरोच मादा के आगे या पीछे से धीरे-धीरे इस प्रकार इसके नीचे खिसक जाता है कि दोनों के पश्च सिरे ऊपर-नीचे आ जाएँ। अब नर अपने टिटिलेटर (titillator) द्वारा मादा की गाइनोवैल्यूलर प्लेटों को परस्पर हटाकर जनन वेश्म को खोल देता है और अपने बायें फैलोमियर को वेश्म में डाल देता है। लगभग एक घण्टे के मैथुन के बाद, नर व मादा हट जाते हैं। मैथुन के बाद, स्परमैटोफोर मादा के शुक्रधान अंकुर से लगभग बीस घण्टों तक चिपका रहता है। इसी बीच इसके छिद्र से शुक्राणु निकलकर मादा के दोनों शुक्रधानों में भर जाते हैं। फिर स्परमैटोफोर के रिक्त खोल को मादा अपने जनन वेश्म से बाहर निकाल देती है।
निषेचन (Fertilization) तथा अण्डप्रावर का निर्माण (Formation of Ootheca): दोनों अण्डाशयों से बारी-बारी, एक-एक करके, 16 अण्डाणु (ova)—प्रत्येक अण्डिका (ovariole) से एक–अण्डवाहिनी में होते हुए मादा के जनन छिद्र से जनन वेश्म में आकर 8-8 की दो कतारों में सज जाते हैं। इसी बीच शुक्रधानों से शुक्राणु जनन वेश्म में आकर अण्डों का निषेचन करते हैं। फिर मादा की colleterial glands द्वारा स्रावित पदार्थ जनन वेश्म में आते हैं। बायीं colleterial glands एक दूधिया घुलनशील प्रोटीन का तथा दाहिनी डाइहाइड्रोक्सीफीनोल (dihydroxyphenol) नामक जल-सदृश पदार्थ का स्रावण करती हैं। ये दोनों पदार्थ मिलकर स्क्लीरोप्रोटीन (scleroprotein) बनाते हैं जो निषेचित अण्डों की दोनों पंक्तियों के चारों ओर एक ही सहखोल (common egg-case) बनाती है। इस खोल को अण्डप्रावर या अण्डकवच अर्थात् ऊथीका (ootheca) कहते हैं।
पहले ootheca कोमल होता है। अतः मादा के गोनैपोफाइसीज एवं oothecal chamber की दीवार इसे एक निश्चित आकार दे देती है। फिर यह कुछ कड़ा हो जाता है। यह लगभग 8 मिमी लम्बा, बटुए (purse) जैसा होता है। इसका एक ओर का किनारा महीन आरी की भाँति कटा होता है। इसके बनने में लगभग 20 घण्टे लग जाते हैं। इस बीच यह शरीर के पश्च छोर पर oothecal chamber से अधिकाधिक बाहर की ओर खिसकता जाता है।
10वीं उदर टरगाइट इसे साधे रखती है। अन्त में मादा इसे किसी अन्धेरे एवं सूखे स्थान पर छोड़ देती है। यहाँ यह कई सप्ताह पड़ा रहता है और धीरे-धीरे गहरे भूरे रंग का हो जाता है। एक मादा कॉकरोच अपने 1-2 वर्ष के जीवनकाल में 15 से 40 ootheca बनाती है।
भ्रूणीय परिवर्धन, जीवन वृत्त एवं कायान्तरण (Embryonic Development, Life cycle and Metamorphosis) : कॉकरोच के अण्डे केन्द्रपीतकीय (centrolecithal) होते हैं, अर्थात् इनमें पीत (yolk) केन्द्रीय भाग में भरा होता है। इनका embryonic development
ootheca में होता है। यह 5 से 13 सप्ताह में पूरा होता है। विकासशील भ्रूण के लिए आवश्यक जल ootheca में ही होता है तथा हवा प्रावर के आरीनुमा किनारे के इधर-उधर उपस्थित कई महीन दरारनुमा छिद्रों में होकर इसमें आती-जाती रहती है। परिवर्धन पूरा होते होते, ootheca के किनारे पर लम्बी दरार बन जाती है। अन्त में इसी दरार पर ootheca फट जाता है और इसमें से नन्हें शिशु निकल आते हैं। इन्हें निम्फ (nymphs) कहते हैं। ये रचना में वयस्क कॉकरोच के ही समान परन्तु छोटे, हल्के रंग के और पंखहीन होते हैं। इनमें अर्धविकसित जननांग होते हैं। शिशु अवस्था लम्बी (6 महीने से दो वर्ष तक की) होती है। इस बीच शिशु में सक्रिय पोषण के कारण वृद्धि होती है।
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वृद्धि प्रावस्था के दौरान, प्रत्येक त्वक्पतन से पहले, प्रोथोरैक्सी ग्रन्थि, कॉरपोरा कार्डियेका के हॉरमोन्स के प्रभाव से, एक्डाइसोन या त्वकूपतन हॉरमोन (ecdysone or moulting hormone) का स्रावण करके इसे हीमोलिम्फ में मुक्त करती है। यह हॉरमोन वृद्धि एवं त्वपतन को प्रेरित करता है। साथ ही, यह शरीर के विभिन्न ऊतकों में वयस्क अवस्था प्राप्त करने के लिए आवश्यक वृद्धि प्रक्रियाओं को प्रारम्भ करता है। इसी समय, कॉरपोरा ऐलैटा किशोरावस्था हॉरमोन (juvenile hormone) का स्रावण करते हैं। यह हॉरमोन किशोरावस्था को बनाए रखता है और वृद्धिशील ऊतकों में वृद्धि और विभेदीकरण की दर को नियन्त्रित करता है। वृद्धि प्रावस्था की समाप्ति तक किशोरावस्था हॉरमोन का स्रावण धीरे धीरे कम होकर बिल्कुल समाप्त हो जाता है और इसी के साथ निम्फ पूर्ण विकसित वयस्क में बदल जाता है।
कायान्तरण (Metamorphosis) : मेंढक के विपरीत, कॉकरोच में शिशु तथा वयस्क की रचना एवं रहन-सहन में विशेष अन्तर नहीं होता है। अतः कायान्तरण में शरीर की वृद्धि ही प्रमुख परिवर्तन होता है। ऐसे कायान्तरण को अपूर्ण या पॉरोमेटाबोलिक (incomplete or pauro-metabolic metamorphosis) कहते हैं।
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